6/27/2021

नगर के प्रकार

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नगरों के प्रकार 

nagar ke prakar;नगरों को विभिन्न श्रेणियों मे विभाजित करना एक दुरूह कार्य है क्योंकि एक नगर किसी एक कारण से स्थापित नही होता बल्कि अनेके ऐसे महत्वपूर्ण सहयोगी कारक होते है जो नगर को बनाने और बसाने मे सहायक होते है। उदाहरण के लिए रेगिस्तान में बड़ी जनसंख्या का जमाव और ठहराव नही हो सकता। वहाँ नगर स्थापित होना सरल कार्य नही है। इसके विपरीत एक ऐसे स्थान पर जनसंख्या बढ़ने लगें जहाँ की भूमि उपजाऊ हो, जल की सुविधा हो, उद्योग पनपने के अवसर हों ऐसे स्थान शीघ्र ही बड़े नगरों की श्रेणी में आ जाते है। 
कुछ ऐसे स्थान जो किसी चीज के लिए प्रसिद्ध हो जाते है वे अपनी विशेषताओं के द्वारा छोटे नगर बन जाते है किन्तु महानगर नही बन पाते। जैसे प्रयाग, मथुरा, अजमेर, नैनीताल, समूरी इत्यादि। इस तरह नगरों के प्रकारों के निर्धारण की दृष्टि से जनसंख्या, क्षेत्र की जलवायु और परिस्थितिकीय विशेषताओं पर ध्यान रखना आवश्यक है। अनेक विद्वानों ने नगरों को अलग-अलग आधारों पर विभाजित करने का प्रयास किया है।
एस. रीमर ने नगरों का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार्यों के आधार पर किया है--
1. संस्थाओं के प्रधान स्थल 
इस प्रकार के नगर एक अथवा अनेक संस्थाओं के केन्द्र स्थान होते है। जैसे-- भारत मे बनारस, मथुरा, जगन्नथपुरी, श्री महावीर जी इत्यादि। प्रारंभ मे नगरीय जीवन अधिकांशतया मंदिरों, गिरजाघरों एवं इसी प्रकार की संस्थाओं के चारों और फैले रहते थे। इन नगरों में धार्मिक क्रियाओं को आर्थिक क्रियाओं से भी अधिक महत्व प्रदान किया जाता था। 
2. व्यापारिक केन्द्र
मध्य युग मे व्यापारिक एवं वाणिज्यिक केन्द्रों के रूप मे नगरों का विकास हुआ। देश मे मुंबई, कलकत्ता, कानपुर, इंदौर आदि इसी प्रकार के नगर है।
3. औद्योगिक केंद्र 
देश मे औद्योगिक केंद्र उत्तर-मध्य युग में विकसित हुये तथा उत्पादन के प्रमुख केन्द्र बन गये। कच्चे माल की प्राप्ति, परिवहन, संचार के साधनों की प्रचुरता वाले स्थानों मे औद्योगिक नगर विकसित हुए है जैसे-- टाटानगर, मोदीनगर, डालमिया नगर, भिलाई, कोटा, भिवाड़ी इत्यादि।
4. महानगरीय क्षेत्र 
इन नगरों मे नगरीकरण की प्रक्रिया अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुकी होती है। यहां पर विभिन्न प्रकार की संस्कृति के व्यक्ति निवास करते है। महानगरीय क्षेत्र व्यापार, उद्योग, शिक्षा सभी के केन्द्र होते है तथा महानगरीय क्षेत्रों मे सभी राज्यों की राजधानियां व प्रान्त आते है। जैसे-- मुंबई, दिल्ली, कलकत्ता, जयपुर, बंगलौर इत्यादि।
5. अवलम्बित नगर 
देश मे इस प्रकार के नगरों का विकास महानगरीय केन्द्रों के आधार पर बड़े शहरों एवं आस-पास के क्षेत्रों पर अवलम्बित रूप से होता है। ऐतिहासिक क्रम मे अवलम्बित नगरों की स्थिति सबसे बाद मे दिखलाई पड़ती है। इन्हें अवलम्बित नगर इसलिए कहते है क्योंकि अवलम्बित नगर यात्रियों एवं भ्रमण करने वालों पर ही आश्रित है। अविलम्बित नगरों का विकास इन्ही व्यक्तियों के आधार पर होता है जैसे-- भारत मे काश्मीर, आबू, नैनीताल, मसूरी, पचमढ़ी, ऊटी, माउन्ट आबू इत्यादि।
नोडल जिस्ट और एल. ए. हरबर्ट ने नगरों को विशेषीकरण के आधार पर विभाजित कर नगरों के निम्न प्रकार बताये है--
1. उत्पादन के केन्द्र (Production Capitals) 
2. व्यापार तथा वाणिज्य के केन्द्र (Centres of trade and cemmerce)
3. राजनीतिक राजधानियां (Political capitals) 
4. सांस्कृतिक केन्द्र (Cultural centres)
5. दर्शनीय तथा अवकाश कालीन नगर (Resort and vocation cities) 
6. विभिन्नता के नगर (Diversified cities) 
राइजर ने कार्यों के आधार पर नगरों के निम्न प्रकार बताये है--
1. उपभोग के नगर (Cities of consumption) 
2. उत्पादन के नगर (Cities of Production) 
3. मिश्रित कार्यों के नगर (Cities of mixed activities) 
4. संचय और वितरण के नगर (Cities of storage and distribution) 
5. नदी तथा समुद्रतटीय नगर (River and sea-port Cities)
6. वित्त तथा साख के नगर (Cities of finace and credit) 
7. श्रमिकों या कारीगरों के नगर (Cities of working-men or artisans) 
8. सैनिक नगर (Military Cities) 
9. स्नान के नगर (Bath Cities) 
10. जलवायु तथा स्वास्थ्य लाभ के नगर (Climate Cities) 
11. अजायबघरों के नगर (Museum Cities) 
12. विश्वविद्यालयों के नगर (Univerisities Cities )
केमिली रोइजर के नगरों का वर्गीकरण व्यापारिक कार्यों के आधार पर किया है--
1. प्राकृतिक नगर (Natural Cities) 
2. निर्मित नगर (Created Cities) 
पिअर जार्ज का मत है कि नगरों का अस्तित्व प्राचीन काल से ही है। वे पीढ़ियों का इतिहास अपने में समाहित किए हुए है। पिअर जार्ज ने विकास क्रम और अर्थ के आधर पर नगरों का वर्गीकरण किया है--
1. पूर्व नगर (Precapitalist Citie) 
2. औपनिवेशिक नगर (Colonial cities) 
उपरोक्त नगरों के जितने भी प्रकार विद्वानों द्वारा प्रस्तुत किए गए है वे सामान्यतः नगर की प्रमुख विशेषता के आधार पर है। इससे हम सहमत नही है कि किसी विशेष नगर का विकास उसकी किसी एक विशेषता के आधार पर होता है। नगर के विकास मे एक साथ अनेक कारक कार्य करते है जैसे जलवायु, आवागमन के साधन, व्यवसाय की सुविधाएं, सुरक्षा की भावना, पर्याप्त जनसंख्या इत्यादि। कुछ सैनिकों, कारीगरों, व्यापारियों व घरेलू उद्योग से कस्बे की स्थापना हो सकती है। छोटे-छोटे नगरों की स्थापना हो सकती है लेकिन विराट और महानगरों की स्थापना नही हो सकती। ये तथ्य प्राचीन काल के नगरों पर लागू हो सकता है कि राजधानी और सैनिक शिवरों से नगर बने गये किन्तु आधुनिक युग के नगरों पर लागू नही होता।
आधुनिक औद्योगिक, तकनीकी और वैज्ञानिक युग मे नगरों की स्थापना उद्योग के आधार पर हो रही है। वे स्थान जहाँ बड़े-बड़े कारखाने, फैक्ट्री और मिल लगायें जा रहे है वे स्वतः नगर बनते जा रहे है। लाखों की संख्या में श्रमिक यहाँ कार्य करता है। अनेक कार्यालयों की स्थापना हो जाती है। बाजार व्यापार के केन्द्र बन जाते है। शिक्षा संस्थाओं मे वृद्धि होती है। तकनीकी ज्ञान के वे केन्द्र बन जाते है। इस तरह औद्योगिकरण की प्रक्रिया जिस स्थान और क्षेत्र मे तीव्र गति से आगे बढ़ती है। वे सभी स्थान नगर और महानगर बन जाते है।
पूर्व औद्योगिक नगरों की जनसंख्या ही कुछ हजारों अथवा एक से लेकर पाँच लाख के बीच में होती थी। ये शिक्षा संस्कृति, पवित्रता, सैनिक शिवरों, अथवा राजधानियों के केन्द्र होते थे किन्तु आज किसी भी महानगर मे एक साथ इनमें से अधिकांश विशेषताओं को देखा जा सकता है। 
आधुनिक तकनीकी वैज्ञानिक युग मे नगरों के बनने की प्रक्रिया प्राचीन काल से पूर्णतया भिन्न है। आज नगरों के निर्माण मे औद्योगिकरण एक मुख्य कारक है। वहीं पचवर्षीय योजनाओं की अहम् भूमिका है। सरकार जिन स्थानों पर बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों, विश्वविद्यालय, तकनीकी शिक्षा केन्द्र, मेडिकल काॅलेज इत्यादि खोल रही है वे स्थान स्वतः नगर और महानगर बनते जा रहे।

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