संयुक्त परिवार का महत्व/लाभ अथवा कार्य
sanyukt parivar ke gun labh mahatva;संयुक्त परिवार भारत की आधारशिला है। एक मुख्य संस्था होने के कारण इसका भारतीय सामाजिक, आर्थिक ढांचे में महत्वपूर्ण स्थान है। संयुक्त परिवार के महत्व अथवा लाभों को निम्न बिंदुओं के आधार पर जाना जा सकता है--
संयुक्त परिवार के आर्थिक रूप से लाभ अथवा आर्थिक कार्य
संयुक्त परिवार द्वारा ऐसे अनेक आर्थिक कार्य किए जाते हैं जो उसके महत्व को दर्शाते हैं इन्हें निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर समझा जा सकता है--
1. खेती के टुकड़े होने से बचाव
संयुक्त परिवार की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि संपूर्ण संपत्ति पर किसी एक व्यक्ति का अधिकार नहीं होता बल्कि सभी व्यक्तियों का उस पर समान रूप से अधिकार होता है। इस भावना से परिवार की संपत्ति भूमि को बंटवारे से बचा लिया और खेती टुकड़े-टुकड़े होने से बच गई।
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2. पारिवारिक धन का समान वितरण
परिवार की संपूर्ण संपत्ति पर सभी का समान अधिकार होता है। परिवार का मुखिया व्यक्ति की आवश्यकतानुसार उसकी इच्छाओं को पूरा करता है। यह मुखिया पर निर्भर करता है कि वह परिवार के किसी व्यक्ति की मांग पूर्ण करें अथवा ना करें। परिवार के मुखिया का निर्णय अंतिम होता है। व्यक्तिक योग्यताओं और आवश्यकताओं को संयुक्त परिवार में मान्यता नहीं दी जाती है। इसलिए धन का असमान वितरण संयुक्त परिवार में नहीं होता वास्तव में परिवार की दृष्टि से सभी व्यक्ति समान होते है।
3. खर्च मे बचत
परिवार का मुखिया परिवार की आवश्यकताओं के आधार पर ही धन खर्च करता है। वह फालतू चीजों पर धन खर्च नहीं करता। इसलिए इस परिवार में फिजूलखर्ची नहीं होती इन परिवारों में धन का संचय अधिक होने के कारण पारिवारिक संपत्ति में निरंतर वृद्धि होती जाती है।
4. श्रम विभाजन
संयुक्त परिवार में श्रम का विभाजन इस प्रकार किया जाता है कि जिससे एक तरफ परिवार के सभी कार्य सुचारू रूप से चलते रहे हैं और दूसरी तरफ परिवार की संपत्ति में भी वृद्धि हो सके। सामान्यतः श्रम का विभाजन दो आधारों पर किया जाता है। पहला परिवार के आंतरिक कार्यों को करने की दृष्टि से जिसमें स्त्रियों की मुख भूमिका होती है और दूसरा उत्पादन संबंधित जिसमें पुरुषों की मुख्य भूमिका होती है।
5. संपत्ति मे वृद्धि का उद्देश्य
संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों का मुख्य उद्देश्य परिवार की संपत्ति में वृद्धि करना है। इसलिए परिवार के सभी सदस्य सामूहिक रूप से उत्पादन के कार्य में लगते हैं। जिससे परिवार की संपत्ति में वृद्धि हो सके उदाहरण के लिए बच्चे पशुओं की देखरेख करते हैं। महिला परिवार के कार्य के अतिरिक्त खाली समय में कुटीर उद्योग से जुड़े कार्य करती है। जिससे इनकी अतिरिक्त आय होती है। युवा वर्ग कृषि संबंधी कार्य करते हैं, वृद्ध व्यक्ति रस्सी बनाने से लेकर सूत कातने तक का कार्य करते हैं। इस प्रकार से एक परिवार का प्रत्येक छोटा और बड़ा सदस्य परिवार की संपत्ति बढ़ाने में सहयोग करता है।
संयुक्त परिवार के राजनैतिक कार्य अथवा लाभ
संयुक्त परिवार के अनेक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कार्य राजनीतिक कार्यों को भी दर्शाते हैं। जिन्हें निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर जाना जा सकता है--
1. राजनीति की प्रथम पाठशाला
यदि संयुक्त परिवार को राजनीति की प्रथम पाठशाला कहें तो अतिशयोक्ति ना होगी। परिवार का मुखिया परिवार के सभी व्यक्तियों के गुण, आदतों और स्वभाव से परिचित होता है। उसे यह ज्ञात है कि किस व्यक्ति से कैसे और किस प्रकार का काम लिया जा सकता है। यह उसकी बुद्धि और चतुर राजनीति पर निर्भर करता है यदि परिवार में मुखिया की राजनीतिक क्षमता कम हुई अथवा ढ़ोल-मटोल और ढीली हुई तो निश्चय ही संपूर्ण परिवार विघटित हो जाता है। परिवार का मुखिया एक न्यायमूर्ति के रूप में भी कार्य करता है। वह परिवार के सभी मुददों का फैसला करता है। अच्छे कार्य करने पर सदस्यों की प्रशंसा करता है और खराब कार्य करने पर उन्हें दंड भी देता है।
2. राष्ट्रीय भावना का स्त्रोत
इस परिवार में सामुदायिक भावना कहीं गहरे रूप में विद्यमान है। इसमें व्यक्ति की इच्छाओं और आवश्यकताओं पर न सोचकर वह संपूर्ण परिवार के उत्थान व प्रगति के लिए सोचता है। यह भावना अन्ततोगत्वा राष्ट्रीय भावना में प्रफुल्लित होती है। वास्तव में कृषक संपूर्ण देश के लिए उत्पादन करते हैं ना कि मात्र अपने परिवार के लिए ही।
संयुक्त परिवार के सामाजिक कार्य अथवा लाभ
संयुक्त परिवार के सामाजिक कार्यों को निम्न बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है--
1. सामाजीकरण
सामाजीकरण की दृष्टि से संयुक्त परिवार एक महत्वपूर्ण संस्था है। बच्चों का पालन-पोषण ढंग से किया जाता है कि वह स्वतः परिवार में होने वाले क्रियाकलापों को सीख ले। उसे परिवार के सभी कार्यों में भाग लेना होता है आरंभ से ही परिवार का मुखिया बच्चों को विविध परिवारिक कार्यों की जानकारी कराता है। इस तरह संयुक्त परिवार सामाजीकरण की प्रथम पाठशाला है।
2. व्यक्तिवाद पर प्रतिबंध
संयुक्त परिवार में व्यक्ति की इच्छाओं को महत्व नहीं दिया जाता इस परिवार में सामूहिक इच्छाओं को ही मान्यता दी जाती है। परिवार में प्रेम त्याग सहयोग की भावना की ही प्रधानता है। जो समस्त परिवार के सदस्यों को परस्पर बांधे रहती है। परिवार के सभी सदस्य एक साथ सोचते हैं और एक सा कार्य करते हैं। व्यक्ति की इच्छा का यहां कोई महत्व नहीं होता है।
3. सामाजिक बीमा
आधुनिक युग में सरकार जीवन बीमा का कार्य करने लगी है किंतु इस सरकारी बीमा से व्यक्ति की संपूर्ण सुरक्षा नहीं हो पाती। वास्तव में संयुक्त परिवार एक ऐसी बीमा एजेंसी है जिसमें व्यक्ति बीमारी, बेकारी, वृद्धावस्था और किसी गंभीर संकट के समय आश्रय और सुरक्षा प्राप्त करता है।
4. वृद्ध, विधवा और अनाथ का स्थान
बूढ़े, विधवा, अनाथ जिन की देखभाल के लिए सरकार न समान ही कुछ करती है। उनकी सुरक्षा देखभाल का दायित्व सहर्ष संयुक्त परिवार अपने ऊपर लेता है। संयुक्त परिवार एक ऐसा स्थान है जहां व्यक्तियों को प्रेम सहानुभूति और अपनापन अनुभव होता है। इन्हीं के सहारे व्यक्ति अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत कर लेता है।
5. मनोरंजन का उत्तम स्थान
यह एक ऐसा परिवार है जिसमें बच्चे बूढ़े, जवान, स्त्री-पुरुष बहू, बेटियां सभी प्रकार के रिश्ते पाए जाते हैं। बच्चे अपनी तोतली वाणी से कहानियां और चुटकुले आदि सुना कर, युवा संगीत के कार्यक्रम करके, भाभी और देवर के पवित्र मजाक, परिवार के मनोरंजन के अपने ही साधन है। जब कभी संपूर्ण संयुक्त परिवार खुले आकाश में बैठकर सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं तो देखने योग्य बनता है। नगर का सर्वोत्कृष्ट मनोरंजन भी इनके आगे बोना हो जाता है।
6. पीढ़ियों के ज्ञान का हस्तांतरण
संयुक्त परिवार पीढ़ियों के ज्ञान का भंडार का केंद्र है। वृद्धजनों के पास समाज के विभिन्न क्षेत्रों का ज्ञान होता है। उनका अनुभव नई पीढ़ी को दिशा देता है। कार्य करने का तरीका बताता है। समाज से जुड़ने की भावना प्रदान करता है। इनकी शिक्षा, उपदेश, आदर्श और सुझाव परिवार को सुखी संपन्न और एकता के सूत्र में सभी सदस्यों को बांधते हैं।
7. सहयोग और पारस्परिक सहायता का केन्द्र
यह वह पवित्र स्थान है जहां व्यक्ति निस्वार्थ भाव से एक दूसरे की सहायता करता है और सामूहिक उत्तरदायित्व की भावना को पूर्ण करता है। इसका सिद्धांत यह है कि एक सबके लिए और सब एक के लिए। यह भावना व्यक्ति को परस्पर सहयोग के लिए प्रेरित करती है।
8. सामाजिक नियंत्रण
संयुक्त परिवार में अनुशासन काफी कठोर होता है। परिवार का मुखिया सभी सदस्यों पर अंकुश लगता है कोई भी व्यक्ति परिवार के आदर्श, मूल, इच्छा के विरुद्ध कार्य नहीं करता। परिवार की मर्यादा सभी को प्रिय होती है। सभी परिवार की परंपरा के अनुसार कार्य करते हैं। यदि कोई व्यक्ति परिवार के नियमों और परंपराओं का उल्लंघन करता है तो उसे कठोर दंड दिया जाता है।
9. मानसिक सन्तोष
आधुनिक युग में जहां व्यक्ति अनेक प्रकार के मानसिक रोगों से ग्रसित और पीड़ित है। वही वह संयुक्त परिवार में संतुष्ट है उसे नगर की तरह यहां तनाव में जीना नहीं पड़ता। उसे न तो कल के भोजन की चिंता है और न ही नौकरी छूटने का भय है। यहां सभी व्यक्ति परस्पर एक दूसरे का सुख दुख बांट लेते हैं। इस तरह व्यक्ति यहां मानसिक रूप से अधिक संतुष्ट रहता है।
संयुक्त परिवार के दोष अथवा हानियां
sanyukt parivar ke dosh;संयुक्त परिवार में उपरोक्त गुणों और कार्यों के होते हुए भी संयुक्त परिवार में अनेक गुण और दोष है जिन्हें निम्न बिंदुओं द्वारा समझा जा सकता है--
1. मुखिया की तानाशाही प्रवृत्ति
संयुक्त परिवार में सभी व्यक्तियों की इच्छाओं, भावनाओं और आवश्यकताओं का कोई स्थान नहीं है। यहां मुखिया ही सर्वश्रेष्ठ है उसी की आज्ञा सर्वश्रेष्ठ है। उसके आदेशों का पालन सभी को करना होता है। वही परिवार का मालिक और संचालक है। वह जैसा चाहे वैसा ही परिवार में होता है। उसके कार्यों में कोई व्यक्ति हस्तक्षेप नहीं कर सकता। इसलिए वह परिवार में एक तानाशाह की तरह कार्य करता है।
2. व्यक्ति के विकास मे बाधक
संयुक्त परिवार में किसी एक व्यक्ति का कोई महत्व नहीं होता भले ही वह कितना ही योग्य क्यों ना हो। उसे तो संपूर्ण परिवार के साथ चलना होता है। इस प्रवृत्ति के कारण बचपन से ही बच्चों के अंदर सोचने और समझने की शक्ति व क्षमता का विकास नहीं हो पाता। इस प्रकार वह आरंभ से ही दूसरों के निर्देशन में कार्य करने का आदी हो जाता है और उसका व्यक्तित्व बोना होकर रह जाता हैं।
3. सामान्य जीवन स्तर
इस परिवार में कार्य करने के ढंग और पद्धति दोनों ही काफी पुराने हैं, जिससे इनकी आय में वृद्धि नहीं होती। जबकि इस परिवार की सदस्य संख्या काफी अधिक होती है। इसलिए आय कम होने के कारण इनका जीवन स्तर अति निम्न कोटि का होता है।
4. स्त्रियों की निम्न स्थिति
संयुक्त परिवार में स्त्रियों की दशा गुलामों से कम नहीं है। वह सबसे पहले उठती हैं और सबसे बाद में सोती है। परिवार के समस्त कार्य उसे करने होते हैं। साथ ही जेठ जेठानी सास-ससुर और ननद के ताने भी सुनने होते हैं। ग्रामीण समाज में स्त्रियों को मारना-पीटना सामान्य बात है। शायद यह पति का अधिकार है कि उसकी छोटी सी गलती पर भी उसे मारा पीटा जाए। उसके व्यक्तिगत इच्छाओं का फिर प्रश्न ही कहाँ उठता है? वह तो स्त्री के नाम पर एक दासी है। जिसे परिवार के समस्त कार्य करने होते हैं। बच्चों के पालन पोषण का उत्तरदायित्व भी उसी पर है और कुछ अनुचित हो जाए तो उसे पशुओं की तरह मार भी खानी होती है। संयुक्त परिवार में स्त्रियों की दशा निश्चय ही दयनीय है।
5. आलसी व्यक्तियों मे वृद्धि
संयुक्त परिवार पर संपूर्ण परिवार के उत्तरदायित्व का भार होता है। यह उसका कर्तव्य है कि वह परिवार के सभी सदस्यों को भोजन और पहनने को वस्त्र दे, भले ही वह कोई कार्य करें अथवा ना करें। परिवार के अनेक ऐसे व्यक्ति जो दिन भर इधर-उधर घूम कर व्यर्थ में समय नष्ट करते हैं, सह परिवार उनका और उनके बच्चों का पालन पोषण भी करता है। इस प्रकार के प्रोत्साहन से व्यक्तियों में कार्य करने की इच्छा नहीं होती है और परिवार में आलसी व्यक्तियों की भरमार हो जाती है।
6. जातिवाद के प्रेरक
संयुक्त परिवार उपजातियों से मिलकर बनता है इसलिए इसका संबंध एक विशेष जाति की परिधि में सीमित होकर रह जाता है। व्यक्ति अपनी जाति के व्यक्तियों से अधिक संबंध रखते हैं। उनमें परस्पर आदान-प्रदान करते हैं, सामाजिक नातेदारी रखते हैं। यह सभी तथ्य जातिवाद में वृद्धि के कारण बनते हैं।
7. बाल विवाह को प्रोत्साहान
संयुक्त परिवार में यह प्रथा है कि बच्चों का विवाह अल्प आयु में ही किया जाता है। इस आयु में बच्चों के विवाह के संबंध में अपने ना कोई राह होती है और ना इच्छा इसका परिणाम यह होता है कि अल्प आयु में ही माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त होता है और विधवा बनने का दुर्भाग्य भी।
8. जनसंख्या मे वृद्धि
संयुक्त परिवार में शिक्षा के महत्व को ना के समान ही समझा जाता है। बालक अल्प आयु में ही अपने परिवार के कार्यों में भाग लेने लगता है। छोटी आयु में ही उसका विवाह हो जाता है, छोटी आयु में ही माता-पिता बनने का इन्हें सौभाग्य प्राप्त हो जाता है। कुछ ही वर्षों में संयुक्त परिवार में बच्चों की एक अच्छी संख्या देखने को मिलती है। यह सभी तथ्य जनसंख्या वृद्धि में सहायक बनते हैं।
9. लड़ाई झगड़े
यह स्वाभाविक है कि जिस परिवार में जितनी अधिक व्यक्ति साथ-साथ रहेंगे वहाँ लड़ाई-झगड़े, कटुता, मनमुटाव, तनाव के अधिक अवसर होंगे। संयुक्त परिवार में स्त्रियों के मध्य विभिन्न प्रकार के कलह और द्वेष उत्पन्न होते रहते हैं। बच्चों को लेकर अक्सर परिवार के सदस्यों में तनाव उत्पन्न हो जाते हैं। अंत में यह सब परस्पर लड़ाई झगड़ों के कारण बनते है।
10. श्रमिकों की गतिशीलता मे बाधक
बचपन से ही बच्चा परिवार और गांव के ऐसे वातावरण में पलता और बड़ा होता है कि अपने परिवार और गांव को छोड़कर कहीं बाहर नहीं जाना चाहता। वह किसी भी कीमत पर अपना घर नहीं छोड़ना चाहता है, भले ही उसे कितने ही कष्टों और दुखों का सामना करना पड़े। इस कारण उसकी और उसके परिवार की उन्नति नहीं हो पाती है।
11. गोपनीय स्थान की कमी
संयुक्त परिवार में गोपनीय और एकांत स्थान की कमी पाई जाती है। जहां पति-पत्नी अपने मन की बात कही और सुन सके। इस प्रकार पति और पत्नी असंतुष्ट रहते है। इसके साथ ही जब बच्चे स्त्री पुरुष को किसी विशेष अवस्था में देखते हैं इसका प्रभाव उन पर बहुत खराब पड़ता है।
12. कुरीतियों को प्रोत्साहन
संयुक्त परिवार विधवा स्त्री को पुनर्विवाह की आज्ञा नहीं देता। कम आयु मे विवाह कर दिया जाता है, स्त्रियों की निम्न स्थिति होती, आलसी व्यक्तियों को आश्रय दिया जाता है। इस तरह संयुक्त परिवार अनेक कुरीतियों को प्रोत्साहित करता है।
13. सामाजिक समस्याओं का केन्द्र स्थल
संयुक्त परिवार अनेक प्रकार की समस्याओं का स्त्रोत है। उदाहरण के लिए बाल विवाह, विधवा पुनर्विवाह की आज्ञा ना देना, बेकारी, दहेज प्रथा, जनसंख्या की समस्या, अंतर्विवाह, अस्पृश्यता, स्त्रियों की निम्न दशा, गतिशीलता से रुकावट और स्वतंत्र व्यवसाय करने पर प्रतिबंध। संयुक्त परिवार उपयुक्त समस्याओं को प्रोत्साहन और आश्रय देता है।
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