3/14/2021

खिलजी वंश की स्थापना

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खिलजी वंश की स्‍थापना 

khilji vansh ki sthapna;बलबन अपने मृत्‍यु के पश्‍चात् अपने पौत्र कैखूसरो को अपना उत्‍तराधिकारी बनाना चाहता था, परन्‍तु अमीरों और मलिकों ने बुगरा खां के पुत्र कैकुबाद को गद्दी पर बैठा दिया। बलबन के कठोर नियन्‍त्रण मे पला कैकुवाद स्‍वतंत्रता पाते ही भोग, विलास, नाज-गाने तथा शराब में डुब गया। दिल्‍ली के कोतवाल फखरूद्दीन के दामाद मलिक निजामुद्दीन ने शासन पर नियंत्रण कर लिया। इसी के भड़काने पर कैकुबाद ने कैखुसरों की हत्‍या करवा दी। कैकुबाद के पिता तथा बंगाल का सुल्‍तान बुगरा खां ने मुलाकात के दौरान अपने पुत्र को निजामुद्दीन से पीछा छुड़ाने की सलाही दी। कुछ समय बाद निजामुद्दीन की हत्‍या करवा दी गई।

कैकुबाद ने जलालुद्दीन फिरोज खलजी को बरन का गवर्नर तथा युद्धमंत्री पदस्‍थ किया। तुर्की अमीरों ने इस नियुक्ति को पसन्‍द नहीं किया। वे जलालुद्दीन को गैर तुर्क समझते थे। तुर्की दल के नेता मलिक कच्‍छन एंव सुर्खा थे। उन्‍होने जलालुद्दीन खलजी सहित सभी गैर तुर्की अमीरों की हत्‍या करने का षडयंत्र रचा। इस बीच कैकुबाद को लकवा मार गया। उसके तीन वर्षीय बेटे कैमुर्स को सुल्‍तान बनाया गया। कुछ ही दिनों में मलिक कच्‍छन की हत्‍या कर दी गई। जलालुद्दीन शिशु सुल्‍तान का सरंक्षक बन गया। किलूखरी में लकवे में पड़े सुल्‍तान कैकुबाद को तरकेश नामक खलजी सरदार ने कपड़े में लपेटकर यमुना नदी में फेंक दिया। तीन माह तक संरक्षक के रूप में रहने के बाद जलालुद्दीन ने कैमूर्स की भी हत्‍या करवा दी। 1290 में स्‍वंय को किलूखरी में सुल्‍तान घोषित कर दिया। इस प्रकार एक नये वंश का उदय हुआ।

खलजी क्रांति का महत्‍व 

बहुत से इतिहासकारों का मत है कि खलजी मूलत: तुर्क थे। लगभग दो सौ वर्ष तक अफगानिस्‍तान में रहने के कारण उन्‍होने वहां के रीति-रिवाज और आदतों को अपना लिया था। इसलिए कुछ विद्वानों ने गलती से उन्‍हें अफगान कहा। अफगानिस्‍तान में हेलमन्‍द नदी के दोनों ओर का प्रदेश खलजी कहलाता था। हो सकता की इस क्षेत्र में रहने के कारण ही ये कबीले खलजी कहलाये। जलालुद्दीन भी खलजी कबीले का तुर्क था।

खलजी क्रांति का महत्‍व केवल एक नये राजवंश की स्‍थापना तक ही सीमित नहीं है। इस परिवर्तन से इल्‍बरी तुर्को का वह नस्‍लवाद भी समाप्‍त हो गया जिससे ऐबक, इल्‍तुतमिश तथा उसके उत्तराधिकारियों का दृष्टिकोण प्रभावित हुआ था। खलजियों की सफलता ने यह भी सिद्ध किया कि जातीय निरं‍कुशता का सिद्धांत ज्‍यादा दिन नहीं चल सकता। खलजी किसी राजवंश से संबंधित न होकर साधारण वर्ग के था। खलजी क्रांति को तुर्की आधिपत्‍य के विरूद्ध भारतीय मुसलमानों का विद्रोह भी कहा गया है। 

जलालुद्दीन खलजी की हत्‍या 

जिस दिन जलालुद्दीन खलजी का सिंहासनरोहण हुआ उस समय उसकी आयु 70 वर्ष थी। मंगोलों के विरूद्ध संघर्ष में उसने एक जीवब सेनानायक होने का परिचय दिया था। सुल्‍तान के रूप में उसने अपनी गृह और विदेश नीति में भावुकतापूर्ण उदारता और दयालुता का परिचत दिया। उस युग के हिसाब से यह दुर्बल नीतियां थी। सुल्‍तान के भतीजे और दामाद अलाउद्दीन ने इस उदारता का फायदा उठाया। भिलसा और दक्षिण के अभियान से प्राप्‍त धन के बल पर अलाउद्दीन ने सुल्‍तान की हत्‍या का षड्यंत्र रचा। इसी षड्यंत्र के फलस्‍वरूप सुल्‍तान जलालुद्दीन अपने भतीजे अलाउद्दीन से मिलने मानिकपुर पहुंचा। 20 जुलाई 1296 में गंगा नदी के किनारे धोखे से सुलतान की हत्‍या कर दिया गया। राजमुकुट अलाउद्दीन खलजी के सिर पर रख दिया गया। 20 वर्ष बाद धोखे और विश्‍वासघात से ही अलाउद्दीन का अन्‍त भी हुआ।

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