व्यावसायिक संगठन का अर्थ (vyavsayik sangathan kya hai)
vyavsayik sangathan arth paribhasha visheshtaye;व्यावसायिक संगठन से हमारा तात्पर्य किसी व्यवसाय को एक निश्चित योजना के अनुसार चलाना एवं न्यूनतम व्यय पर अधिकतम उत्पादन प्राप्त करना है। इस प्रकार, जब उत्पादन के तीनों प्रमुख अंगो भूमि, श्रम और पूंजी का विनियोग उत्पादन अथवा धन प्राप्ति के लिए व्यावसायिक साहस के साथ एक निश्चित योजना के अनुसार कर लिया जाता है, तब " व्यवसाय संगठन " का निर्माण होता है।
व्यावसायिक संगठन का प्रयोग क्रिया (verb) तथा संज्ञा (Noun) दोनो ही रूपो मे किया जाता है। संज्ञा के रूप मे-- 'व्यावसायिक संगठन' एकाकी व्यवसाय, साझेदारी व्यवसाय, कंपनी व्यवसाय, सहकारी एवं राजकीय व्यवसाय हो सकते है। क्रिया के रूप मे " व्यवसायिक संगठन " किसी उक्त वर्णित व्यवसाय की आंतरिक क्रियाओं के संगठन को सम्बोधित करता है। जिसके अंतर्गत व्यवसाय के स्वरूप का निर्धारण, व्यवसाय की नीतियों का निर्धारण, व्यवसाय के विभिन्न भागों का नियोजन, व्यवसाय की विभिन्न क्रियाओं का निरीक्षण तथा अपनाये गये सिद्धांतों और नीतियों का पुनरावलोकन जैसे कार्य किये जाते है।
व्यवसायिक संगठन की परिभाषा (vyavsayik sangathan ki paribhasha)
न्यूमेन के अनुसार," व्यवसायिक संगठन का आशय किसी सामान्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कुछ व्यक्तियों के समूह के प्रयासों का पथ-प्रदर्शन, नेतृत्व एवं नियंत्रण करने से है।"
ई. एफ. एल. बैच्र के अनुसार," व्यवसायिक संगठन किसी भी उद्योग का वह कार्य है, जो कि उन विधियों के निर्माण एवं सम्पादन से समबन्धित है, जो कार्यक्रम निर्धारित करती है, कार्यकलापों की प्रगति का नियमन करती है और योजनाओं के संदर्भ मे उनके परिणामों का मूल्यांकन करती है।"
स्टीफेन्सन के अनुसार," व्यवसायिक संगठन से आशय सामान्यतः व्यापार अथवा उसी प्रकार कि किसी अन्य व्यवसाय की गतिविधियों के संचालन एवं नियंत्रण करने से है।"
जेम्स एल. लूण्डी के अनुसार," व्यवसायिक संगठन का प्रमुख कार्य नियोजन, समन्वय तथा प्रेरणा प्रदान करना है तथा किसी विशिष्ट उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कार्य नियंत्रित करना है।"
व्यवसायिक संगठन की विशेषताएं या लक्षण (vyavsayik sangathan ki visheshta)
1. व्यक्तियों का समूह
व्यवसाय किसी एक व्यक्ति द्वारा अथवा व्यक्तियों के समूह द्वारा स्थापित किया जाता है। जिसका आकार आवश्यकता के अनुसार छोटा अथवा बड़ा हो सकता है। इसमे समन्वय एवं नियंत्रण की आवश्यकता होती है, जो कि अधिक व्यक्तियों की स्थिति मे ही संभव है।
2. संसाधनों का समन्वय
व्यवसायिक संगठन वह संस्था है जो मौलिक संसाधनों (भूमि, यंत्र, उपकरण कार्यविधियां तथा तकनीकें आदि) तथा मानवीय संसाधनों का समन्वय करती है तथा समाज के लिए उपयोगी वस्तुओं तथा सेवाएँ उपलब्ध कराती है।
3. मौलिक एवं अनिवार्य आर्थिक क्रिया
आर्थिक क्रियाओं से तात्पर्य उन क्रियाओं से है जो अर्जित करने तथा उसका प्रयोग करने से सम्बंधित है। अर्थशास्त्र ऐसी ही क्रियाओं का विवेचन करता है।
4. पूर्व निर्धारित लक्ष्य एवं उद्देश्य
व्यावसायिक संगठन के निर्धारित लक्ष्य एवं उद्देश्य होते है जिन्हे प्राप्त करने के लिए इसकी रचना की जाती है, व्यक्तियों के मध्य कार्यों, साधनों एवं उत्तरदायित्वों का विभाजन किया जाता है तथा उनकी क्रियाओं मे समन्वय स्थापित किया जाता है।
5. विभिन्न व्यक्तियों के कार्य मे सामंजस्य एवं सहयोग
यह व्यक्तियों एवं संस्थाओं मे अनेक वर्गों से प्रभावित होता है। इन वर्गो मे साहसी, विनियोजक, प्रबन्धक कर्मचारी, सरकार, नागरिक आदि प्रमुख है। ये सभी वर्ग मिलकर व्यावसायिक उपक्रम के स्वरूप को प्रभावित करते है। संगठन भी इन सभी मे समन्वय स्थापित करने का प्रयास करता है।
6. दायित्वों के अनुरूप अधिकार प्रदान करना
दायित्व तथा अधिकार दोनों का गठबंधन है। जब किसी व्यक्ति को कोई कार्य सौंपा जाता है तो उक्त कार्य को पूर्ण करने के लिए उसका दायित्व उत्पन्न हो जाता है। उक्त दायित्व को निर्वाह करने के लिए आवश्यक अधिकार प्रदान किया जाना अनिवार्य होता है। यह अधिकार दायित्वों के अनुरूप प्रदान किये जाते है, तभी वह व्यक्ति अपने कार्य का निष्पादन कर सकता है।
7. विभिन्न साधनों की व्यवस्था करना
व्यावसायिक संगठन विभिन्न व्यावसायिक क्रियाओं का निष्पादन करने के लिए मानव, पदार्थ, यंत्र तथा अन्य साधनों की व्यवस्था करता है। इन साधनों का उपयोग करके व्यावसायिक संगठन, उत्पादन, वितरण तथा वाणिज्यिक क्रियाओं का उचित रूप से क्रियान्वयन करता है।
8. उपयोगिता का सृजन
व्यवसायिक का उदय ही उपयोगिता का सृजन करने के लिए होता है। ये कच्चे एवं अर्द्धनिर्मित माल, खनिज पदार्थ, पेड़-पौधे, जल, रासायनिक पदार्थों आदि मानवीय संसाधनों के सहयोग से समाज के लिए उपयोगी वस्तुओं का निर्माण करते है। ये भौतिक संसाधनों को रूप, स्थान, स्वामित्व या समय के द्वारा बदलकर उनकी उपयोगिता मे वृद्धि करते है।
9. जोखिम तथा भावी सफलता का तत्व
जब व्यवसाय शुरू किया जाता है तब सोच-समझ कर ही किया जाता है। लेकिन भविष्य सदैव अनिश्चित रहता है, जिसके परिणामस्वरूप ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण लाभ के स्थान पर हानि उठानी पड़ती है इसलिए वास्तव मे " लाभ जोखिम उठाने का ही पुरस्कार है।"
पढ़ना न भूलें; व्यावसायिक संगठन के उद्देश्य, कार्य, क्षेत्र, महत्व या लाभ
शायद यह आपके लिए काफी उपयोगी जानकारी सिद्ध होगी
बहुत ही अच्छा और विश्लेषण है
जवाब देंहटाएंअपनी प्रतिक्रिया देने के लिए धन्यवाद,
हटाएंvayavsaik sangathan ke uday ke bare me btaiye
जवाब देंहटाएंSamajh nhi aaya
जवाब देंहटाएंTq Sar ji
हटाएंBusiness organisation ka book pdf me bhej do
जवाब देंहटाएंBilkul jankari saral bhasha dijiye
हटाएंZainul
हटाएंVyavsayik sangthan ke bibhinn ang
जवाब देंहटाएं👍
जवाब देंहटाएं👍👍👍
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