1/21/2023

योग प्रथाओं का परिचय

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योग प्रथाओं का परिचय 

योग का प्रारंभ एक प्राचीन प्रथा के रूप में माना जाता है, इसकी उत्पति भारत में 3000 ई. पूर्व योग मुद्राओं के पाषाण नक्काशीदार आकड़े सिंधु घाटी मे पाए जा गए है। जो एक मुद्रा और प्रथाओं को दर्शाते है। यानि कि प्राचीनतम् धर्मों या आस्थाओं के जन्म लेने से काफी पहले योग का जन्म हो चुका था। योग विद्या में शिव को आदि योगी तथा आदि गुरू माना जाता हैं। विभिन्न कालों में योग की प्रथाओं की स्थिति को रेखांकित किया गया हैं-

1. पूर्व वैदिक काल (ईसा पूर्व 3000) 

जब बौद्ध का प्रादुर्भाव हुआ। तब पश्चिमी विद्वानों के अनुसार योग का जन्म 300 ईसा पूर्व हुआ था। हड़प्पा और मोहनजोदड़ों में जो उत्खनन हुआ उससे प्राप्त योग मुद्राओं से ज्ञान होता है कि योग का चलन 5000 वर्ष पूर्व से ही था। 

2. वैदिक काल (3000 ई. पूर्व से 500 ई. पूर्व)

वैदिक काल में एकाग्रता का विकास करने के लिए और सांसारिक कठिनाओं को पार करने के लिए योगाभ्यास किया जाता था। पुरातन काल के योगासनों और वर्तमान काल के योगासनों में अंतर हैं। इस काल मे यज्ञ और योग का बहुत महत्व था। ब्रम्हचर्य आगमन में वेदों की शिक्षा के साथ शस्त्र और योग की शिक्षा भी जाती थी। 

3. पूर्व शास्त्रीय काल (500 ई. पूर्व तक) 

भगवत गीता में ज्ञान योग भक्तियोग कर्मयोग और राज योग का उल्लेख मिलता है। गीतोपदेश में  भगवान श्रीकृष्ण स्वयं अर्जुन को कर्मयोग, भक्तियोग व ज्ञानयोग के महत्व को बताते हैं। 

4. शास्त्रीय काल (200 ई. पूर्व से 500 ई.) 

पतंजलि ने वेद में बिखरी योग विद्या को 200 ई. पूर्व पहली बार समग्र रूप में प्रस्तुत किया है। उन्होंने सार रूप मे योग के 195 सूत्र संकलित किए। पतंजलि सूत्र का योग, राजयोग है इसमें आठ अंग है। यम (सामाजिक आचरण)  नियम (व्यक्तिगत आचरण) आसन (शारीरिक आसन) प्राणायाम (श्र्वास विनियम) प्रत्याहार (इंद्रियों की वापसी) धारण (एकाग्रता) ध्यान और समाधि।

5. मध्ययुग (500 ई. से 500 ई.) 

इस काल में पतंजलि योग के अनुयायियों ने आसन, शरीर और मन की सफाई, क्रियाएं और प्राणायाम करने को अधिक महत्व दिया। योग का यह रूप हठयोग कहलाता है। इसी युग में योग की छोटी-छोटी प्रथायें शुरू हुईं। 

6. आधुनिक काल 

आधुनिक काल का शुरुआती समय 1850 ईसवी से माना जाता है। स्वामी विवेकानंद ने शिकागो के धर्म संसद मे अपने ऐतिहासिक भाषण में योग का उल्लेख कर सारे संसार को योग से परिचित कराया। महर्षि महेश योगी, परमहंस, योगनंद, रमण महर्षि जैसे अनेक योगियों ने पश्चिम दुनिया को प्रभावित किया और धीरे-धीरे योग एक धर्म निरपेक्ष प्रक्रिया आधारित, धार्मिक सिद्धांत के रूप दुनिया भर में स्वीकार किया गया। 
हर साल 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। योग दिवस पहली बार 21 जून 2015 को मनाया गया था। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस में पीएम मोदी का खास योगदान है। साल 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने योग दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा था। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाषण देते हुए 21 जून को योग दिवस मनाने का प्रस्ताव पेश किया था। 11 दिसंबर 2014 को मोदी के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया और इस तरह से 21 जून 2015 से अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की शुरुआत हुई। 
लाखों लोगों ने योग साधना से लाभ प्राप्त किया हैं।
योग प्रथाओं को निम्नलिखित चार धाराओं में बाँटा जाता हैं-- 

1. भक्ति योग 

भक्ति योग उन लोगों के अनुकूल है जो भावनात्मक और भक्तिभाव में लीन होते हैं। भक्ति योग के अधिकारी सभी स्त्री पुरूष, बालक, वृद्ध और युवक इत्यादि हो सकते है।
स्वामी विवेकानंद के अनुसार," सच्चे व निष्कपट भाव से ईश्वर की खोज करना भक्ति योग हैं।" 
भक्ति योग सबसे शुभ और सर्वजन प्रिय योग पथ है। भगवान के प्रति उत्कृष्ट प्रेम विशेष का नाम ही भक्ति है और भक्ति के द्वारा मनुष्य भगवान से जुड़ता है इसलिए भक्ति योग कहलाता हैं। 

2. ज्ञान योग 

ज्ञान योग उन लोगो के लिए है जो प्रकृति से सहज होते है। वह ओम के वास्तविक अर्थ के विषय मे चिंतन अन्वेषण करते है। सामान्यतः ज्ञान का अर्थ जानना, ज्ञात होना, आदि के संबंध मे लिया जाता हैं। ज्ञान को प्रकाशमय माना गया है। ज्ञान का स्वरूप है किसी वस्तु को प्रकाशित करना। जिस प्रकार दीपक निकटस्थ वस्तु को प्रकाशित करता है उसी प्रकार ज्ञान भी वस्तु को प्रकाशित करता हैं। इस ज्ञान को ईश्वर-प्रदत्त अर्थात् सत्य प्रदत्त माना गया है। सत्य और ज्ञान एक ही वस्तुये हैं। 
ज्ञान पर आधारित योग पद्धति को ज्ञान की संज्ञा दी जाती है। मोक्ष प्राप्त करने के मार्गों में सबसे महत्वपूर्ण धारा ज्ञान योग हैं। 
ज्ञानात एवं मुक्ति
यानि कि मुक्ति का एकमात्र उपाय ज्ञान की प्राप्ति हैं। 

3. राजयोग 

राजयोग सभी प्रकार की योग पद्धतियों का राजा कहलाता है। राग योग उन लोगों के लिए है जिनकी दृढ़ इच्छाशक्ति होती हैं। राजयोग का साधक सीधे समाधि अवस्था से ही साधना प्रारंभ करता है और समाधि मे ही मोक्ष के द्वारा खुलते है। 
पतंजलि द्वारा रचित "योग दर्शन" इस योग का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है। राजयोग का प्रारंभ सूक्ष्य शरीर (मन) के नियंत्रण से होता है। राजयोग की साधना में साधक के लिए धारणा, ध्यान और समाधि का निरंतर अभ्यास करना होता है, क्योंकि अभ्यास से ही चित्त की वृत्तियों का निरोध संभव है। यम नियम का पालन और प्राणायाम का अभ्यास सहायक के रूप में इस योग में काम आता हैं। 

4. कर्म योग 

कर्म योग उन लोगों के लिए है जो प्रकृति से सक्रिय होते हैं। कर्म मनुष्य जीवन से अविच्छिन्न संबंध रखता है। यदि जीवन है तो अनिवार्य रूप से कर्म भी है। व्यक्ति के न चाहते हुए भी प्रकृति उससे कर्म कराती ही हैं, क्योंकि सभी मनुष्य प्रकृति व सृष्टि के विधान से बंधे हुए हैं। 
प्रमुख यौगिक क्रियाएं ये हैं-- 
(अ) आसन 
ये कई प्रकार के हैं जैसे लेटकर, बैठकर, खड़े होकर आदि द्वारा निर्धारित तकनीक व अनुशासन से किये जाते है। जैसे भद्रासन, पद्मासन, सिंहासन, वज्ज्रासन, पाद हस्तासन। 
(ब) प्राणायाम
प्राणायाम = प्राण + आयाम। इसका शाब्दिक अर्थ है-- प्राण या श्वसन को लम्बा करना  या फिर   जीवनी शक्ति  को लम्बा करना। प्राणायाम का अर्थ कुछ हद तक श्वास को नियंत्रित करना हो सकता है। परन्तु स्वास को कम करना नहीं होता है। 
उदाहरण, सूर्यभेदन प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम, भस्त्रिका प्राणायाम, शीतली प्राणायाम। 
(स) ध्यान 
किसी विषय वस्तु पर एकाग्रता या ‘चिंतन की क्रिया’ ध्यान कहलाती है। ध्यान से अर्थ किसी प्रदत्त वस्तु की ओर ध्यान केंद्रित करने से है। ध्यान सगुण और निर्णुण दोनों प्रकार का होता हैं। 
(द) षट्कर्म 
भीतरी शारीरिक शुद्धि के लिए षट्कर्म समूह हैं-- धौति, बस्ति, नेति, त्राटक, नौलि और कपालभाति।
(ई) मुद्रा और बंध 
हठप्रदीपिका में इन दस मुद्राओं का उल्लेख हैं-- महामुद्रा, महाबंध, महावेद्य,  खेचरी, उड्डीयान, मूलबंध, जलांधर बंध, विपरीत करणी, वज्रोमी और शक्तिवालिनी। 
बंध अनिवार्यतः मुद्रा है और संख्या में बहुत कम है। प्रमुख बंध तथा उनके स्थान हैं-- 
जालंधर = गला
उड्डीयान = उदर
मूलबंध = गुदा
जिह्य = मुख 
(फ) आष्टांग योग 
पतंजलि ने 229 सूत्रों की चर्चा की है जो इन 8 अंगों में विभाजित हैं--
1. यम 
इसमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह सम्मिलित हैं। 
2. नियम 
इसमे शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय शामिल हैं। 
3. आसन 
ये विभिन्न योगासन तकनीक हैं। 
4. प्राणायाम 
श्वांस (प्राणवायु) पर नियंत्रण इनमें आता है। 
5. प्रत्याहार 
अर्थात्  आहार से विमुखता। 
6. धारणा 
ध्यान केंद्रित करना। 
7. ध्यान 
मन को किसी प्रदत्त वस्तु की ओर केंद्रित करना।
8. समाधि
समाधि वह योग अवस्था है, जिसमें योगी को गंध, स्वाद, रूप, स्पर्श, श्वांस, स्वयं व अन्य की कोई अनुभूति नहीं होती। यह अंतिम चार घटकों के अभ्यास की दृष्टि से काफी जटिल हैं।

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