विनिमय साध्य विलेख क्या है? (vinimay sadhya vilekh kise kahte hai)
vinimay sadhya vilekh arth paribhasha visheshta manyataye prakar;विनिमय साध्य विलेख एक वैध प्रपत्र है, जिसे प्रस्तुत कर संबन्धित पक्ष से भुगतान प्राप्त किया जा सकता है तथा सुपुर्दगी एवं पृष्ठांकन द्वारा हस्तांतरण किया जा सकता है। साधारणत शब्दों मे विनिमय साध्य विलेख एक ऐसा वैधानिक दस्तावेज है जो सुपुर्दगी द्वारा हस्तांतरणीय होता है तथा इसके प्राप्तकर्ता को इस पर पूर्ण वैध अधिकार प्राप्त होता है।
विनियम साध्य विलेख की परिभाषा (vinimay sadhya vilekh ki paribhasha)
विनियम-साध्य विलेख की उपयुक्त परिभाषा देने के लिए बड़ी मात्रा मे कागज, स्याही व श्रम का प्रयोग किया गया है और अनेक परिभाषाएं भी दी गई है, किन्तु अभी तक इसकी संतोषजनक परिभाषा नही मिली है।
भारतीय विनिमय साध्य विलेख अधिनियम की धारा 13 के अनुसार," विनिमय साध्य विलेख पत्र से आशय किसी प्रतिज्ञा पत्र, विनिमय पत्र अथवा चैक से है, जिसका भुगतान वाहक या आदेशानुसार व्यक्ति को हो सकता है।
आलोचना
यह परिभाषा बहुत सी संकीर्ण प्रतीत होती है, जिसमे विनियम साध्य लेख पत्र से क्या आशय है-- यह न बताते हुए यह बताया गया है कि विनिमय साध्य विलेख कौन-कौन से है? इसी प्रकार यह परिभाषा विनिमय साध्य विलेख की विशेषताओं को नही बताती है।
इस संबंध मे न्यायाधीश के. सी. विलिस द्वारा दी गई यह परिभाषा उपयुक्त है जिसके अनुसार," विनिमय साध्य विलेख ऐसा विपत्र है जिसका स्वामित्व किसी भी ऐसे व्यक्ति को प्राप्त हो जाता है जो उसे सद् विश्वास से तथा मूल्य के बदले प्राप्त करता है, चाहे देने वाले व्यक्ति के स्वामित्व मे कोई दोष ही क्यों न हो?"
विनिमय साध्य विलेख अधिनियम की धारा-5 के अनुसार," विनिमय पत्र शर्तरहित लिखित, लेखक द्वारा हस्ताक्षरित एक आदेश है जिसमे किसी निश्चित व्यक्ति को आदेश होता है कि एक निश्चित धनराशि स्वयं लेखक को या उसके आदेशानुसार किसी अन्य व्यक्ति को अथवा पत्र के वाहक को मांगने पर एक निश्चित अवधि के बाद दे।"
अतः कहा जा सकता है कि " एक विनिमय साध्य लेख पत्र वह है जिसका स्वामित्व किसी अन्य व्यक्ति को हस्तांतरित किया जा सके, जिसको पाने वाला वैधानिक स्वामित्व के साथ श्रेष्ठ अधिकार रखे।"
विनिमय साध्य विलेख की विशेषताएं या लक्षण (vinimay sadhya vilekh ki visheshta)
विनियम साध्य विलेख की विशेषताएं इस प्रकार है--
1. लिखित प्रलेख
विनिमय साध्य विलेख एक लिखित प्रलेख है। यह कभी भी मौखिक नही हो सकता है।
2. स्वामित्व परिवर्तन
विनिमय साध्यता की एक आवश्यक शर्त यह है की इसके स्वामित्व का हस्तांतरण किया जा सकता है। वाहक विलेख की दशा मे स्वामित्व परिवर्तन केवल सुपुर्दगी मात्र से हो जाता है किन्तु यदि वह आदेश विलेख (order) है तो उसका पृष्ठांकन (Endorsment) अंकित कर सुपुर्दगी करना आवश्यक है।
3. शुद्ध अधिकार
जो व्यक्ति किसी विनिमय साध्य विलेख को-- 1. सदविश्वास के साथ 2. उचित मूल्य के बदले मे तथा 3. विलेख के स्वत्वाधिकार मे किसी दोष की जानकारी बिना प्राप्त करता है अर्थात् उचित सावधानी से प्राप्त करता है, तो उस विलेख पर उसका शुद्ध अधिकार होता है। इन सभी शर्तों को पूरी करने पर प्राप्तकर्ता को स्वात्वधिकार प्राप्त होगा चाहे देने वाले का अधिकार दूषित ही क्यों न हो।
4. भुगतान का मुद्रा मे होना जरूरी
विनियम साध्य विलेख का मुद्रा मे ही भुगतान योग्य होना चाहिए, किसी अन्य वस्तु के रूप मे भुगतान होने की दशा मे वह विनिमय-साध्य विलेख नही कहा जा सकता।
5. शर्तरहित होना
विनिमय साध्य विलेख का शर्त रहित होना आवश्यक है। ऐसे विलेख के भुगतान की प्रतिज्ञा या भुगतान के आदेश मे कोई शर्त नही होती है। प्रतिज्ञा-पत्र मे उसका लेखक एक निश्चित धनराशि के भुगतान की शर्त रहित प्रतिज्ञा करता है। चैक तथा विनिमय-पत्र का लेखक किसी दूसरे व्यक्ति को निश्चित धनराशि के भुगतान का आदेश देता है।
6. विनिमय साध्य विलेख पर पृष्ठांकन
विनियम साध्य विलेख का पृष्ठांकन किसी भी संख्या की सीमा तक किया जा सकता है।
7. वैधानिक स्वामित्व
प्राप्तकर्ता का विलेख पर स्वामित्व वैधानिक होता है। वैधानिक अधिकारी होने के नाते उस पर इस संबंध मे कोई भी वाद प्रस्तुत कर सकता है।
8. मूल्यवान प्रतिफल
विलेख मूल्यवान एवं पर्याप्त प्रतिफल के बदले मे प्राप्त किया जाना चाहिए।
9. धारक को वाद प्रस्तुत करने का अधिकार
विनिमय साध्य विलेख के धारक को यह अधिकार होता है कि वह भुगतान करने वाले व्यक्ति को बिना सूचना दिये हुए ही वाद प्रस्तुत कर सकता है।
10. अन्तरण की सूचना जरूरी नही
विनियम साध्य विलेख के अन्तरण की सूचना विलेख के लिए उत्तरदायी किसी भी पक्षकार को देने की आवश्यकता पड़ती है।
11. हस्ताक्षरयुक्त
यह प्रलेख हस्ताक्षरयुक्त होता है। इस पर इसके लेखक के हस्ताक्षर होते है। हस्ताक्षर पेन या अँगूठा लगाकर किये जा सकते है। यह उल्लेखनीय है कि हस्ताक्षर प्रलेख पर कहीं भी किये जा सकते हैं।
विनिमय-साध्य विलेखों की वैधानिक मान्यताएं
जब तक विपरीत आशय प्रमाणित न कर दिया जाय, धारा 118 के अनुसार विनिमय साध्य विलेखों के संबंध मे निम्न मान्यताएं होती है--
1. प्रतिफल के संबंध मे
प्रत्येक विनिमय साध्य विलेख के बारे मे यह माना जाता है कि वह न्यायोचित प्रतिफल के बदले मे लिखा गया, स्वीकार किया गया, पृष्ठांकित अथवा हस्तांतरित दिया गया है।
2. तिथि संबंधी धारणा
प्रत्येक विनियम साध्य विलेख उसी तिथि को लिखा या निष्पादित किया हुआ माना जायेगा जो कि उस विलेख पर लिखी हुई है।
3. स्वीकृति के समय के संबंध मे
प्रत्येक विनियम बिल (B/E) उस पर लिखी हुई तिथि के बाद किन्तु उसकी परिपक्वता (Maturity) के पूर्व उचित समय के भीतर स्वीकार किया गया था।
4. हस्तांतरण के संबंध मे
विनियम-साध्य विलेख का प्रत्येक हस्तांतरण उसकी परिपक्वता से पूर्व किया गया था।
5. पृष्ठांकन के क्रम के संबंध मे
विनियम साध्य विलेख पर पृष्ठांकन उसी क्रम मे किये गये थे, जिस क्रम मे उस विलेख पर लिखे गये है।
6. स्टाम्प के संबंध मे
यदि कोई विलेख खो गया है तो यह मान लिया जाता है कि उस पर आवश्यक स्टाम्प लगा था।
7. धारक के संबंध मे
विलेख का धारक यथाविधि-धारक है।
8. अप्रतिष्ठित मानना
यदि किसी विनिमय साध्य विलेख पर नौटरी पब्लिक से अप्रतिष्ठा के संबंध मे नोटिंग करवा लिया गया है तो न्यायालय द्वारा यही माना जायेगा कि विलेख अप्रतिष्ठत कर दिया गया है। विदेशी विनिमय साध्य विलेखों पर "प्रोटेस्ट" करना भी जरूरी है।
विनियम साध्य लेखपत्र के प्रकार (vinimay sadhya vilekh prakar)
विनियम साध्य लेखपत्र दो तरह के हो सकते है--
1. कानून द्वारा विनिमय साध्य
विनियम साध्य अधिनियम की धारा-13 के अनुसार चेक, प्रतिज्ञापत्र एवं विनिमय बिल ही विनिमयसाध्य होते है, इसलिए इनको कानून द्वारा विनिमय साध्य कहा जा सकता है।
2. अन्य या रीति-रिवाजों के अनुसार विनिमय साध्य
विनियम साध्य लेखपत्र के अधिनियम मे सिर्फ प्रतिज्ञापत्र, विनिमय बिल एवं चेक का उल्लेख है, पर दूसरे लेखपत्र जैसे डिवीडेण्ड वारण्ट, पोर्ट ट्रस्ट या इम्प्रूवमेण्ट ट्रस्ट डिवेन्चर, रेलवे रसीद, शेयर वारण्ट, स्टाॅक, जहाजी विल्डी, डाॅक वारण्ट, इत्यादि भी व्यापारिक प्रथा अथवा दूसरे अधिनियमों (जैसे भारतीय कंपनी अधिनियम) के अंतर्गत विनिमय साध्य लेखपत्र माने जाते है। जब कोई लेखपत्र निम्न दो शर्तों को पूरा करता है तो न्याय की दृष्टि मे वह विनिमय साध्य माना जाता है-
(क) अगर धारक अपने नाम मे उसका प्रयोग कर सके या अपने नाम से वाद प्रस्तुत कर सकें तथा
(ख) यदि वह नकद की तरह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तांतरित किया जा सके।
शायद यह आपके लिए काफी उपयोगी जानकारी सिद्ध होगी
Pahle to me aapko thank you bolunga Bhai
जवाब देंहटाएंVinimay sadhay vilekh ke vibhinn pakshakar ko vistar me bataiye
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