पूंजी का अर्थ (punji kya hai)
Punji ka arth paribhasha visheshtaye Mahtva;साधारण बोलचाल की भाषा मे पूंजी का अर्थ मुद्रा, धन अथवा संपत्ति से लगया जाता है। परन्तु अर्थशास्त्र मे इसका कुछ संकुचित अर्थ लिया जाता है। उसके अनुसार मनुष्य द्वारा उत्पादित धन का वह भाग जो आय अर्जित करने या आय के उत्पादन मे सहायक हो, पूंजी है। उत्पादन का एक मानव-निर्मित उत्पत्ति साधन होने के कारण ही इसे आस्ट्रेलिया के अर्थशास्त्र बौह् य वाबर्क ने " उत्पादन का उत्पादित साधन " कहा है।
पूंजी की परिभाषा (punji ki paribhasha)
प्रो. चैनमेन के अनुसार, " पूँजी वह धन है जो आय प्रदान करता है अथवा आय के उत्पादन मे सहायक होता है अथवा जिसे उपयोग करने की इच्छा होती है।"
प्रो. मार्शल के अनुसार, " प्रकृति के समस्त नि:शुल्क उपहारों के अतिरिक्त वह सभी संपत्ति, जिससे आय प्राप्त होती है, पूंजी कहलाती है।
प्रो. फिशर के अनुसार, " पूंजी भूतकालीन श्रम द्वारा उत्पन्न की गई वह संपत्ति है जिसका व्यवहार अधिक उत्पादन के लिये किया जाता है।
टाॅमस के शब्दों मे, " भूमि को छोड़कर व्यक्ति तथा समूह की संपत्ति का वह भाग जिसके उपयोग से एवं अधिक मात्रा मे धन प्राप्त किया जा सकता है, पूंजी कहलाता है।
प्रो. पीगू ने, पूंजी की तुलना एक ऐसी झील से की है जिसमे विभिन्न वस्तुएं जो कि बचत का प्रतिफल है डाली जाती रहती है, किन्तु वे सभी वस्तुएं जो इस झील मे डाली गई है, पुनः उससे बाहर निकलती रहती है।
पूंजी की विशेषताएं (punji ki visheshta)
पूंजी की विशेषताएं इस प्रकार है--
1. पूंजी का निर्माण मनुष्य द्वारा होता है
पूंजी का निर्माण मानव अपने श्रम से करता है। पूंजी प्रकृति प्रदत्त उत्पादन का साधन नही है। पूंजी बचत का परिणाम है जो मानव द्वारा की जाती है। इस प्रकार पूंजी मावनकृत है। पूंजी का निर्माण व्यक्ति स्वयं अपने श्रम से करता है। पूंजी का निर्माण अपने आप नही होता।
2. पूंजी उत्पादन का अनिवार्य साधन नही
भूमि एवं श्रम उत्पादन के अनिवार्य साधन है, जबकि पूंजी के बिना भी उत्पादन संभव है।
3. पूंजी उत्पादन का निष्क्रिय साधन
भूमि की तरह पूंजी उत्पत्ति का एक निष्क्रिय साधन है। श्रम के बिना पूंजी निष्क्रिय रहती है।
4. पूंजी की पूर्ति मे परिवर्तन आसानी से किया जा सकता है
भूमि का क्षेत्रफल निश्चित होने से उसकी पूर्ति लगभग स्थिर रहती है। श्रम की पूर्ति को भी शीघ्रता से नही बढ़ाया जा सकता है। पूंजी मनुष्यकृत साधन होने से इसकी पूर्ति को आसानी से घटाया-बढ़ाया जा सकता है।
5. पूंजी बहुत गतिशील होती है
भूमि मे स्थान गतिशीलता का सर्वथा अभाव रहता है। श्रम भी कई कारणों से कम गतिशील होता है। पूंजी मे उत्पत्ति के अन्य साधनों की तुलना मे स्थान एवं व्यावसायिक गतिशीलता बहुत ज्यादा होती है।
6. पूंजी आय प्रदान करने वाली है
पूंजी को जमा कर मनुष्य अधिक धन कमाते है। पूंजी मे उत्पादकता का गुण विद्यमान होता है। इसी उत्पादकता के कारण पूंजी की मांग की जाती है एवं उत्पादन मे भी वृद्धि होती है।
7. पूंजी बचत का परिणाम
मनुष्य अपने श्रम के द्वारा पूंजी का निर्माण करता है तथा वह अपनी वर्तमान आवश्यकताओं को स्थगित कर आय के एक भाग को बचाता है, उसे आगे उत्पादन के कार्य मे लगाता है, अतः पूंजी बचत का परिणाम है।
8. पूंजी उत्पादन का गौण साधन
भूमि तथा श्रम उत्पादन के अनिवार्य साधन समझे जाते है, जिनके बिना उत्पादन संभव नही है। पूंजी के विषय मे हालांकि यह कहना कि वह उत्पादन का गौण साधन है, आधुनिक उत्पादन प्रणाली के संदर्भ मे उचित नही लगता, हर उत्पादन हेतु पूंजी आवश्यक नही है, जिस तरह कि भूमि तथा श्रम।
9. पूंजी अस्थायी
पूंजी एक विशेषता यह है कि पूंजी अस्थायी है। समय-समय पर उसे पुनरूत्पादित एवं फिर भरना रहता है। अतः बचत पर ज्यादा जोर दिया जाता है, ताकि वह स्त्रोते सूखे नही। राष्ट्र के लिए पूंजी बनाए रखना जरूरी समझा जाता है। उपभोग से यद्यपि जीवन स्तर ऊंचा उठता है, पर फिर भी बचत का महत्व कम नही समझा जाता, क्योंकि भविष्य का आर्थिक विकास राष्ट्र की बचत पर निर्भर है।
पूंजी का महत्व (punji ka mahatva)
पूंजी का महत्व इस प्रकार से है--
1. वृहत पैमाने पर उत्पादन संभव
पूंजी की सहायता से बड़े पैमाने पर उत्पादन करना संभव है।
2. भौतिक एवं मानवीय साधनों का भरपूर उपयोग
पूंजी की सहायता से भौतिक एवं मानवीय साधनों का भरपूर उपयोग संभव है। पूंजी आर्थिक प्रगति का आधार है।
3. रोजगार अवसरों की उत्पत्ति
पूंजी की सहायता से बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव है बड़े पैमाने पर उत्पादन होने से रोजगार पैदा होता है क्योंकि नये कल-कारखानों का विकास होता है। इस प्रकार से पूंजी रोजगार के अवसर प्रदान करती है।
4. आधुनिक कृषि संभव
पूंजी के द्वारा आधुनिक एवं गहन कृषि की उन्नति संभव है। आधुनिक कृषि के लिए बीज, खाद, ट्रेक्टर थ्रेसर की व्यवस्था बिना पूंजी के संभव नही हो सकती।
5. उन्नत सामाजिक जीवन का आधार
पूंजी के द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात, व्यापार, वाणिज्य मे सुधार करके उन्नत जीवन की स्थापना की जा सकती है। जिन देशों मे पूंजी का अभाव है, वहां लोगो का सामाजिक जीवन स्तर भी नीचा है।
6. राजनैतिक महत्व
राजनैतिक स्थायित्व एवं सैन्य शक्ति के लिए भी पूंजी आवश्यक होती है। पूंजी अभाव वाले राष्ट्रो की आवाज अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भी प्रभावी नही होती।
7. नियोजन एवं आर्थिक विकास का आधार
नियोजित अर्थव्यवस्था की सफलता भी पूंजी की पर्याप्तता पर निर्भर है। आज तो क्या, आर्थिक विकास की सभी अवस्थाओं मे पूंजी, उत्पादन का एक महत्वपूर्ण साधन है। औद्योगिक विकास हेतु भी पूंजी जरूरी होती है। अविकसित देशों मे पूंजी के अभाव के कारण ही राष्ट्रीय आय कम रहती है।
8. उत्पादन का महत्वपूर्ण साधन
पूंजी उत्पादन का आधार स्तम्भ होती है। उत्पादन चाहे छोटे पैमाने पर हो या बड़े पैमाने पर उसका पूंजी के अभाव मे संचालन नही हो सकता। कल-कारखानों को चलाने के लिये, परिवहन के साधनों के विकास के लिये कृषि की उन्नति के लिये तथा उत्पादन मे निरंतरता बनाये रखने के लिए पूंजी की नितांत आवश्यकता होती है।
9. साधनों का शोषण
देश के साधनों का पूर्णरूपेण शोषण तभी हो सकता है, जब देश मे पूंजी की पर्याप्त मात्रा हो। प्रकृति ने मनुष्य को जो उपहार दिये है, वे पूंजी की मदद से ही प्रयुक्त होकर लाभदायक हो सकते है।
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