मुस्लिम विवाह
muslim vivah ke prakar;मुस्लिम विवाह एक समझौता है जो समझौता मे आये व्यक्तियों के बीच सम्भोग और सन्तानोत्पत्ति को वैधानिकता प्रदान करता है। इस प्रकार सम्भोग और सन्तानोत्पत्ति को वैध करना तथा सामाजिक जीवन को व्यवस्थित करना मुस्लिम विवाह का उद्देश्य है।
मुस्लिम विवाह मे विवाह का प्रस्ताव लड़के की ओर से लड़की वालो के पास भेजा जाता है। यह कार्य सामान्यतया मध्यस्थों द्वारा, जो साधारणतया रिश्तेदार या पड़ोसी होते है, किया जाता है। विवाह के लिए लड़की की स्वीकृति आवश्यक होती है। विवाह के समझौते के समय लड़का और लड़की को वयस्क अर्थात् 15 वर्ष की आयु का होना आवश्यक होता है। अवयस्क अर्थात् 15 वर्ष से कम आयु के होने पर विवाह मे उनके संरक्षकों की अनुमति आवश्यक होती है। संरक्षकों मे यदि विवाह की स्वीकृति पिता या बाबा के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दी गई है तो वयस्कता के साथ विवाह को अस्वीकृत करने का अधिकार दोनो पक्षों को होता है। इसे ख्यार उल वलुग कहते है। वैवाहिक समझौते के साथ लड़का लड़की को मेहर देने का वचन देता है। महर उस धन राशि या संपत्ति को कहते है जो विवाह के उपलक्ष मे पत्नी को पति से प्राप्त होती है। मुस्लिम विवाह मे मेहर को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। मुस्लिम समाज मे महर एक प्रकार से विवाहित स्त्री को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है।
मुस्लिम विवाह के प्रकार (muslim vivah ke prakar)
मुसलमानों मे विवाह मुख्यतः दो प्रकार के होते है, मुस्लिम विवाह के प्रकार निम्न है--
1. निकाह
निकाह एक स्थायी विवाह है। भारतीय मुसलमानों मे ऐसे विवाह का ही अधिक प्रचलन है। निकाह साधारणतया दो वकीलों द्वारा लड़की और लड़के की इच्छा जानने और रजिस्टर पर उस सबके हस्ताक्षर लेने के पश्चात काजी द्वारा अरबी मे पढ़ा जाता है।
2. मुताह
मुताह एक अस्थायी विवाह है जो एक किताबियों के बीच अर्थात् मुस्लिम, ईसाई, पारसी, यहूदी मे हो सकता है। किन्तु मुस्लिम स्त्री के लिए मुस्लिम से अन्य के साथ मुताह की अनुमति नही है। शिया मुसलमानों मे ऐसे विवाह का रिवाज है, किन्तु सुन्नी केवल निकाह मे ही विश्वास रखते है। यह एक निश्चित अवधि जैसे एक दिन, एक सप्ताह, एक साल या इससे अधिक समय के लिए होता है।
मुताह मे भी मेहर आवश्यक है। मुताह मे मेहर के अतिरिक्त पत्नी को अन्य अधिकार जैसे निवास या भरण-पोषण सम्बन्धी अधिकार आवश्यक रूप से प्राप्त नही होते। इसमे साधारणतः किसी प्रकार की अनुमति या समारोह आदि की आवश्यकता नही होती। किन्तु मुताह विवाह से उत्पन्न सन्तान भी वैध मानी जाती है। संक्षेप मे कहा जा सकता है कि निकाह एक स्थायी समझौता है, जिसके अन्तर्गत पत्नी को मेहर, भरण-पोषण और निवास का और पति को यौन सम्बन्ध स्थापित करने का अधिकार प्राप्त होता है। इन अधिकारों के साथ ही पत्नी का पति के प्रति वफादार या आज्ञाकारी रहना और पति को पत्नी के भरण-पोषण की आवश्यक व्यवस्था करना कर्तव्य हो जाता है। जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया गया है मुताह एक अस्थायी विवाह है जो एक निश्चित अवधि के बीच स्त्री और पुरुष के यौन सम्बन्ध और इससे उत्पन्न संतान को वैध करता है।
मुस्लिम विवाह मे विवाह से सम्बन्धी प्रतिबंध
मुसलमानों मे विवाह के लिए साथियों के चुनाव पर विशेष प्रतिबंध नही है। साथियों के चुनाव मे दूध का बर्ताव आवश्यक है। इनमे चचेरे और ममेरे भाई बहन मे विवाह हो सकता है। कुरान के अनुसार एक व्यक्ति अपने अति निकट सम्बन्धियों माता, मौसी, बहिन, भांजी और भतीजियों से विवाह नही कर सकता। एक समय दो सगी बहिनों को रखना भी हराम माना जाता है। साधारणतया गैर मुस्लिम और विशेष रूप से मूर्ति पूजको से विवाह निषिद्ध है। पैगम्बर साहब के अनुसार कोई विधवा चार महीने और दस दिन के पश्चात किसी पुरुष के साथ रह सकती है। बहुपत्नी विवाह मुस्लिम समाज मे एक मान्य विवाह है, किन्तु कोई भी व्यक्ति चार से अधिक जीवित पत्नियां नही रख सकता। किसी व्यक्ति को चार पत्नियों के होते हुए विवाह की अनुमति नही है किन्तु पत्नी के न रहने पर या किसी को तलाक दे देने पर वह ऐसा कर सकता है।
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