शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति (shiksha manovigyan ki prakriti)
सभी शिक्षा-मर्मज्ञों ने शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति को वैज्ञानिक माना हैं। उनका कथन है कि यह विज्ञान अपनी विभिन्न खोजों हेतु वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करता है। तदुपरांत, यह उनसे प्राप्त होने वाले निष्कर्षों के आधार पर शिक्षा की समस्याओं का समाधान करता बै तथा छात्रों की उपलब्धियों के संबंध में भविष्यवाणी करता हैं। जिस तरह वैज्ञानिक विभिन्न तथ्यों का निरीक्षण तथा परीक्षण करके उनके संबंध में अपने निष्कर्ष निकालकर, किसी किसी सामान्य नियम का प्रतिपादन करता है, उसी तरह शिक्षक, कक्षा की किसी विशेष अथवा तात्कालिक समस्या का अध्ययन तथा विश्लेषण करके उसका समाधान करने का उपाय निर्धारित करता हैं। इस तरह, अपनी खोजों में वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करने से शिक्षा मनोविज्ञान को विज्ञानों की श्रेणी में रखा गया हैं। हम अपने कथन के समर्थन में दो विद्वानों के विचारों को लेखबद्ध कर रहे हैं, यथा--
साॅरे तथा टेलफोर्ड," शिक्षा मनोविज्ञान, अपनी खोज के मुख्य उपकरणों के रूप में विज्ञान की विधियों का प्रयोग करता हैं।"
क्रो तथा क्रो के अनुसार," शिक्षा मनोविज्ञान को व्यावहारिक विज्ञान माना जा सकता हैं, क्योंकि यह मानव-व्यवहार के संबंध में वैज्ञानिक विधि से निश्चित किये गये सिद्धांतों तथा तथ्यों के अनुसार सीखने की व्याख्या करने का प्रयत्न करता हैं।"
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शिक्षा मनोविज्ञान एक तरफ कार्य एवं कारण के संबंधों पर बल देता है, अतएव यह निष्कर्षों के प्रयोग को व्यावहारिक रूप प्रदान कर मानव जीवन को सुखी बनाने हेतु प्रयत्न करने के कारण कला की श्रेणी में आता हैं।
शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र (shiksha manovigyan ka kshera)
शिक्षा मनोविज्ञान एक व्यवहारिक विज्ञान है जो जीवन के वास्तविक आदर्शों की प्राप्ति में सहायक होता है। यह एक आधुनिक मनोविज्ञान हैं। इसका क्षेत्र बहुत वृहद है। यही कारण है कि इसके क्षेत्र की सीमा तय करना आसान नही हैं। अनेक शिक्षा मनौवैज्ञानिकों ने शिक्षा मनोविज्ञान की विषय सामग्री के रूप में अपने विचार प्रस्तुत किए। जो इस प्रकार है--
क्रो एण्ड क्रो के अनुसार," शिक्षा मनोविज्ञान की विषय-सामग्री का संबंध सीखने को प्रभावित करने वाली दशाओं से हैं।
स्किनर के शब्दों में," शिक्षा-मनोविज्ञान के क्षेत्र में वह सब ज्ञान और विधियाँ सम्मिलित हैं, जो सीखने को प्रक्रिया से अधिक अच्छी प्रकार समझने और अधिक कुशलता से निर्देशित करने के लिए आवश्यक हैं।"
शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र के विषय में हेरिस चेस्टर ने कहा हैं," शिक्षा-मनोविज्ञान का संबंध सीखने के मानवीय तत्व से है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें प्रयोगसिद्ध मनोविज्ञानक सिद्धांतों का विनियोग शिक्षा के क्षेत्र में किया जाता हैं। लेकिन यह ऐसा क्षेत्र भी है जिसमें ऐसे प्रत्ययों की शिक्षा मे व्यवहार की परीक्षा तथा शिक्षकों की रूचि के निर्धारण के लिये प्रयोगात्मक कार्य किये जाते हैं। सीखने और सिखाने की प्रक्रिया और सीखने वाले को अधिकतम सुरक्षा और संतोष के साथ समाज में तादात्म्य स्थापित करने मे सहायता देने हेतु निर्देशित कार्यों का अध्ययन करना हैं।"
अमेरिकन वैज्ञानिक परिषद् ने मानव विकास, व्यक्तित्व तथा समायोजन, अधिगम, अध्ययन विधियों, मापन पद्धतियों आदि को शिक्षा मनोविज्ञान के विषय क्षेत्र के रूप में निर्धारित किया।
शिक्षा की महत्वपूर्ण समस्याओं के समाधान में मनोविज्ञान सहायक होता है और यही सब समस्याएं व उनका समाधान शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र निर्धारित करती हैं।
उपरोक्त शिक्षा-मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत विचारों के आधार पर शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में प्रमुख रूप से निम्नलिखित पहलुओं का अध्ययन किया जाता हैं--
1. मानव विकास
शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र के अंतर्गत मानव विकास की विभिन्न अवस्थाओं का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता हैं। जिसमें विकास की अवस्थाएं व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं संवेगात्मक विकास सभी आते हैं। शिक्षा मनोविज्ञान का उद्देश्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करना होता हैं।
2. अधिगम प्रक्रिया
बालक के व्यवहार मे परिवर्तन करना शिक्षा मनोविज्ञान का एक मुख्य कार्य हैं। व्यवहार में यह बदलाव ही अधिगम कहलाता है। शिक्षा की प्रक्रिया शिक्षण, अधिगम तथा अनुभवों के द्वारा सम्पन्न होती हैं। शिक्षा मनोविज्ञान में अधिगम की अवधारण, आधार, प्रकृति एवं सिद्धांतों का अध्ययन किया जाता हैं।
3. मापन एवं मूल्यांकन
शिक्षा-मनोविज्ञान के अंतर्गत अधिगम बुद्धि, व्यक्तित्व आदि के मापन एवं मूल्यांकन से होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता हैं।
4. व्यक्तित्व
व्यक्तित्व (personality) आधुनिक मनोविज्ञान का बहुत ही महत्वपूर्ण एवं प्रमुख विषय है। व्यक्तित्व के अध्ययन के आधार पर व्यक्ति के व्यवहार का पूर्वकथन भी किया जा सकता है। बालक का व्यक्तित्व उसकी मानसिक क्रियाओं तथा सामाजिक व्यवहार पर भी निर्भर करता है। शिक्षा मनोविज्ञान, व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले भौतिक तथा अभौतिक वातावरण व मानसिक योग्यता का अध्ययन करता है। इनके अलावा बालक की रूचियों, कल्पनाओं, संवेदनाओं और उसके सामाजिक व्यवहार को भी इसमें शामिल किया जाता है।
5. मानसिक स्वास्थ्य
मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा-मनोविज्ञान के क्षेत्र के अंतर्गत आता हैं। यदि छात्र मानसिक रूप से स्वस्थ नही होता है तो वह सीखने की स्थिति में नही होता है। फ्राॅयड के अनुसार," व्यक्ति के अचेतन मन की अधुरी इच्छाएं उसे मानसिक रूप से विचलित कर सकती हैं। मानसिक क्रियायें ही उसके व्यवहार को निरूपित करती है। समाज मे उचित समायोजन व तनाव, भग्नासा, संघर्ष तथा विभिन्न प्रकार के मानसिक रोगों से निपटने के लिए मानसिक स्वास्थ्य का संतुलित विकास होना बहुत ही जरूरी है। बालक का व्यवहार उसके अचेतन मन का ही परिणाम है। अतः शिक्षा-मनोविज्ञान व्यक्ति के अचेतन मन का भी अध्ययन करता है तथा इसमें यह जानने का प्रयास किया जाता है कि बालक की कौन-कौन सी भावनाओं व इच्छाओं का दमन हुआ हैं।
6. बाल विकास
बाल विकास से अभिप्राय शिक्षण अधिगम द्वारा बालक के जैविक एवं मनोवैज्ञानिक विकास से हैं। बाल विकास का प्रमुख समय बाल्यावस्था के किशोरावस्था तक होता है। तथा इस समयावधि में बालक का संबंध शिक्षक, शिक्षण, शिक्षण संस्थाओं से अधिक रहता है। एक शिक्षक को यदि मनोविज्ञान की जानकारी होती है तो वह छात्र या छात्रों के इस विकासात्मक अवधि में अधिक सहायता प्रदान कर सकता है।
7. विशिष्ट बालक
विशिष्ट बालक वह होते है जो सामान्य नही होते जैसे-- प्रतिभाशाली, मंद-बुद्धि, शारीरिक दोष व मानसिक रूप से पिछ़डे बालकों को विशिष्ट की संज्ञा दी जाती हैं। शिक्षा मनोविज्ञान ऐसे बालकों का अलग से विवेचन करता है। इन बालकों मे सामान्य बालकों की अपेक्षा कुछ समानताएं एवं असमानताएं पाई जाती हैं। ऐसे बालक मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक तथा शारीरिक रूप से सामान्य बालकों से अलग होते हैं। शिक्षा-मनोविज्ञान ऐसे बालकों के लिए उपयुक्त विधि का चुयन कर सावधानी से अध्ययन करता हैं।
8. पाठ्यक्रम निर्माण
शिक्षा-मनोविज्ञान के द्वारा बालक के व्यवहार से संबंधित सभी जानकारियाँ का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है जो उसके व्यक्तित्व के निर्माण के लिए जरूरी होती है। इन सब जानकारियों को एक क्रमबद्ध तरीके से जोड़कर शिक्षा-मनोविज्ञान का पाठ्यक्रम तैयार किया जाता है।
9. व्यक्तिगत भिन्नताएँ
व्यक्तिगत भिन्नताओं का छात्र अधिगम पर विशेष प्रभाव पड़ता है, सभी छात्रों की कुछ जन्मजात शक्तियाँ, पारिवारिक, सामाजिक आदि विशेषताएं होती है। शिक्षा-मनोविज्ञान का कार्य व्यक्तिगत भिन्नताओं के आधार पर शिक्षण अधिगम कार्य को पूरा करना हैं। जैसे कुछ छात्र पढ़ाई में अच्छे होते हैं, किसी का प्रयोगात्मक ज्ञान अच्छा होता है, किसी का सैद्धांतिक ज्ञान अच्छा होता है, कोई चित्रकारी अच्छी करता है, कोई खेल मे अच्छा होता है, किसी की साहित्य मे रूचि होती हैं, किसी की कला में रूचि होती हैं, किसी को संगीत पसंद होता हैं इत्यादि। शिक्षक का कार्य व्यक्तिगत भिन्नताओं को पहचानना तथा उनके आधार पर शिक्षण-अधिगम कार्य करना होता हैं।
10. शारीरिक एवं मानसिक विकास
शारीरिक एवं मानसिक विकास शिक्षा-मनोविज्ञान का एक क्षेत्र है। शिक्षा-मनोविज्ञान के अंतर्गत उचित शिक्षण प्रक्रिया द्वारा छात्र के संपूर्ण विकास का प्रयास किया जाता है।
11. अनुसंधान
अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य बाल-व्यवहार एवं शिक्षण से संबंधित विभिन्न समस्याओं का गहन अध्ययन कर उनका समाधान प्रस्तुत करना है ताकि इस क्षेत्र में गुणात्मक सुधार किया जा सके। प्रामाणिक एवं विश्वसनीय निष्कर्ष प्राप्त करने के लिए शिक्षा मनोविज्ञान उचित विधियों के चुनाव में मदद करता हैं।
12. अध्ययन विधियाँ
इस क्षेत्र के अंतर्गत विभिन्न अध्ययन विधियों का विकास करना एवं उनको मान्यता प्रदान करना सम्मिलित हैं।
13. निदर्शन एवं परामर्श
निदर्शन एवं परामर्श का विशेष योगदान वर्तमान समय मे शिक्षण-अधिगम में देखने को मिलता है। क्योंकि एक स्वास्थ्य और खुशहाल जीवन शैली के लिए यह जरूरी है कि सही समय पर सही निर्णय लिए जाए। निदर्शन एवं परामर्श छात्रों को सही विषय, क्षेत्र आदि के चुनाव मे सहायता करता है। शिक्षक छात्रों का मार्गदर्शन अपने ज्ञान, शिक्षा, अनुभवों आदि के आधार पर करता हैं।
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