ekaki vyapar ke gun or dosh;श्री बैसट के शब्दों मे, एकाकी व्यावसाय विश्व मे सर्वश्रेष्ठ है।" एकाकी व्यावसाय, व्यवसाय का सबसे प्राचीन रूप होने के कारण असभ्य युग का अवशेष' समझा जाता है। लेकिन तथाकथित 'असभ्य युग का अवशेष' अपने गुणों और श्रेष्ठता के कारण आज भी लोकप्रिय है। यद्यपि एकाकी व्यापार का कई दृष्टियों से महत्व है, लेकिन आधुनिक युग मे व्यवसाय जिस प्रकार से बढ़ा रहा है, उसको देखते हुए स्वरूप मे कई कमियाँ एवं दोष भी नजर आते है। इस लेख मे हम एकाकी व्यापार के गुण और दोषों का वर्णन करेंगे।
यह भी पढ़ें; एकाकी व्यापार अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं या लक्षण
एकाकी व्यापारी का अपने ग्राहकों से निकट संपर्क रहता है। वह अपने व्यक्तित्व, नम्रता तथा व्यापारिक कुशलता से उन्हें संतुष्ट रखता है।
2. कर्मचारियों पर पूर्ण नियंत्रण
एकाकी व्यापारी का अपने व्यापार पर पूर्ण नियंत्रण होता है। अतः इसका अपने कर्मचारियों पर भी नियंत्रण रहता है। वह उनकी त्रुटियों को आसानी से ठीक कर सकता है।
3. लोच
यह सबसे अधिक लोचपूर्ण संगठन होता है। व्यापार के आकार को सुविधा के घटया बढ़ाया जा सकता है।
3. निर्णय लेने मे शीघ्रता
एकाकी व्यापारी अपने व्यापार का सभी कुछ होता है, अतः किये जाने वाले व्यापार और कार्यों के लिए उसे अन्य किसी के भी निर्णय की आवश्यकता नही होती। वह अन्य व्यक्तियों की सलाह मानने के लिए भी बाध्य नही होता। व्यापारिक निर्मय शीघ्रता से लेकर वह मौके का लाभ उठा सकता है।
4. गोपनीयता
आज की गलाकाट प्रतियोगिता के युग मे यह आवश्यक है कि व्यापार की नीतियों एवं अन्य महत्वपूर्ण बातों को अन्य प्रतियोगिता से गोपनीय रखा जाए। यह गोपनीयता एकाकी व्यापार मे सबसे अधिक संभव है।
5. व्यक्तिगत गुणों का विकास
एकाकी व्यापार की दशा मे कुछ व्यक्तिगत गुणों का विकास भी होता है; जैसे आत्मविश्वास, शीघ्र निर्णय लेना, जोखिम झेलने की क्षमता, आपत्तियों का साहस के साथ सामना करना इत्यादि।
6. स्थापना मे सरलता
एकाकी व्यापार की स्थापना मे कोई कठिनाई नही होती है, क्योंकि यह समस्त वैधानिक शिष्टाचारों से मुक्त है। इसे जब चाहे प्रारंभ कर सकते है। इसकी स्थापना मे किसी प्रकार के रिजिस्ट्रेशन आदि की आवश्यकता नही पड़ती है।
7. साख सुविधा
एकाकी व्यापारी का दायित्व असीमित होने के कारण लेनदारों के शोधन हेतु व्यावसायिक और व्यक्तिगत सभी सम्पत्तियों का प्रयोग किया जा सकता है। इससे व्यापारी की व्यक्तिगत ख्याति मे वृद्धि होती है और उसे सुलभ साख सुविधा प्राप्त हो जाती है।
8. पैतृक ख्याति का लाभ
एकाकी व्यापार पैतृक प्रकृति का होता है। पिता के बाद पुत्र उसे संचालित करते है। फलतः व्यवसायी अपने पूर्वजों द्वारा अर्जित ख्याति का भी लाभ प्राप्त करता है। यदि उसमे व्यक्तिगत योग्यता होती है तो वह उस ख्याति मे और भी वृद्धि करता है। इससे उसकी ख्याति, साख सुविधा और लाभार्जन क्षमता मे वृद्धि होती है।
9. समस्त लाभ पर एकाधिकार
एकाकी व्यापार मे एक ही व्यक्ति समस्त लाभ का अधिकारी होता है। लाभ प्राप्ति की भावना उसे बड़ी प्रेरणा प्रदान करती है। लाभ को अधिकतम करने के लिए वह बहुत परिश्रम एवं चतुराई से कार्य करता है।
10. निर्बाध तथा कम खर्चीला
ऐसे व्यवसाय के प्रबन्धन का भार उसके मालिक पर ही होता है। इसके लिये वह किसी अन्य प्रबन्धन की नियुक्ति नही करता अतः वह प्रबंधक का कार्य अपने दक्षता या सुविधा के अनुसार बिना किसी अतिरिक्त व्यय के स्वतंत्रता रूप से कर पाता है।
संसार मे कोई भी व्यक्ति सर्वगुणसंपन्न नही है। एक व्यक्ति की निर्णय शक्ति, विवेक बुद्धि, प्रबंध क्षमता प्रायः सीमित होती है। जिस कारण वह व्यापार का एक सीमा तक ही विस्तार कर सकता है।
2. सीमित व्यापार क्षेत्र
सीमित पूंजी, असीमित उत्तरदायित्व तथा सीमित प्रबंध चातुर्य के कारण एकाकी व्यापार का क्षेत्र सीमित रहता है। अतः यह कहा जा सकता है कि एकाकी व्यापार एक स्थान पर छोटे पैमाने पर ही चल सकता है।
3. सीमित योग्यता
एकाकी व्यवसाय मे साधनों का एकीत्रीकरण, प्रबंध संचालन, नियंत्रण सभी कुछ एक व्यक्ति की व्यक्तिगत योग्यता पर निर्भर करता है। मनुष्य प्रत्येक कार्य मे स्वयं को सक्षम बनाने की आशा अवश्य करता है, लेकिन ऐसा सम्भव नही होता। वह अच्छा पूँजीपति हो सकता है, प्रबन्धक नही। या अच्छा प्रबंधक, संचालक नियंत्रक हो सकता है, पूँजीपति नही।
4. सीमित विस्तार की सम्भावना
सीमित धन, प्रबंध योग्यता, आदि के कारण एकाकी व्यापार का आकार नही बड़ पाता। एकाकी व्यापार का आकार इसीलिए अपेक्षाकृत छोटा पाया जाता है। बड़े आकार या व्यापार करने के लिये या तो साझेदारी फर्म या कम्पनी की स्थापना करनी पड़ती है।
5. अनुपस्थिति मे हानि
एक ही व्यक्ति के द्वारा व्यवसाय के संचालन के कारण, यह कठिनाई भी उत्पन्न होती है कि यदि वह किसी कारण से दुकान न जा पाये तो वह बन्द हो जाती है। बीमारी के कारण या बाहर जाने पर या अन्य किसी कारण से मालिक की अनुपस्थिति मे या तो काम बन्द हो जाता है या शिथिल हो जाता है।
6. निर्णय मे त्रुटि की संभावनाएं
एकाकी व्यापार मे शीघ्र निर्णय लेने की स्वतंत्रता रहती है। शीघ्र निर्णय मे त्रुटि की संभावना रहती है। इस संबंध मे यह कहावत चरितार्थ है " जल्दी का काम शैतान का होता है।" जल्दबाजी मे त्रुटिपूर्ण निर्णय से व्यवसाय मे हानि हो सकती है।
7. विकासशील व्यवसाय के लिए अनुपयुक्त
एकाकी स्वामित्व एक ऐसे व्यवसाय के लिए अनुपयुक्त है जिसका निरन्तर विकास होने के कारण आकार मे वृद्धि हो जा रही है। किम्बाल एवं किम्बाल के शब्दों मे, " जैसे ही उपक्रम बड़ा हो जाता है, एकाकी स्वामित्व का प्रारूप अनुपयुक्त हो जाता है।"
8. असीमित दायित्व
एकाकी व्यापार का दायित्व असीमित होता है। व्यापार मे होने वाली हानि के लिए उसकी निजी संपत्ति उत्तरदायी होती है। कभी-कभी व्यापार मे उसे उतनी हानि हो जाती है कि उसका पूर्णतः विशान तक हो जाता है।
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एकाकी व्यापार के लाभ अथवा अथवा महत्व अथवा गुण
1. व्यक्तिगत संपर्कएकाकी व्यापारी का अपने ग्राहकों से निकट संपर्क रहता है। वह अपने व्यक्तित्व, नम्रता तथा व्यापारिक कुशलता से उन्हें संतुष्ट रखता है।
2. कर्मचारियों पर पूर्ण नियंत्रण
एकाकी व्यापारी का अपने व्यापार पर पूर्ण नियंत्रण होता है। अतः इसका अपने कर्मचारियों पर भी नियंत्रण रहता है। वह उनकी त्रुटियों को आसानी से ठीक कर सकता है।
3. लोच
यह सबसे अधिक लोचपूर्ण संगठन होता है। व्यापार के आकार को सुविधा के घटया बढ़ाया जा सकता है।
3. निर्णय लेने मे शीघ्रता
एकाकी व्यापारी अपने व्यापार का सभी कुछ होता है, अतः किये जाने वाले व्यापार और कार्यों के लिए उसे अन्य किसी के भी निर्णय की आवश्यकता नही होती। वह अन्य व्यक्तियों की सलाह मानने के लिए भी बाध्य नही होता। व्यापारिक निर्मय शीघ्रता से लेकर वह मौके का लाभ उठा सकता है।
4. गोपनीयता
आज की गलाकाट प्रतियोगिता के युग मे यह आवश्यक है कि व्यापार की नीतियों एवं अन्य महत्वपूर्ण बातों को अन्य प्रतियोगिता से गोपनीय रखा जाए। यह गोपनीयता एकाकी व्यापार मे सबसे अधिक संभव है।
5. व्यक्तिगत गुणों का विकास
एकाकी व्यापार की दशा मे कुछ व्यक्तिगत गुणों का विकास भी होता है; जैसे आत्मविश्वास, शीघ्र निर्णय लेना, जोखिम झेलने की क्षमता, आपत्तियों का साहस के साथ सामना करना इत्यादि।
6. स्थापना मे सरलता
एकाकी व्यापार की स्थापना मे कोई कठिनाई नही होती है, क्योंकि यह समस्त वैधानिक शिष्टाचारों से मुक्त है। इसे जब चाहे प्रारंभ कर सकते है। इसकी स्थापना मे किसी प्रकार के रिजिस्ट्रेशन आदि की आवश्यकता नही पड़ती है।
7. साख सुविधा
एकाकी व्यापारी का दायित्व असीमित होने के कारण लेनदारों के शोधन हेतु व्यावसायिक और व्यक्तिगत सभी सम्पत्तियों का प्रयोग किया जा सकता है। इससे व्यापारी की व्यक्तिगत ख्याति मे वृद्धि होती है और उसे सुलभ साख सुविधा प्राप्त हो जाती है।
8. पैतृक ख्याति का लाभ
एकाकी व्यापार पैतृक प्रकृति का होता है। पिता के बाद पुत्र उसे संचालित करते है। फलतः व्यवसायी अपने पूर्वजों द्वारा अर्जित ख्याति का भी लाभ प्राप्त करता है। यदि उसमे व्यक्तिगत योग्यता होती है तो वह उस ख्याति मे और भी वृद्धि करता है। इससे उसकी ख्याति, साख सुविधा और लाभार्जन क्षमता मे वृद्धि होती है।
9. समस्त लाभ पर एकाधिकार
एकाकी व्यापार मे एक ही व्यक्ति समस्त लाभ का अधिकारी होता है। लाभ प्राप्ति की भावना उसे बड़ी प्रेरणा प्रदान करती है। लाभ को अधिकतम करने के लिए वह बहुत परिश्रम एवं चतुराई से कार्य करता है।
10. निर्बाध तथा कम खर्चीला
ऐसे व्यवसाय के प्रबन्धन का भार उसके मालिक पर ही होता है। इसके लिये वह किसी अन्य प्रबन्धन की नियुक्ति नही करता अतः वह प्रबंधक का कार्य अपने दक्षता या सुविधा के अनुसार बिना किसी अतिरिक्त व्यय के स्वतंत्रता रूप से कर पाता है।
एकाकी व्यापार की हानियाँ अथवा दोष
1. सीमित प्रबंध चातुर्यसंसार मे कोई भी व्यक्ति सर्वगुणसंपन्न नही है। एक व्यक्ति की निर्णय शक्ति, विवेक बुद्धि, प्रबंध क्षमता प्रायः सीमित होती है। जिस कारण वह व्यापार का एक सीमा तक ही विस्तार कर सकता है।
2. सीमित व्यापार क्षेत्र
सीमित पूंजी, असीमित उत्तरदायित्व तथा सीमित प्रबंध चातुर्य के कारण एकाकी व्यापार का क्षेत्र सीमित रहता है। अतः यह कहा जा सकता है कि एकाकी व्यापार एक स्थान पर छोटे पैमाने पर ही चल सकता है।
3. सीमित योग्यता
एकाकी व्यवसाय मे साधनों का एकीत्रीकरण, प्रबंध संचालन, नियंत्रण सभी कुछ एक व्यक्ति की व्यक्तिगत योग्यता पर निर्भर करता है। मनुष्य प्रत्येक कार्य मे स्वयं को सक्षम बनाने की आशा अवश्य करता है, लेकिन ऐसा सम्भव नही होता। वह अच्छा पूँजीपति हो सकता है, प्रबन्धक नही। या अच्छा प्रबंधक, संचालक नियंत्रक हो सकता है, पूँजीपति नही।
4. सीमित विस्तार की सम्भावना
सीमित धन, प्रबंध योग्यता, आदि के कारण एकाकी व्यापार का आकार नही बड़ पाता। एकाकी व्यापार का आकार इसीलिए अपेक्षाकृत छोटा पाया जाता है। बड़े आकार या व्यापार करने के लिये या तो साझेदारी फर्म या कम्पनी की स्थापना करनी पड़ती है।
5. अनुपस्थिति मे हानि
एक ही व्यक्ति के द्वारा व्यवसाय के संचालन के कारण, यह कठिनाई भी उत्पन्न होती है कि यदि वह किसी कारण से दुकान न जा पाये तो वह बन्द हो जाती है। बीमारी के कारण या बाहर जाने पर या अन्य किसी कारण से मालिक की अनुपस्थिति मे या तो काम बन्द हो जाता है या शिथिल हो जाता है।
6. निर्णय मे त्रुटि की संभावनाएं
एकाकी व्यापार मे शीघ्र निर्णय लेने की स्वतंत्रता रहती है। शीघ्र निर्णय मे त्रुटि की संभावना रहती है। इस संबंध मे यह कहावत चरितार्थ है " जल्दी का काम शैतान का होता है।" जल्दबाजी मे त्रुटिपूर्ण निर्णय से व्यवसाय मे हानि हो सकती है।
7. विकासशील व्यवसाय के लिए अनुपयुक्त
एकाकी स्वामित्व एक ऐसे व्यवसाय के लिए अनुपयुक्त है जिसका निरन्तर विकास होने के कारण आकार मे वृद्धि हो जा रही है। किम्बाल एवं किम्बाल के शब्दों मे, " जैसे ही उपक्रम बड़ा हो जाता है, एकाकी स्वामित्व का प्रारूप अनुपयुक्त हो जाता है।"
8. असीमित दायित्व
एकाकी व्यापार का दायित्व असीमित होता है। व्यापार मे होने वाली हानि के लिए उसकी निजी संपत्ति उत्तरदायी होती है। कभी-कभी व्यापार मे उसे उतनी हानि हो जाती है कि उसका पूर्णतः विशान तक हो जाता है।
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए;व्यावसायिक संगठन के प्रकार या स्वरूप
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए;लक्ष्य अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए; एकाकी व्यापार अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं या लक्षण
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए; एकाकी व्यापार के गुण एवं दोष
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए;साझेदारी का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं या लक्षण
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए;साझेदारी के गुण एवं दोष
Hame yah website bhot achhi lagi isme prashno ke jo satik answer rhte h hame vo bhot achhe lge thanks
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