अलाउद्दीन खिलजी एक साहसिक सुधारक
alauddin khilji ke sudhar;अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत का महानतम शासक माना जाता है। अलाउद्दीन एक साम्राज्यावादी और सर्वाधिकारी व्यक्ति था। उसके सम्मुख सल्तनत के अमीरों, सैनिकों, भारी संख्या में गुलामों, मंगोल आक्रमणों तथा राजपूतों के संग्रामों की समस्यायें थीं। तत्कालीन परिस्थिति में परम्परागत शासन नीति अपनाने के बजाय अपने विचार और उद्देश्यों के अनुकुल नवीन नीति अपनाई। वह पहला सुल्तान था जिसने राजस्व के क्षेत्र में सैन्य, क्षेत्र में बाजार नियंत्रण के क्षेत्र में विभिन्न आयामी सुधार किये।
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अलाउद्दीन खिलजी के सुधार
अलाउद्दीन खिलजी ने अपने शासनकाल में निम्नलिखित सुधार कियें है--
1. न्याय-सुधार
न्याय का सर्वोच्च और अन्तिम प्रधान सुल्तान था जो किसी भी काजी, उलेमा अथवा धार्मिक शक्ति से बड़ा था। सुल्तान के बाद प्रमुख अधिकारी सद्र-ए-जम्हा, काजी-उल-कुजाता था। उसके अधिपत्य में नायब काजी और मुफ्ती होते थे। अमीर-ए-दादबेग-ए-हजरत राजधानी का न्यायाधीश था। प्रान्तों में भी काजी और मौलवी थे। ग्राम मे पंचायतें काम करती थी। न्याय कार्य में विलम्ब नहीं होता था। वकील न होने पर साक्षियों की बात सुनकर और मनोवैज्ञानिक, गोपनीय अनुसंधान, तर्क-वितर्क का प्रयोग कर न्याय किया जाता था।
2. सैनिक सुधार
(अ) दाग तथा हुलिया प्रथा
अलाउद्दीन ने सेना में दाग तथा हुलिया के नियम आरंभ कर दिए। दाग के अनुसार प्रत्येक सरकारी घोड़े को दागा जाता था। हुलिया के अनुसार प्रत्येक सैनिक का हुलिया दर्ज होता था।
(ब) युवक सैनिक
अलाउद्दीन ने सभी दुर्बल तथा वृद्ध सैनिकों को निकाल दिया एंव अपनी सेना में नवयुवकों को शामिल किया।
(स) अच्छा सैनिक संगठन
अलाउद्दीन ने एक विशाल तथा सुदृढ़ सेना का संगठन किया। उसकी सेना में 4,75,000 घुड़सवार थे। इसके अतिरिक्त उसकी सेना में पैदल सैनिक तथा हाथी भी थे।
(द) किलेबंदी
अलाउद्दीन ने अपने साम्राज्य की सुरक्षा के लिए उत्तरी पश्चिमी सीमांत प्रदेशो में नए किले का निर्माण कराया तथा पुराने किलो की मरम्मत कर अपने साम्राज्य की सीमाओं की किले बंदी की
3. आर्थिक सुधार
अलाउद्दीन खिलजी 4,75,000 सैनिको और 50 हजार गुलामों का व्यय कम करना चाहता था। वास्तव में उसे यह लोभ भी था कि यदि राजकोष से बढ़ा हुआ वेतन देने से राजकोष में कम धन रह जाता । अलाउद्दीन कृषि, उघोग, व्यापार बढ़ाकर वस्तुओं के मूल्य कम करने की कल्पना भी नहीं कर सकता था। इसका कारण यही था कि वह अर्थशास्त्री नहीं था वह एक ऐसा सेनिक था जो हर कार्य तलवार से करता था।
(अ) मूल्य निर्धारण
अलाउद्दीन खिलजी ने अनाज, खाद्य वस्तुयें, वस्त्र, पशु, दास आदि के मूल्य निश्चित कर सूची प्रकाशित की तथा थोक एंव खुदरा व्यापारियों को इसके अनुसार बेचने के लिये बाध्य किया।
(ब) वस्तु संग्रह
प्रत्येक मोहल्ले में गोदाम बनाये गये और अकाल या संकट के लियें अनाज का संग्रह किया गया। इसी प्रकार अन्य वस्तुओं का सग्रंह किया।
(स) नियोजित पूर्ति
प्रत्येक परिवार को 1 से 2 मन अनाज दिया जाता था। कोई भी परिवार अधिक अनाज नहीं ले सकता था।
(द) अधिकारी
प्रत्येक बाजार का एक शहना होता था जो एक सैनिक पदाधिकारी था। नापतौल की जांच के लिये वारिद थे। गुप्त रिपोर्ट, समाचार देने के लिये गुप्तचर नियुक्त थे। वस्त्र नियंत्रण के लियें दीवाने रियासत तथा मुन्हिया, मुमालिक, सदर, रियासत भी थे। इनका अध्यक्ष याकुब था।
(ई) राजस्व व्यवस्था संबंधी सुधार
सुल्तान ने भूमि की नाप कराई और राज्य की आय का अनुमान लगवाया और ऐसी जमीन जिससे राज्य को कर की वसूली नहीं होती थी। वेसी जमीन को वह अपने राज्य में मिला लेता था।
(फ) बाजार नियंत्रण नीति संबंधी सुधार
इतिहासकार जिया बरनी के अनुसार,‘‘अलाउद्दीन द्वारा मूल्य नियंत्रण शाही सैनिकों लाभ तथा राज्य कोष की स्थिति को दृढ़ करने के लिए किया जाता था।‘‘
अलाउद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण व्यवस्था
अलाउद्दीन का बाजार नियंत्रण उसकी लोक हित या परोपकारी भावना का परिणाम था। खरुल मजालिस नामक ग्रंथ में यह मिलता है कि अलाउद्दीन ने कहा है कि मुझे यही शेाभा देता है कि मै जो कुछ शासन के लिए करुं उसका लाभ प्रत्येक व्यक्ति को मिलें। मैंने खाद्य सामग्री को सस्ता किया है, जिसका लाभ सबको मिले इसी उद्देश्य से उसने मूल्य नियंत्रण के आदेश जारी किए।
सुल्तान ने स्थाई सेना के लिए पर्याप्त धन जुटाने के लिए बाजार निंयत्रण इस प्रकार किया कि अन्न तथा अन्य दैनिक जीवन संबंधी आवश्यकता की वस्तुयें इतनी सस्ती हो गई कि अल्प वेतन भोगी सैनिक भली प्रकार जीवन निर्वाह कर सकता था। छोटी से छोटी वस्तुओं से लेकर गुलामों, घोडों, अस्त्र-शस्त्र तथा विलास सामग्रीयों तक के भाव निर्धारित कर दिए गए।
सुल्तान ने योंग्य तथा अनुभवी ‘मलिक कबूल‘ को शहना-ए-मंडी के पद पर नियुक्त कर वस्तुओं के मूल्यों के नियंत्रण की व्यवस्था कराई।
बाजार का समूचित प्रबंध करने के लिए पदाधिकारी नियुक्त किए। इनमें दीवान-ए-रियासत को बाजार का प्रमुख अधिकारी तथा उसकी सहायता के लिए शहनाह, बरीद और युन्हीमान अधिकारी नियुक्त किए। इन पदाधिकारियों के द्वारा बाजार के सभी कार्यो पर पूरा नियंत्रण रखा जाता था।
बाजार के भावों को उचित बनाए रखने के लिए सुल्तान ने गुप्तचर भी छोड़ रखे थे तथा छोटे-छोटे बच्चों से भी वह वस्तुओं को खरीदवाता था। अलाउद्दीन ने बाजार के व्यापारियों पर कठोर नियंत्रण लगा रखा था। मिलाबट करने वालों को कठोर दंड दिया जाता था तथा कम तोलने वाले व्यापारियों के शरीर से उतना ही मांस काट लिया जाता था। सुल्तान ने दलालों को नष्ट कर दिया था। इस प्रकार बाजार के भावों पर सुल्तान का पूर्ण नियंत्रण हो गया था।
बाजार नियंत्रण नीति के परिणाम
अलाउद्दीन की इस नीति के निम्न परिणाम हुए--
1. दैनिक उपयोगी वस्तुयें निश्चित मूल्यों पर उपलब्ध होने लगी।
2. अब वह बिना अतिरिक्त व्यय के विशाल तथा संगठित सेना निर्माण कर सकता था।
3. इस सुधार ने जनता की शक्ति को इतना क्षीण कर दिया कि वह सल्तनत विरूद्ध विद्रोह न कर सके।
4. केन्द्रीय सरकार अधिक सुदृढ़ हो गई।
5. काफी समय तक भ्रष्टाचार समाप्त हो गया था।
अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु
अलाउद्दीन खिलजी अपने अन्तिम दिनों में बड़ा असंयत और शक्की हो गया था। उसे लगता था कि मलिका-ए-जहां तथा उसकी संतान उसकी परवाह नहीं करते है। 1315 ई. में मलिक काफूर दक्षिण से लौट आया। सुल्तान इन दिनों गम्भीर रूप से बीमार था। काफूर ने सुल्तान के पुत्रों तथा उसकी पत्नी के विरूद्ध सुल्तान के कान भरे। वह स्वंय सत्ता हथियाना चाहता था। उसने अलपा खां की महल में हत्या करवा दी तथा खिज्र खां को ग्वालियर में कैद कर दिया। मलिक काफूर सल्तनत का सर्वेसर्वा बन गया। जनवरी 1320 ई. में अलाउद्दीन की मृत्यु हो गयी। कुछ इतिहासकारों का मत है कि मलिक काफूर ने सुल्तान को जहर देकर मार डाला था।
खिलजियों का पतन
कुछ समय के लिए सत्ता मलिक काफूर के हाथ में रही। अलाउद्दीन के तीसरें पुत्र को मरवाने के चक्कर में मलिक काफूर खुद ही मारा गया। अप्रैल 1316 में मुबारक खलजी सुल्तान बन गया। मुबारक ने अलाउद्दीन के समय के सभी कठोर कानूनों को समाप्त कर दिया। उसने 1318 में देवगिरी पर आक्रमण कर रामचन्द्रदेव के दामाद हरपाल देव को पराजित कर मार डाला। मुबारक ने स्वंय को ही खलीफा घोषित कर दिया था। मुबारक के कृपापात्र खुसरो खां ने 15 अप्रैल 1320 की रात्रि को सुल्तान का कत्ल करवा दिया। नासिरूद्दीन खुसरों शाह के नाम से वह स्वंय सुल्तान बन गया।
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