12/20/2021

उपयोगितावाद का सिद्धांत, बेंथम

By:   Last Updated: in: ,

बेंथम का उपयोगितावाद का सिद्धांत 

Jeremy Bentham bentham ka upyogitavadi siddhant;उपयोगितावाद का सिद्धान्त बेन्थम की सबसे महत्वपूर्ण एवं अमूल्य देन है। उसके अन्य सभी राजनीतिक विचार उसके उपयोगितावाद पर ही आधारित हैं। लेकिन उसे इसका प्रवर्तक नहीं माना जा सकता। रोचक बात यह है कि बेन्थम ने कहीं भी उपयोगितावाद शब्द का प्रयोग नहीं किया बेन्थम के उपयोगितावादी दर्शन का वर्णन उसकी दो पुस्तकों 'फ्रेग्मेण्ट्स ऑन दि गवर्नमेंट' तथा 'इण्ट्रोडक्शन टू दॉ पिंसिपल्स ऑफ मॉरल्स एण्ड लेजिस्लेशन' में मिलता है। 

उपयोगितावाद का विकास   

उपयोगितावाद के सर्वप्रथम आचारशास्त्र के एक सिद्धान्त के रूप में प्राचीन यूनान के एपीक्यूरियन सम्प्रदाय में ही दर्शन होते हैं। इस सम्प्रदाय के अनुसार मनुष्य पूर्णतया सुखवादी है। वह सुख की ओर भागता है तथा दुःखों से बचना चाहता है। इसके बाद सामाजिक समझौतावादियों ने भी 17वीं शताब्दी में इसका कुछ विकास किया हॉब्स ने कहा कि मनुष्य पशुवत आचरण करने वाला एक सुखवादी प्राणी है। लॉक तथा पाश्चात्य दर्शन के सिरेनाक वर्ग के प्रचारकों ने भी उपयोगितावाद का विकास किया, डेविड ह्यूम ने भी इसका विकास किया। आगे चलकर होसन ने अपनी पुस्तक 'नैतिक दर्शन पद्धति' (System of Moral Philosophy) में उपयोगितावाद के मूलमन्त्र 'अधिकतम संख्या के अधिकतम सुख' का प्रथम बार प्रयोग किया। आगे प्रीस्टले ने भी इसी मूलमन्त्र का प्रयोग किया। इसके बाद बेन्थम ने भी प्रीस्टले के निबन्ध Priestley's Essay on Government से उपयोगितावाद की प्रेरणा ग्रहण की बेन्थम ने बताया कि राज्य की सार्थकता तभी है जब वह अधिकतम लोगों के लिए अधिकतम सुख की व्यवस्था करे। 

उपयोगितावाद का अर्थ  

उपयोगितावाद राजनीतिक सिद्धान्तों का ऐसा कोई संग्रह नहीं है जिसमें राज्य और सरकार के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया हो। यह मानव आचरण की प्रेरणाओं से सम्बन्धित एक नैतिक सिद्धान्त है। उपयोगितावाद 18वीं शताब्दी के आदर्शवाद के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया है जो इन्द्रियानुभववाद की स्थापना करता है। उपयोगितावादियों की दृष्टि में उपयोगितावाद का अर्थ 'अधिकतम लोगों का अधिकतम सुख' है। इसका अर्थ "किसी वस्तु का वह गुण है जो लाभ, सुविधा, आनन्द, भलाई या सुख प्रदान करता है तथा अनिष्ट, कष्ट, बुराई या दुःख को पैदा होने से रोकता है।" 

बेन्थम के मतानुसार," उपयोगिता किसी कार्य या वस्तु का वह गुण है जिससे सुखों की प्राप्ति तथा दुःखों का निवारण होता है।" बेन्थम ने आगे कहा है कि उपयोगितावाद की अवधारणा हमें यह बताती है कि हमें क्या करना चाहिए तथा क्या नहीं करना चाहिए। यह हमारे जीवन के समस्त निर्णयों की आधारशिला है। उपयोगितावाद का वास्तविक अर्थ सुख है। व्यक्ति ही नहीं सम्पूर्ण समाज का लक्ष्य भी सुख की प्राप्ति हैं।

बेंथम के उपयोगितावाद सिद्धांत की विशेषताएं 

बेन्थम के उपयोगितावादी सिद्धांत की निम्नलिखित विशेषताएं हैं--

1. अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख 

अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख उपयोगितावाद का मूल मंत्र हैं। बेन्थम के शब्दों में अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख राज्य के कार्यों का आधार होना चाहिए। इस शब्द का उपयोग फ्रांसिस हचेसन ने पहली बार 1755 में अपनी पुस्तक (System of moral philosophy) में किया था। पर बेंथम का यह कहना था कि उसने फ्रेंच दार्शनिक हेल्वेटियस से यह सिद्धान्त सीखा था कि राज्य को अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम हित को सम्पन्न कराने और बढ़ाने का कार्य करना चाहिए। इस तरह उपयोगितावाद का यह सिद्धान्त हैं कि राज्य को ऐसा कार्य करना चाहिए जिससे अधिकतम व्यक्तियों को अधिकतम सुख प्राप्त हों। 

2. मात्रा का भेद 

बेंथम सुखों में गुण का भेद नहीं मानता वरन् परिणाम या मात्रा का भेद मानता है। बेन्थम के शब्दों में," यदि सुख की मात्रा समान हैं तो पुष्पिन (बच्चों द्वारा खेला जाने वाला खेल) भी उतना ही उत्तम हैं जितना कि काव्य पाठ।" अतः सुख मात्रा की दृष्टि से उत्तम होता हैं, गुण की दृष्टि से नहीं।

3. आनन्द मापक गणना पद्धित 

बेंथम सुख-दुख को मापने हेतु आनन्द मापक गणना पद्धित की विवेचना करता हैं। उसने कहा है कि किसी भी काम को करने के पहले इन सात प्रकार के पैमानों पर उसे कसकर देखना चाहिए उसके बाद उस काम को करने अथवा न करने का निर्णय करना चाहिए। तीव्रता, अवधि, निश्चितता, निकटता, अथवा दूरी, उत्पादकता (उसी प्रकार का अन्य सुख उत्पादन करने की क्षमता) विशुद्धता तथा विस्तार। बेंथम के शब्दों में, सभी सुखों के सभी मूल्यों को एक ओर व सभी दुखों के सभी मूल्यों को दूसरी ओर रखना चाहिए। यदि एक को दूसरे में से घटाने पर शेष रहे तो अमुक कार्य ठीक हैं और यदि दुख शेष रहे तो समझना चाहिए कि वह कार्य ठीक नहीं हैं। 

4. सुखवाद पर आधारित 

पुराने यूनान में अरस्तु की मृत्यु के बाद के वर्षों में एपीक्यूरस ने सुखवाद का प्रतिपादन किया था। इस सिद्धान्त की मूल मान्यता यह थी कि मनुष्य एक इन्द्रिय प्रधान प्राणी हैं जो हमेशा सुख की अपेक्षा तथा दुख से बचने का प्रयत्न करता हैं। प्रत्येक वह कार्य जिससे सुख प्राप्ति हो वह सही हैं और जिससे दुख मिले वह गलत हैं। इस सिद्धांत से बेंथम ने प्रेरित होकर उपयोगितावाद का प्रतिपादन किया हैं। 

5. परिणाम को महत्ता 

बेंथम किसी कार्य के उद्देश्य की बजाय परिणाम को ज्यादा उपयोगी मानता हैं। कोई काम किस उद्देश्य से होता है इसका कोई महत्व नहीं हैं बल्कि महत्व इस बात का हैं कि उसका परिणाम क्या होगा? अर्थात् जो वस्तु हमें सुख की अनुभूति देती हैं वह अच्छी, ठीक तथा उपयोगी हैं तथा जिस वस्तु से दुख की अनुभूति हो वह बुरी, गलत और अनुपयोगी होती हैं। 

6. सुख-दुख का स्वरूप 

उपयोगितावाद सुख की प्राप्ति तथा दुख के निवारण का सिद्धान्त हैं। इन्द्रिय सुख, संपत्ति, मित्रता, चरित्र, शक्ति, परोपकार से व्यक्ति को सुख मिलता हैं और पीड़ा, शत्रुता, बदनामी, द्रोह आदि से व्यक्ति को दुख मिलता हैं। 

7. सुख-दुख के स्त्रोत 

बेंथम ने सुख-दुख के पांच स्त्रोत बतलाये हैं-- 

(अ) प्राकृतिक 

जब किसी सुख-दुख की प्राप्ति प्राकृतिक कारण से होती हैं तो वह प्राकृतिक सुख या दुःख कहलाएगा। 

(ब) राजनीतिक 

राजनीतिक व्यवस्था अथवा कानून से मिलने वाला सुख अथवा दुख राजनीतिक स्त्रोत से मिलने वाला सुख-दुख हैं।

(स) सामाजिक 

किसी काम को करने पर समाज से मिलने वाला सुख अथवा दुख इसका सामाजिक स्त्रोत होता हैं। 

(द) नैतिक 

नैतिक दृष्टि से अच्छा अथवा बुरा काम करने पर मिलने वाला सुख-दुख इसका नैतिक स्त्रोत होता हैं। 

(ई) धार्मिक 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अथवा विरूद्ध काम करने पर जो दुख या सुख मिलता हैं उसका स्त्रोत धर्म होता हैं।

बेन्थम के उपयोगिता सिद्धांत के निष्कर्ष 

बेन्थम के उपयोगिता सिद्धांत से अग्रलिखित निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं-- 

1. सुख ही एकमात्र इच्छित वस्तु 

बेन्थम के उपयोगिता सिद्धांत का निष्कर्ष है कि मनुष्य के लिए सुख ही एकमात्र अच्छी और इच्छित वस्तु है धन, पद, स्वास्थ्य और यहां तक कि सद्गुण भी मानव जीवन में द्वितीय स्थान पर आते हैं और ये सब मनुष्य के अन्तिम उद्देश्य और सुख प्राप्ति के साधन मात्र हैं। 

2. सुख-दुःख का गणितीय मापना 

बेन्थम का विश्वास है कि सुखों और दुःखों को तुलनात्मक आधार पर मापा जा सकता है। इस प्रकार सुख-दुःख मापने की पद्धति को वह सुखवादी गणना पद्धति के नाम से पुकारता है। सुख का आलिंगन और दुःख का बहिष्कार बेन्थम के उपयोगिता सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति सुख का आलिंगन करता है और दुःख का बहिष्कार करता है। 

4. सार्वभौम सिद्धांत 

बेन्थम के अनुसार उपयोगिता का सिद्धांत सार्वभौम रूप से लागू होने वाला सिद्धांत है। मानव के समस्त व्यापारों में यह लागू होता है। यहां तक कि तपस्वियों के सम्बन्ध में भी यह लागू होता है। तपस्वियों को जिस रूप में सुख की अनुभूति होती है वह सुख का ही विकृत रूप है क्योंकि तपस्या भौतिक सुख भले ही न दे उसका परिणाम भी तपस्वी के लिए सुख का ही द्योतक है जो आत्मिक सुख है। 

5. राज्य का उद्देश्य अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख 

बेंन्थम की सबसे महत्वपूर्ण धारणा यह है कि वह राज्य को एक ऐसा समूह समझता है जिसे मनुष्यों ने अपनी सुख-वृद्धि के लिए संगठित किया है। राज्य की आज्ञा का पालन हम इसलिए करते हैं क्योंकि ऐसा करना हमारे लिए लाभदाय एवं उपयोगी है। कोई भी सरकार तभी तक कायम रहती है और नागरिकों की निष्ठा की हकदार होती है जब तक कि वह समाज के सामान्य सुख का ध्यान रखती है।

6. कानून का मूल्यांकन उपयोगिता 

बेन्थम ने उपयोगिता के सिद्धांत का सबसे अधिक प्रयोग कानून निर्माण में करना चाहा और उसका मत था कि विधायक के हाथ मे अधिकतम लोगों का अधिकतम हित जैसा यन्त्र पकड़ा देने से कानून की सही आत्मा का निर्माण किया जा सकता है।  

बेन्थम के उपयोगिता सिद्धांत की आलोचना 

बेन्थम को उपयोगितावाद का जनक कहा जाता हैं, किन्तु उसके उपयोगितावादी विचार विराधाभास एवं भ्रम का पिटारा है। उसके उपयोगितावादी विचारों की निम्नलिखित तर्कों के आधार पर आलोचना की जाती है-- 

1. सुखवादी मान्यता 

सुखवादी मान्यता, जो कि बेन्थम के विचारों का आधार है, उसके दर्शन की सबसे बड़ी कमजोरी है। यह धारणा कि सुख तथा दुःख हमारे सम्पूर्ण आचार तथा विचार को निर्धारित करते हैं, भ्रमपूर्ण है। यह तो जीवन की एक बहुत ही अधूरी व्याख्या है और उन जटिल प्रेरणाओं की, जो हमारे आचरण को प्रभावित करती हैं, अवहेलना करना है। सुख और दुःख का यदि हम प्रेरक तत्व मान लें, जैसा कि बेन्थम चाहता है, तो समाज का या तो विकास अवरुद्ध हो जायेगा या फिर समाज में सुख प्राप्ति की ऐसी होड़ लग जायेगी कि एक प्रकार के समाजिक संघर्ष से विप्लव आने की सम्भावना हो जोयगी वास्तव में मानव जीवन आदर्शों पर आधारित है। उसकी कुछ मान्यताएँ है और उन्हीं मान्यताओं को आधार मानकर मनुष्य आगे बढ़ता है चाहे उसे उसमें कितने ही कष्ट क्यों न सहन करने पड़ें। 

2. अधिकतम संख्या का अधिकतम सुख असंगत 

बेन्थम के अनुसार उपयोगिता का अर्थ है अधिकतम संख्या का अधिकतम सुख किन्तु यह अव्यावहारिक और असंगत है। मान लीजिए 'अ' कार्य से तथा 'ब' कार्य से यह तय करना है कि कौनसा कार्य करें तो निर्णय लेना कठिन हो जोयेगा। क्योंकि 'अ' कार्य से दस व्यक्तियों का भला होता है और 'ब' कार्य से सो व्यक्तियों का लाभ होता है जबकि 'अ' और 'ब' कार्य के सुख की मात्रा समान है। बेन्थम अधिकतम सुख अधिकतम संख्या दोनों को चाहता है, परन्तु यह स्पष्ट करने में असफल रहा है कि इनका निर्धारण कैसे किया जाये। अधिकतम सुख पर बल दिया जाये अथवा अधिकतम संख्या पर असली समस्या यह है कि दोनों में सन्तुलन कैसे स्थापित किया जाये? 

3. सुख भौतिक न होकर मानसिक होता है

बेन्थम सुख का आधार भौतिकता मानता है जबकि देशभक्ति, त्याग, सेवा, परोपकार, आदि गतिविधियों में दुःख उड़ाकर भी लोगों को मानसिक सुख मिलता है और जो भौतिक सुख से उत्कृष्ट होता है। भगवान महावीर और गौतम बुद्ध को भौतिक सुख ही प्राप्त करना होता तो राजसी ठाठ-बाट त्यागकर भीषण कष्ट उठाते हुए जंगलों में न भटकते देशभक्त क्रान्तिकारी भगतसिंह जैसे व्यक्ति फांसी के तख्ते पर झूलने में अपूर्व आनन्द और गर्व अनुभव करते हैं। सुभाष बोस को भौतिक सुख ही प्राप्त करना होता तो आई. सी. एस. से त्यागपत्र न देते। वस्तुतः देशभक्ति हेतु कष्ट उठाकर भी उन्हें आनन्द मिल रहा था। 

4. सुखों के गुणात्मक भेद की उपेक्षा 

बेन्थम सुख को मात्रात्मक मानता है जबकि असली सुख गुणात्मक होता है हमें स्वादिष्ट भोजन करने तथा काव्य का रसास्वादन करने में जो आनन्द मिलता है, वह एक जैसा नहीं है सुखों में मात्रा तथा गुण की दृष्टि से अन्तर होता है। कुछ सुख मात्रा में कम होने पर भी गुणों की दृष्टि से ऊंचे होते हैं। जैसा कि सोले ने लिखा है, यदि विभिन्न सुखों में गुणात्मक भेद को स्वीकार कर लिया जाये तो उसकी सारी विचार प्रणाली अस्त-व्यस्त हो जायेगी। 

5. सुखों को मापा नहीं जा सकता  

बेन्थम ने सुखवादी मापक यन्त्र द्वारा सुख दुःख को मापने की व्यवस्था की हैं, किन्तु व्यवहार में सुख-दुःख का मापा नहीं जा सकता हमारे पास ऐसा कोई मापदण्ड नहीं है जिसके द्वारा हम किसी भावना की तीव्रता की निश्चित मात्रा की किसी अन्य भावना की तीव्रता से तुलना कर सकें तीव्रता को महत्व दिया जाये या अवधि कोदृबेन्चम इस बारे में कुछ नहीं बताता डेविडसन के अनुसार आठ दुःखों में से चार सुखों को घटाने की बात मूर्खता के सिवाय और कुछ भी नहीं हो सकती। मेकून भी इस सन्दर्भ में आलोचना करते हुए लिखता है कि,' राजनीति में गणित वैसे ही सहायक नहीं हो सकती जैसे गणित में राजनीति सहायक नहीं हो सकती।"  

7. व्यक्ति और समाज की उपयोगिता के बीच सामंजस्य का अभाव 

आलोचकों के अनुसार बैन्थम अपने उपयोगिता सिद्धांत द्वारा व्यक्ति और समाज की उपयोगिता के बीच सामंजस्य प्रस्तुत नहीं कर पाये। बेन्थम यह नहीं समझा सके कि व्यक्ति और राज्य के हितों के बीच भी संघर्ष हो सकता है। बेन्थम ने यद्यपि यह माना है कि अलग-अलग व्यक्तियों के योग से राज्य या समाज के हितों का योग प्राप्त किया जा सकता है पर यथार्थता यह है कि राज्य का हित अक्सर व्यक्ति के हित का विरोधी होता है और वह व्यक्गित हितों का बुल योग कभी नहीं होता। यदि व्यक्तिगत हितों को प्रधानता दी जायेगी तो व सत्तारूढ़ बहुतमत के ही सुखों का अल्पमत पर लादना होगा। मैक्सी के अनुसार," बेन्थम ने जहां कहीं भी उन्हें दोनों के बीच चयन का अवसर मिला है, व्यक्तिवादी हित को ही प्रधानता दी है। वह दोनों के मध्य सन्तुलन स्थापित नहीं कर सके।" 

8. बहुमत के अत्याचार को प्रोत्साहन

बेन्थम प्रत्येक मनुष्य के सुख पर नहीं बल्कि अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख पर ध्यान देता है। इसका अप्रत्यक्ष अर्थ है कि समाज की बहुसंख्या को अल्पसंख्यकों को कुचलने तथा उन पर अत्याचार करने का अधिकार है। इसका मतलब हुआ बहुसंख्यक जैसा चाहें वैसा करें। यदि इस बात को मान लिया जाये तो अत्याचारी शासक को प्रजा पर तब तक अन्याय और अत्याचार करने का अधिकार मिल जायेगा जब तक वह अपने इस कार्य को बहुसंख्या को अधिकतम आनन्द देने वाला सिद्ध कर सके।

हैलोवेल के अनुसार," बेन्थम का सिद्धांत बहुमत के अत्याचार को प्रोत्साहित करने वाला सिद्धांत है।" 

9. साध्य से साधन का मूल्यांकन करने वाला सिद्धांत 

बेन्थम का उपयोगितावादी सिद्धांत साधन की पूर्ण उपेक्षा करता है, वह सुखी रूपी साध्य की ओर दौड़ता है चाहे वह कैसे ही क्यों न प्राप्त हो। प्रो. मुरै के अनुसार यदि परिणाम लाभदायक हुआ तो बेन्थमवादी सिद्धांत के आधार पर साधनों को भी उपयोगी कहा जायेगा, जबकि घटिया साधनों से उत्तम साध्य कभी भी प्राप्त नहीं हो सकता।

10. अमनोवैज्ञानिक सिद्धांत 

बेन्थम का सिद्धांत मनोविज्ञान की भ्रान्त धारणा पर आधारित है। बेन्थम मानव प्रकृति को कोरा सुखवादी मानते हुए उसकी दुर्बोध मानसिक रचना का सही रूप प्रस्तुत नहीं करता। वह मनुष्य को घोर स्वार्थी तथा केवल अपने सुख के लिए प्रयत्न करने वाला मानता है, किन्तु मनुष्य स्वार्थी ही नहीं है अपितु परोपकारी भी है, वह दूसरों के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए तत्पर रहता है। एक कथि भूखा रहकर कविता का निर्माण क्यों करता है ? एक मां स्वयं भूखी रहकर भी बच्चे को क्यों खिलाती है? सुकरात विषपान के लिए क्यों तैयार हो गया? राम राजसी वैभव छोड़कर वन में क्यों चले गये? 11. मानव प्रकृति का अत्यधिक सरलीकरण 

मानव प्रकृति को बेन्थम ने इतना सरल कर दिया है कि वह उसको गणितीय संख्या जोड़, बाकी, गुणा और भाग द्वारा परखने का प्रयत्न करता है, वह हित, लाभ, सुख अच्छा और प्रसन्नता शब्दों को पर्यायवाची मान लेता है जबकि मानव प्रकृति इतनी सरल नहीं है। 

12. उपयोगितावादी सिद्धांत राजनीति दर्शन न होकर शासन का दर्शन है 

बेन्थम का उपयोगिता सिद्धांत राजनीति का दर्शन न होकर शासन का दर्शन है। उपयोगिता सिद्धांत के आधार पर उसके द्वारा जिस दर्शन का प्रतिपादन किया गया है वह शासन के कार्यों का मार्ग निर्देशन करता है, लेकिन राज्य के सैद्धान्तिक पक्ष का विवेचन नहीं करता। 

13. मौलिकता का अभाव 

अलोचकों का कहना है कि बेन्थम का उपयोगिता सिद्धांत मौलिक नहीं था। वह फ्रांसिस हचेसन, कम्बरलैण्ड और प्रीस्टले के विचारों को अपने सांचे में ढालने का प्रयत्न करता है। यहां तक कि उसके दर्शन का आधार वाक्य "अधिकतम लागों का अधिकतम सुख भी फ्रांसिस हवेसन से ग्रहण किया था। वेपर के शब्दों में वह अपने पूर्ववर्ती सिद्धांतों को पूरी तरह गले के नीचे उतार तो गया था, परन्तु उनको पचा नहीं पाया। उसने ज्ञान का सिद्धांत लॉक तथा ह्यूम से सुख-दुख सिद्धांत हैलवेटिस से, सहानुभूति तथा विरोध का विचार अनेक दुसरे विद्वानों से उधार लिया हैं, अतः उसमें मौलिकता का अभाव हैं।

बैन्थम के उपयोगितावाद का महत्व 

बेंथम के उपयोगितावाद की आलोचना का अर्थ यह नहीं हैं कि बेंथम के उपयोगितावाद का कोई महत्व ही नहीं हैं। वास्तव में यह बैन्थम की राजनीतिक चिंतन को एक महत्वपूर्ण देन हैं। बैन्थम ने अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख के आधार पर राज्यों के कार्यों व कानूनों के लिए एक उचित मापदंड प्रस्तुत किया। इसके आधार पर कार्यों को करके राज्य-व्यवस्था में विभिन्न प्रकार के सुधार भी किये जा सकते हैं, क्योंकि बेंथम वास्तव में एक सुधारवादी ही था।

यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी


कोई टिप्पणी नहीं:
Write comment

आपके के सुझाव, सवाल, और शिकायत पर अमल करने के लिए हम आपके लिए हमेशा तत्पर है। कृपया नीचे comment कर हमें बिना किसी संकोच के अपने विचार बताए हम शीघ्र ही जबाव देंगे।