राजस्व का अर्थ (rajaswa kya hai)
rajaswa arth paribhasha siddhant;सरकार द्वारा वसूले जाने वाले सभी प्रकार के कर और शुल्क, निवेशों पर प्राप्त ब्याज और लाभांश तथा विभिन्न सेवाओं के बदले प्राप्त धनराशि को राजस्व प्राप्ति या राजस्व कहा जाता है।सरकार की वित्तीय -व्यवस्था एक सार्वभौमिक पहलू है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति सरकार की सेवाओं से कुछ लाभ प्राप्त करता है तथा उन्हें थोड़ा भी अंशदान भी करता है। विश्व की प्रत्येक सरकारें अनेक प्रकार के सार्वजनिक उपक्रमों में प्रवेश कर रही है वर्तमान राज्य में सरकार का व्यवसाय सबसे बड़े व्यवसाय के रूप में उभरकर सामने आ रहा है सरकार की कुल आय एवं कुल व्यय देश में किसी व्यक्ति की तुलना में काफी बड़े है। सार्वजनिक व्यय मात्र में ही बड़ा नही है बल्कि वह तीव्र दर से वृद्धि कर रहा है। व्यय में यह वृद्धि सरकार के कार्यों में विस्तार के कारण हो रही है। राजस्व की विधियों में मनुष्य के आर्थिक जीवन को प्रभावित किया है तथा इसकी सहायता से देश में आर्थिक जीवन में इच्छित समाजिक व आर्थिक परिवर्तन लाना सम्भव हो पाता है।
राजस्व अपने में कोई नवीन विषय नही है बल्कि इसका अध्ययन अत्यन्त प्राचीन काल से होता आ रहा है। आज यह विषय एक विज्ञान के रूप में उभरकर सामने आया है। प्राचीन एकतन्त्रीय शासन प्रणाली में राजके कार्य काफी सीमित होने के कारण राज की आय व्यय का जो व्यौरा रखा जाता था उसका प्रारूप काफी छोटा रहता था। इसके विपरीत आज की प्रजातन्त्रीय शासन प्रणाली में कल्याणकारी राज की स्थापना के बाद राज्य मानवीय जीवन में इतनी गहनता के साथ प्रवेश कर चुका है व राज्य के कार्यों में वृद्धि होने से इसके व्यय के ढ़ांचे एवं आय के स्त्रोंतों में भी वृद्धि हो चुकी है। नियोजित विकास की प्रक्रिया न राज्यों की कार्यप्रणाली को पुर्णतया परिवर्तित कर दिया है। राज्य के बड़ते हुए कार्यकलापों और उसके फलस्वरूप बड़ते हुए आय व्यय के साधनों के उचित प्रबंधंन की आवश्यकता अनुभव की गयी। परिणामता: आज राजस्व तथा उसकी समस्याओं का वैज्ञानिक आधार पर अध्ययन किया जाने लगा है।
राजस्व की परिभाषा (rajaswa ki paribhasha)
सी.एफ. बैस्टेबल के अनुसार,'' राजस्व राज की लोक सत्ताओं के आय एवं व्यय उनके पारस्परिक सम्पर्क तथा वित्तीय प्रशासन व नियन्त्रण से सम्बन्ध रखता है।''
आदम्स के अनुसार,'' प्रो. आदम्स के अनुसार इसे वित्त का विज्ञान कहते है तथा इसे सार्वजनिक व्यय एवं सार्वजनिक आय के अनुसंधान के रूप में बताते है।''
श्रीमति यु.के. हिक्स के शब्दों में,'' राजस्व का मुख्य विषय ऐसी विधियों का अध्ययन व परीक्षण करना है जिनके द्वारा शासन संस्था मांग की समूहिक संतुष्टि की व्यवस्था करती है तथा इस उद्धेश्य को पूर्ण करने के लिए आवश्यक कोश प्राप्त करती है।''
प्रो.फिण्डले शिराज के शब्दों में,'' राजस्व ऐसे सिद्धांतों का अध्ययन है जो सार्वजनिक सत्ताओं के व्यय एवं कोषों की प्राप्ति से संबंधित है।''
डॉ. डालटन के शब्दों में,'' राजस्व के अन्तर्गत सार्वजनिक सत्ताओं के आय और व्यय एवं उनका एक दूसरे से समायोजन का अध्ययन किया जाता है। राजस्व के सिद्धांत ऐसे सामान्य सिद्धांत है जिन्हे इन विषयों से संबंधित किया जाता है।''
मसग्रेव के शब्दों में,'' सरकार की आय व्यय प्रक्रिया के केन्द्ररथ जटिल समस्याओं को लोक वित्तीय कहने की परम्परा रही है।''
ए.एम. स्मिथ के शब्दों में,'' राज व्यय एवं राज आय के सिद्धांनन्तों एवं स्वभाव के अनुसंधान को राजस्व कहते है।''
टेलर के शब्दों में,'' सरकारी संस्था के अन्तर्गत संगठित रूप से जनता के वित्त का व्यवहार ही राजस्व है। इसमें केवल सरकारी वित्त का अध्ययन किया जाता है।''
मेहता एवं अग्रवाल के अनुसार,'' राजस्व में सरकार के मौद्रिक एवं शाख साधनों के अध्ययन को सम्मिलित किया जाता है।''
लुट्ज के शब्दों में," सार्वजनिक या शासकीय कार्यों को पूर्ण करने के लिए आवश्यक साधनों का प्रावधान, संरक्षण एवं व्यय करने का अध्ययन ही राजस्व का विषय है।''
राजस्व के सिद्धांत (rajaswa ke siddhant)
राजस्व के सिद्धांत इस प्रकार है--
1. सक्रियकारी वित्त का सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार राष्ट्रीय आय का मुख्य घटक है बचत विनियोग। राष्ट्रीय आय का निम्न स्थर किसी भी देश की गरीबी का कारण है अत: साधनों के अनुकुलतम आवंटन
के जारिये विनियोग के प्रभाव को व्यवस्थित किया जाना चाहिए।
2. नवीन अर्थशास्त्र का सिद्धांत
किन्स और हेन्सन इस सिद्धांत के प्रतिपादक है। सिद्धांत उपयोग के नियमन तथा क्षतिपुरक कार्यवाही पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में राज का उत्तरदायित्व मानता है।
3. राजस्व का विशुद्ध सिद्धांत
यह सिद्धांत सार्वजनिक आय व्यय तथा ऋण के निरपेक्ष अध्ययन का समर्थन करता है सार्वजनिक कल्याण के राजस्व संबंधी उत्तर दायित्वों और कार्यवाही का आग्रह यह सिद्धांत नही करता।
4. कार्यात्मक वित्त का सिद्धांत
बर्गर ने किन्स की विचारधारा को यह नाम दिया है। इसमें राजकोषीय व मौद्रिक नीति तथा उपाओं का सुझाव दिया गया है साथ ही यह कहा गया है कि इन उपायों का मूल्याकंन क्रियाशीलता के आधार पर हो।
5. प्रतिष्टा सिद्धांत
सिद्धांत से की गई हूई धारणा कों स्वीकार करते हुए मानता है पूर्ति खुद अपनी मांग निमार्ण करती है और इसमें बेरोजगारी की स्थिति नही होती है। इसमें रोजगार की प्राप्ती सदैव रहती है अत: राज का हस्तक्षेप न हो व राजस्व का कार्यक्षेत्र सीमित हो।
6. मुसग्रेव के विचार
मुसग्रेव राजस्व के दो उत्तरदायित्व माने है--
(अ) ऐसे सिद्धांतों का विकास करना जो वर्तमान और भावी नीतियों का मार्गदर्शन कर सकें। मुसग्रेव ने राजस्व को प्रथम उत्तरदायित्व अधिक संबद्ध किया है।
(ब) राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को कुशलतम बनाने संबंधी नियम व सिद्धांत बनाना है।
पढ़ना न भूलें; राजस्व का महत्व और प्रकृति
पढ़ना न भूलें; राजस्व और निजी वित्त मे अंतर
आपको यह भी पढ़ें जरूर पढ़ना चाहिए
Rajahv ki avdharna
जवाब देंहटाएं