9/10/2021

कैसर विलियम द्वितीय की विदेश नीति, उद्देश्य

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कैसर विलियम द्वितीय का परिचय 

kesar william dwitiya ki videsh niti;1 मार्च, 1888 को सम्राट विलियम प्रथम की मृत्‍यु के बाद उनका पुत्र तृतीय फ्रेडरिक जर्मनी का सम्राट बना, परंतु वह कुछ ही दिनों में मर गया। उसके बाद विलियम द्वितीय जर्मनी का सम्राट बना। विलियम द्वितीय एक स्‍वंतत्र विचारों का व्‍यक्ति था। उसे एक विकसित और आधुनिक राष्‍ट्र विरासत में मिल गया था। नए सम्राट और बिस्‍मार्क की सोच और नीति में बहुत अंतर था अतः बिस्‍मार्क को अपने पद से इस्‍तीफा देना पड़ा। बिस्‍मार्क ने जर्मनी को एक संतुष्‍ट राष्‍ट्र घोषित किया था और वह यूरोप में शांति को महत्‍वपूर्ण मानता था। जबकि विलियम द्वितीय जर्मनी का विस्‍तार करने की नीति पर चलने वाला था। सम्राट विलियम द्वितीय जर्मनी की शक्ति और प्रभाव को विश्‍व स्‍तर पर फैलाना चाहता था। बिस्‍मार्क के बाद जर्मनी में कोई चांसलर बहुत अधिक प्रभावशाली नहीं हुआ। विलियम द्वितीय के काल में जर्मनी की विदेश नीति को विदेश मंत्रालय के सलाहकर बैरन वान हालस्‍टीन ने सबसे अधिक प्रभावित किया। 

सम्राट विलियम द्वितीय विश्‍व राजनीति में सैन्‍य शक्ति के महत्‍व को समझता था। वह जर्मनी को विश्‍व में सबसे अधिक शक्तिशाली बनाना चाहता था। उसने सैनिक शक्ति का खूब विकास किया। 

कैसर विलियम द्वितीय की विदेश नीति 

1. जर्मन-रूस संबंध

जर्मनी के एकीकरण के बाद बिस्‍मार्क यूरोप की राजनीति से फ्रांस को अलग रखने में सफल रहा, क्‍योंकि 1871 ई. से 1890 ई. तक उसे अपना मित्र बनाए रखा लेकिन कैसर ने अपनी नीति में परिवर्तन कर पहले की व्‍यवस्‍था को तहस-नहस कर दिया, जिसके निम्‍न कारण थे---

1. सुरक्षा संधि 1887 ई. की पुनरावृत्ति न करने पर रूस ने मित्रहीनता की स्थिति से निकलने हेतु फ्रांस की तरफ ध्‍यान दिया। 

2. 1894 ई. में रूस तथा फ्रांस के बीच सुरक्षा संधि हुई , जिससे रूस ने अपने एकाकीपन को दूर किया। 

3. हेग सम्‍मेलन मई, 1899 ई. में जर्मनी ने रूस के सेना संबंधी खर्चो में बढ़ोत्तरी न करने के प्रस्‍ताव का विरोध किया। 

4.1901 ई. में रूस ने मंचूरिया पर अधिकार कर लिया, जिसका इंग्‍लैंड़ जापान व जर्मनी ने जोरदार विरोध किया। रूस को झुकना पड़ा, रूस ने जर्मनी को ही इसका दोषी माना।  

5.1904 ई. रूस-जापान युद्ध में जर्मनी का तटस्‍थ होना। इस पर व्‍यूलों ने कहा रूस की तरफ से जापान के विरूद्ध लड़ना इंग्‍लैण्‍ड़ के विरूद्ध लड़ना होगा। 

6. उत्तरी समुद्र की दुर्घटना में विलियम द्वारा कूटनीतिक लाभ उठाने का प्रयत्‍न। 

7. पूर्वी समस्‍या में 28 जुन 1914 ई. को बोस्निया की राजधानी सराजेवां में संकट में रूस और जर्मनी बिल्‍कुल आमने-सामने आ गए। 

2. जर्मन-इंग्‍लैंड़ संबंध

विलियम द्वितीय के शासक बनाते ही जर्मनी और इंग्‍लैंड़ के रिश्‍तें बड़े ही सौहार्दपूर्ण हो गये, और यही रिश्‍ते के खातिर उसने कहीं बार इंग्‍लैंण्‍ड़ की यात्रा की। साथ ही इंग्‍लैंण्‍ड़ राजकुमार भी जर्मनी आए तथा ऐतिहासिक मैत्री को बनाए रखा, लेकिन विलियम की महत्‍वाकांक्षा ने मैत्रीपूर्ण संबंध में दरार पैदा कर दी, विलियम ने घोषणा की कि मेरा भविष्‍य समुद्र पर निर्भर है। इस बात पर इंग्‍लैण्‍ड़ के कान खड़े हुए तथा 1902 ई. में जापान से संधि कर अलगाववादी नीति को त्‍याग दिया। इसके अतिरिक्‍त और भी निम्‍न कारण थे जिससे उनके रिश्‍ते में खटास आयी--

1. इंग्‍लैण्‍ड़ से संधि कर हेलीगोलैंड लेकर उसे नौसैनिक शक्ति का अड्डा बनाया, जो बाद में इंग्‍लैंण्‍ड को पंसद नहीं आया। 

2.12 मई, 1894 ई, को ब्रिटेन तथा कांगो फ्री स्‍टेट के बीच हुई संधि के मुताबिक बहर-अल-गजल का प्रदेश बेल्जियम के राजा को पट्टे में दे दिया। ब्रिटेन का यह कार्य संधि के विरूद्ध था, जर्मनी ने इसका विरोध किया। 

3. जून, 1895 ई. में कील नहर के उद्घाटन के समय विलियम ने सभी बड़े देशों को बुलाया ओर इंग्‍लैंड के प्रति अधिक प्‍यार प्रदर्शित किया, परंतु इंग्‍लैंड़ इसके कार्यो का सूक्ष्‍म अध्‍ययन कर रहा था। 

4. जर्मनी की अग्रगामी विदेशा नीति की शुरूआत 1895 ई. में विलियम द्वारा कैप्रिवी के स्‍थान पर होहेनली को चांसलर बनाते ही हुई और बिस्‍मार्क की पंरपरा को त्‍याग दिया। 

5. जर्मनी और इंग्‍लैण्‍ड़ के मध्‍य द.पू. अफ्रीका में ट्रांसवाल की समस्‍या को लेकर आपसी संबंध तनावपूर्ण हो गए। 

6. जर्मनी ने अपने को सूदूर पूर्व में उठने वाले उस राष्‍ट्र के विरूद्ध जिसे ब्रिटेन की सहानूभूति व समर्थन प्राप्‍त था व रूस, फ्रांस के साथ जो इंग्‍लैण्‍ड़ के विरोधी थे, संबद्ध किया था। 

7. जर्मनी के साथ मित्रता में असफलता के पश्‍चात् ब्रिटेन ने 1902 ई. में जापान से संधि कर ली, इससे कटूता और ज्‍यादा बढ़ने लगी। 

8. बर्लिन-बगदाद रेल लाइन का इंग्‍लैण्‍ड़ द्वारा विरोध करना। 

3. जर्मनी तथा फ्रांस 

फ्रांस जर्मनी के एकीकरण के आरम्‍भ से ही कट्टर दुश्‍मन रहा था, क्‍योंकि फेंकफर्ट की संधि में फ्रांस को अपमानित होना पड़ा था। बिस्‍मार्क ने अपनी विदेश नीति के उद्देश्‍य में फ्रांस को मित्रहीन बनाया था लेकिन विलियम ने अपनी निरंकुश विदेश नीति में रूस से शत्रुता कर ली, जिससे 1894 ई. में रूस ने फ्रांस से मित्रता की। इसी तरह इंग्‍लैंड ने 1902 ई. में जापान से संधि की। 1904 ई. में इंग्‍लैण्‍ड़ तथा रूस के बीच संधि हो गई। 1907 ई. में इंग्‍लैण्‍ड़ तथा रूस के मध्‍य संधि हो गई। इस प्रकार फ्रांस अब यूरोप में फिर से शक्तिशाली हो गया। जर्मनी के विरूद्ध सारा यूरोप एक हुआ, जिससे 1914 ई. में प्रथम महायुद्ध का जन्‍म हुआ। 

4. मोरक्‍को संकट 

उत्तरी अफ्रीका में स्थित मोरक्‍को स्‍वतंत्र मुस्लिम राष्‍ट्र था। जर्मनी तथा फ्रांस उसे अपना उपनिवेश बनाना चाहते थे। अतः दोनों का स्‍वार्थ टकराने लगा, लेकिन फ्रांस को मोरक्‍को में विशेष रूचि थी, क्‍योकि इसकी सीमा अल्‍जीरिया से मिलती थी। 1880 ई. की मैड्रिड संधि के अनुसार बिना जर्मनी को पूछे यहां कोई परिवर्तन नही किया जाना था, लेकिन 1904 ई. में इंग्‍लैण्‍ड समेत यूरोप के सारे बड़े देशों ने फ्रांस के स्‍वार्थ को सहमति दे दी। जर्मनी ने ही अकेला इसका घोर विरोध किया। जिसका परिणाम हुआ कि 1914 ई. के प्रथम विश्‍व युद्ध के शुरू होने तक मोरक्‍कों में तीन बार भयंकर संकट पैदा हुए। मोरक्‍को के प्रश्‍न पर विलियम को आत्‍मसमर्पण करना ही पड़ा तथा फ्रांस की विजय हुई, इससे ट्रियल अंतांत ज्‍यादा शक्तिशाली हो गया। 

5. जर्मनी और टर्की 

विश्‍व राजनीति में टर्की-जर्मनी संबंध का महत्‍वपूर्ण स्‍थान है। ये दोनों राष्‍ट्र मित्र बनकर रहे, उसकी वजह यह थी कि जर्मनी, आर्थिक तथा राजनैतिक प्रभाव का विकास करना चाहता था जिससे जर्मनी की बढ़ती हुई जनसंख्‍या के दबाव को कम किया जा सके। 1878 ई. के बाद तुर्की तथा इंग्‍लैंण्‍ड के बीच संबंध में कटुता आ गई जिसका लाभ उठाकर 1 नवंबर, 1889 ई. में को विलियम कुस्‍तुनतुनिया गया, वहां के राजा ने उसका जोरदार स्‍वागत किया। बदले में तुर्की सेनाओं का प्रशिक्षण, ड्यूल्‍स बैंक की स्‍थापना और रेल लाइनों का निर्माण किया। 1889 ई. में बर्लिन-बगदाद रेलमार्ग बना इससे जर्मनी का निर्यात तुर्की में बढ़ा, लेकिन यूरोपीय देशों ने इसका जमकर विरोध किया और इसी से जर्मनी के शत्रु हो गए। 

6. जर्मनी का प्रथम विश्‍व युद्ध में प्रवेश

मोरक्‍को में अगादीर संकट के बाद ट्रिपल अंतांत तथा जर्मनी के मध्‍य तनाव बढ़ता गया, लेकिन जर्मनी की नौ-सैनिक वृद्धि ने इस जलते हुए आग से घी का काम किया, बाल्‍कन प्रदेशों के घनिष्‍ट मित्र ऑस्ट्रिया के बढ़ते हुए दबाव को रूस तथा सर्बिया सहन नहीं कर पाए व 28 जुन, 1914 ई. को सरायेवों में ऑस्ट्रियन राजकुमार फ्रांसिस फर्डिनेड व उसकी पत्‍नी की हत्‍या कर दी गई, इस घटना ने मानों बारूद के ढेर पर आग का काम किया। 28 जुलाई, 1914 ई. को ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। 31 जुलाई का जर्मनी ने रूस से सैनिक तैयारी बंद करने को कहा लेकिन रूस का कोई भी उत्तर न मिलने पर 1 अगस्‍त, 1914 ई. में जर्मनी ने रूस के विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर दी, देखते ही देखते सारा यूरोप इस महायूद्ध में कूद पड़ा।

विलियम द्वितीय द्वारा बिस्‍मार्क की नीति का त्‍याग

बिस्‍मार्क के बाद कैसर विलियम ही जर्मनी का कर्ता-धर्ता बन गया था। वह एक महान् सम्राट था किन्‍तु राजनीतिक गुणों का उसमें अभाव था। वह सैद्धान्तिक तथा अहंभाव वाला व्‍यक्ति था। बिस्‍मार्क एक कुशल, शान्‍त, विश्‍लेषण शक्ति और यथार्थवाद के आधार पर अवसर देखकर निर्णय लेता था। वह जर्मनी की स्थिति से संतुष्‍ट था तथा उग्र निर्णय नहीं लेता था। बिस्‍मार्क जर्मनी को सुरक्षित करना चाहता था। इसके विपरीत कैसर विलियम की विचारधारा बिस्‍मार्क से पूर्णतः भिन्‍न थी। उसका विचार था कि जर्मन जाति संसार में प्रधान तथा श्रेष्‍ठ है। जर्मनी में विस्‍तार की अपरिमित क्षमता और आकांक्षा है। उसे जर्मन सैन्‍य शक्ति पर गर्व था। अपनी गृहनीति के समान विदेश नीति में भी उसी के निर्णय अन्तिम होते थे। कैसर विलियम का विचार था कि जर्मनी का सम्‍बन्‍ध यूरोप से ही नहीं अपितु समस्‍त विश्‍व से है। जर्मनी की नई पीढ़ी भी इसी विचारधारा से ओत-प्रोत थी। वस्‍तुतः बिस्‍मार्क ने सन्धि और समझौतों का जो चक्र गतिमान किया था उसकों रोकना संभव भी नहीं था। बिस्‍मार्क को यूरोप के बाहर तथा उपनिवेशों में कोई रूचि नहीं थी। बाल्‍कन प्रदेश की समस्‍या का मूल्‍य वह ‘‘एक जर्मन सिपाही की हड्डियों‘‘ के बराबर भी नहीं समझता था। इसके विपरीत कैसर विलियम का दृष्टिकोण था कि जर्मनी का स्‍थान संसार में ‘‘एक विश्‍व शक्ति‘‘ के समान होना चाहिए। 

अन्‍तर्राष्‍ट्रीय मामलों में कही भी, समुद्र  पर भी, कोई महत्‍वपूर्ण कदम जर्मनी तथा जर्मन साम्राज्‍य के सहयोग के बिना नहीं उठाना चाहिए। अतः बिस्‍मार्क की महाद्वीपीय विदेश नीति का त्‍याग कर कैसर विलियम ने ‘‘विश्‍व राजनीति‘‘ निर्धारितर की थी। 

विलियम द्वितीय की विदेश नीति के उद्देश्‍य (kesar william dwitiya ki videsh niti ke uddeshy)

विलियम द्वितीय की विदेश नीति के निम्‍न उद्देश्‍य थे--

1.जर्मनी को विश्‍व शक्ति  के रूप में परिवर्तित करना

बिस्‍मार्क जर्मनी को यूरोपीय शक्ति के रूप में देखना चाहता था, परन्‍तु विलियम द्वितीय जर्मनी को एक विश्‍व शक्ति के रूप में परिवर्तित करना चाहता था। इसकी विदेश नीति का आधार विश्‍व राजनीति था। वह कहा करता था कि ‘‘विश्‍व में कहीं भी कोई ऐसा कार्य नहीं होना चाहिए।  जिसमें जर्मनी की सम्‍मति न हो।‘‘ वह जर्मन जाति को सभ्‍य मानकर यह कहता था कि ‘‘जर्मन जाति को ईश्‍वर ने संसार को सभ्‍य करने के लिए ही बनाया है।‘‘ उसके समय में रूस का राज्‍य एशिया के बहुत बड़े भाग पर फैला हुआ था। इंग्‍लैण्‍ड़ व फ्रांस भी विशाल साम्राज्‍य के स्‍वामी थे। अतः कैसर जैसा महत्तवाकांक्षा शासक जर्मनी को छोटा साम्राज्‍य कैस देख सकता था? 

2. औपनिवेशिक विस्‍तार की नीति अपनाना

विलियम द्वितीय ने बिस्‍मार्क की उपनिवेशवादी नीति का परित्‍याग कर विस्‍तारक नीति को अपनाया। फ्रांस को यूरोप की राजनीति में पृथक रखने के लिए यह अनिवार्य था कि उन प्रश्‍नों से जर्मनी स्‍वतः को अलग रखता जिनकों लेकर यूरोपीय देश प्रतिद्वन्द्विता में फँसे थे। उपनिवेश के प्रश्‍न को लेकर यूरोपीय देशों में परस्‍पर युद्ध हो जाने से कटुता का वातावरण भी उत्‍पन्‍न हो जाता था। अतः विस्‍मार्क ने तटस्‍थ रहते हुए उपनिवेश विस्‍तार की ओर विशेष ध्‍यान नहीं दिया, परन्‍तु विलियम द्वितीय ने उपनिवेश विस्‍तार पर विशेष ध्‍यान दिया। कैसर विलियम द्वितीय जर्मनी में हो रहें औद्योगिक विस्‍तार की गति को देखते हुए कच्‍चे माल एंव बाजार की आवश्‍यकताओं के लिए उपनिवेश स्‍थापित करने का इच्‍छुक था। यही कारण था कि उसे मोरक्‍कों के प्रश्‍न पर फ्रांस से तीन बार संघर्ष करना पड़ा था। 

3. पूर्व की ओर साम्राज्‍य विस्‍तार करना 

बिस्‍मार्क बाल्‍कन प्रदेशों एंव भूमध्‍यसागर को कोई विशेष महत्त्व नहीं देता था, परन्‍तु विलियम द्वितीय बाल्‍कन प्रदेश के रास्‍ते से पूर्व की ओर बढ़ना चाहता था। इस उद्देश्‍य की पूर्ति हेतु वह बर्लिन से बगदाद  तक रेलवे लाइन का निर्माण करना चाहता था। 

4. जल सेना का सुदृढ़ीकरण 

बिस्‍मार्क की नीति के विपरीत विलियम द्वितीय नौ सेना का विस्‍तार एंव उसका सुदृढ़करण करना चाहता था। वह सामुद्रिक शक्ति को विश्‍व शांति मानता था।

विलियम की विदेश नीति की समीक्षा/मूल्यांकन 

इस काल में जर्मनी की विदेश नीति की कई लेखकों ने अलोचना की है। प्रोफेसर ब्रेन्‍डनवर्ग ने स्‍वीकार किया है कि जर्मनी की नीति अदूरदर्शितापूर्ण एंव अव्‍यवस्थित थी, तथा उसमें दूसरे राज्‍यों की जनता की मनोवृत्ति को समझने की चेष्‍टा नहीं की गई।  प्रोफेसर गूच ने विलियम द्वितीय की विदेश नीति की समीक्षा करते हुए लिखा है कि बिस्‍मार्क ने बिना नौसेना के और बिना गोली चलाए औपनिवेशिक साम्राज्‍य की स्‍थापना की थी। यदि नवीन महत्‍वाकांक्षाओं के कारण उस नीति में परिवर्तन करना आवश्‍यक हो गया था तो उसके उत्तराधिकारियों को चाहिए था कि वे एक बार में एक ही उद्देश्‍य को प्राप्‍त करने तथा एक ही खतरे का सामना करने की नीति पर चलें। विलियम द्वितीय ऐसे व्‍यक्तियों से घिरा हुआ था। जिनमें कुछ तुर्की के साम्राज्‍य की ओर विस्‍तार करना चाहते थे और कुछ एटलांटिक सागर के क्षेत्र में। इन दोनों योजनाओं में से प्रत्‍येक से लाभ या हानि होने की सम्‍भावना थी। राजनीतिज्ञों का यह दायित्‍व था कि वे पूर्व और पश्चिमी नीति में से किसी एक को चुनते और उसे कार्यान्वित करते। कैसर और बूलो की नीति की सबसे बड़ी भूल यह थी कि निकट पूर्व में रूस की महत्‍वाकांक्षाओं का विरोध करने के साथ ही उन्‍होंने ब्रिटेन की नौ-सैनिक श्रैष्‍ठता को चुनौती देकर उसे अपना शत्रु बना लिया।

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