साझेदारी के प्रकार (sajhedari ke prakar)
साझेदारी के प्रकार इस तरह है--
1. सामान्य साझेदारी
जिन फर्मों का नियमन तथा नियंत्रण भारतीय साझेदारी अधिनियम,1932 के द्वारा किया जाता है उन्हें सामान्य या साधारण साझेदारी कहते है। सामान्य साझेदारी सर्वाधिक प्रचलित है। इसमे साझेदारी का दायित्व असीमित होता है तथा सभी साझेदार को फर्म के प्रबंध मे भाग लेने का एक समान अधिकार होता है।
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2. ऐच्छिक साझेदारी
भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932 की धारा 7 के मुताबिक, ऐच्छिक साझेदारी वह साझेदारी होती है, जो कि अनिश्चित काल के लिये तथा किसी व्यवसाय को चलाने लिये स्थापित की जाती है। सभी साझेदारों की सहमति से, इसे कभी भी समाप्त किया जा सकता है। किसी एक साझेदार द्वारा नोटिस दिये जाने पर भी, ऐच्छिक साझेदारी भंग हो सकती है।
3. विशिष्ट साझेदारी
भारतीय साझेदारी अधिनियम की धार 8 के मुताबिक जब किसी विशिष्ट व्यवसाय अथवा विशेष कार्य के लिए साझेदारी का निर्माण किया जाता है, तो उसे विशिष्ट साझेदारी कहा जाता है। ऐसी साझेदारी तब तक रहती है जब तक कि पूर्व-निश्चित कार्य अथवा उद्देश्य पूरा नही हो जाता। इस प्रकार की साझेदारी किसी निश्चित व्यवसाय के लिए प्रारंभ की जाती है एवं उस उद्देश्य के पूरे हो जाने पर साझेदारी भी स्वतः ही समाप्त हो जाती है।
4. सीमित साझेदारी
जिस साझेदारी संस्था मे कुल साझेदारों का उत्तरदायित्व उनके द्वारा दी गई पूंजी की सीमा तक सीमित होता है, तो उसको "सीमित साझेदारी" कहते है।
5. निश्चित समय के लिए साझेदारी
निश्चित कालीन साझेदारी वह साझेदारी है, जिसका निर्माण कुछ निश्चित समय या अवधि के लिए किया जाता है और वह अवधि या समय खत्म होने जाने पर साझेदारी का स्वतः ही अंत हो जाता है।
6. अनिश्चितकालीन साझेदारी
ऐसी साझेदारी जिसमे समझौते मे अवधि या समय के संबंध कोई प्रतिबंध नही होता, तथा न ही उसका निर्माण किसी कार्य या उद्देश्य विशेष के लिए होता है, उसे अनिश्चितकालीन साझेदारी कहते है। ऐसी परिस्थिति मे साझेदारी का समापन सिर्फ विधान के अंतर्गत किया जा सकता है। (जैसे किसी आकस्मिक घटना के घटने पर उदाहरणर्थ, किसी साझेदार की मृत्यु, आदि।) अन्यथा वह निरंतर चलती रहती है।
7. वैध साझेदारी
वह साझेदारी जो भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932 के अनुसार अपना व्यवसाय चलते है, वह वैध साझेदारी होती है। कुछ मामलों मे कंपनी अधिनियम, 1956 तथा अन्य संबंधित अधिनियमं के प्रावधानों का पालन करना भी जरूरी है। यद्यपि साझेदारी का पंजीकरण करना अनिवार्य नही है लेकिन फिर भी इसका संचालन कानूनी तौर पर हीना जरूरी है।
8. अवैध साझेदारी
जो साझेदारी संबन्धित अधिनियमों के प्रावधानों के मुताबिक स्थापित नही कि गई हो और संचालित की जा रही हो, वह अवैध साझेदारी है।
अवैध साझेदारी इन परिस्थितियों भी होगी--
1. जब इसकी संख्या 2 से कम या बैंकिग व्यवसाय मे 10 से अधिक या सामान्य व्यवसाय मे 20 से अधिक साझेदार हो।
2. इसका कारोबार सार्वजनिक नीति के मुताबिक नही हो।
3. इसका कोई साझेदार शत्रु देश का हो।
4. जिसकी स्थापना का उद्देश्य गैर-कानूनी व्यवसाय चलाना हो।
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