9/13/2021

वंशानुक्रम का अर्थ, परिभाषा, सिद्धांत/नियम

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वंशानुक्रम का अर्थ (vanshanukram kya hai)

vanshanukram ka arth paribhasha siddhant;सामान्यतया वंशानुक्रम का अर्थ है माता-पिता से प्राप्त गुण या तत्व। इसमें उन सभी अनुभवों का बोध होता है जो कि व्यक्ति को जन्म से मिलते हैं। प्रायः बालक का रंग, रूप, बुद्धि आदि माता-पिता से मिलती-जुलती होती है। एक माता-पिता से उत्पन्न बालकों की शक्ल भी प्रायः मिलती-जुलती होती है। बालक को अपने माता-पिता से शारीरिक तथा मानसिक गुण प्राप्त होते हैं क्योंकि ये अर्जित गुण माता-पिता से संतान मे अवतरित होते हैं। किन्तु कभी-कभी ठीक इसके विपरीत भी होता है। सामान्य अर्थों में वंशानुक्रम का तात्पर्य है कि जैसे-- माता-पिता हैं वैसी सन्तान होगी। यदि माता-पिता स्वस्थ और बुद्धिमान हैं तो सन्तान भी स्वस्थ और बुद्धिमान होनी चाहिए। पर इसके विपरीत अपवाद स्वरूप बुद्धिमान माता-पिता की मंद-बुद्धि सन्तान भी देखी गई है तथा मन्दबुद्धि माता-पिता की बुद्धिमान सन्तान भी। 

ड्रेवर ने वंशानुक्रम का अर्थ स्पष्ट करते हुये लिखा है," कि वंशानुक्रम माता-पिता से बच्चों तक शारीरिक और मानसिक लक्षणों का संक्रमण है। जीव-विज्ञान के अनुसार वंशानुक्रम फलित रजागु के भावी गुणों में विद्यमान गुणों का योग हैं। इसी आधार पर यह मान्यता बनी है कि व्यक्ति जो कुछ भी होता हैं, वह उसके पूर्वजों के शारीरिक और मानसिक तत्व होते हैं जो उसे माता-पिता से विरासत में मिलते हैं। 

प्रत्येक व्यक्ति का शरीर कोशाओं से बनता हैं। गर्भावस्था की प्राथमिक स्थिति में भ्रूण की रचना केवल एक ही कोश की होती है जिसे युक्ता कहते हैं। यह पुरूष के शुक्र तथा स्त्री के अण्ड के संयोग होने पर निर्मित होती है। शुक्र और अण्ड दोनों ही बीज कोशों के रूप में विशेष गुणों और दोषों के वाहक होते हैं। ये समस्त गुण भ्रूण में आ जाते हैं और जन्म के बाद वंशानुक्रम कहलाते हैं। प्रत्येक बालक में बीज कोष अपने विशिष्ट गुणों ये युक्त होते हैं, इन्हीं विशिष्ट गुणों को लेकर बालक जन्म लेता है। इस प्रकार कहा जा सकता हैं कि वंशानुक्रम का अर्थ माता-पिता तथा पूर्वजों के गुणों का सन्तान में पहुँचना हैं।

वंशानुक्रम की परिभाषा (vanshanukram ki paribhasha)

रूथ बैनेडिक्ट के अनुसार," वंशानुक्रम माता-पिता से संतान को प्राप्त होने वाले गुणों का नाम हैं।" 

वुडवर्थ के अनुसार," वंशानुक्रम में वे सभी बातें आ जाती है जो जीवन का आरंभ करते समय जन्म के समय नही बल्कि गर्भाधान के समय, जन्म से लगभग नौ माह पूर्व व्यक्ति में उपस्थित हों।" 

एन. एनास्टमी के अनुसार," वंशानुक्रम के तत्व जन्म के बहुत बाद तक व्यक्ति के विकास को प्रभावित कर सकते हैं और वास्तव में यह प्रभाव जीवनपर्यन्त चलता हैं।",

लैंडिस एवं लैंडिस के अनुसार," वंशानुक्रम हमको हमारी कार्यशीली पूँजी प्रदान करता है और वातावरण हमको इस पूँजी के विनियोग के अवसर प्रदान करता हैं। 

एच. ए. पेटरसन के अनुसार," वंशानुक्रम को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि व्यक्ति अपने माता-पिता के माध्यम से पूर्वजों के जो कुछ गुण प्राप्त करता है, वही वंशानुक्रम कहलाता है। 

डगलस व हाॅलैंड के अनुसार," माता-पिता, या अन्य पूर्वज या प्रजाति से प्राप्त समस्त शारीरिक रचनाएँ, विशेषताएँ, क्रियाएँ अथवा क्षमताएँ व्यक्ति के वंशानुक्रम में सम्मिलित रहती हैं।" 

जेम्स ड्रेवर के अनुसार," माता-पिता की शारीरिक एवं मानसिक विशेषताओं का संतानों में संक्रमित होना ही वंशानुक्रम हैं।" 

उपर्युक्त विद्वानों के मतों से स्पष्ट होता हैं कि वंशानुक्रम की धारणा अर्मूर्त होती हैं। इसको हम व्यक्ति के व्यवहारों तथा विशेषताओं के द्वारा ही जान अथवा समझ सकते हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि मानव व्यवहार का वह पूर्ण संगठित रूप, जो बालक में उसके माता-पिता एवं पूर्वजों द्वारा हस्तान्तरित होता हैं, को वंशानुक्रम कहते हैं।

वंशानुक्रम के सिद्धांत अथवा नियम (vanshanukram ke siddhant)

वंशानुक्रम की प्रक्रिया के संबंध में विभिन्न परीक्षण तथा प्रयोग किये गये हैं। आज हम वंशानुक्रम के स्वरूप को इन्ही परीक्षण के आधार पर परिभाषित कर सकते हैं। अतः विभिन्न विद्वानों द्वारा की गयी खोजों को हम सिद्धांत तथा नियम मानते है। वंशानुक्रम के सिद्धांत या नियम निम्नलिखित हैं-- 

1. मूल जीवाणु की निरन्तरता का नियम 

फ्रान्सिस गाल्टन ने सन् 1775 ई. में बालक को उतना ही योग्य बताया था, जितना कि उसके पूर्वज को। आपने कई अध्ययनों से निम्न निष्कर्ष निकाले--

(अ)  वंशानुक्रम = ½ पिता + ½ माता पक्ष। 

(ब) दादा तथा परदादा आदि पूर्वजों के गुण निश्चित मात्रा में होते हैं।

(स) वंश-दर-वंश यह गुण कम होते जाते हैं; जैसे-- ½, ¼, ⅛ 1/16 आदि। 

गाल्टन का समर्थन करते हुए बीजमैन ने बालक की उत्पत्ति बीजकोष से बतलायी है। मानव शरीर मे काम कोष तथा उत्पादक कोष होते हैं। 'कायकोष' शारीरिक विकास करते हैं एवं उत्पादक कोष वंश परम्परा में हस्तांतरित होते रहते हैं। आपने 25 पीढ़ियों तक चूहों पर प्रयोग किये। वे चूहों की पूँछो को हर बार काट देते थे, पर बगैर पूँछ के चूहे कभी भी पैदा नही हुए। इसलिए यह निष्कर्ष निकला कि अगली सन्तान के मूल जीवाणु हस्तांतरित होते रहते हैं।

2. अर्जित गुणों का हस्तांतरण 

लेमार्क, मैक्डूगल, पावलव तथा हैरिसन आदि प्रभृति विद्वानों ने वंशानुक्रम का आधार अर्जित गुणों का हस्तांतरण माना है। 'लेमार्क' ने जिराफ की गर्दन का लम्बा होना परिस्थितिवश बताया, पर अब वह वंशानुक्रमीय हो चुका है। इसी तरह से मैक्डूगल ने चूहों पर प्रयोग किया। आपने पानी से भरे बड़े बर्तन में चूहों को छोड़ दिया। बर्तन से बाहर आने के दो रास्ते थे-- प्रकाशित मार्ग एवं अन्धकारयुक्त मार्ग। प्रकाशित मार्ग में बिजली का झटका लगता था तथा अन्दकार युक्त मार्ग में नही। अतः सभी चूहे झटके से परेशान होकर अन्धकार वाले मार्ग से बाहर निकलते थे। 23 पीढ़ियों के अध्ययन से पाया गया कि पहली पीढ़ी में चूहों ने 165 बार त्रुटियाँ कीं तथा 23 वीं पीढ़ी में सिर्फ 25 बार। इस तरह स्पष्ट होता है कि अर्जित गुणों का अगली पीढ़ी में हस्तांतरण होता हैं। 

3. प्रत्यागमन का सिद्धांत 

प्रत्यागमन शब्द का अर्थ विपरीत होता हैं। जब माता-पिता के बच्चे उसके विपरीत विशेषताओं वाले विकसित होते हैं, तो यहाँ पर प्रत्यागमन का सिद्धांत लागू होता है, जैसे-- मंद बुद्धि, माता-पिता की संतान का प्रखर बुद्धि होना। विद्वानों ने इसके संदर्भ में निम्न धारणाएँ पेश की हैं-- 

(अ) अगर वंश सूत्रों का मिश्रण सही रूप से नही हो पाता है, तो विपरीत विशेषताओं वाले बच्चे विकसित होते हैं। 

(ब) जाग्रत एवं सुषुप्त दो तरह के गुण वंश को निश्चित करते हैं। विपरीत विशेषताएँ सुषुप्त गुणों का परिणाम होती हैं।

4. मेण्डल का नियन 

वंशानुक्रम की विशेषताओं का पता लगाने के लिए 'ग्रेसर जाॅन मेण्डल' ने विभिन्न प्रयोग किये थे। आप चेकोस्लोवाकिया के एक ईसाई मठ के पादरी थे। इनके प्रयोगों के निष्कर्षों को ही 'मेण्डलवाद' अथवा मेण्डल का नियम कहा जाता है। 

मेण्डल का निष्कर्ष 

'मेण्डल' के प्रयोगों के निम्न निष्कर्ष थे-- 

(अ) मेण्डल का नियम प्रत्यागमन को स्पष्ट करता है। 

(ब) गुणसूत्र की अभिव्यक्ति संयोग पर निर्भर करती हैं।

(स) एक ही तरह के गुणसूत्र अपने ही तरह की अभिव्यक्ति करते हैं। 

(द) जाग्रत गुणसूत्र अभिव्यक्ति करता है,  सुषुप्त नहीं। 

(ई) कालान्तर मे यह अनुपात 1:2, 2:4, 1:2, 1:2 होता जाता है। 

यह भी पढ़े; बालक के विकास पर वंशानुक्रम का प्रभाव

यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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