प्रश्न; स्वतंत्रता पर जे.एस. मिल के विचारों का वर्णन कीजिए।
अथवा" मिल के स्वतंत्रता संबंधी विचारों का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा" जाॅन स्टुअर्ट मिल के स्वतंत्रता संबंधी विचारों की विवेचना कीजिए।
अथवा" मिल के स्वतंत्रता संबंधी विचारों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
अथवा" जाॅन स्टुअर्ट मिल के स्वतंत्रता संबंधी विचारों की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
अथवा" जे.एस.मिल के स्वतंत्रता संबंधी विचारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर--
जे.एस.मिल के स्वतंत्रता संबंधी विचार
mil ke swatantrata sambandhi vichar;मिल वास्तव में एक उपयोगितावादी विचार नहीं था। वह वास्तव में एक व्यक्तिवादी विचारक था। इसलिए मिल अपने विचारों में व्यक्ति की स्वतंत्रता पर सबसे अधिक बल देता हैं। अतः मिल के स्वतंत्रता संबंधी विचार अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। मिल ने अपने स्वतंत्रता संबंधी महत्वपूर्ण विचार अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'स्वतंत्रता पर' (On Liberty) में प्रस्तुत किये हैं।
स्वतंत्रता की आवश्यकता का महत्व
अपनी उपर्युक्त पुस्तक में मिल सबसे स्वतंत्रता की आवश्यकता सिद्ध करता हैं। इस हेतु मिल कहता हैं कि व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य अपने व्यक्तित्व का उच्चतम और अधिकतम विकास हैं और यह विकास केवल स्वतंत्रता के वातावरण में ही संभव हैं। वह यह भी सिद्ध करता हैं कि समाज की उन्नति और विकास के लिये भी स्वतंत्रता आवश्यक हैं, क्योंकि समाज व्यक्तियों से मिलकर ही बनता हैं। व्यक्ति जब अपनी स्वाभाविक प्रवृत्तियों के आधार पर विभिन्न दिशाओं में आगे बढ़ेंगे तभी समाज अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकेगा। जाॅन स्टुअर्ट मिल नैतिकता के आधार पर व्यक्तिवाद का समर्थन करते हुये व्यक्ति की तुलना एक पौधे या फूल से करते हुए कहता हैं जिस तरह एक पौधे या फूल को बढ़ने, पुष्पित तथा पल्लवित होने के लिये हवा, पानी, मिट्टी, खाद्य, धूप, प्रकाश इत्यादि विभिन्न वस्तुयें चाहिए उसी प्रकार से व्यक्ति के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक स्वतंत्रता आवश्यक हैं। उपरोक्त प्रकार की स्वतंत्रताओं के बिना व्यक्ति के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास संभव नहीं हैं।
स्वतंत्रता के प्रकार
जे. एस. मिल ने अपनी पुस्तक में दो प्रकार की स्वतंत्रता पर बल दिया हैं--
1. विचार स्वतंत्रता
मिल विचार स्वतंत्र्य का कट्टर समर्थक था और इस संबंध में उसका मूलभूत विचार यह था कि हम सत्य को केवल तर्क-वितर्क द्वारा सी जाॅन सकते हैं और विचारों के संघर्ष में केवल सत्य की ही विजय होती हैं, अतः प्रत्येक व्यक्ति को विचार और अभिव्यक्ति की पूरी-पूरी स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए और राज्य के द्वारा किसी प्रकार की विचारधारा या अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध नहीं लगाने चाहिए। किसी विचार का दमन करना सत्य का दमन करना हैं। मिल का कहना हैं, व्यक्ति को उसके विचारों को प्रकट करने से नहीं रोकना चाहिए, भले ही उसके विचार असत्य या मिथ्या हों, क्योंकि मिथ्या विचार टिकेगा नहीं और यदि सत्य को रोका गया तो भविष्य में समाज को उसी प्रकार पछताना पड़ सकता हैं जैसा सुकरात तथा ईसा के मामले में हुआ। मिल का विचार हैं कि विचार अभिव्यक्ति से सनकियों को भी नहीं रोकना चाहिए, क्योंकि संभव हैं जिन्हें हम आज सनकी समझ रहे हैं उनकी बातों में सत्यता हों। इस प्रसंग में मिल का कहना हैं कि सुकरात व ईसा मसीहा अपने समय में सनकी माने जाते थे पर बाद में उनके विचार अनुक्रमणीय व पूज्य माने जाते हैं। मिल का मानना हैं कि" दस सनकी व्यक्तियों मे से नौ निरर्थक बुद्ध हो सकते हैं पर दसवाँ व्यक्ति मानव जाति के लिए इतना लाभदायक हो सकता हैं जितने अनेक साधारण व्यक्ति मिलकर भी नहीं हो सकते।"
क्या बहुमत के विचार सत्य हैं?
मिल बहुमत को भी यह अधिकार नहीं देता कि वह अल्पमत को अपने विचार प्रकट करने से रोकें। इस संबंध में मिल का कथन हैं," यदि एक व्यक्ति को छोड़कर संपूर्ण मानवता एक ही विचार की हो तो भी मानवता को इस एक व्यक्ति को मौन रखने का इससे अधिक अधिकार हो ही नहीं सकता जितना कि उस व्यक्ति को। यदि उसके पास शक्ति हो तो संपूर्ण मानवता को मौन रखने का अधिकार हो सकता हैं।"
इस संबंध में सेबाइन का मत हैं कि मिल को यह डर था कि स्वतंत्रता के लिये सबसे बड़ा खतरा सरकार की ओर से नहीं वरन् बहुमत की ओर से होता हैं। बहुमत नवीन विचारों के प्रति असहिष्णु होता हैं और विरोधी अल्पसंख्यकों को संदेह की दृष्टि से देखता हैं तथा अपनी संख्या के जोर पर उन्हें दबा देना चाहता हैं।
2. कार्य-संबंधी स्वतंत्रता
मिल का मत हैं कि, व्यक्ति को कार्य करने की भी स्वतंत्रता होनी चाहिए। मिल कहता हैं कि कार्य करने की स्वतंत्रता मानव जीवन का मुख्य तत्व हैं। परन्तु लोगों को दी जाने वाली वाली विचारों और कार्यों की स्वतंत्रता में अंतर हैं, क्योंकि कार्य का प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर पड़ता हैं। वे व्यापक समाज को भी प्रभावित करते हैं अतः कार्य करने की असीम स्वतंत्रता नहीं दी जानी चाहिए। इस दृष्टि से मिल मानव (व्यक्ति) के कार्यों को दो भागों में विभाजित करता हैं--
(अ) स्व-संबंधी कार्य
स्व-संबंधी कार्य वे हैं जिनका प्रभाव समाज के अन्य व्यक्तियों पर नहीं पड़ता। मिल इन्हें किसी व्यक्ति को करने की पूरी स्वतंत्रता देता हैं। इन कार्यों का संबंध व्यक्ति के निजी जीवन से होता हैं अतः एक व्यक्ति इन्हें करने के लिये स्वतंत्र हैं।
(ब) पर-संबंधी कार्य
पर-संबंधी कार्य व्यक्ति के उन कार्यों को कहते हैं जिनका प्रभाव समाज पर व्यापक रूप से पड़ता हैं। मिल का मत हैं ऐसे कार्यों को राज्य या समाज को सीमित करने का अधिकार हैं। विशेषकर जबकि उसके कार्यों से अन्य व्यक्तियों के कार्य में बाधा पहुंचती हो।
इस प्रकार मिल व्यक्ति के लिए कार्य की स्वतंत्रता का भी प्रतिपादन करता हैं लेकिन उसका विचार हैं कि निम्नलिखित परिस्थितियों में व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिये राज्य व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप कर सकता हैं--
1. यदि व्यक्ति स्वतंत्रता का अनुचित प्रयोग करता हुआ अन्य व्यक्तियों की स्वतंत्रता में बाधक हो।
2. जब मनुष्य स्वतंत्रता के अनुचित प्रयोग द्वारा अपने कर्त्तव्य-पालन को भूल जाये।
3. संकटकालीन स्थिति का सामना करने के लिये व्यक्ति को अपनी स्वतंत्रता का कुछ अंश खोना पड़ सकता हैं।
मिल के स्वतंत्रता संबंधी विचारों की आलोचना
मिल के स्वतंत्रता संबंधी विचारों की निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की जाती हैं--
1. मनुष्य सदैव अपने हितों का सर्वोत्तम निर्णायक नहीं हैं, जबकि मिल का स्वतंत्रता संबंधी विचार इसी धारणा पर आधारित हैं। आज का सामाजिक जीवन अत्यंत जटिल हैं।
2. सनकी व्यक्तियों को स्वतंत्रता देना सामाजिक हित में नहीं हैं, क्योंकि उनके विचार भी कभी-कभी समाज में अव्यवस्था फैला सकते हैं।
3. मिल सनकी और विकृत मस्तिष्क वालों में भेद करता हैं। वह सनकियों को स्वतंत्रता देता हैं, परन्तु विकृत मस्तिष्क वालों को नहीं, जबकि व्यवहार में इन दोनों में भेद करना कठिन हैं।
4. मिल की विचार स्वातंत्र्य की धारणा दुराग्रहपूर्ण और असन्तुलित हैं, क्योंकि वह पिछड़ी हुई जातियों को स्वतंत्रता से वंचित करता हैं।
5. मिल ने कार्यों का जो स्व-संबंधी और पर-संबंधी में विभाजन किया हैं वह गलत हैं, किसी के कार्यों के अवलोकन द्वारा इस प्रकार की विभाजन रेखा नहीं खींची जा सकती।
6. मिल तर्क की बात कर अनावश्यक बहस को बढ़ावा देता हैं।
7. मिल की स्वतंत्रता संबंधी धारणा निषेधात्मक हैं, क्योंकि मिल यह नहीं बताता कि मूलतः स्वतंत्रता का विचार क्या हैं?
8. मिल के पास स्वतंत्रता का विचार तो हैं परन्तु स्वतंत्रता के लिये आवश्यक अधिकारों का कोई ठोस दर्शन नहीं हैं।
इन्हीं आलोचनाओं के कारण डाॅ.अर्नेस्ट वार्कर मिल की स्वतंत्रता के बारे में लिखते हैं कि," मिल खोखली स्वतंत्रता व अमूर्त व्यक्तिवाद का अग्रदूत हैं।"
वास्तव में मिल अपनी स्वतंत्रता की व्याख्या में अति उत्साही बनकर लोगों को अधिक से अधिक स्वतंत्रता देना चाहता हैं परन्तु वह यह भूल जाता हैं कि इसका प्रयोग कभी-कभी समाज के विरूद्ध भी हो सकता हैं।
निष्कर्ष
उपर्युक्त आधारों पर यद्यपि मिल के संबंध में वार्कस की आलोचना यद्यपि सही प्रतीत होती हैं परन्तु समकालीन परिस्थितियों में मिल के विचारों के महत्व की अवहेलना नहीं की जा सकती। विद्वान लिण्डसे ने लिखा हैं कि," जिस स्वतंत्रता की मिल कल्पना करता हैं वह केवल नकारात्मक नहीं सकारात्मक भी हैं।" मिल को राज्य की असहिष्णुता से शिकायत थी। वास्तव में वे व्यक्ति की स्वतंत्रता के महान अग्रदुत थे। उन्होंने नैतिकता के आधार पर व्यक्तिवाद का समर्थन कर इसे सबसे मजबूत आधार प्रदान किया। उनके स्वतंत्रता-संबंधी विचार राजनीतिक चिंतन में अमर हैं।
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