3/04/2021

विनिमय पत्र क्या है? विशेषताएं/लक्षण, प्रकार

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विनिमय पत्र क्या है? (vinimay patra kya hai)

vinimay patra arth paribhasha visheshta prakar;विनिमय पत्र या विपत्र एक लिखित लेख-पत्र है जिसमे लेखक अपने हस्ताक्षर करके किसी निश्चित व्यक्ति को यह शर्त-रहित आदेश देता है कि वह किसी निश्चित व्यक्ति को या उसके आदेशानुसार अथवा उसके वाहक को उसमें लिखित नियत धनराशि का भुगतान करे।

भारतीय विनियम साध्य विलेख अधिनियम की धारा 5 के अनुसार," विनिमय पत्र शर्तरहित व लेखक द्वारा हस्ताक्षरित एक लेख पत्र है, जिसमे लेखक किसी निश्चित व्यक्ति को आदेश देता है कि वह एक निश्चित धनराशि स्वयं उसे या उसके आदेशानुसार किसी व्यक्ति को अथवा पत्र के वाहक को मांगने पर एक निश्चित अवधि के बाद दे।

विनियम विपत्र पैसा प्राप्त करने वाले व्यक्ति द्वारा लिखा जाता है तथा देने वाले द्वारा इसकी स्वीकृति दी जा जाती है।

विनिमय पत्र
विनिमय पत्र का नमूना 

विनिमय पत्र के पक्षकार 

विनिमय पत्र मे तीन पक्षकार होते है--

1. विनिमय पत्र लिखने वाला अर्थात् लेखक या आहर्ता, जैसे उपर्युक्त उदाहरण मे मोहनलाल,

2. जिस पर विनियम पत्र लिखा जाता है अर्थात् देनदार या आहार्यी जैसे उपर्युक्त उदाहरण मे रामप्रसाद, 

3. जिसे बिल का रूपया पाना है अर्थात् लेनदार या प्राप्तकर्ता या आदाता जैसे उपर्युक्त उदाहरण मे रामलाल। 

किन्तु ऐसा जरूरी नही है कि ये सब अलग-अलग व्यक्ति ही हो। एक ही व्यक्ति दो कार्य कर सकता है, अर्थात् लेखक स्वयं ही लेनदार भी हो सकता है। ऐसी दशा मे विनिमय पत्र मे दो पक्षकारों का होना ही पर्याप्त होता है। किन्तु हर स्थिति मे एक विनिमय पत्र मे कम-से-कम दो पक्षकारों का होना तो नितांत आवश्यक है। 

विनिमय पत्र की विशेषताएं या लक्षण (vinimay patra ki visheshta)

एक विनिमय पत्र मे निम्न विशेषताएं अथवा लक्षण होते है--

1. यह एक लिखित आदेश है, क्योंकि एक लेनदार इसे देनदार पर लिखता है।

2. इसमे एक निश्चित धनराशि का भुगतान करने का आदेश होता है।

3. इस पर लेखक अथवा आहर्ता के हस्ताक्षर होना आवश्यक होता है।

4. भुगतान करने का आदेश शर्त-रहित होता है।

5. आदाता अथवा प्राप्तकर्ता कोई निश्चित व्यक्ति होता है।

6. आहर्ता कोई निश्चित होता है।

7. विनिमय पत्र मे लिखित धनराशि का भुगतान निश्चित समय के अंदर देश की चलन मुद्रा के अंदर होता है। 

8. यह नियमानुसार मुद्रांकित होता है।

9. देनदार अथवा आहार्यी की इस पर स्वीकृति होती है।

 उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण

उदाहरण के लिए राकेश कलकत्ते का एक व्यापारी है तथा वह मुकेश जो कि दिल्ली का व्यापारी है कि प्रार्थना पर उसे 10 हजार रूपये का माल भेजता है। 'राकेश' 'मुकेश' से सीधा रूपया मांगने की बजाय यह प्रार्थना करता है कि वह उसका भुगतान 'उमेश' को कर दे, जो कि उसका (अर्थात 'मुकेश' का) ऋणदाता है। 'राकेश' उसे विलेख पर निम्न प्रकार के हस्ताक्षर करने उमेश को दे देता है-- उमेश को 10 हजार रूपये दे दीजिए। यह विनिमय पत्र है। 

इसके अंतर्गत राकेश मुकेश को यह आदेश देता है वह उमेश को 10 हजार रूपये दे दें। यहाँ पर राकेश आहर्ता अथवा लेखक है, मुकेश देनदार या आहार्यी है तथा उमेश भुगतान प्राप्तकर्ता अथवा लेनदार है। 'उमेश' 'मुकेश' के समक्ष उस विलेख को प्रस्तुत करता है। मान लिजिए कि मुकेश विलेख पर स्वीकृति शब्द लिख देता है। यहाँ पर मुकेश जो कि देनदार अथवा आहार्यी है, बिल को स्वीकार करने वाला हो जाता है और इस प्रकार वह उमेश को भुगतान करने का दायित्व स्वीकार कर लेता है। अब यह विनिमय पत्र पूरी तरस से विनिमय साध्य लेख पत्र बन जाता है तथा आवश्यकतानुसार इसका हस्तांतरण किया जा सकता है।

विदेशी विनिमय पत्र 

विनिमय पत्र देशी तथा विदेशी दोनों प्रकार का हो सकता है। विदेशी विनिमय पत्र सामान्यतः तीन प्रतिलिपि मे तैयार किया जाता है और इन तीनों का एक-दूसरे विनिमय पत्र की प्रतिलिपि कहते है। सभी पर नम्बर डाल दिया जाता है। जैसे ही इनमे से किसी एक का भुगतान हो जाता है शेष बेकार हो जाते है। इन तीनों प्रतियों को मिलाकर एक विनिमय पत्र कहते है। लेखक को इन तीनों प्रतियों पर हस्ताक्षर करने पड़ते है और तीनों को ही भेजना होता है, किन्तु मुद्रांक केवल एक का होता है और जब एक प्रति स्वीकार कर ली जाती है, तो शेष प्रतियां व्यर्थ हो जाती है। किन्तु जब कोई व्यक्ति विनिमय पत्र की विभिन्न प्रतियों को विभिन्न व्यक्तियों के पक्ष मे स्वीकार अथवा पृष्ठांकन करता है, तो वह स्वयं और दूसरे पृष्ठांकन करने वाले ठीक उसी प्रकार उत्तरदायी हो जाते है जैसे कि वे एक पृथक विनिमय पत्र की दशा मे होते है। यदि उसी विनिमय पत्र की विभिन्न प्रतियां यथाविधिधारियों के पास पहुँच जायें तो वह दूसरी प्रतियों तथा विनिमय-पत्र लिखी हुई धनराशि के पाने का अधिकार होगा।

विनियम विपत्र के प्रकार (vinimay patra ke prakar)

वैधानिक रूप से विनिमय पत्र दो प्रकार के होते है--

1. देशी विनिमय विपत्र 

विनियम पत्र या विपत्र एक लिखित लेख पत्र है जिसमे लेखक हस्ताक्षर करके किसी निश्चित व्यक्ति को यह शर्त रहित आदेश देता है कि वह किसी निश्चित व्यक्ति को या उसके आदेशानुसार अथवा उसके वाहक को उसमे लिखित नियत धनराशि का भुगतान करे। 

2. विदेशी विनिमय विपत्र 

वैधानिक रूप से विदेशी विनिमय विपत्रों की कोई अगल परिभाषा नही दी गई है, परन्तु इनके लिखने और प्रतियों के आधार पर ही इन्हें अलग रूप से समझा जा सकता है। विदेशी विनिमय विपत्र की साधारणतया तीन प्रतियां बनाई जाती है इन्हें वैकल्पिक रूप मे तैयार किया जाता है अर्थात् तीन मे से कोई एक ही प्रति वैध होती है, तीनों को अलग-अलग भेजा जाता है, जिससे कि यदि एक प्रति रास्ते मे खो जाती है तो दूसरी या तीसरी प्रति काम मे आ सकती है। स्वीकृत के समय इनमे से किसी एक बिल पर ही टिकिट लगाया जाता है और शेष दोनों भाग व्यर्थ हो जाते है। 

विनिमय पत्र क्या है? विशेषताएं/लक्षण, प्रकार
विदेशी बिल का नमूना 

अधिनियम की धारा 132 एवं 133 मे विदेशी बिलों के नियमन से सम्बंधित निम्न प्रावधान लागू होते है--

1. विदेशी विनिमय विपत्र भागों मे तैयार होता है और इन भागों को ही सामूहिक रूप से बिल माना जाता है। ऋणी को इनमे से किसी एक ही बिल का भुगतान करना पड़ता है और शेष व्यर्था माने जाते है। 

2. लेखक बिल को तीन भागों मे तैयार करके भेजता है, परन्तु स्वीकृति एक ही भाग की मानी जाती है, परन्तु यदि स्वीकृति तीनों बिलों पर अलग-अलग व्यक्तियों के पक्ष मे दे दी जाती है तो इन्हें तीन अलग बिल माना जायेगा और भुगतान कर्ता इन तीनों बिलों को चुकाने के लिए दायी हो सकता है।

3. बिल के धारक अथवा यथाविधि धारकों के मध्य सम्बन्धों का नियमन धारा 133 मे दिया गया है, जिसके अंतर्गत किसी भाग के प्रथम प्राप्ति कर्ता को ही उचित वैधानिक अधिकार उपलब्ध होते है, अन्य यथाविधिधारियों को नही।

सामान्य रूप से विदेश बिलों का नियमन दोनों अलग देशों की सरकारों के कानून के अनुसार अपने-अपने देशों मे अलग-अलग होता है।

देशी और विदेशी बिलों मे अंतर 

देशी बिल भारत मे ही भारत के किसी अन्य निवासी पर लिखे जाते है, जिनका भुगतान भारत मे किया जाना है, परन्तु विदेशी बिलों की स्थिति मे इस दृष्टि से कुछ अंतर पाया जाता है। देशी और विदेशी बिलों मे निम्न आधार पर अंतर इस प्रकार है--

1. प्रतिलिपि 

देशी बिल की केवल एक ही प्रति बनाई जाती है, जबकि विदेशी बिलों की तीन प्रतियां बनानी पड़ती है।

2. मुद्रांक 

विदेशी बिलों मे मुद्रांक पहले लेखक द्वारा लगाया जाता है और बाद मे स्वीकर्ता द्वारा अपने देश का मुद्रांक लगाया जाता है, अतः विदेशी बिलों मे दो बार मुद्रांक लगाने की जरूरत रहती है, जबकि देशी विनियम विपत्र मे एक बार ही स्वीकृति देने वाले व्यक्ति द्वारा स्टाम्प लगाया जाता है। 

विदेशी बिलों की भुगतान अवधि 

जब किसी बिल का लिखा एक देश मे जाता है और भुगतान अन्य देश मे किया जाता है तो व्यापारिक परम्पराओं के अनुसार उसकी कोई निश्चित भुगतान अवधि या तिथि मानी जाती है। विदेशी बिलों के संबंध मे दोनो पक्षकारों को अवधि का निर्धारण करते समय अपने देशों के कानून का अध्ययन अवश्य कर लेना चाहिए, अन्यथा ऋणों के निपटारे की कठिन समस्याएं उत्पन्न हो जाती है।

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