श्रम का महत्व
shram ka mahatva;श्रम उत्पत्ति का अनिवार्य साधन है। बिना इसके साधारण से साधारण उत्पत्ति का कार्य भी संपन्न नही हो सकता।
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प्राकृतिक साधन चाहे जितनी प्रचुर मात्रा मे विद्यमान क्यों न हो, मनुष्य को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये कुछ-न-कुछ प्रयत्न अवश्य करना पड़ता है।जहां प्रकृतिदत्त पदार्थों मे न्यूनता तथा जलवायु मे प्रतिकूलता होती है, वहां मनुष्य को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये अधिक परिश्रम करना पड़ता है। इसी आधार पर उसका महत्व भी बढ़ता जाता है। सच तो यह है कि श्रम की अनिवार्यता मे आधुनिक सभ्यता का जन्म निहित है। मनुष्य स्वभाव से ही न्यूनतम परिश्रम करना चाहता है। अतः श्रम से बचने के उद्देश्य से कालान्तर मे वह बड़े-बड़े कालान्तर मे वह बड़े-बड़े अविष्कारों की ओर अग्रसर हुआ जिससे उत्पादन क्षेत्र मे अभूतपूर्व उन्नति हुई। कम से कम परिश्रम करने की प्रवृत्ति को न्यूनतम प्रयत्न का नियम कहते है। यही नियम भौतिक सभ्यता का आधार माना जाता है।
श्रम के प्रकार या रूप (shram ke prakar)
1. कुशल व अकुशल श्रम
जिस कार्य को करने के लिए किसी विशेष शिक्षा, निपुणता व प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है उसे कुशल श्रम कहते है। उदाहरण के लिये डाॅक्टर, वकील, इंजीनियर आदि के कार्य के लिए एक विशेष प्रकार की शिक्षा की आवश्यकता होती है। बिना शिक्षा या प्रशिक्षण के ये कार्य हर कोई नही कर सकता है। अतः इसे कुशल श्रम कहते है।
इसके विपरीत अकुशल श्रम वह है जिसे करने के लिए किसी विशेष शिक्षा, निपुणता व प्रशिक्षण की आवश्यकता नही होती, जैसे कि कुली या फिर कोई भी मजदूरी का कार्य इसे अकुशल श्रम कहा जाता है।
2. शारिरीक व मानसिक कार्य
जो कार्य मस्तिष्क द्वारा किये जाते है वह मानसिक श्रम है, जैसे की शिक्षक, वकील, डाॅक्टर, व इंजीनियर आदि। इस प्रकार से जो कार्य शारीरिक शक्ति द्वारा किये जाते है वह शारिरीक श्रम कहा जाता है। जैसे-- रिक्शा चलाना, कुली का कार्य, मजदूरी आदि।
3. उत्पादन व अनुत्पादक श्रम
इस संबंध मे अर्थशास्त्रियों मे मतभेद है। वाणिकवादी अर्थशास्त्रियों ने राष्ट्र के निर्यात व व्यापार की वृद्धि मे सहायक श्रम को उत्पादक माना है। प्रकृतिवादी अर्थशास्त्रियों ने कृषि कार्य मे संलग्न व्यक्तियों को उत्पादन माना है। एडम स्मिथ ने भौतिक व मूर्त या स्पर्शनीय वस्तुओं का निर्माण करने वाले उत्पादक श्रम माना है, अर्थात् इनके अनुसार शिक्षक, वकील, डाॅक्टर आदि अनुत्पादक श्रम है क्योंकि ये मूर्त या स्पर्शनीय वस्तुओं का निर्माण नही करते।
मार्शल तुष्टिगुण के सृजन करने वाले श्रम को उत्पादक मानते है और जो श्रम तुष्टिगुण सृजन करने मे असमर्थ हो वह अनुत्पादक श्रम की श्रेणी मे आता है।
बेन्हम के अनुसार, " जो श्रम आय का सृजन करता है वह उत्पादक और जो आय सृजन कर पाने मे असमर्थ हो वह अनुत्पादक श्रम कहलाता है।"
आधुनिक अर्थशास्त्री मार्शल की भांता श्रम के अधिक विस्तृत अर्थ रूप को प्रस्तुत करते है।
टाॅमस के अनुसार, " कीमत सृजन करने वाला श्रम उत्पादक श्रम कहलाता है, अर्थात् आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार जिस श्रम के द्वारा विभिन्न प्रकार की भौतिक वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन द्वारा आय का सृजन होता है वह उत्पादक श्रम कहलाता है।
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