12/24/2020

श्रम का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं

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श्रम का अर्थ (shram kya hai) 

shram arth paribhasha visheshtaye, shram meaning in hindi;साधारण बोलचाल की भाषा मे हम श्रम का अर्थ किसी कार्य को करने के लिए किए गए प्रयत्नों से लगाते है। अर्थशास्त्र मे श्रम मनुष्य के उन सभी शारीरिक तथा मानसिक प्रयत्नों को कहते है, जो धनोत्पादन की दृष्टि से किये जाते है, या धन कमाने के उद्देश्य  से किये जाते है। अर्थशास्त्र मे श्रम का अर्थ मानवीय प्रयत्नों से लगाया जाता है, पशु या मशीन आदि के प्रयत्न से नही। इस तरह से मनोरंजन के लिए खेलना, संगीत गाना, तैरना, घर का काम करना तथा समितियों मे भाषण देना श्रम की श्रेणी मे नही आता है, क्योंकि ये सभी कार्य धन कमाने के उद्देश्य से नही किये जाते है। 

श्रम की परिभाषा (shram ki paribhasha)

मार्शल के शब्दों मे," श्रम का आश्य मनुष्य के आर्थिक कार्य से है, भले ही वह शरीर से किया गया हो अथवा मस्तिष्क से।" 

प्रो. टाॅमस के अनुसार ," श्रम से अभिप्राय उस शारीरिक अथवा मानसिक उद्योग से है जो किसी पुस्तकार प्राप्ति की आशा से किया जाता है।" 

प्रो. पीगू के अनुसार, " वह परिश्रम जिसे द्रव्य द्वारा माप जा सकता है, श्रम कहलाता है।

बेन के अनुसार," आर्थिक विश्लेषण की दृष्टि से श्रम मानव की सेवायें है-- उनकी उत्पत्ति की निर्मित क्रियायें-- शारीरिक, मानसिक अथवा दोनों ही हो सकती है।" 

प्रो. जेवन्स के अनुसार," श्रम वह मानसिक तथा शारीरिक प्रयत्न है जो अंशतः या पूर्णतः कार्य से प्रत्यक्ष आनंद प्राप्त होने के अतिरिक्त अन्य लाभ की दृष्टि से किया जाये।" 

श्रम की विशेषताएं (shram ki visheshta)

श्रम की विशेषताएं इस प्रकार से है--

1. श्रम गतिशील है 

उत्पादन के साधनों मे केवल श्रम ही गतिशील है जो एक स्थान से दूसरे स्थान को, एक व्यवसाय से दूसरे व्यवसाय मे तथा एक श्रेणी से दूसरी श्रेणी मे आ जा सकता है। 

2. श्रम को श्रमिक से पृथक नही किया जा सकता 

भूमि एवं पूंजी को उसके स्वामी से अलग किया जा सकता है, पर श्रम को उसके स्वामी (श्रमिक) से अलग नही किया जा सकता।  श्रम श्रमिक के साथ रहता है तथा यही कारण है कि मजदूरी के साथ श्रमिक को कारखाने की जलवायु, काम की प्रकृति, प्रबंधक का व्यवहार, जीवन स्तर आदि बातों का भी ध्यान रखना होता है। 

3. श्रम की कार्य कुशलता मे वृद्धि की जा सकती है

सभी श्रमिकों की कार्य कुशलता एक समान नही होती। श्रम की कार्य क्षमता को बढ़ाने के लिये उसकी शिक्षा व प्रशिक्षण पर पूंजी लगाई जाती है। इस प्रकार श्रम की कार्य क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।

4. श्रम की योग्यता व रूचि का महत्व 

प्रत्येक कार्य मे श्रम की योग्यता व रूचि के महत्व मे दिन प्रतिदिन वृद्धि हो रही है, जिससे श्रम का महत्व भी बढ़ रहा है।

5. श्रम उत्पत्ति का अनिवार्य साधन 

उत्पत्ति का कोई भी कार्य बिना श्रम के नही हो सकता। मशीने भी इसका महत्व कम नही कर सकीं। आजकल शारीरिक श्रम की उपेक्षा मानसिक श्रम की आवश्यकता मे वृद्धि हुई है।

6. श्रम विनियोग योग्य है

कारखानों, तथा मशीनों के क्रय करने मे पूंजी से जो आय प्राप्त होती है, उसी प्रकार मनुष्य की शिक्षा, कार्य कुशलता आदि बातों की प्राप्ति के लिये व्यय करने से भी आय होती है। दोनों आय प्राप्ति की दृष्टि से पूंजी लगाने मे समानता रखते है, अतः श्रम को मानवीय पूंजी भी कहते है।

7. श्रमिक केवल अपना श्रम बेचता है, अपने आपको नही

भूमि और पूंजी को खरीदने और बेचने से उनका स्वामित्व बदल जाता है, परन्तु श्रमिक अपनी सेवायें बेचता है, अपने आपको नही।

8. श्रम की मांग परोक्ष होती है 

वस्तु की मांग प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ता द्वारा की जाती है, परन्तु उत्पादन के साधनों की मांग उद्यमी द्वारा तभी की जाती है जबकि उपभोक्ता पहले वस्तु की मांग करे।

9. श्रम नाशवान है 

जिस समय मनुष्य उत्पन्न होता है, वह श्रम लेकर उत्पन्न होता है इसलिए श्रमिक कहलाता है। यदि श्रम का समय के साथ उपयोग न किया जाये, तो वह धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है। श्रम को संचित करके नही रखा जा सकता। यदि कोई श्रमिक एक दिन भी कार्य न करे, तो उसका उस दिन का श्रम नष्ट हो जाता है।

10. श्रम उत्पत्ति का एक सक्रिय साधन है 

श्रमिकों के प्रयत्नों के अभाव मे उत्पत्ति संभव नही है। भूमि तथा पूंजी उत्पत्ति के निष्क्रिय साधन है, क्योंकि वे स्वयं उत्पादन नही कर सकते। श्रम की सहायता से ही भूमि और पूंजी उत्पादन कर सकती है। सक्रिय साधन होने की वजह से श्रम को बिना श्रमिक की इच्छा से लगाना संभव नही है, साथ ही श्रम के उचित उपयोग के लिए उससे अच्छा व्यवहार करना पड़ता है।

11. श्रम की सौदा करने की शक्ति कमजोर होती है

श्रम नाशवान है, उसका संचय भी नही हो सकता, इसका परिणाम यह होता है कि मालिक के साथ उसकी सौदा करने की शक्ति कम होती है। श्रमिक बेरोजगार नही रह सकता, वह आर्थिक दृष्टि से कमजोर होता है। पर आजकल श्रमिक संगठनों की सहायता से उनकी सामूहिक सौदा करने की शक्ति अवश्य बढ़ी है।

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