9/13/2021

बालक के विकास पर वंशानुक्रम का प्रभाव

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बालक के विकास पर वंशानुक्रम का प्रभाव 

बालक के विकास पर वंशानुक्रम का प्रभाव निम्नलिखित हैं-- 

1. तन्त्रिका तंत्र की बनावट 

तन्त्रिका तंत्र मे प्राणी की बुद्धि, सीखना, आदतें, विचार तथा आकांक्षाएँ आदि केन्द्रित रहती हैं। ये प्राणी की क्रियाओं को एकीकरण प्रदान करता है। तन्त्रिका तंत्र बालक में वंशानुक्रम से ही प्राप्त होती है। इससे ही ज्ञानेन्द्रियाँ, पेशियाँ एवं गन्थ्रियाँ आदि प्रभावित होती रहती हैं। बालक की प्रतिक्रियाएँ तन्त्रिका तंत्र पर निर्भर करती हैं। इसलिए हम बालक के तन्त्रिका तंत्र के विकास को सामान्य, पिछड़ा तथा असामान्य आदि भागों में विभाजित कर सकते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने अपने परीक्षणों से यह सिद्ध कर दिया है कि बालक का भविष्य तंत्रिका तंत्र की बनावट पर ही निर्भर करता है। 

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2. मानसिक विकास पर प्रभाव 

मनोवैज्ञानिकों द्वारा यह तथ्य स्पष्ट किया जा चुका है कि वंशानुक्रम का बालक की बुद्धि पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अतः बुद्धि को जन्मजात माना जाता है। 'स्पियरमैन' ने बुद्धि में सामान्य एवं विशिष्ट तत्वों को वंशानुक्रम की देना माना है। 

क्लिनबर्ग के अनुसार," बुद्धि प्रजाति पर निर्भर करती है। वंशानुक्रम संबंधी जितने भी प्रयोग किए गए है उनसे यह ज्ञात होता है कि बुद्धिमान माता-पिता के बच्चे भी बुद्धिमान होते है। कम-बुद्धि वाले माता-पिता के बच्चे कम बुद्धिमान होते हैं।"

3. चरित्र पर प्रभाव 

उग्डेल और स्टाब्रुक द्वारा ज्यूक परिवार का अध्ययन किया गया जिससे एक मछली का शिकार करने वाले व्यक्ति की वंश-परम्परा का विकास हुआ। इस व्यक्ति की संतानों ने निम्न बुद्धि और दुराचारिणी स्त्रियों से विवाह किया। इनकी संतानो में से अधिकांश चरित्रहीन, व्यभिचारी, जुआरी, अपराधी, चोर-डाकू थे। अतः उसने यह निष्कर्ष निकाला कि चरित्रहीन माता-पिता की संतानें भी चरित्रहीन होती हैं। 

4. संवेगात्मक विकास पर प्रभाव 

किसी भी व्यक्ति की संवेगात्मक स्थिति उसके शरीर एवं मस्तिष्क पर निर्भर करती है इसलिए मनुष्य के संवेगात्मक विकास मे भी वंशानुक्रम का प्रभाव होता है। संवेदी माता-पिता की संतानें भी संवेदना के भाव से परिपूर्ण होती हैं। 

5. सामाजिक विकास पर प्रभाव 

व्यक्ति में सामूहिकता की मूल प्रवृत्ति का निवास होता है। यही प्रवृत्ति व्यक्ति को समूह में रहने की प्रेरणा देती है। इस प्रवृत्ति की तीव्रता जिस व्यक्ति में अधिक होती है वह उतनी ही तीव्रता से विविध प्रकार के समाजों में समायोजित हो जाता है। जिन परिवारों में सामाजिकता को महत्व दिया जाता हैं उन परिवारों के बच्चे सामाजिक क्रिया कलापों में भागीदारी करते है और सामाजिक नियमों एवं परम्पराओं का निर्वहन करते हैं। 

6. व्यावसायिक योग्यता पर प्रभाव 

माता-पिता की व्यावसायिक योग्यता भी बालक में हस्तांतरित होती है। क्योंकि व्यावसायिक योग्यता भी वंश पर आधारित होती है। 

7. स्वभाव पर प्रभाव 

बालक का स्वभाव आमतौर पर उसके माता-पिता के स्वभाव के अनुरूप होता है। यदि माता-पिता मीठा बोलते हैं तो उसकी संताने भी मीठा बोलती हैं तथा यदि माता-पिता क्रोधी और निर्दयी स्वभाव वाले होते है तो संताने भी वैसी ही होती हैं।

यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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