sajhedari meaning in hindi;साझेदारी संगठन का प्रादुर्भाव एकल व्यापार की कमियों व सीमाओं को दूर करने की दृष्टि से हुआ। एक व्यक्ति के पास प्रबंधन की दक्षता व अनुभव होता है तो पूँजी नही होती, पूँजी होती है तो उसे प्रबन्धन नही आता या व्यवसाय चलाने का सामान्य गुण नही होता। यदि दोनों मिलकर व्यवसाय चलायें तो पूँजी व प्रबन्धन का सामंजस्य हो जायेया और दोनों मिलकर व्यवसाय चलाने की आवश्यकता ने साझेदारी को जन्म दिया।
आगे जानेंगे साझेदारी की परिभाषा और साझेदारी की विशेषताएं या लक्षण।
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम 1872 के अनुसार " साझेदारी उन व्यक्तियों का पारस्परिक सबंध है जो किसी व्यवसाय मे अपनी सम्पत्ति, श्रम अथवा चातुर्य को संयुक्त करने तथा उसके लाभों को परस्पर करने के लिए सहमत हो गये है।"
एल. एच. हैने के शब्दों मे " साझेदारी अनुबन्ध करने योग्य व्यक्तियों के मध्य स्थापित सम्बन्ध है जो कि लाभोपार्जन हेतु किसी विधान से मान्यता प्राप्त व्यवसाय संचालित करने के लिए सहमत हो। "
विलियम आर. स्प्रीगल " साझेदारी मे दो या दो से अधिक सदस्य होते है, जिनमें से प्रत्येक सदस्य साझेदारी के कार्यों के लिये उत्तरदायी है। प्रत्येक साझेदार दूसरे को अपने कार्यों द्वारा प्रतिबद्ध कर सकता है तथा प्रत्येक साझेदार की सम्पत्तियों को फर्म के ऋणों के लिए प्रयोग मे लाया जा सकता है। "
भारतीय साझेदारी 1932 की धारा 4 के अनुसार " साझेदारी उन व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्ध को कहते है जिन्होंने एक ऐसे व्यवसाय के लाभ को आपस मे बाँटने का ठहराव किया हो जिसे वे सब अथवा सबकी ओर से कार्य करते हुए उनमें से कोई व्यक्ति चलाता है। "
वे सभी व्यक्ति जिन्होंने एक-दूसरे के साथ साझेदारी का समझौता किया हो, व्यक्तिगत रूप से "साझेदारी" और सामूहिक रूप से "फर्म" कहलाते है और जिस नाम से वे व्यवसाय करते है, "फर्म का नाम" कहलाता है।
उपरोक्त परिभाषाओं का अध्ययन के पश्चात साझेदारी की एक सरल परिभाषा इस प्रकार दे सकते है, " साझेदारी दो या दो से अधिक व्यक्तियों की ऐसी व्यावसायिक संस्था है, जो पारस्परिक समझौते के अन्तर्गत किसी व्यवसाय को संचालित करने एवं लाभ को आपस मे बाँटने के उद्देश्य से बनायी जाती है।
साझेदारी व्यवसाय के लिए कम से कम दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है। ये व्यक्ति अनुबन्ध करने योग्य हो। भारत मे वैधानिक रूप से सामान्य व्यवसाय मे साझेदारी मे अधिक से अधिक 20 व्यक्ति एवं बैकिंग व्यवसाय मे 10 व्यक्ति साझेदार हो सकते है।
2. व्यवसाय के लाभ को आपस मे बांटना
साझेदारी का उद्देश्य व्यवसाय से केवल लाभ कमाना ही नही, वरन् उसे आपस मे बांटना भी होना चाहिये, क्योंकि साझेदारी लाभ के ही अधिकारी नही, वरन् सम्भावित हानि के लिए भी उत्तरदायी होते है।
3. साझेदारों के मध्य वैध अनुबन्ध होना
अधिनियमानुसार साझेदारी का सम्बन्ध अनुबन्ध द्वारा उत्पन्न होता है, स्थिति द्वारा नही, अतः यह नितांत आवश्यक है कि साझेदारों के बीच एक अनुबन्ध हो। चूंकि सम्मिलित हिन्दू परिवार के सदस्यों का सम्बन्ध अनुबन्ध द्वारा उत्पन्न नही होता, अतः कानून की दृष्टि मे वे साझेदार नही माने जाते तथा उनका व्यवसाय भी साझेदारी का व्यवसाय नही कहलाता है। यह अनुबंध लिखित हो सकता है अथवा मौखिक।
4. असीमित दायित्व
साझेदारी की एक विशेषता यह भी है कि साझेदारों का दायित्व असीमित होता है। फर्म के ऋणों के भुगतान के लिए साझेदार व्यक्ति रूप से उत्तरदायी होता है। अर्थात् हानि की स्थिति मे फर्म के ऋणदाता अपना धन साझेदारों की व्यक्तिगत सम्पत्ति से वसूल कर सकते है।
5. परम सद् विश्वास का होना
साझेदारी के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि साझेदारों मे आपसी सद् विश्वास सुदृढ़ हो। साझेदारी तो विश्ववास पर ही आधारित है। जिस दिन भी आपस मे मतभेद हो जाता है, साझेदारी ज्यादा चल नही पाती और अन्त मे उसका समापन हो जाता है।
6. हितों का हस्तांतरण
कोई भी साझेदार अपने हित को, अन्य साझेदारों की सहमति के बिना हस्तांतरित नही कर सकता है। लेकिन साझेदार फर्म से अवकाश ग्रहण कर सकता है।
7. वैध व्यापार का होना
साझेदारी के लिए यह नितांत आवश्यक है कि, कुछ न कुछ व्यवसाय या कारोबार हो, . व्यवसाय वैध हो।" यदि या दो से अधिक व्यक्ति परस्पर कोई ठहराव करते है, किन्तु उनके ठहराव का उद्देश्य किसी व्यवसाय को चलाना नही है तो ऐसे ठहराव को साझेदारी नही कह सकते।
8. पूँजी का विनियोग आवश्यक नही
साझेदार बनाने के लिए आवश्यक नही है कि वह पूँजी भी लगाये। बिना पूँजी लगाये भी कोई व्यक्ति फर्म मे, आपसी समझौता से, साझेदार बन सकता है। यही भी आवश्यक नही है कि सभी सभी साझेदार बराबर ह-बराबर पूँजी लगायें।
9. अस्तित्व
फर्म का साझेदारों का फर्म से कोई अलग अस्तित्व होता है। फलस्वरूप साझेदारी पर किसी साझेदार के दिवालिया होने, मृत्यु होने या अवकाश ग्रहण करने आदि बातों का प्रभाव पड़ता है।
यह भी पढ़ें; साझेदारी के गुण एवं दोष
साझेदारी का अर्थ (sajhedari ka arth)
सामान्य बोलचाल की भाषा मे विशिष्ट गुणों वाले व्यक्तियों के सामूहिक संगठन को साझेदारी कहते है। व्यवसायिक संगठन के इस प्रारूप मे दो अथवा दो से अधिक व्यक्ति मिलकर व्यवसाय करते हैं। वे अपनी योग्यतानुसार व्यवसाय का प्रबंध व संचालन करते है तथा पूँजी की व्यवस्था करते है। इस प्रकार अलग-अलग गुणों वाले व्यक्ति जैसे कुछ धनी व्यक्ति, कुछ प्रबंध कला मे निपुण होते है, कुछ अधिक व्यवहार कुशल होते है, कुछ अन्य कलाओं मे दक्ष होते है- अपनी-अपनी विशेषताओं के अनुसार साझेदारी संगठन का निर्माण करते है।आगे जानेंगे साझेदारी की परिभाषा और साझेदारी की विशेषताएं या लक्षण।
साझेदारी की परिभाषा (sajhedari ki paribhasha)
प्रो. किम्बाल " एक साझेदारी अथवा फर्म व्यक्तियों का एक समूह है जिन्होंने किसी व्यावसायिक उपक्रम को चलाने के उद्देश्य से पूँजी अथवा सेवाओं का एकीकरण किया है। "भारतीय अनुबन्ध अधिनियम 1872 के अनुसार " साझेदारी उन व्यक्तियों का पारस्परिक सबंध है जो किसी व्यवसाय मे अपनी सम्पत्ति, श्रम अथवा चातुर्य को संयुक्त करने तथा उसके लाभों को परस्पर करने के लिए सहमत हो गये है।"
एल. एच. हैने के शब्दों मे " साझेदारी अनुबन्ध करने योग्य व्यक्तियों के मध्य स्थापित सम्बन्ध है जो कि लाभोपार्जन हेतु किसी विधान से मान्यता प्राप्त व्यवसाय संचालित करने के लिए सहमत हो। "
विलियम आर. स्प्रीगल " साझेदारी मे दो या दो से अधिक सदस्य होते है, जिनमें से प्रत्येक सदस्य साझेदारी के कार्यों के लिये उत्तरदायी है। प्रत्येक साझेदार दूसरे को अपने कार्यों द्वारा प्रतिबद्ध कर सकता है तथा प्रत्येक साझेदार की सम्पत्तियों को फर्म के ऋणों के लिए प्रयोग मे लाया जा सकता है। "
भारतीय साझेदारी 1932 की धारा 4 के अनुसार " साझेदारी उन व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्ध को कहते है जिन्होंने एक ऐसे व्यवसाय के लाभ को आपस मे बाँटने का ठहराव किया हो जिसे वे सब अथवा सबकी ओर से कार्य करते हुए उनमें से कोई व्यक्ति चलाता है। "
वे सभी व्यक्ति जिन्होंने एक-दूसरे के साथ साझेदारी का समझौता किया हो, व्यक्तिगत रूप से "साझेदारी" और सामूहिक रूप से "फर्म" कहलाते है और जिस नाम से वे व्यवसाय करते है, "फर्म का नाम" कहलाता है।
उपरोक्त परिभाषाओं का अध्ययन के पश्चात साझेदारी की एक सरल परिभाषा इस प्रकार दे सकते है, " साझेदारी दो या दो से अधिक व्यक्तियों की ऐसी व्यावसायिक संस्था है, जो पारस्परिक समझौते के अन्तर्गत किसी व्यवसाय को संचालित करने एवं लाभ को आपस मे बाँटने के उद्देश्य से बनायी जाती है।
साझेदारी की विशेषताएं या लक्षण (sajhedari ki visheshta)
1. दो या दो से अधिक व्यक्तियों का होनासाझेदारी व्यवसाय के लिए कम से कम दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है। ये व्यक्ति अनुबन्ध करने योग्य हो। भारत मे वैधानिक रूप से सामान्य व्यवसाय मे साझेदारी मे अधिक से अधिक 20 व्यक्ति एवं बैकिंग व्यवसाय मे 10 व्यक्ति साझेदार हो सकते है।
2. व्यवसाय के लाभ को आपस मे बांटना
साझेदारी का उद्देश्य व्यवसाय से केवल लाभ कमाना ही नही, वरन् उसे आपस मे बांटना भी होना चाहिये, क्योंकि साझेदारी लाभ के ही अधिकारी नही, वरन् सम्भावित हानि के लिए भी उत्तरदायी होते है।
3. साझेदारों के मध्य वैध अनुबन्ध होना
अधिनियमानुसार साझेदारी का सम्बन्ध अनुबन्ध द्वारा उत्पन्न होता है, स्थिति द्वारा नही, अतः यह नितांत आवश्यक है कि साझेदारों के बीच एक अनुबन्ध हो। चूंकि सम्मिलित हिन्दू परिवार के सदस्यों का सम्बन्ध अनुबन्ध द्वारा उत्पन्न नही होता, अतः कानून की दृष्टि मे वे साझेदार नही माने जाते तथा उनका व्यवसाय भी साझेदारी का व्यवसाय नही कहलाता है। यह अनुबंध लिखित हो सकता है अथवा मौखिक।
4. असीमित दायित्व
साझेदारी की एक विशेषता यह भी है कि साझेदारों का दायित्व असीमित होता है। फर्म के ऋणों के भुगतान के लिए साझेदार व्यक्ति रूप से उत्तरदायी होता है। अर्थात् हानि की स्थिति मे फर्म के ऋणदाता अपना धन साझेदारों की व्यक्तिगत सम्पत्ति से वसूल कर सकते है।
5. परम सद् विश्वास का होना
साझेदारी के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि साझेदारों मे आपसी सद् विश्वास सुदृढ़ हो। साझेदारी तो विश्ववास पर ही आधारित है। जिस दिन भी आपस मे मतभेद हो जाता है, साझेदारी ज्यादा चल नही पाती और अन्त मे उसका समापन हो जाता है।
6. हितों का हस्तांतरण
कोई भी साझेदार अपने हित को, अन्य साझेदारों की सहमति के बिना हस्तांतरित नही कर सकता है। लेकिन साझेदार फर्म से अवकाश ग्रहण कर सकता है।
7. वैध व्यापार का होना
साझेदारी के लिए यह नितांत आवश्यक है कि, कुछ न कुछ व्यवसाय या कारोबार हो, . व्यवसाय वैध हो।" यदि या दो से अधिक व्यक्ति परस्पर कोई ठहराव करते है, किन्तु उनके ठहराव का उद्देश्य किसी व्यवसाय को चलाना नही है तो ऐसे ठहराव को साझेदारी नही कह सकते।
8. पूँजी का विनियोग आवश्यक नही
साझेदार बनाने के लिए आवश्यक नही है कि वह पूँजी भी लगाये। बिना पूँजी लगाये भी कोई व्यक्ति फर्म मे, आपसी समझौता से, साझेदार बन सकता है। यही भी आवश्यक नही है कि सभी सभी साझेदार बराबर ह-बराबर पूँजी लगायें।
9. अस्तित्व
फर्म का साझेदारों का फर्म से कोई अलग अस्तित्व होता है। फलस्वरूप साझेदारी पर किसी साझेदार के दिवालिया होने, मृत्यु होने या अवकाश ग्रहण करने आदि बातों का प्रभाव पड़ता है।
यह भी पढ़ें; साझेदारी के गुण एवं दोष
यह भी पढ़ें; साझेदारी के प्रकार
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए;व्यावसायिक संगठन के प्रकार या स्वरूप
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Hi mint condition and condition and condition and condition is y ho hi nahi
जवाब देंहटाएंSaajhedaari kiya h iski bisesta ka varnan kre
हटाएंhttps://www.kailasheducation.com/2020/08/sajhedari-arth-paribhasha-visheshtaye.html
हटाएंSajhedari farm ki visheshtaen bataiye
जवाब देंहटाएंEska niskarsh bhi do na
हटाएंha ha
हटाएंSimple bhasha m
हटाएंSimple language m smjhaya kren
हटाएंOn language
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