2/08/2023

ओम का अर्थ, रहस्य/शक्ति, लाभ

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 प्रश्न; ओम का क्या अर्थ हैं? ओम ध्यान की प्रक्रिया समझाए। 

अथवा" ओम के रहस्य को स्पष्ट कीजिए। 

अथवा" ओम के चमत्कार लाभ बताइए। 

उत्तर--

ऊँ/ओम का अर्थ (om ka arth)

ओम की ध्वनि तीन अक्षरों से मिलकर बनी है: आ, उ, म। यह मूल ध्वनियाँ है जो हमारे चारों तरफ हर समय उच्चारित होती रहती है। ओम को अनहद नाद भी कहते है इसे प्रणव मंत्र भी कहते हैं।

ओम एक पवित्र ध्वनि है जो ईश्वर के मुख से निकली है और अनंत शक्ति का प्रतीक है। इस ध्वनि में का अर्थ है उत्पन्न होना अर्थात् किसी चीज का जन्म होना (स्थूल जगह का आधार) का अर्थ है उड़ना यानि विकास (सूक्ष्म जगत का आधार) और का अर्थ हैं मौन हो जाना यानि कि ब्रह्यलीन हो जाना (आध्यात्मिक जगत का आधार) 

ओम को पूरे ब्रह्यण्ड का स्वरूप माना जाता हैं। 

ओम में सम्मिलित अक्षरों का अर्थ जानने के लिए एक उदाहरण लेते हैं; 

ओम में "म" अक्षर से ईश्वर के पालन गुण प्रकाशित होते है और पालन आदि गुण मुख्य रूप से माता से ही जाने जाते है। लगभग सभी संस्कृतियों में माता के लिए जो शब्द प्रयोग होते है उसमें "म" का समावेश है। जैसे संस्कृत में माता, हिंदी में माँ, उर्दू में अम्मी, अंग्रेजी में मदर, फारसी में मादर, चीनी भाषा में मांकुन् इत्यादि। एक छोटा बच्चा भी सबसे पहले इस "म" को ही बोलता है या सीखता है और इसी से अपने भाव व्यक्त करता है। इससे पता चलता है कि ईश्वर की सृष्टि और उसकी विद्या वेद में कितना गहरा संबंध हैं। 

ओम का उच्चारण किसी भी धार्मिक अनुष्ठान या पूजा पाठ करने से पहले और अनुष्ठान की समाप्ति पर किया जाना शुभ माना गया हैं। 

ओम बाकी सभी मंत्रों के लिए बीज मंत्र हैं। 

भगवान शंकर का मंत्र हो तो ऊँ नमः शिवाय, गणपति जी का मंत्र है तो ऊँ गणेशाय नमः, भगवान राम का मंत्र है तो ऊँ रामाय नमः, श्री कृष्ण जी का मंत्र हो तो ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय, माँ गायत्री का मंत्री हो तो ऊँ भूर भुवा स्वाहा.....इस प्रकार सभी मंत्रों के आगे ओम तो जुड़ा ही हैं। महर्षि पतंजलि ने कहा है तपस्या वाचक प्रणव अर्थात् ओम परमात्मा का प्रतीक है, उसी की स्वाभाविक ध्वनि हैं। 

ऊँ मंत्र का वर्णन सभी प्राचीन ग्रंथों से मिलता है। वेद के उच्चारण से पहले और अंत में इस मंत्र का उच्चारण शुभ माना गया है। ऋषि मुनियों का मानना है कि ओम का उच्चारण और परमात्मा की स्तुति एक ही हैं। ऐसा मानना है कि भगवान शिव इस मंत्र के घोतक है। यह वेदों का आधार है। जब आप इस मंत्र का उच्चारण करते है तो आप ध्यान मग्न हो जाते हैं। आप केवल एक आवाज ही नहीं निकाल रहे बल्कि आप एक कंपन को जन्म दे रहे हैं, जो आपकी भौतिक इच्छाओं का दमनकर उस परमात्मा से मिलन की इच्छा को साकार बनाने में सक्षम हैं। ठीक ढंग से अगर ओम का उच्चारण तीन बार भी किया जाए तो आपके सभी पापों का नाश करने में सक्षम हैं।

ऊँ / ओम की शक्ति या रहस्य 

माना जाता है कि ओम की ध्वनि में हिंन्दू परंपराओं के अनुसार सम्पूर्ण ब्रह्याण्ड समाहित है। यह समय के आरम्भ मे बनाई गई पहली ध्वनि है और वर्तमान एवं भविष्य के साथ-साथ शामिल हैं। परिणामस्वरूप, इसके महत्व एवं प्रभाव का आकलन करना कठिन है। यह आज्ञा चक्र, तीसरी आँख से जुड़ा हुआ, जो चक्र प्रणाली मे अंतर्ज्ञान एवं आत्म-ज्ञान का प्रतीक हैं। इसका उपयोग ध्यान के दौरान विभिन्न प्रकार के अन्य मंत्रों को बनाने के लिए भी किया जा सकता हैं। 

ओम ही ऐसा मंत्र है जो मोक्ष की ओर ले जा सकता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार मूल मंत्र या जप तो मात्र ओम ही है। प्रणव ही महामंत्र और जप योग्य है। इसे प्रणव साधना भी कहा जाता है। जब व्यक्ति ध्यानावस्था में शून्य में चला जाता है तब वह ध्वनि ही उसे निरंतर सुनाई देती हैं। 

ऊँ के उच्चारण का अभ्यास करते-करते एक समय ऐसा आता है जब उच्चारण (मुखर या मौन) करने की आवश्यकता नही रहती, सिर्फ आँख-कान बंद कर उसे सुनें तो वह ध्वनि सुनाई देगी। भीतर प्रारंभ में वह बहुत सूक्ष्म सुनाई देगी, फिर बढ़ती जाएगी। साधु संत व साधक योगी कहते है कि यह ध्वनि प्रारंभ में झींगुर की आवाज जैसी सुनाई देगी। फिर धीरे-धीरे जैसे बीन बज रही हो, फिर धीरे-धीरे ढोल जैसी थाप सुनाई देगी, अंत में यह ध्वनि शंख जैसी हो जाएगी और अंततः शुद्ध ब्रह्यंडीय ध्वनि होगी। 

प्रणव मंत्र के लगातार जप करने से शरीर व मन को एकाग्र करने में भी मदद मिलती है। दिल की धड़कन और रक्त संचार व्यवस्थित होता हैं। ध्यान में इसलिए इस ध्वनि का जप होता हैं। 

ओम उच्चारण के लाभ 

ओम का उच्चारण करने से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं-- 

1. पेट के लिए लाभदायक हैं 

ओम का उच्चारण पेट के लिए अच्छा होता है। नियमित रूप से ओम का उच्चारण करने से पेट की माँसपेशियों को आराम मिलता है। पेट की समस्या वाले व्यक्ति को उपाय के रूप में ओम् का उच्चारण जरूर करना चाहिए। 

2. मन को शांत करता है

ओम का उच्चारण करने से व्यक्ति के जीवन में अच्छी वस्तुएँ आकर्षित होती हैं,  ओम का उच्चारण मन को शांत करने तथा शरीर में सकारात्मक ऊर्जा लाने का एक शक्तिशाली उपकरण हैं। यह क्रोध प्रबंधन का भी एक बड़ा स्त्रोत हैं। 

3. तनाव एवं चिंता को कम करना 

ओम का उच्चारण मन से तनाव एवं चिंता को कम करने में सहायता करता है। यह आस-पास के वातावरण को शुद्ध करने में सहायता करता है तथा सकारात्मक ऊर्जा विकसित करता है और व्यक्ति को प्रसन्न करता है। प्रसन्नचित्त मन सदैव तनावमुक्त रहता है। यह एक समय में एक वस्तु पर ध्यान केंद्रित करने में सहायता करता हैं। 

4. अन्य स्वास्थ्य लाभ 

यह न केवल किसी की प्रतिरक्षा प्रणाली को सशक्त बनाता हैं, बल्कि स्वयं को ठीक करने की शक्ति भी रखता है। एक स्वस्थ प्रतिरक्षा करते समय स्वर रज्जु के माध्यम से एक कंपन ध्वनि का अनुभव किया जाता हैं, जो साइनस को स्वच्छ करती है तथा खुलती है। ओम का उच्चारण ह्रदय के लिए भी अच्छा होता है। यह तनाव से राहत देता है और शरीर को आराम देता है, जिससे रक्तचाप सामान्य हो जाता है एवं ह्रदय एक नियमित रूप से धड़कता हैं।

"ओम" ध्यान की प्रक्रिया 

ओम ध्यान का अभ्यास करने की प्रक्रिया निम्नलिखित हैं-- 

1. उचित आसन का प्रयोग 

ओम ध्यान करते समय कमल या वज्रासन की स्थिति में बैठें। यदि कोई व्यक्ति बैठने में असमर्थ है, तो वह कुर्सी पर सकता/सकती हैं। सीधी पीठ एवं शांत व आरामदायक बैठने की स्थिति बनाए रखे। हाथों को जाँघों या दूसरे हाथों पर आराम देना महत्वपूर्ण है। व्यक्ति चाहे तो इसे एक हाथ से दूसरे हाथ पर रखकर अपनी गोद मे रख सकते हैं। स्वस्थ मस्तिष्क के साथ शांत बैठना आवश्यक हैं। 

2. आँखों की स्थिति

ध्यान करते समय आँखों को बंद करना महत्वपूर्ण है। उन्हें धीरे-धीरे नीचे की ओर मोंड़ें और फिर धीरे से उन्हें बंद कर दें। परिणामस्वरूप, दृश्य विकर्षण समाप्त हो जाता है तथा मस्तिष्क की गतिविधि कम हो जाती है। बंद आँखे व्यस्त मन को शिथिल एवं शांत करने में मन की सहायता करती हैं। 

3. श्वास का प्रकार 

ओम का ध्यान करते समय मुँह बंद करना एवं श्वास लेना महत्वपूर्ण है। सुनिश्चित करें कि श्वास लेने एवं छोड़ने के लिए केवल नाक का उपयोग किया जा रहा है। मुख की माँसपेशियों को आराम से बनाए रखें। साथ ही ऊपरी एवं निचले दाँतों को एक साथ जबरदस्ती करने या एक दूसरे को छूने के बजाय, उन्हें थोड़ा अलग करके रखें। इसके बाद व्यक्ति को अपनी श्वास के अंदर एवं बाहर आने पर ध्यान देना चाहिए। 

4. ओम का उच्चारण 

श्वास लेते एवं छोड़ते हुए ओम का जाप करते रहें। जप को श्वास लेने के बजाय जप को श्वास की अवधि के अनुसार स्थिर करें। ओम अक्षर को A-A-U-M से तोड़ें, फिर शांत हो जाएँ तथा अंत में वापस ओम पर आ जाएँ। तत्पश्चात् दो शब्दों को मुँह खोलकर कहें। अगला कदम होठों को एक साथ धक्का देना तथा अगले दो शब्दांश कहना है। अंतिम दो अक्षर कहने के लिए जीभ के सिरे को मुख की शीर्ष पर लगाएं। 

5. सभी को एक साथ मिलाना 

श्वास के साथ ओम का उच्चारण करते रहें। ओम का उच्चारण चक्र अवश्य ही सफल होगा। यह निःसंदेह किसी के विचारों को शांत करेगा। ओम का ध्यान मानसिक एवं शारीरिक दोनों प्रकार से किया जा सकता है। ओम का उच्चारण करते समय शरीर में होने वाले आंतरिक स्पंदनों पर ध्यान दें। 

6. ओम ध्यान का प्रभाव 

गहराई से ओम का ध्यान करने से वह अधिक कोमल एवं सूक्ष्म ओम कंपन को बढ़ावा देता है। ये लगभग अश्रव्य होते है। यह धीरे-धीरे अपनी शक्ति खो देता है तथा एक व्यक्ति को ज्ञात हो जाता है कि ओम सदैव उसके शरीर में विद्यमान हैं एवं कार्य करता हैं।

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