अलाउद्दीन खिलजी का संक्षिप्त परिचय
alauddin khilji ki vijay uplabdhi;अलाउद्दीन खलजी के प्रांरभिक शासन को इतिहास में क्रांतिकारी शासनकाल कहा जाता है। पहले तो अलाउद्दीन ने पैगम्बर और सिकन्दर बनने की बात सोची। शीघ्र ही उसने इन अव्यावहारिक विचारों को त्याग दिया और व्यावहारिक धरातल पर विजय, विस्तार, संगठन एंव आर्थिक मामलों में अनेक असाधारण और क्रांतिकारी कार्य कर डाले। अलाद्दीन खलजी अपने शासन काल में स्थायी सेना, नकद वेतन तथा बाजार नियंत्रण जैसे क्रांतिकारी प्रयोग भी करने में वह सफल रहा। सबसे पहले हम खलजियो की विजय और विस्तार नीति का विश्लेषण करेंगे।
अलाउद्दीन खिलजी की विजय/उपलब्धियां
अलाउद्दीन खिलजी की विजय या उपलब्धियों का वर्णन इस प्रकार है--
उत्तर की विजय
अलाउद्दीन खलजी ने पहले उत्तर भारत में विजय पाताका लहराने के बाद दक्षिण को नतमस्तक करने की योजना बनाई। उत्तरी भारत में अलाउद्दीन खिलजी की प्रमुख विजयें इस प्रकार है--
1. गुजरात
1299 ई. मे अलाउद्दीन शासन के सबसे प्रसिद्ध सेनापतियों, उलग खां तथा नुस्तर खां ने गुजरात पर आक्रमण किया। गुजरात में इस समय बघेल राजा कर्ण शासन कर रहा था। अहमदाबाद के निकट युद्ध में राजा कर्ण हार गया। अपनी पुत्री देवल देवी के साथ उसने देवगिरी के यादव राजा रामचन्द्र देव के यहां शरण ली। आक्रमणकारी सेनाओं ने सोमनाथ, सुरत ओर कैम्बे तक लूटमार की । राजा कर्ण का कोष दिल्ली के खजाने मेय और उसकी पत्नी कमलादेवी अलाउद्दीन के हरम में पहुंच गयी। दक्षिण भारत का भावी विजेता मलिक काफूर भी इसी अभियान में खरीदा गया।
2. रणथम्भौर
इस समय रणथम्भौर पर प्रसिद्ध चैहान राजा हम्मीर देव का शासन था। जलालउद्दीन ने इसे जीतने की कोशिश की थी, लेकिन वह असफल रहा। रणथम्भौर के महत्व को देखते हुए अलाउद्दीन ने उलगू खां और नुस्तर खां को इस किले पर आक्रमण करने भेजा, परन्तु राजपूतों ने आक्रमण को विफल कर दिया। युद्ध में नुसतर खां मारा गया। कुछ समय बाद अलाउद्दीन ने आक्रमण की बागडोर स्वंय संभाली। लगभग एक वर्ष के घेरे के बाद 1301 ई. में किला जीत लिया गया। राजपूत महिलाओं ने जौहार कर लिया। राजा हम्मीरदेव युद्ध में मारा गया।
3. मालवा-माण्डु, उज्जैन एंव चन्देरी
1305 ई. में मुल्तान के आईन-उल-मुल्क को मालवा विजय के लिये भेजा गया। मालवा के शासक महलक देव तथा उसके सेनापति कोका प्रधान अलग-अलग युद्धों में वीर गति को प्राप्त हुए। नवम्बर 1305 में माण्डू पर आईन-उल-मुल्क का अधिकार हो गया। शीघ्र ही उज्जैन, धार तथा चन्देरी भी सल्तनत का हिससा बन गये।
4. सवाना, जालौर एंव अन्य स्थान
सवाना के परमार राजा शीतलदेव को 1308 ई. में पराजित कर अलाउद्दीन ने सवाना पर अधिकार कर लिया। 1311 में जालौर पर आक्रमण हुआ। संभवतः यह संघर्ष कई वर्ष तक चला। अंत मे कमालुद्दीन गुज के नेतृत्व में अलाउद्दीन की सेनाओं ने विजय प्राप्त की। जालौर का प्रतापी राजा कान्हणदेव युद्ध में मारा गया। बून्दी, टोंक तथा मांदोर आदि पर भी विजय प्राप्त कर ली गई। जैसलमैर को गुजरात अभियान पर जाते समय 1299 में जीता जा चुका था।
दक्षिण के राज्यों की विजय
1. देवगिरि पर प्रथम आक्रमण
अलाउद्दीन खलजी ने दक्षिण की विजय के लिए सर्वप्रथम देवगिरि पर आक्रमण किया था। तब वह कड़ा और मानिकपुर का अक्तादार था। यह आक्रमण उसने सुल्तान जलालुद्दीन से पूछे बगैर किया था। राजा रामचन्द्रदेव ने अपने को किले के अन्दर बन्द कर लिया। देवगिरि का किला चिकनी ढालु पहाड़ी की चोटी पर स्थित था। किले की तलहटी के नगर में आक्रमणकारी की भीषण लूट तथा दिल्ली से और सेना की अफवाह सुनकर रामचन्द्र देव संधि के लिए राजी हो गया, परन्तु इसी बीच रामचन्द्र देव का पुत्र शंकरदेव बाहर से लौट आया। उसने अलाउद्दीन से युद्ध किया और हार गया। अलाउद्दीन ने नगर के व्यापारियों और लोगो को बड़ी बेरहमी से लूटा। सन्धि की शर्तों के अनुसार देवगिरी के राजा ने बेशुमार दौलत अलाउद्दीन को दी तथा वार्षिक कर देना भी स्वीकार किया। अमीर खुसरों, फरिश्ता तथा बरनी के विवरणों से पता चलता है कि देवगिरि से मिली धन-सम्पत्ति बहुत ज्यादा थी।
फरिश्ता के अनुसार," इस अतुल सम्पत्ति में ‘‘छह सो मन‘‘ सोना, सात मन मोती, दो मन लाल, नीलम, हीरे-पन्ने, एक हजार मन चांदी तथा रेशम के चार हजार थान सम्मिलित थे। देवगिरि से प्राप्त धन-दौलत के बल पर ही अलाउद्दीन ने षड्यंत्र द्वारा दिल्ली का सिंहासन प्राप्त किया।
2. देवगिरि पर द्वितीय आक्रमण
अलाउद्दीन ने देवगिरी पर दुसरा आक्रमण सन् 1307 ई. में सुल्तान बनने के बाद किया था। इसने 1307 ई. में मलिक काफूर के नेतृत्व में एक विशाल सेना देवगिरी पर आक्रमण के लिए भेजी गयी। आक्रमण का कारण रामचन्द्र द्वारा दो वर्ष का कर न चुकया जाना तथा देवलदेवी को दिल्ली लाया जाना बताया गया। अल्प खां ने राजा कर्ण को हराकर देवलदेवी को छीन लिया। देवलदेवी को दिल्ली भेजा गया जहां उसकी शादी राजकुमार खिज्र खां से कर दी गयी।
रामचन्द्रदेव ने भी काफूर के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया। लूट की अपार सम्पत्ति के साथ ही राजा रामचन्द्रदेव को भी दिल्ली लाया गया। अलाउद्दीन ने राजा के साथ सम्मानजनक व्यवहार किया और राय-रायन की उपाधि प्रदान की। उसे गुजरात में ‘नवसारी‘ की जगीर भी दी गयी। छह माह बाद दिल्ली से देवगिरी लौटते समय रामचन्द्रदेव को एक लाख टंके भी भेंट किये गये। राजा के प्रति अलाउद्दीन द्वारा प्रदर्शित उदारता और सम्मान का मुख्य उद्देश्य दक्षिण के शेष राज्यों की विजय के लिए देवगिरि को आधार बनाना तथा स्वयं रामचन्द्रदेव की मदद प्राप्त करना था।
3. वारंगल विजय
देवगिरी की विजय के पश्चात् अलाउद्दीन का मनोबल और बड़ गया लेकिन दूसरी तरफ दक्षिण के अन्य राजाओ की हार का मार्ग खुल गया। 1309 में मलिक काफूर को तेलगांना पर आक्रमण करने भेजा गया। दिसम्बर 1309 में वह देवगिरि पहुंच गया। राजा रामचन्द्रदेव ने हर तरह से काफूर की मदद की। 1310 के प्रारम्भ में बारगंल के नगर और किले का घेरा डाल दिया गया। लम्बे प्रतिरोध के बाद प्रतापरूद्र देव ने कफूर के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। बरनी के अनुसार राजा ने 100 हाथी, सात सौ घोड़े तथा अनेक मूल्यावान वस्तुंए दी। उसने वार्षिक कर देना भी स्वीकार किया। कहा जाता है कि काफूर को दिये गये हीरों में प्रसिद्ध ‘कोहिनूर‘ हीरा भी था। वारंगल से प्राप्त धन-सम्पत्ति को कफूर एक हजार ऊटों पर लाद कर दिल्ली लाया। अलाउद्दीन ने मलिक काफूर का सार्वजनिक सम्मान किया।
4. द्वार-समुद्र की विजय
वारगंल के विजय के उपरांत 1310 में मलिक काफूर को होयसल राज्य पर आक्रमण के लिए भेजा गया। इस समय वहां बल्लाल तृतीय का शासन था। देवगिरी से फिर हर प्रकार की मदद मिली। जब काफूर ने राजधानी द्वार समुद्र पर आक्रमण किया, तब बल्लाल तृतीय पांड्य राज्य की ओर गया हुआ था। आक्रमण के समाचार से वह अपनी राजधानी लौट आया। मामूली संघर्ष के बाद उसने हार, अधीनता और कर देना स्वीकार कर लिया। हाथी, घोड़े सम्पत्ति देने के साथ ही बल्लाल ने पाड्ंय राज्य के विरूद्ध काफूर की मदद करना भी स्वीकार किया।
5. देवगिरी पर तीसरा आक्रमण
रामचन्द्र देव की मृत्यु के बाद देवगिरी के शासक उसका पुत्र सिंघणदेव बना। उसने अलाउद्दीन की अधीनता मानने तथा कर देने से इंकर कर दिया। 1313 ई. मलिक काफूर कों फिर देवगिरी पर आक्रमण के लिए भेजा गया। सिघंणदेव युद्ध में पराजित हुआ और मारा गया। तेलगांना और होयसल राज्यों के कुछ स्थानों पर भी काफूर ने आतकं फैलाया। 1314 में मलिक काफूर को दिल्ली बुला लिया गया। देवगिरी का शासन रामचन्द्रदेव के दामाद हरपाल को सौपा गया। 1318 ई. मे अलाउद्दीन के पुत्र और उत्तराधिकारी मुबारक खलजी ने देवगिरी पर आक्रमण कर हरपाल को मार डाला। देवगिरी का अधिकांश भाग सल्तनत का हिस्सा बन गया।
मूल्यांकन
इस प्रकार लगातार युद्धों के माध्यम से अलाउद्दीन खिलजी ने सल्तनत का काफी विस्तार किया। पश्चिम में उसके साम्राज्य की सीमा सिन्धु नदी थी। आधुनिक पंजाब सिंध और उत्तरप्रदेश पर उसका सीधा अधिकार था। पूर्व में वाराणसी से आगे उसका अधिकार नहीं था। अधिकांश विद्वान यह मानते है कि बंगाल, बिहार एंव उड़ीसा अलाउद्दीन के साम्राज्य में सम्मिलित नही थे। इन प्रदेशो की विजय का कोई विवरण उपलब्ध नही है। लगभग सारा मध्य भारत और मालवा उसके नियंत्रण में था। धार, उज्जैन, मांडू, चंदेरी और एलिचपूर इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण स्थान थे। राजस्थान के महत्वपूर्ण दुर्गो पर अलाउद्दीन का अधिकार था। काफी शासक अधीन थे और कर भी देते थे। फिर भी पूरे राजस्थान का विलय दिल्ली सल्तनत में कभी नहीं हुआ। गुजरात भी सल्तनत का एक अधीनस्थ प्रांत था। दक्षिण के यादव होयसल तथा काकतीय करद राज्य थे। पांड्य राज्य ने अलाउद्दीन की अधीनता कभी स्वीकार नहीं थे।
यह भी पढ़ें; अलाउद्दीन खिलजी के सुधार
और विजय के सही परिणाम बताइए
जवाब देंहटाएं