कंपनी का अर्थ (company ka arth)
company meaning in hindi;सामान्यतः कम्पनी से आशय, लाभ के लिए निर्मित व्यक्तियों की एक ऐच्छिक संस्था है जिसकी पूँजी हस्तान्तरण योग्य अंशो मे विभक्त होती है। इन अंशों के स्वामियों (अंशधारियों) का दायित्व सामान्यतया सीमित होता है। इनेक संगठन का एक सामान्य वैधानिक उद्देश्य होता है तथा जिसका निर्माण एवं समापन तथा अन्य क्रायवाहियाँ अधिनियमानुसार होती है। इसकी प्रबंध व संचालन व्यवस्था प्रतिनिधि (संचालकों द्वारा) व्यवस्था पर आधारित होती है।आगे जानेंगे कम्पनी की परिभाषा और कम्पनी की विशेषताएं।
कंपनी की परिभाषा (company ki paribhasha)
डाॅ. विलियम आर. स्प्रीगल " निगम राज्य की एक रचना है जिनका अस्तित्व उन व्यक्तियों से पृथक होता है जो कि उसके अंशों अथवा अन्य प्रतिभूतियों के स्वामी होते है।प्रो. एच. एल. हैने के अनुसार " एक संयुक्त रकन्ध प्रमण्डल लाभ के लिए निर्मित व्यक्तियों का एक ऐच्छिक संघ है, जिसकी पूँजी हस्तान्तरणीय अंशों मे विभक्त होती है, जिसकी सदस्यता की शर्त, उसका स्वामित्व है।
किम्बाल के अनुसार " निगम, प्रकृति से, किसी विशेष उद्देश्य के लिए कानून द्वारा निर्मित अथवा अधिकृत कृत्रिम व्यक्ति है। इसे केवल कानून द्वारा प्रदत्त अधिकार और सुविधाएं प्राप्त होती है।
न्यायाधीश जेम्स के अनुसार " प्रमण्डल, एक सामान्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिए संगठित व्यक्तियों का एक ऐच्छिक संघ है। "
कंपनी की विशेषताएं या लक्षण (company ki visheshta)
1. ऐच्छिक संघकम्पनी व्यक्तियों का ऐच्छिक संघ है जो लाभ कमाने के उद्देश्य से बनायी जाती है। कम्पनी को जो लाभ होता है, उसका कुछ भाग लाभांश के रूप मे निश्चित नियमों के अंतर्गत अंशधारियों मे बाँट दिया जाता है। अंशधारी कम्पनी के स्वामी होते है, ये लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से कम्पनी मे अंशों के रूप मे अपना धन लगाते है। इस प्रकार कम्पनी लाभ कमाने के उद्देश्य से बनाया गया व्यक्तियों का ऐच्छिक संघ है।
2. वैधानिक कृत्रिम अस्तित्व
कम्पनी का निर्माण कानून द्वारा होता है और इसे स्वतंत्र वैधानिक व्यक्तिगत प्राप्त होता है। एक सामान्य व्यक्ति की भाँति कम्पनी स्वयं के नाम से व्यापार, व्यवहार कर सकती है, वाद चला सकती है, वाद स्वीकार कर सकती है, बाहरी व्यक्तियों से अनुबन्ध कर सकती है, कर्मचारी नियुक्त कर सकती है इसलिए इसे कृत्रिम व्यक्ति कहा जाता है।
3. पृथक वैधानिक आस्तित्व
कम्पनी का अस्तित्व वैधानिक होता है और इसके स्वामी, अंशधारियों से, इसका अस्तित्व पृथक होता है। अंशधारियों से इसका अस्तित्व इतना पृथक होता है कि अंशधारी कम्पनी पर और कम्पनी अपने अंशधारियों पर मुकद्दमा चला सकती है।
4. सीमित दायित्व
इसके अंशधारियों का दायित्व उसके द्वारा लिये गये अंशों के अंकित मूल्य तक ही सीमित रहता है। कम्पनी के दायित्व के लिए, अंशधारी निजी तौर पर उत्तरदायी नही होते और व्यक्तिगत सम्पत्ति का प्रयोग कम्पनी के दायित्वों के लिय नही किया जा सकता।
5. शाश्वत अस्तित्व
पृथक वैयक्तिक अस्तित्व होने के फलस्वरूप, कम्पनी का अस्तित्व शाश्वत रहता है। क्योंकि अंशधारियों के मृत्यु, उनेक दिवालिया या पागल या अयोग्य होने का कम्पनी के अस्तित्व पर कोई प्रभाव नही पड़ता। अंशधारी के द्वारा अपने अंशों के हस्तांतरण और इस प्रकार इसके स्वामित्व मे परिवर्तन होते रहने का भी इसके अस्तित्व पर कोई भी प्रभाव नही पड़ता।
6. सामान्य उद्देश्य
कम्पनी की स्थापना का सामान्य एवं वैधानिक उद्देश्य होता है। सामान्यतया कम्पनी लाभ अर्जन के लिए स्थापित एक संघ है। कुछ कम्पनियाँ लोकहित की दृष्टि से भी स्थापित की जाती है।
7. सम्पत्ति पर स्वामित्व
कम्पनी की सम्पत्ति पर स्वामित्व कम्पनी का होता है न कि उसके अंशधारियों का पृथक वैधानिक आस्तित्व होने के कारण ही यह संभव हो पाता है। अंशों का हस्तांतरण करते समय, कोई भी अंशधारी कम्पनी की सम्पत्ति विभाजित इसीलिए नही करा पाता।
8. कार्युक्षेत्र की सीमाएं
कम्पनी अपने सीमानियम स्पष्ट उद्देश्य वाक्य के अन्तर्गत ही कार्य कर सकती है। उद्देश्य वाक्य मे स्पष्ट कार्यक्षेत्र और अधिकार सीमा से बाहर कोई कार्य नही किया जा सकता। कम्पनी के कार्यक्षेत्र की सीमाएं-कम्पनी अधिनियम, सीमानियम और अन्तर्नियमों द्वारा शासित होती है।
9. अभियोग का अधिकार
एक मूर्त व्यक्ति की तरह कम्पनी को अपने अधिकारों के लिए अन्य व्यक्तियों और संस्थाओं पर वाद चलाने का अधिकार होता है। कम्पनी अपने अधिकार सम्पत्ति आदि की रक्षा प्राप्त करने के लिए न्यायालय की शरण मे जा सकती है। इसी प्रकार दूसरे व्यक्ति भी कम्पनी पर वाद चला सकते है।
10. अनिवार्य अंकेक्षण
कम्पनी के खातों का अंकेक्षण कराना कानूनी तौर पर अनिवार्य होता है, जबकि साझेदारी तथा एकाकी व्यापार के लिये यह ऐच्छिक है।
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संदर्भ; मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, लेखक डाॅ सुरेश चन्द्र जैन।
संदर्भ; मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, लेखक डाॅ सुरेश चन्द्र जैन।
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