1/10/2023

मानव जीवन में योग का महत्व, गलत धारणाएं/भ्रांतियाँ

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प्रश्न; योग का मानव जीवन में क्या महत्व हैं?

अथवा" योग का शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक महत्व स्पष्ट कीजिए। 

अथवा" योग के संबंध भ्रांतियाँ बताइए।

अथवा" योग से संबंधित गलत धारणाओं के बारे में लिखिए।

उत्तर--

योग का मानव जीवन में महत्व 

yog ka mahatva;योग के जरिए शरीर और मन दोनों ही चुस्त-दुरुस्त रहते हैं। योग हमारी संस्कृति का एक अहम हिस्सा है, और यह हमारे जीवन में शरीरिक स्वास्थ्य और मानसिक शांति के लिए अतिमहत्वपूर्ण हैं। 

योग एक ऐसी साधना हैं, एक ऐसी विद्या है, जिससे व्यक्ति शारिरिक, मानसिक, आध्यात्मिक स्वास्थ्य प्राप्त करता है। 

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मानव जीवन में योग के महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता हैं--

1. योग का शारीरिक महत्व 

योग आसन शक्ति, शरीर में लचीलेपन और आत्मविश्वास विकसित करने के लिए जाना जाता है। वर्तमान समय लोग ज्यादातर अपने को फिट रखने के लिए जिम जाया करते हैं, लेकिन पूर्ण स्वास्थ की दृष्टि से जीम जाना उतना प्रभावशाली नही है जितना की योगाभ्यास होता हैं, क्योंकि योग शरीर को निखारने के साथ-साथ आंतरिक शुद्धि भी प्रदान करता हैं। 

WHO भी इस बात को स्वीकार करता हैं कि वर्तमान में व्याप्त शारीरिक व मानसिक रोगों से छूटकारा पाने के लिए योग एक अचूक चिकित्सा उपाय हैं। 

2. योग का मानसिक महत्व 

आधुनिक के इस दौर में व्यक्ति की सहन-शक्ति, प्रतिरोधात्मक क्षमता एवं अंतरमुख्ता इतनी कमजोर हो चुकी है कि उन्हें छोटी सी छीटी घटना भी विचलित और तनाव से ग्रस्त कर देती हैं। वर्तमान परिवेश में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसे किसी प्रकार की चिंता, अवसाद, तनाव जैसी कोई समस्या ना हो। योग शरीर और मन को शांत करने के लिए शारीरिक और मानसिक अनुशासन का एक संतुलन बनाता है। यह तनाव और चिंता का प्रबंधन करने में भी सहायता करता है और आपको आराम से रहने में मदद करता है।

योग विभिन्न शरीरिक रोगों के साथ-साथ मानसिक रोगों के लिए भी सहज समाधान प्राप्त करता हैं। 

घेरंड संहिता में कहा गया हैं-- 

"ना च रोगों न च क्लेश आरोग्यंच दिनेदिने।"

यानी योग करने वालों को ना कभी रोग सताता है और न किसी प्रकार का मानसिक क्लेश, वह प्रतिदिन आरोग्य की प्राप्ति करता है। अतः यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि योग मानव के मानसिक पक्ष पर प्रभाव डालने वाली एक महत्वपूर्ण साधक विधि हैं।

3. योग का आध्यात्मिक महत्व 

हमारे प्राचीन भारतीय ग्रंथो में मानव जीवन का मुख्य लक्ष्य मोक्ष (यानि की जन्म-मरण के इस बार-बार के चक्कर से हमेशा के लिए छूटकारा) बताया गया हैं।

इस महान लक्ष्य की प्राप्ति का माध्यम हमारा मन है। यह मन ही है, जो कि बन्धन और मोक्ष का कारण है। 

जैसा की शास्त्रों में वर्णित है--

"मन एवनां कारणं बन्ध मोक्षयोः।" 

अर्थात् मन ही बन्धन और मोक्ष का कारण है। इसलिए योग साधना में मन को ईश्वरोन्मुख बना कर तत्वज्ञान की प्राप्ति की जा सकती है। योग के द्वारा जन्मों के संस्कारो द्वारा अनेक मलिन हुए चित्त का निर्मल का आत्मा के यर्थाथ स्वरूप का ज्ञान कराया जाता है। योग युक्त होते ही हमारी इन्द्रियाँ जो कि स्वभाव से ही चंचल है, वह अर्न्तमुखी होने लगती है। योग साधना के प्रयोग से दिव्य दृष्टि की प्राप्ति होती है, और इस योग दृष्टि की प्राप्ति होती हैं। 

और इस योग दृष्टि द्वारा ही गूढ़तम रहस्यों उजागर किया जा सकता है। इस योग साधना द्वारा तत्वदर्शन, आत्मदर्शन, अतीन्द्रिय दर्शन, दिव्यदर्शन व ब्रह्मसाक्षत्कार किया जाता है। अनेको ग्रन्थों में सत्य वर्णन मिलता है। 

घोर संहिता में योग के महत्व का वर्णन इस प्रकार किया गया है--

"अभ्यासात्कादिदर्शनानां यथाशास्त्राणि बोधयेत्।"

जिस प्रकार 'क' 'ख' अक्षारारम्भ का अभ्यास करते करते शास्त्र का विद्वान बना जाता है। उसी प्रकार योग का अभ्यास करते-करते तत्व ज्ञान प्राप्त हो जाता है। योग वस्तुतः पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति का साधन है। मोक्ष पद को प्राप्त करने का श्रेष्ठ एवं सर्वोत्तम साधन है। ऐसा शास्त्रों द्वारा सिद्ध हो चुका है।

4. योग का सामाजिक महत्व 

मानव एक सामाजिक प्राणी हैं, मानव समाज के बिना मानव का सामाजिक विकास संभव ही नही हैं। समाज के वातावरण से मानव के शारीरिक एवं मानसिक दोनों ही पक्ष प्रभावित होते हैं जो कि अनुकूल भी हो सकते हैं और प्रतिकूल भी हो सकते है। आधुनिक समाज में मानव धन कमाने तथा भौतिक संसाधनों को बटोरने तथा विलासिता पूर्ण जीवन बिताने की होड़ में लगा हुआ हैं। प्रतिस्पर्धा व उच्चतम चाह के लिए अनैतिक कार्यों को करने से भी परहेज नहीं करता। नकारात्मक चिंतन को शह मिलती है जिससे अनेकों शारीरिक व मानसिक रोग उत्पन्न होते है और समाज में कलह का कारण बनते हैं। समाज में फैली हिंसा, आतंक, अविश्वास, भ्रष्टाचार की प्रवृति व्यक्ति के विकास में तथा समाज के उत्थान में बाधा उत्पन्न करती हैं। 

समाज में फैली इन सब कुरीतियों को दूर करने के लिए योग का एक महत्वपूर्ण स्थान हैं। योगिक अभ्यास जैसे प्राणायाम आसन व ध्यान के माध्यम से मानव शारीरिक व मानसिक रोगों का निवारण कर ऊँची सोच वाला बन सकता हैं। कर्म योग, हठयोग, यम-नियम, भक्ति योग, ज्ञान योग, मंत्र योग आदि साधनाएं समाज के उत्थान तथा उसे परिष्कृत करने में सहायक सिद्ध होती हैं। अतः योग के अभ्यास से एक आदर्श समाज की स्थापना की जा सकती हैं।

5. योग का पारिवारिक महत्व 

परिवार समाज की सबसे महत्वपूर्ण इकाई हैं। परिवार व्यक्ति का समाजीकरण करता है। उसके व्यवहारों पर नियंत्रण रखता है, उसके व्यवहार को सामाजिक नियमो तथा रीति-रिवाजो के अनुसार ढालता है। परिवार से ही व्यक्ति की सामाजिक स्थिति निर्धारित होती है। समाज के प्रत्येक सदस्य को उसकी संस्कृति अर्थात् उसकी परंपराओं तथा रीति रिवाजों के अनुकूल ढालना पड़ता है। परिवार इस कार्य को पूरा करने के लिए प्रत्येक सदस्य के लिए सांस्कृतिक पर्यावरण प्रस्तुत करता है। परिवार के सही मार्ग दर्शन से व्यक्ति सफलता के उच्च शिखर को प्राप्त करता है इसके विपरीत गलत मार्ग दर्शन में व्यक्ति अपने पथ से भटक जाता है।

वर्तमान समाज में एकल परिवार का बढ़ता चलन और पाश्चात्य संस्कृति का तेजी से बढ़ते प्रभाव ने अनेकों समस्याओं को जन्म दिया है। इससे नैतिक मूल्यों में गिरावट आई है और अनैतिक आचरण को प्रोत्साहन मिल रहा हैं। 

इन सभी समस्याओं का समाधान योग में निहित हैं। योग में बताए गए यम, नियम के अंतर्गत संतोष, तप, स्वाध्याय, सत्य अस्तेय, ब्रह्मचर्य आदि योगिक साधन पारिवारिक वातावरण को सुसंस्कृत और समृद्ध बनाते हैं। 

स्वार्थपरकता और भौतिक सुखों को प्राप्त करने की लालसा को योग क्रियाओं के द्वारा नियमित किया जा सकता हैं। परिवार में सौहार्द्रपूर्ण वातावरण बनाने में योग की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हैं।

6. योग का नैतिक महत्व 

योग व्यक्ति को नैतिक मूल्य सद्गुणों को विकसित करने में सहायक है। योग साधना द्वारा इन्द्रिय संयम कर नैतिक व सद्-विचारो का और आदतों को विकसित किया जा सकता है। योग के अन्तर्गत यदि हम अष्टांग योग की बात करे तो देखेगे कि इसके व्यवहारिक व चिकित्सकीय पक्ष है। अष्टांग योग के अन्तर्गत यम (सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रहमचर्य) और नियम (शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्राणिधान) हमारे व्यवहार की शुद्धि करते है, व नैतिक मूल्यों को विकसित करते है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली में प्रचलित नैतिक शिक्षा बालको में नैतिक गुणों को विकसित नहीं कर पाती हैं। जबकि योगानुष्ठान के द्वारा बालक व सभी आयु वर्ग के व्यक्ति में नैतिक गुण विकसित किये जा सकते है। योगानुष्ठान के द्वारा मन की शुद्धि होती है। शरीर की शुद्धि होती है। योगानुष्ठान करने वाले साधक की वुद्धि विकारो से रहित हो जाती है। तथा विवेक ज्ञान की प्राप्ति होती हैं। सही गलत का ज्ञान होने लगता है, और इस प्रकार मनुष्य में नैतिक गुणो को विकसित करने में योग की अपनी अहम भूमिका है। योग सूत्र में वर्णित क्रिया-योग तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्राणिधान यह साधना का किया पक्ष है। क्रिया-योग के तीन पक्ष है। तीनों पक्ष ऐसे है, जिससे व्यक्ति उत्कृष्ट चिन्तन, कुशल कर्म तथा सालीन व्यवहार वाला हो जाता हैं। योगा अभ्यास से इन्द्रिय संयम, समय संयम, विचारो में संयम तथा सुव्यवस्थित, अनुशासित जीवन हो जाता है। नैतिकता के गुण, पुण्य, भलाई, नेकी, सदाचार के मार्ग पर मनुष्य तीव्र गति से अग्रसर होने लगता है।

7. योग का चिकित्सकीय महत्व 

शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से स्वस्थ और रोग विकारों से रहित व्यक्ति को ही स्वस्थ व्यक्ति कहा जाता हैं। स्वास्थ्य प्रदायक गुणवत्ता के अलावा योग रोगों की चिकित्सा का भी एक एक सर्वोत्तम साधन हैं। योग पद्धति की विशेषता यह है कि किसी प्रकार के विपरीत तथा नकारात्मक प्रभाव की संभावना नहीं होती। वर्तमान की लाइफ स्टाइल के कारण मधुमेह, ह्वदय रोग, अर्थराइटिस, मोटापा, कैंसर आदि अनेकों रोग दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहें हैं। योगाभ्यास इस तरह के रोगों का निदान करने में सक्षम हैं।

योग संबंधी गलत धारणाएं अथवा भ्रांतियाँ

योग ऐसी कला है जिसके जरिए शरीर और मन दोनों ही चुस्त-दुरुस्त रहते हैं। परन्तु लोगों में योग को लेकर अनेक गलत धारणाएं प्रचलित हैं-- 

1. योग करने के लिए शरीर को लचीला होना यह आम भ्रांति है जो सही नहीं हैं। वस्तुतः योग लगातार या नियमित करते रहने से शरीर स्वयं लचीला (लोचदार) होता हैं। 

2. दूसरी गलत धारणा है कि स्वस्थ व्यक्ति को योग करने की आवश्यकता नहीं हैं। परन्तु सही मायने में स्वस्थ व्यक्ति को योग करके लंबे समय तक स्वस्थ बने रहने के लिए योग जरूर करना चाहिए। 

3. योग करना काफी महँगा है तथा योग सेंटर्स में योगा की फीस काफी अधिक होती हैं! यह धारणा भी भ्रांतिपूर्ण हैं, क्योंकि आज यूट्यूब के जरिए योग बिल्कुल निःशुल्क उपलब्ध हैं। 

4. योग को धर्म से जोड़ा जाता है। कुछ लोग योग को एक विशेष समुदाय और धर्म से जोड़कर देखते हैं। लेकिन इस बात में सच्चाई नहीं हैं। एक स्वस्थ शरीर और मन सभी को चाहिए। किसी भी धर्म/संप्रदाय के लोग योग को कर सकते हैं। 

5. कुछ लोगों को यह भ्रांति हैं कि योग एक्सरसाइज नहीं है और जितनी कैलोरी ट्रेडमिल पर एक्सरसाइज करके बर्न होती है उतनी योगा से नही होती। परन्तु यह धारणा भी सही नहीं है। योग भी एक तरह की एक्सरसाइज है जो शरीर के आंतरिक व बाह्य अंगों के लिए बहुत ही लाभप्रद हैं। 

6. यह धारणा भी गलत है कि योग मात्र युवाओं के लिए है। वास्तव मे योग प्रत्येक उम्र के लोगों के लिए लाभप्रद है चाहे वे 20 वर्ष के युवा हों या 70 वर्ष के बुजुर्ग। 

7. योग करने में समय नष्ट होता है यह सोचकर भी कुछ लोग योग नहीं करते। परन्तु यदि आप 10-15 मिनट भी सुबह तथा सायंकाल योग करते है तो यह शरीर व मन के लिए लाभदायक हैं। यदि आपका शरीर ही स्वस्थ नही रहेगा तो फिर आप ऐसे समय का क्या करेंगे?

8. एक भ्रांतिपूर्ण धारणा यह भी है कि सिर्फ पतले और स्वस्थ लोगों को ही योग करना चाहिए। परन्तु  स्थूलकाय लोग योग कर अपने शरीर को फिट बना सकते हैं। 

9. योग में विविधताएं कम हैं यह भी एक गलत धारणा है। योग में एक-दो नहीं सैकड़ों आसन हैं। किसी योग की कक्षा में जाकर इन विभिन्न आसनों तथा इनके लाभों को समझा जा सकता हैं। 

10. चोट से पीड़ित व्यक्ति योग नहीं कर सकते यह धारणा भी असत्य हैं। कुछ विशेष आसनों को छोड़कर अन्य आसन योग शिक्षक से परामर्श लेकर कर सकते हैं। इससे दर्द से भी आराम मिलेगा।

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