मुहम्मद बिन तुगलक का परिचय
mohammed bin tughlaq ki yojna ka varnan;मुहम्मद बिन तुगलक सुल्तान ग्यासुद्दीन तुगलक शाह का पुत्र था। इसके बचपन का नाम जूना खां था।
मध्यकालीन भारतीय इतिहास में मुहम्मद बिन तुगलक योजनाशील सुल्तान के नाम से विख्यात है। सुल्तान मुहम्मद की योजनाएं विशाल तथा आधुनिक थी। उसने जिन योजनाओं को लागू किया, यद्यपि वह सफल नहीं हो सकीं, किन्तु योजनाएं वास्तव में प्रशंसनीय थीं। उस समय की प्रजा तथा साम्राज्य के अधिकारी और कर्मचारी इन योजनाओं को समझ नहीं पाए और सुल्तान का असहयोग किया।
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सुल्तान इस बात का महत्वाकांक्षी था कि वह शासन में अनेक सुधार करे और जनकल्याण की अनेक योजनांए बनाकर उन्हें कार्यान्वित करे। उसके मस्तिष्क में अनेक बड़ी-बड़ी योजनांए घूम रहीं थीं और वह सुल्तान होने पर उन्हें लागू करना चाहता था।
मुहम्मद बिन तुगलक की योजनाएं (mohammed bin tughlaq ki yojnaye)
मुहम्मद बिन तुगलक की योजनाएं इस प्रकार है--
1. दोआब में कर वृद्धि
मुहम्मद बिन तुगलक की प्रसिद्ध योजनाओं में से एक थी। पितृ हत्या के अपने निन्दनीय कार्य पर पर्दा डालने के लिए मुहम्मद बिन तुगलक राज्याभिषेक के समय जनता में खुब धन बंटवाया। जिसके परिणामस्वरूप राजकोष खाली गया अतः उसने कर वृद्धि करेन की सोची, विजय योजनाओं के लिए भी धन की आवश्यकता थी। सिंहासन पर बैठने के बाद दोआब के धनी प्रांत में राजस्व वृद्धि की योजना लागू की भूमि कर बढा दिया गया। लेकिन दुर्भाग्य से जिस समय दोआब में इस अतिरिक्त कर वृद्धि की योजना को कार्यान्वित किया गया उस समय ओलावृष्टि के कारण अकाल पड़ गया। जनता ने इसका विरोध किया लेकिन सुल्तान द्वारा नियुक्त कर्मचारियेां ने कठोरतापूर्वक कर वसूल करने का कार्य जारी रखा। अतः किसानों को बाध्य होकर अपनी भूमि छोड़नी पड़ी।
2. दीवान-ए-कोही की स्थापना
अकाल पीड़ित इलाको में सहायता कार्य वर्षो तक चलते रहे। कर माफ दिया गया, कुएं खुदवाया गयें, अन्न वितरण की व्यवस्था की गई, किसानों को ऋण देकर कृषि फिर से प्रारंभ करने को प्रेरित किया गया। 1340-41 में दीवाने-कोही मतलब कृषि विभाग की स्थापना की जिसे दोआब के एक उजड़े भाग में पूनर्वास की एक नवीन योजना को कार्यान्वित करना था। इस योजना के अनुसार 60 वर्ग मील क्षेत्र में किसानों के सहयोग से कृषि मंत्री को सघन खेती करवाना थी। उसके लिए किसानों को प्रोत्साहित कर कृषि सुधार हेतु 70 लाख टंके में सरकार की ओर से दिये गये। बड़ी-बड़ी रकमें अग्रिम रूप में दे दी गई।
यह एक प्रकार से सरकारी कृषि या सरकारी फार्म जैसा प्रयोग था जो सरकारी कर्मचारियों की योग्यता ओर बेईमानी के कारण तीन वर्ष में असफल हो गया। इन दिनों सुल्तान गुजरात और दक्षिण अभियानों में फंसे रहने से इधर ध्यान नहीं दे पाया। यद्यपि ‘‘राजस्व व्यवस्था के इतिहास का सर्वोत्तम प्रयोग विफल रहा तथापि मोरलैंड ने सुल्तान मुहम्मद तुगलक के उर्वर मस्तिष्क तथा कृषि साधन सुधारने की नीति की बड़ी प्रशंसा की है।‘‘
3. राजधानी परिवर्तन
मुहम्मद तुगलक के प्रसिद्ध कार्य में एक राजधानी परिवर्तन भी था। मोहम्मद तुगलक की राजधानी परिवर्तन के सम्बंध में अनके मत है।
बर्नी के अनुसार दोआब में कर वृद्धि के पश्चात् राजधानी परिवर्तन किया गया। जबकि याहिया बिन अहमद परिवर्तन की दो तिथियां देता है - प्रथम अमीरों के साथ 729 हिजरी सन् में जनता को जाने के लियें कहा। फरिश्ता भी दो परिवर्तन का उल्लेख करता है। इब्नब्तुता बहाउद्दीन के विद्रोह के बाद अर्थात् 1313 ई. में परिवर्तन का वर्णन करता है। दौलताबाद से 727 हिजरी सन् के सिक्के मिले परन्तु 727,728,729 हिजरी सन् दिल्ली के सिक्के भी उपलब्ध हैं अर्थात् खजाना प्रथम परिवर्तन के बाद दो वर्ष तक दिल्ली में ही रहा उसके पश्चात् परिवर्तन हुआ। बदायूंनी, फरिश्ता, यहाबिन अहमद, बाद के इतिहासकार हैं। बर्नी के अनुसार, दरबारी, परिवार, व्यापारी, नौकर साथ गये होगें और जनता के प्रमुख व्यक्ति भी गये होंगे। बाद में सामान्य लोग गये होगें।
राजधानी परिवर्तन के बहुत ही मनोरंजक कारण बतायें गयें है--
(अ) बर्नी कहता है कि दक्षिण में अपनी सत्ता को दृढ़ करने के लिये तथा राजधानी साम्राज्य के केन्द्र में ले जाने के लियें परिवर्तन किया। दौलतावाद से दिल्ली, गुजरात, लखनौती, सातगांव, सुनारगांव, तेलगांना समान अन्तर पर है।
(ब) सुल्तान ने सम्पूर्ण जनता को चलने का आदेश दिया जिसके विरोध में जनता ने गुमनाम अनेक पत्र लिखे जिनमें सुल्तान पर अनेक आरोप लगाये गये थे। अतः सुल्तान ने जनता को जाने के लियें विवश किया।
(स) दोआब के अकाल से बचने के लियें जनता परेशान, जनता की अराजकता से राज्य की सुरक्षा के लिये परिवर्तन किया।
(द) मंगोलों के आक्रमण निरंतर होने लगे थे। वे विनाश और आगजनी बहुत करते थे। अतः राजधानी परिवर्तन आवश्यक प्रतीत हुआ। गार्डीनर ब्राऊन ने इस कारण को सही माना है।
इब्नबतुता कहता है कि सुल्तान ने जन-विरोधी कार्य नहीं कियें। अपराधियों को वह दण्ड दे सकता था, ढूंढ सकता था, किन्तु उसने सुविधायें प्रदान की, दण्ड देने के लिये परिवर्तन नहीं किया गया। न ही मंगोलों से या बाढ़ या अकाल से बचने के उद्देश्य से राजधानी परिवर्तन किया गया। बल्कि साम्राज्य के मध्य में जाने का ही कारण उचित जान पड़ता है, क्योकि दक्षिण पर सेनिक विजय के लियें उस पर निंयत्रण के लियें तथा मुस्लिम शासकों के विद्रोह और स्वंतत्रता की घोषणाओं के कारण परिवर्तन करना पड़ा।
स्वरूप
मोहम्मद तुगलक ने राजधानी परिवर्तन में दिल्ली से दौलताबाद के रास्तें पर अनेक सुविधायें जनता को प्रदान कीं। जल, भोजन, अस्थायी निवास की व्यवस्थायें कीं।
राजधानी परिवर्तन योजना की असफलता
एलफिन्सन्टन के अनुसार राजधानी परिवर्तन की योजना तर्कहीन और अव्यावहारिक थी। जनता की भूमि-प्रेम इसकी असफलता का कारण बना, क्योकि जनता दिल्ली की आदि थी इसलिए वह हिन्दू वातावरण में नहीं रहना चाहती थी। अतः जनता ने विरोध किया। दिल्ली से दूर जाने के कारण पंजाब और दिल्ली की रक्षा मंगोलों से करना कठिन हो गई अतः पुनः दिल्ली लौटना पड़ा। वास्तव में इस योजना पर ठीक से विचार नहीं किया गया था अतः लेनपूल ने इसे ‘अपरिपक्व मस्तिष्क की योजना कहा जो असफल हो गई। इसी कारण दौलताबाद को गलत दिशा में प्रयुक्त शक्ति का स्मारक बताया गया है।‘
4. सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन
सांकेतिक मुद्रा के सिक्के हल्की धातु जैसे-तांबा, गिलट, निकिल आदि के बनाए जाते है। ये अल्प परिणाम के लेन-देन में आते है। इसका अंकित मूल्य आंतरिक धातु मूल्य से अधिक होता है।
साकेंतिक मुद्रा का प्रचलन के कारण
बरनी ने प्रतीक मुद्रा के दो कारण बताएं हैं--
(अ) विदेंशों पर विजय के लियें धन की आवश्यकता,
(ब) राज्यारोहण के समय सुल्तान की असीम उदारता एंव दानशीलता ने राजकोष खाली कर दिया था
पहला कारण तो ठीक है लेकिन दूसरा कारण आंशिक रूप से ही सत्य है, क्योंकि यदि राजकोष का दिवाला निकल गया होता तो नकली सिक्कों के ढेरों के बदलें सोन-चांदी के सिक्के कैसे दिये गये? उस समय भारत तथा विश्व में चांदी की कमी इस योजना का एक महत्वपूर्ण कारण था।
सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन व परिणाम
(अ) सुल्तान ने नवीन तांबे के सिक्को को कानूनी मुद्रा घोषित कर दिया। परिणामत थोड़े समय में बाजार से चांदी-सिक्के लुप्त हो गए। चतुर्दिक तांबे के सिक्के दृष्टिगोचर होने लगे।
(ब) बाजार में जाली सिक्को का बाहुल्य हो गया और वस्तुओं की कीमतें बेशुमार बढ़ने लगी।
(स) इससे उद्योग, व्यापार व व्यवसाय को गहरा आघात पहुंचा।
(द) लोग लेते समय चांदी के सिक्के लेते थे और देते समय तांबे के सिक्के देते थे। सुल्तान ने योजना की असफलता को देखकर तांबे के सिक्को को अवैध घोषित कर दिया और आदेश दिया कि लोग तांबे के सिक्के राजकोष में जमा करके बदले में चांदी एंव सोने के सिक्के ले आंए। परिणामतः राजकोष रिक्त हो गया।
5. खुरासान का प्रस्तावित अभियान
खुरासान अभियान मुहम्मद तुगलक की एक अन्य विवादाग्रस्त योजना है। बरनी हमें बताता है कि 3 लाख 70 हजार की एक सेना का गठन खुरासान विजय के उद्देश्य से किया गया। सेना को एक वर्ष का अग्रिम वेतन भी दिया गया।
सैनिक जोखिम की इस योजना का कारण फरिश्ता के अनुसार खुरासान तथा इराक के दरबारों से आए राजकुमारों तथा मलिकों ने सुल्तान को विश्वास दिला दिया कि ईरान-तुरान की विजय बड़ी सरल विजय होगी। निजामी के अनुसार दक्षिण और ईरान में आई राजनीतिक रिक्तता का लाभ उठाकर सुल्तान अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार चाहता था। इसलिए वह चगताई शासक तथा मिस्त्र के गुट में मिल गया, परन्तु शीघ्र ही खुरासान की आतंरिक स्थिति में सुधार हो जाने से तथा मिस्त्र और खुरासन के सम्बन्ध ठीक हो जाने से भी खुरासान विजय योजना का परित्याग कर दिया गया।
बदली हुई स्थिति में इस विजय योजना का परित्याग एक बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य था। अग्रिम दिये हुए धन की हानि जरूर हुई परन्तु लाखों की जाने खतरें में पड़ने से बच गयी। इस बात के लिए वास्तव में मोहम्मद तुगलक की प्रशंसा की जाना चाहिए।
7. कराजिल अभियान
कराजिल अभियान करने का उद्देश्य हिमालय की तराई में स्थित कराजिल प्रदेश को उत्तर की सुरक्षा व्यवस्था की दृष्टि से चीन के प्रभाव में जाने से रोकना था। यद्यपि खुसरों मलिक के नेतृत्व में भेजे गये 10 हजार सवारों में से केवल 10 सवार जीवित लौट सके, लेकिन फिर भी यह अभियान इसलिए सफल रहा कि पहाड़ी सरदार ने कर देना तथा अधीनता स्वीकार करना मान लिया। ऐसे क्षेत्रों में अधिक संख्या में सैनिकों का मरना स्वाभाविक है। ब्रिटिश काल में प्रथम अफगान युद्ध में भी तो 16000 सेना में से ब्राईडन अकेला बचकर आया था।
Qution
जवाब देंहटाएंReally Very Usefull Article
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