कहानी के तत्व
kahani ke tatva;अच्छी कहानी जो वर्तमान के सन्दर्भों के साथ आ रही हैं, उसकी कसौटी के निम्नलिखित आधार मान गये हैं, जिन्हें कहानी-कला, शिल्प या तत्व के रूप में जाना जाता है। कथाकारों ने कहानी के निम्नलिखित 6 तत्वों को निर्धारित किया हैं--
1. कथानक एवं कथावस्तु
कथानक को कहानी का शरीर कह सकते है। शरीर में जिस तरह प्राण-प्रतिष्ठा होती हैं, उसी तरह कथानक में शेष तत्व प्रतिष्ठित होकर कहानी को जीवन्त बनाते है। कथानक एक तरह से अनगढ़ पत्थर के समान होता है, उसी में से कहानीकार आकर्षक कहानी गढ़कर पेश करता है। कहानी के कथानक में ज्यादा घटनाएं तथा मोड़ नहीं होने चाहिए। कथानक में उत्सुकता, जिज्ञासा तथा प्रवाह होना चाहिए। ज्यादा लम्बा कथानक कहानी को उबाऊ बना देता है। प्राचीन कहानी की बजाय नई कहानी में कथानक बहुत सूक्ष्म हो गया हैं।
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2. पात्र और चरित्र-चित्रण
कहानी में पात्रों का चयन करते समय कथाकार पूर्ण सजग प्रहरी की तरह रहता हैं। हर पात्र का चयन कल्पना के आधार पर, यथार्थ के धरातल पर वह सहानुभूति को लिये हुये करता है, जिसके कारण अंत तक मूल संवेदना पात्र के साथ बनी रहे। मूल पात्र एवं अन्य पात्र आकर्षण का केन्द्र बने रहते है। कहानी के तथ्य, चरित्र और अनुभूति में आकर्षण होना चाहिए, तभी पात्र का चरित्र-चित्रण उभरता हैं।
3. कथोपकथन या संवाद-योजना
कथोपकथन को कहानी का अनिवार्य अंग माना गया है। पात्रों के जीवन के मंच का चरित्र अपना अभिनय हैं, संवाद-माध्यम से पात्र की मन:स्थिति स्पष्ट होती है। कार्य, व्यापार, घटना, विषय की जानकारी संवाद के माध्यम से ही मिलती हैं।
4. भाषा-शैली
कहानी ही क्या, साहित्य की कोई भी विधा भाषा के बगैर आकार ग्रहण नहीं कर सकती। भाषा ही हमारे भावों, विचारों तथा कल्पनाओं को दूसरों तक पहुँचाती है। कहानी की भाषा पात्रानुकूल होनी चाहिए। प्रसादजी ने इस तरह की कहानियाँ लिखी हैं, जिनके सभी पात्र तत्सम प्रधान संस्कृत बोलते तथा उसी में चिन्तन करते हैं। ऐतिहासिक कहानियों की भाषा काल के अनुसार रखनी पड़ती है। कहानी लिखने की कई शैलियाँ है। ऐतिहासिक, आत्मकथा, पात्र, डायरी आदि कहानी की प्रमुख शैलियाँ हैं। आजकल कहानी का ज्यादातर भाग पूर्वदीप्ति शैली में लिखा जाता हैं।
कहानी किसी न किसी देश या काल को लेकर लिखी जाती है। कहानी में देश तथा काल का स्पष्ट या सांकेतिक वर्णन होना चाहिए। कहानीकार हेतु कहानी के वातावरण पर भी ध्यान देना जरूरी है। कहानी में पारिवारिक, सामरिक कई तरह का वातावरण हो सकता है। ज्यादातर कहानीकार वातावरण प्रस्तुत करने में ही कहानी का अधिकांश भाग लगा देते हैं। प्रेमचन्द की कहानी 'पंचपरमेश्वर' तथा गोपालराम गहमरी की कहानी 'उसने कहा था' इसी तरह की है।
5. वातावरण
कहानी का वातावरण मनुष्य की सभ्यता और संस्कृति को उजागर करता है। कहानी का संबंध किसी न किसी काल से अवश्य होता है। वातावरण का मूल आधार भौतिक और मानसिक है जो कहानी के आयाम को नया मोड़ देते है। कहानी जीवन का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिसमें वातावरण जीवन का एक हिस्सा हैं।
6. उद्देश्य
मूर्ख व्यक्ति भी बगैर उद्देश्य के कोई काम नहीं करता। कहानी का लेखक तो पढ़ा-लिखा, प्रतिभाशाली तथा विचारक होता है। उसकी रचना बगैर किसी उद्देश्य के नही नहीं होनी चाहिए। कुछ कहानियाँ बगैर किसी उद्देश्य के भी लिखी जाती है, जो लोग कला के लिए सिद्धान्त को मानते है, वे किसी उद्देश्य को लेकर कहानी लिखना उचित नहीं समझते। कहानी में उद्देश्य तिलों में तथा फूलों में ग्रन्थ के समान छिपा रहना चाहिए। जिस कहानी का उद्देश्य स्पष्ट हो जाता है, उसका कहानीकार उपदेशक-सा प्रतीत होने लगता हैं। कहानी मनोरंजन हेतु लिखी जाती है, उपदेश सुनने अथवा पढ़ने हेतु नहीं।
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