12/18/2021

मैकियावेली के धर्म तथा नैतिकता संबंधी विचार

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मैकियावेली के धर्म तथा नैतिकता संबंधी विचार 

मैकियावेली को आधुनिक युग पहला विचारक माना जाता हैं, जिसने राजनीति को धर्म से अलग किया। मैकियावली का यह कार्य उसे मध्यकाल से अलग भी करता हैं। 

मैकियावेली ने इस बात को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि यदि शासक वर्ग को जरूरी लगे और अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए जरूरी हो जाए तो अनैतिक साधनों का भी उपयोग कर लेना चाहिए। सत्ता प्राप्ति के लिए और सत्ता को बनाए रखने के लिए शासक धोखा, छल-कपट यहाँ तक कि हत्या तक का प्रयोग कर सकता हैं। मैकियावली ने शक्तिशाली और एकीकृत राज्य के निर्माण में नैतिकता या अनैतिकता तथा धर्म या अधर्म को कोई महत्व नहीं दिया। मैकियावेली का कहना हैं," राजा को तो राज्य की सुरक्षा की चिंता करनी चाहिए। साधन तो हमेशा आदरणीय ही समझे जाएंगे और उनकी सामान्य रूप से प्रशंसा की जाएगी।" वह मानता हैं कि राज्य की सुरक्षा और हितों के मार्ग में नैतिकता का विचार बाधक नहीं  बनना चाहिए। राजा को साधनों की नैतिकता के चक्कर में पड़ना चाहिए। मैकियेवली का कहना हैं," प्रत्येक व्यक्ति यह जानता हैं कि राजा के लिए अपने वचन का पालन करना और नीतिपूर्वक आचरण करना कितना प्रशंसनीय हैं तथापि हमारी आँखों के समाने जो कुछ घटा हैं उसमें हम देखते हैं कि केवल उन्हीं राजाओं ने महान कार्य सम्पन्न किए हैं जिन्होंने चालाकी से दूसरों को पीछे छोड़ दिया, और अंत में वे उनसे अधिक सफल सिद्ध हुए जो ईमानदारी के आचरण में विश्वास करते थे....। इसलिए एक बुद्धिमान शासक अपने वचन का पालन नहीं कर सकता और न ही उसे करना चाहिए, यदि ऐसा करना उसके हित मे न हो और जब कि वे कारण समाप्त हो जाएँगे जिनसे विवश होकर उसने यह वचन दिया था।' 

मैकियावेली ने यथार्थवादी विचारक के नाते धर्म और नैतिकता के संबंध में दो मापदंड अपनाए हैं-- एक मापदंड नागरिकों के लिए हैं तथा दूसरा राजा के लिए हैं। व्यक्तियों के लिए मैकियावली ने धर्म और नैतिकता के आचरण को आवश्यक माना हैं तथा राजा के लिए उसने धर्म और नैतिकता से युक्त आचरण को आवश्यक नहीं माना हैं। शासकों के लिए उनके कार्यों का मापदंड उनकी सफलता हैं। इसके लिए धर्म, नैतिकता, उचित-अनुचित का प्रश्न बेईमानी हैं। मैकियावली ने धर्म और नैतिकता के संबंध में चालाकी पूर्ण नीति का सहारा लिया हैं। वह यह भी कहता हैं कि राजा को ऐसे गुणों से युक्त होना चाहिए जो अच्छे समझे जाते हैं। उसे बहुरूपिया की तरह एक ओर तो छल-कपट और मिथ्याचार में निपुण होना चाहिए तथा दूसरी ओर ऐसा आचरण करना चाहिए कि जो भी व्यक्ति उसे देखे अथवा उसके संबंध में सुने वह यह समझे कि वह (राजा) तो अनुकम्पा, विश्वासपात्रता, सचरित्रता, दयालुता तथा धर्म की साकार मूर्ति हैं। उसके (राजा के) लिए अन्तिम गुण, अर्थात् धर्म को धारण करने का प्रपंच रचना सर्वाधिक आवश्यक हैं।

मेकियावेली ने धार्मिक संस्थाओं को समाप्त करने का विचार कहीं भी व्यक्त नहीं किया हैं। वह न तो धर्म का विरोधी था और न ही वह धर्म का समर्थक था। उसने तो केवल राजा को इन सबसे ऊपर रखा इसलिए कहा जाता हैं मैकियावली अनैतिक नहीं नैतिकता विहीन था, अधार्मिक नही धर्महीन था (He was not unmoral but unmoral, not irreligious but unreligious)। सेवाहन का कहना हैं कि अधिकांशतः वह (मैकियावली) इतना 'अनैतिक' नहीं हैं जितना 'नैतिकता से रहित' हैं, (But for most part he is not so mucn immiral as non-moral) वस्तुतः मैकियावली धर्म और नैतिकता के संबंध में तटस्‍थ भाव से विचार करता हैं। उसके लिए महत्व राज्य की एकता और सुरक्षा का हैं। इसीलिए वह धर्म या नैतिकता से न तो घृणा करता हैं न अवहेलना करता हैं और न शासक के लिए उसे अनिवार्य मानता हैं। डिर्स्कोंसेज में वह कहता हैं," जो राजा और गणराज्य अपने को भ्रष्टाचार से मुक्त रखना चाहते हैं, उन्हें सबसे पहले समस्त धार्मिक संस्कारों की विशुद्धता को सुरक्षित रखना चाहिए और उनके प्रति उचित श्रद्धाभाव रखना चाहिए क्योंकि धर्म की हानि होते हुए देखने से बढ़कर किसी देश के विनाश का कोई और लक्षण नहीं हैं।

मैकियावली ने धर्म को राजनीति में साधन के रूप में अपनाने की सलाह दी हैं जहाँ आवश्यक हैं धर्म का उपयोग होना चाहिए, जहाँ आवश्यक नहीं हैं धर्म की चिंता नहीं करनी चाहिए, उससे अपने को बँधा हुआ नहीं रखना चाहिए और जहाँ आवश्यक हैं वहाँ उसकी प्रशंसा भी करनी चाहिए तथा उसके विकास और नागरिकों में उसके प्रति आस्था को दृढ़ करने की कोशिश भी करनी चाहिए। 

मैकियावेली ने राजा को यह सलाह दी हैं कि वह राज्य की एकता और सुदृढता के लिए शक्ति का प्रयोग करे, पर वह समझा हैं कि एकता के लिए केवल शक्ति ही काफी नही हैं। यदि कोई राजा चाहता हैं कि उसके राज्य की प्रजा आज्ञाकारी रहे तो केवल दृढ़ता और कठोरता के साथ कानूनों को लागू करना ही पर्याप्त नहीं हैं। राज्य के प्रति विश्वास बनाए रखने के लिए और प्रजा को राजभक्त रखने के लिए भय और शक्ति के अतिरिक्त भी किसी प्रेरक तत्व की आवश्यकता हैं वह प्रेरक तत्व धर्म के अतिरिक्त और कोई नहीं हो सकता। अतः मैकियावली सुझाव देता हैं कि धर्म अथवा चर्च को एक यंत्र के रूप में प्रयुक्त करना चाहिए जिससे नागरिकों में राष्ट्रप्रेम जाग्रत हो सके और राज्य में शांति व्यवस्था बनी रहें। 

स्पष्ट हैं कि मैकियावेली के लिए धर्म का कोई स्वतंत्र मूल्य या स्थान नहीं हैं, अपितु वह राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण साधन हैं जिसका प्रयोग जनता में विश्वास अर्जित करने के लिए किया जाना चाहिए। एक नीति के रूप में राजा को धर्म के प्रयोग और अवहेलना दोनों के संबंध में सोचना चाहिए। मैकियावेली ने धर्म के लौकिक रूप का प्रयोग करने की नीति अपनाई। वस्तुतः मैकियावली के धर्म संबंधी विचार अधार्मिक नहीं अपितु धार्मिकता से रहित हैं। मैकियावली राज्य के नागरिकों से 'नागरिक गुणों' की अपेक्षा रखता हैं। वह चाहता हैं कि नागरिकों में नैतिक भ्रष्टाचार न फैले। नैतिक भ्रष्टाचार से उसका अभिप्राय व्यक्ति के निजी कार्यों, सार्वजनिक सेवा भाव और नागरिक सत्ताप्रियता में कमी आना तथा कानून हीनता की भावना के बढ़ने, धर्म की अवहेलना करने तथा मनमानी करने की प्रवृत्ति के विकसित होने से हैं। 

इस संदर्भ में वह प्राचीन रोम के निवासियों की प्रशंसा करता हैं। वह कहता है कि रोम के निवासियों में "पारिवारिक जीवन की पवित्रता, व्यक्तिगत जीवन में स्वतंत्रता तथा दृढ़ता, सरलता तथा मितव्ययिता और सार्वजनिक कर्त्तव्यों के पालन में निष्ठा तथा विश्वासपात्रता का होना" आदि गुण थे। एक राज्य के नागरिकों में ये गुण हों इसके लिए राजा को प्रयत्न करना चाहिए। 

स्पष्ट हैं कि मैकियावेली ने नैतिकता के संबंध में दोहरी नीति अपनाई, उसके लिए जनता की नैतिकता अलग थी तथा राजा की नैतिकता अलग थी। 

मैकियावली ने राज्य को नैतिकता और धर्म से ऊपर माना हैं। इसके तीन कारण हैं। एक, वह मानता था कि राज्य और उसकी आवश्यकताओं को प्रत्येक स्थिति में प्राथमिकता मिलनी चाहिए। राज्य सर्वोच्च संस्था हैं। उसका दायित्व कानून व्यवस्था लागू करना हैं अतः उस पर नैतिकता के वे नियम लागू नहीं हो सकते जो व्यक्तियों पर लागू होते हैं। दो, राज्य को नैतिक आधार पर अपने कानूनों को लागू करने, अपने-अपने दायित्वों का निर्वाह करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता क्योंकि यदि ऐसा होता तो राज्य अहंकारवादी और असामाजिक प्रवृत्तियों पर अंकुश नहीं लगा पाएगा। राजा को आवश्यकतानुसार बुद्धिपूर्वक कार्य करने की पूर्ण और अनिवार्य शक्ति होनी चाहिए। तीन, राज्य उस नैतिकता से परे हैं जिसे वह स्वयं बनाता हैं। इस विचार का समर्थन मैकियावली के अतिरिक्त आगे के समय में हीगल, बोसांके आदि विचारकों ने भी किया हैं।

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