sarvajanik aay ka arth vargikaran;राजस्व के अध्ययन मे सार्वजनिक आय का वही स्थान है जो अर्थशास्त्र मे उत्पादन का है। जिस प्रकार उपभोग हेतु उत्पादन होना आवश्यक है, उसी प्रकार सार्वजनिक व्यय हेतु सार्वजनिक आय का पर्याप्त होना जरूरी है। सरकार को विभिन्न साधनों से प्राप्त होने वाली आय को सार्वजनिक आय की संज्ञा दी जाती है। इन साधनों मे से "कर" आय प्राप्ति का प्रमुख साधन है। सरकार कर जनता से वसूल करती है तथा जनहित के लिए खर्च करती है।
सार्वजनिक आय क्या है? (sarvajanik aay kise kahte hai)
सरकार को जो समस्त स्त्रोतों से आय प्राप्त होती है, उसे सार्वजनिक आय कहा जाता है। सार्वजनिक आय को सूक्ष्म तथा व्यापक दोनों दृष्टिकोण से समझा जा सकता है। सूक्ष्म दृष्टिकोण के अनुसार, उन प्राप्तियों को सार्वजनिक आय मे शामिल किया जाता है, जो सरकार को नियमित रूप से प्राप्त होती है अर्थात् जिसे सरकार को वापस लौटना नही पड़ता। व्यापक दृष्टिकोण के अनुसार, किसी भी स्त्रोत से प्राप्त आय को सार्वजनिक आय मे शामिल किया जा सकता है। इसमे ॠण तथा हीनार्थ प्रबंधन से प्राप्त धन को भी सम्मालित किया जाता है।
डाॅ. डाल्टन ने लिखा है कि," सार्वजनिक आय का व्यापक तथा सूक्ष्म अर्थों मे प्रयोग किया जाता है। व्यापक अर्थ मे इसमे समस्त तरह की आय एवं प्राप्तियों को शामिल किया जाता है जिसे प्रायः आगम के नाम से जाना जाता है; सूक्ष्म मे सिर्फ वे प्राप्तियों शामिल की जाती है, जो आय के साधारण विचार मे शामिल हो।"
सार्वजनिक आय का वर्गीकरण (sarvajanik aay ka vargikaran)
सार्वजनिक आय का विभिन्न विद्धानों ने अपने-अपने दृष्टिकोण के आधार पर वर्णन किया है। प्रायः सार्वजनिक आय का वर्गीकरण इस प्रकार है--
वेस्टेबल ने सार्वजनिक आय को दो भागों मे वर्गीकृत किया है--
1. वह आय जो राज्य को बड़ा प्रमण्डल होने के नाते एवं जनता की वस्तुएं तथा सेवायें उपलब्ध कराने के बदले प्राप्त होती है।
2. वह आय, जो राज्य अपनी सत्ता के कारण समाज की आय मे से ले लेता है।
प्रो. सैलिगमैन ने सार्वजनिक आय को तीन भागों मे वर्गीकृत किया है--
1. स्वेच्छा से दी गई आय जैसे उपहार, चंदे आदि।
2. संविदाबद्ध आय जैसे भूमि, संपत्ति के किरायों की आय, व्यापार एवं उद्योगों से प्राप्त लाभ अर्थात् रेल, डाक, तार, टेलीफोन, नहर, बिजली घर, लोहे, कपड़े आदि के कारखानों के मूल्य तथा मुनाफे से प्राप्त आय।
3. अनिर्वाय आय- जैसे जुर्माने एवं दण्ड से, पीस आदि से प्राप्त आय।
टेलर ने सार्वजनिक आय को चार भागों मे वर्गीकृत किया है, जो प्रकार है--
1. प्रशासनिक कार्य
2. अनुदान एवं उपहार
3. व्यापारिक क्रियाएं
4. कर।
प्रो. जे. के. मेहता ने भी सार्वजनिक आय को चार भागों मे वर्गीकृत किया है--
1. कर से प्राप्त आय
2. विशेष कर, जुर्माने तथा उपहार से प्राप्त आय
3. फीस से प्राप्त आय
4. ड्यूटी से प्राप्त आय।
डाॅ. डाल्टन ने सार्वजनिक आय को बारह भागों मे वर्गीकृत किया है--
1. कर
2. उपहार
3. बलात् ऋण
4. न्यायालयों द्वारा लगाये गये दण्ड
5. सार्वजनिक संपत्ति से प्राप्त आय
6. राजकीय उपक्रमों से प्राप्त आय
7. फीस तथा अन्य भुगतान
8. स्वेच्छा से दिये गये उपहार
9. विशेष कर निर्धारण से प्राप्त आय
10. स्वेच्छा से दिये गये ऋण
11. छापेखानों का मुनाफिमा
12. हर्जाने।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने सार्वजनिक आय दो भागों मे विभाजित किया है--
1. कर संबंधी आय
इसमे आय कर, मृत्यु कर, संपत्ति कर, उपहार, निगम कर, व्यय कर, बिक्री कर, उपभोग कर, मनोरंजन कर, निगम कर एवं आयात-निर्यात कर आदि शामिल होते है।
2. गैर-कर संबंधी आय
इसमे राजकीय संपत्ति से आय, उपहार, अनुदान एवं वस्तुओं के विक्रय से प्राप्त आय आती है।
विभिन्न विद्धानों द्वारा दिया गया उपरोक्त वर्गीकरण अपने आप मे पूर्ण नही है। जैसे-जैसे राज्य का कार्य क्षेत्र बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे उसके खर्चे भी बढ़ते जा रहे है। इन खर्चों को पूरा करने के लिए राज्य आय के नवीन साधन ढ़ूँढ़ने मे हमेशा प्रयत्नशील रहता है।
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