निःशस्त्रीकरण के मार्ग में आने वाली बाधाएं
निशस्त्रीकरण के मार्ग में आने वाली बाधाएँ निम्नलिखित हैं--
1. परस्पर अविश्वास की भावना
निःशस्त्रीकरण के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा परस्पर अविश्वास की भावना हैं। रूस और अमेरिका दोनों एक-दूसरे से भयभीत हैं और परस्पर अविश्वास करते हैं। दोनों को लगता है कि दूसरा पक्ष उन्हें पूरी तरह नष्ट करने पर तुला हुआ हैं, अतः उसे अधिक तैयारी करनी चाहिए। डाॅ. ओम नागपाल के शब्दों में," निःशस्त्रीकरण के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा राजनीतिक ही हैं। तकनीकी बाधा इसके सम्मुख गौण हैं। संसार मे जब तक राजनीतिक तनाव कम नहीं होता, निःशस्त्रीकरण संभव नहीं हैं।"
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2. सुरक्षा की गलत धारणा
संसार के अधिकांश बड़े देश भ्रम के शिकार हैं कि उनके पास अपने शत्रु से अधिक और घातक शस्त्र होना ही उनकी सुरक्षा की गारन्टी हैं। इसी धारणा के आधार पर ही ये देश अपनी शस्त्र क्षमता और हथियारों का भण्डार बढ़ाते चले जाते हैं। वे निःशस्त्रीकरण के प्रस्ताव भी ऐसे रखते हैं कि उनकी श्रेष्ठता दूसरे पक्ष पर बनी रहे। प्रो. शूमाँ ने ठीक ही लिखा था," वाशिंग्टन के नीति निर्धारक अपने फार्मूले के प्रति दृढ़ रहे हैं। निःशस्त्रीकरण के सभी अमेरिकी प्रस्तावों के विषय में यह पहले से ही ज्ञात रहता था कि उसे सोवियत रूस ठुकरा देगा। सभी प्रस्ताव रूस को दुविधा में डालने के लिए प्रस्तुत किये जाते थे। सबका पहले ही प्रचार किया जाता था, जो किसी भी समझौते को असंभव बना देते हैं।" यही बात निःशस्त्रीकरण संबंधी रूसी प्रस्तावों के बारे में भी कही जा सकती हैं।
3. आर्थिक कारण
निःशस्त्रीकरण के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा आर्थिक स्वार्थ हैं। अमेरिका और रूस संसार के दो सबसे बड़े शस्त्र उत्पादक व्यापारी है। दुनिया के बाजार में जो शस्त्र बेचे जाते हैं, उनकी लगभग 50 प्रतिशत बिक्री अमेरिका द्वारा की जाती हैं। इसी तरह कुल शस्त्रों की बिक्री की लगभग 28 प्रतिशत रूस द्वारा की जाती हैं। इसके अतिरिक्त शस्त्रों का व्यापार एकाधिकार का व्यापार हैं। इसमें प्रतिस्पर्द्धा बहुत कम और लाभ बहुत अधिक हैं।
4. व्यावहारिक कठिनाइयाँ
निःशस्त्रीकरण के मार्ग में कुछ व्यावहारिक कठिनाइयाँ भी हैं। किसी समझौते पर तभी हस्तक्षार हो सकते हैं, जबकि दोनों पक्षों को इस बात का आश्वासन हो कि समझौते का पालन होगा। परन्तु आश्वासन के लिए निरीक्षण की वैज्ञानिक व्यवस्था चाहिए। निरीक्षण करने की अनुमति देने पर अन्य सैनिक रहस्य खुलने का भय बना रहता हैं । अतः कई व्यावहारिक कारण भी हैं, जो निःशस्त्रीकरण संबंधी किसी समझौते पर पहुँचने नहीं देते।
5. राष्ट्रीय हित
राष्ट्रीय स्वार्थ निशस्त्रीकरण के मार्ग में बहुत बड़ी चुनौती हैं। राष्ट्र सबसे पहले अपने हितों को देखते है और उसके बाद अपनी राष्ट्रीय सीमा से बाहर निकलकर आदर्शों में लिपटी हुई भाषा में अन्तर्राष्ट्रीय बात को धोखा देने का यत्न करते हैं। कोई भी राष्ट्र इसका अपवाद नही हैं। उदाहरणार्थ, भारत ने 1968 की परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये। भारत चीन से भयभीत हैं और परमाणु अप्रसार संधि को शंका की दृष्टि से देखता हैं।
6. राजनीतिक समस्याएँ
निशस्त्रीकरण राजनीतिक समस्याओं के समाधान पर निर्भर करता हैं, अतः पहले राजनीतिक समस्याओं को हल किया जाये या निःशस्त्रीकरण किया जाये। ये दोनों एक-दूसरे के मार्ग में बाधा डालते हैं। यह सोचा जाता हैं कि शस्त्र झगड़ों का कारण हैं इनको घटाने से अन्तरराष्ट्रीय प्रेम और मैत्री बढ़ेगी, किन्तु यह प्रयत्न एकपक्षीय होगा। होना यह चाहिए कि मनमुटाव, अविश्वास तथा प्रतिद्वन्द्विता को दूर करने के लिए प्रत्येक दिशा में प्रयास किया जाये। वास्तव में, निशस्त्रीकरण की दिशा में ठोस कार्य तब-तक नहीं हो सकता जब तक महाशक्तियों में मौलिक मतभेद बने रहेंगे।
निष्कर्ष
निशस्त्रीकरण पूरी अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में हिंसा के स्थान पर समस्याओं को शान्तिपूर्ण ढंग से आपसी सद् विश्वास और सहानुभूति से सुलझाने का ही दूसरा नाम हैं। आज जब अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति वैचारिक प्रतियोगिता, संकीर्ण राष्ट्रवाद, स्वार्थपूर्ण राष्ट्रीय हितों की सीमा में बंधी हैं तो निशस्त्रीकरण करना संभव नही हैं। निःशस्त्रीकरण के लिए एक नए दृष्टिकोण, नये वातावरण, नये विश्वास और नये मानव की आवश्यकता हैं।
Bharat ko Yojana band Vikas ki Prerna kisse milati hai
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