bismarck ki grah niti ka varna;जर्मनी का एकीकरण 1871 में सम्पन्न हुआ। इसके पश्चात् जर्मनी को आधुनिक विश्व पटल पर शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभारने का श्रेय बिस्मार्क को ही जाता है। बिस्मार्क की गृह नीति का मुख्य उद्देश्य साम्राज्य को सुसंगठित एंव शक्तिशाली बनाना था। साथ ही वह समान प्रशासकीय, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था की स्थापना द्वारा विभिन्न राज्यों की विविधताओं एंव पृथकताओं को समाप्त करना चाहता था। इसीलिए उसने केन्द्रीय संस्थाओं का निर्माण आरम्भ किया जिससे साम्राज्य के सभी भागों में एक ही प्रकार की व्यवस्था स्थापित हो गई। नवीन जर्मनी एक संघीय साम्राज्य था। वह पच्चीस छोटे-बड़े राज्यों का तथा राजकीय प्रदेश आल्सास-लारेन का सम्मिलित संघ राज्य था। प्रत्येक अवयवी राज्य स्थानीय शासन। संबंध में पूर्ण स्वाधीन था, किन्तु अन्य बातों में वह केन्द्र के अधीन था। प्रत्येक अवयवी राज्य का शासन था, अपनी व्यवस्थापिका और कार्यपालिका थीं तथा अपने न्यायालय थे। चूँकि प्रशा सम्पूर्ण जर्मनी में सबसे बड़ा और सबसे बड़ी जनसंख्या वाला राज्य था और उसकी सैन्य शक्ति भी अन्य राज्यों से अधिक थीं, अतः उसकी प्रमुखता स्वाभाविक रूप से सारे जर्मनी पर छायी हुई थी।
बिस्मार्क की गृह नीति
बिस्मार्क ने ‘‘लौह एंव रक्त‘‘ की नीति को अपनाते हुए, एक असंभव से लगाने वाले कार्य को पूर्ण करते हुए जर्मनी का एकीकरण पूर्ण किया और 18 जनवरी 1871 को प्रशा के सम्राट विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया। दक्षिण जर्मनी के राज्य भी जर्मन संघ में सम्मिलित हो गये। प्रिंस आटोवान बिस्मार्क जर्मन संघ का चांसलर एंव प्रधानमंत्री बन गया। किंतु जर्मनी के एकीकरण के पश्चात् बिस्मार्क के सम्मुख अनेक आन्तरिक समस्यॉंए थी। जैसे---
1.जर्मनी के विभिन्न राज्यों में समान मुद्रा, समान माप-तौल तथा समान डाक तथा रेल व्यवस्था स्थापित करना।
2. जर्मन राष्ट्र में एकता तथा राष्ट्रवाद की भावना उत्पन्न करना। अल्पसंख्यक जातियाँ - पोल, डैन तथा अल्सास और लारेन के निवासी स्वतंत्रता चाहते थे। अतः गैर-जर्मनी जातियों को जर्मन बनाने का प्रयत्न करना।
3.चर्च की शक्ति को प्रतिबन्धित करना।
4.समाजवादी आन्दोलन का दमन करना।
5.सभी जर्मन राज्यों के कानून में एकरूपता लाना।
बिस्मार्क की आंतरिक नीति
1. सभ्यता के लिए संघर्ष अथवा कुल्टर कैम्फ
1871 में जेसे ही जर्मनी साम्राज्य का एकीकरण हुआ उसके तुरंत बाद ही बिस्मार्क को कैथालिक चर्च के साथ संघर्ष में फंसना पड़ा। जर्मनी की सरकार और कैथोलिक चर्च तथा कैथोलिक दल के बीच जो युद्ध 1871 से 1878 के बीच हुआ उसे इतिहास में ‘सभ्यता के लिए संघर्ष‘ या ‘कुल्चुर कैम्फ‘ कहा जाता है। उसकी गृह नीति की सबसे महत्वपूर्ण घटना यही मानी जाती है। यह वह युग था जबकि यूरोप के कई देशो में चर्च और राज्य के बीच संघर्ष हुए थे। राज्य चर्च को राजनीति से अलग करने की नीति अपना रहे थे। जर्मनी में भी चर्च के अधिकारों को कम करने और उन्हें राजनीति से पृथक करने के लिए बिस्मार्क ने संघर्ष किया। इस संघर्ष के कई कारण थे-
1. कैथोलिक चर्च जर्मनी में अधिक शक्तिशाली था।
2. कैथोलिक चर्च जर्मनी के एकीकरण का विरोधी था।
3. प्रशा की जनता प्रोटेस्टेंट थी और अन्य राज्यों की अधिकांश जनता कैथोलिक।
4. बिस्मार्क का मानना था कि पोप राष्ट्र का विरोधी था।
5. जर्मनी के एकीकरण के बाद भी कैथोलिक चर्च आस्ट्रिया का समर्थक और जर्मनी का विरोधी ही रहा। अतः दोनो में संघर्ष अनिवार्य सा हो गया था।
6.1870 में वेटीकन काउन्सिल ने पोप के अमोघता के सिद्धांत की घोषण की। इसमे यह कहा गया कि प्रत्येक धर्मावलम्बी को पोप की आज्ञाओं का अक्षरक्षः पालन करना चाहिए अन्यथा उसे धर्म बहिष्कृत कर दिया जाएगा।
7. बिस्मार्क ने पोप की अमोघता के सिद्धांत को राज्य के अधिकारों के लिए खतरनाक चुनौती माना और उसका विरोध किया।
8. बिस्मार्क धर्म को राजनीति से बिल्कुल अलग रखना चाहता था। उसकी थी - प्रशा का वैधानिक एंव राजनैतिक दृष्टिकोण के केवल एक है धार्मिक कार्यों, चर्च की पूर्ण स्वतंत्रता तथा राज्य के अधिकार-क्षेत्र में उसका हस्ताक्षर का विरोध।
9.1870 में रोम के पोप ने चर्च के मामल में राज्य के हस्तक्षेप का विरोध किया। और उसने पादरियों को यह आदेश दिया कि समस्त विद्यालयों में इस बात की शिक्षा दी जाए। पोप के आदेशानुसार जर्मनी के पादरियों ने भी इस बात की मॉंग की। यह मांग जर्मन राष्ट्रीयता के लिए खतरनाक थी। बिस्मार्क इसकों कभी स्वीकार नहीं कर सकता था।
2. बिस्मार्क तथा समाजवादियों के मध्य संघर्ष
भीतरी क्षेत्र में बिस्मार्क की एक अन्य समस्या जर्मनी में समाजवाद का फैलना था। अतः उसने समाजवाद से संघर्ष किया। बिस्मार्क समाजवादीयों को चर्च से भी अधिक खतरनाक समझता था और समाजवादियों की देशभक्ति पर संदेह करता था। समाजवादियों को समाप्त करने के लिए सर्वप्रथम यह आवश्यक था कि समाजवादियों की संख्या लोकसभा में कम हो जाए। इसलिए जनसाधारण में उनकी प्रसिद्धि को रोकना जरूरी था। अतः मई तथा जून 1878 ई. में सम्राट की हत्या के जो दो प्रयास हुए उसमें समाजवादियों पर आरोप लगाते हुए उन्हें समाज व राष्ट्र का शत्रु घोषित किया गया। फलतः 1878 के चुनाव में बिस्मार्क समर्थकों को बहुमत प्राप्त हुआ और समाजवादियों और उदारवादियों की संख्या में कमी आ गई। बिस्मार्क ने 1878 ई. में जिस प्रकार चुनावों में बहुमत प्राप्त किया उसकी इतिहासकारों ने आलोचना की है। प्रो. जे. पी. टेलर ने लिखा है, ‘‘शान्तिकाल में जबकि जर्मनी को कोई खतरा नहीं था, इस प्रकार के नारे से जनता का समर्थन प्राप्त करना राजनीतिज्ञता की असफलता की स्वीकारोक्ति थी। बिस्मार्क ने पुलिस को अधिकार दिए। समाजवादियों सभा पर प्रतिबन्ध लगाए। 1878 में पारित कानून 4 वर्ष तक लागू रहे तथा 1882 ई. एव 1886 ई. में पुनः क्रियान्वित किए गए। कठोरतापूर्वक व्यवहार करते हुए इन कानूनों के अन्तर्गत 1890 तक 1400 प्रकाशनों को जब्त किया गया। एक विद्वान ने उस समय कहा था कि ये कानून अत्यन्त निराशापूर्ण है और वे इस सरकार को पूराने ढंग अपनाते हुए देख रहे हैं जिन्हे मेटंरनिख ने 50 वर्ष पूर्व अपनाया था।
3. राज्य समाजवाद की स्थापना
समाजवाद के बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर बिस्मार्क बहुत चिन्हित हुआ। उसने समाजवाद का अंत करने के उद्देश्य से श्रमिकों तथा कृषकों की दशा सुधारने के प्रयास प्रारंभ कर दिए। उसका उद्देश्य था कि कृषक और श्रमिक तथा राज्य को अपना हितेषी माने। बिस्मार्क के इस प्रयास को ‘राज्य समाजवाद‘ कहा जाता है। उसके अंतर्गत 1883 ई. में बीमारी के लिए, 1864 ई. में आकस्मिक दुर्घटना के लिए, अपाहिज तथा वृद्धावस्था के लिए बीमा की व्यवस्था के नियम पारित हुए। रविवार अवकाश का दिन घोषित किया गया। काम के घंटे निश्चित किए गए।
बिस्मार्क की गृह नीति की समीक्षा या मूल्यांकन
बिस्मार्क की गृह नीति में एक महत्वपूर्ण तत्व शामिल था वह था कि जर्मनी को यूरोप का शक्तिशाली राज्य के रूप में उभरना। लेकिन गृह क्षेत्र में जिन महत्वपूर्ण समस्याओं का सामना करना पड़ा, उनको सुलझाने में वह असफल रहा। जैसे-पोप में संघर्ष में उसे झुकना पड़ा, समाजवादियों का दमन करने में असफलता हाथ आयी, राज्य समाजवाद भी मजदूरों को समाजवादियों से अलग नहीं कर सका, लेकिन कृषि और औद्योगिक संरक्षण नीति ने जर्मनी को आत्मनिर्भर बनाने में योगदान दिया, उसकी गृहनीति उसकी रचनात्मक प्रतिभा की द्योतक रही। उसने अपने पुनर्गठन तथा पुनर्निर्माण के कार्यो से जर्मनी के विभिन्न भागों में एकता स्थापित की तथा जर्मनी को एक सुसंगठित और सुदृढ़ साम्राज्य में बदल दिया।
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