प्रवास क्या है? प्रवास का अर्थ (pravas kya hai)
प्रवास का आशय एक स्थान को छोड़कर किसी दूसरे स्थान पर वसने से हैं। मानव, जीवन के प्रारंभ से ही प्रवास करता रहा है। मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए खाद्यान्न संकलन, शिकार करने, पानी की तलाश मे आदिमानव घुमन्तु जीवन जीता था। भोजन, आराम और सुरक्षा की दृष्टि से मानव का एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवास निरंतर चलता रहा है। लेकिन यह प्रवास साधनों के अभाव मे सीमित था। औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप यातायात के साधनों की वृद्धि ने मानव की गतिशीलता को आसान कर दिया। प्रवास जनसंख्या परिवर्तन के महत्वपूर्ण आधारों मे से एक है। प्रवास के परिणामस्वरूप सामाजिक परिवर्तन घटित होता है। किसी भी समाज की जनसंख्या तीन आधारों पर परिवर्तित होती है, जन्म, मृत्यु, प्रवास। जन्म और मृत्यु जैविक कारक है। लेकिन प्रवास ऐसा कारक है जो सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक आधारों पर प्रभावित होता हैं।
प्रवास की परिभाषा (pravas ki paribhasha)
जनांकिकीय शब्दकोश के अनुसार," प्रवास का तात्पर्य एक भौगोलिक इकाई से दूसरी भौगोलिक इकाई के बीच होने वाली स्थानीय गतिशीलता से हैं, इसके अंतर्गत जन्म-स्थान से संबंधित आवास किसी दूसरे स्थान में चला जाता हैं।"डेविड हीर के अनुसार, " अपने स्वाभाविक निवास से अलग होना प्रवास है।
बर्गेल, " प्रवास मानव जनसंख्या मे स्थानान्तरण के लिए प्रयुक्त नाम है।
डाॅ. श्यामाचरण दुबे के शब्दों में," प्रवास सामाजिक परिवर्तन की वह प्रक्रिया है। जिसके द्वारा किसी समुदाय में जनसंख्या का आप्रवास अथवा उत्प्रवास होता हैं। आप्रवास का अर्थ किसी समुदाय में बाहर से आकर बसने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि होना हैं, जबकि उत्प्रवास का तात्पर्य एक समुदाय से कुछ लोगों का उससे बाहर चले जाना हैं।"
1. आँतरिक प्रवास
एक राष्ट्र के लोगों का उसी राष्ट्र के अंदर किसी स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर जाना आँतरिक प्रवास कहा जाता है। उदाहरण के लिए उत्तरप्रदेश के लोगों का मध्यप्रदेश आकार वसना। सुविधा की दृष्टि से आँतरिक प्रवास को निम्नलिखित चार भागों मे विभाजित किया जा सकता है--
(अ) गाँवो से नगरो की ओर प्रवास
(ब) एक ग्राम से दूसरे ग्राम की ओर प्रवास
(स) एक नगर से दूसरे नगर की ओर प्रवास
(द) नगर से गाँव की ओर प्रवास।
2. अंतर्राष्ट्रीय प्रवास
ऐसा प्रवास जो एक राष्ट्र की सीमाओं को लांगकर दूसरे राष्ट्र की सीमाओं मे होता है। जब कोई व्यक्ति या समूह एक राजनैतिक राष्ट्रीय सीमा को पार कर दूसरी राजनैतिक राष्ट्रीय सीमा मे प्रवेश करता है, तो उसे अंतर्राष्ट्रीय प्रवास कहते है। वर्तमान समय मे अंतर्राष्ट्रीय प्रवास दो देशों के नियमों के अधीन ही संभव है।
बर्गेल, " प्रवास मानव जनसंख्या मे स्थानान्तरण के लिए प्रयुक्त नाम है।
डाॅ. श्यामाचरण दुबे के शब्दों में," प्रवास सामाजिक परिवर्तन की वह प्रक्रिया है। जिसके द्वारा किसी समुदाय में जनसंख्या का आप्रवास अथवा उत्प्रवास होता हैं। आप्रवास का अर्थ किसी समुदाय में बाहर से आकर बसने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि होना हैं, जबकि उत्प्रवास का तात्पर्य एक समुदाय से कुछ लोगों का उससे बाहर चले जाना हैं।"
प्रवास की विशेषताएं (Pravas ki visheshta)
प्रवास की निम्नलिखित विशेषताएं हैं--
1. प्रवास प्राथमिक रूप से किसी समुदाय की जनांकिकीय विशेषताओं में होने वाले परिवर्तन की प्रक्रिया से हैं।
2. इस प्रक्रिया में व्यक्ति अपने जन्म-स्थान के आवास को बदलकर किसी दूसरे स्थान में नए आवास की स्थापना करता हैं।
3. प्रवास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा स्थान परिवर्तन के कारण व्यक्ति के सामाजिक परिवेश में परिवर्तन हो जाता हैं।
4. प्रवास एक सामाजिक प्रक्रिया भी हैं, क्योंकि इसके कारण व्यक्ति को नए स्थान की परिस्थिति संबंधी विशेषताओं के अनुसार भिन्न प्रकार की सामाजिक अन्तर्क्रियाएं करके वहां से समायोजन करना होता हैं।
5. अपने निवास स्थान को बदले बिना व्यवसाय अथवा मनोरंजन के लिए कुछ समय के लिए घर से बाहर रहने की दशा को प्रवास नहीं कहा जाता।
6. प्रवास की प्रक्रिया सामाजिक परिवर्तन की दशा को स्पष्ट करती हैं। जिस समुदाय को छोड़कर व्यक्ति दूसरे समुदाय में जाकर रहना आरंभ करते हैं, उसके फलस्वरूप दोनों ही समुदायों की श्रम-शक्ति तथा सामाजिक संरचना प्रभावित होने लगती हैं।
7. प्रवास का कोई एक रूप नहीं होता, बल्कि विभिन्न आधारों पर प्रवास को अनेक भागों में विभाजित किया जा सकता हैं।
प्रवास के प्रकार अथवा वर्गीकरण (pravas ke prakar)
विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न आधारों पर प्रवास के अनेक रूपों का उल्लेख किया है। क्षेत्र के आधार पर प्रवास को दो मुख्य भागों में विभाजित किया जाता हैं-- आन्तरिक प्रवास तथा बाह्य प्रवास। समय कारक के आधार पर प्रवास को तीन मुख्य भागों में बाँटा जाता हैं-- 1. मौसमी प्रवास, 2. आकस्मिक प्रवास तथा 3. स्थायी प्रवास। प्रवास की प्रेरणा को ध्यान में रखते हुए इसके दो अन्य रूपों का उल्लेख किया गया हैं। एक को हम ऐच्छिक प्रवास कहते हैं, जबकि दूसरा योजनाबद्ध प्रवास हैं। इन्हीं के आधार पर प्रवास की वास्तविक प्रकृति को समझा जा सकता हैं।1. आँतरिक प्रवास
एक राष्ट्र के लोगों का उसी राष्ट्र के अंदर किसी स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर जाना आँतरिक प्रवास कहा जाता है। उदाहरण के लिए उत्तरप्रदेश के लोगों का मध्यप्रदेश आकार वसना। सुविधा की दृष्टि से आँतरिक प्रवास को निम्नलिखित चार भागों मे विभाजित किया जा सकता है--
(अ) गाँवो से नगरो की ओर प्रवास
(ब) एक ग्राम से दूसरे ग्राम की ओर प्रवास
(स) एक नगर से दूसरे नगर की ओर प्रवास
(द) नगर से गाँव की ओर प्रवास।
2. अंतर्राष्ट्रीय प्रवास
ऐसा प्रवास जो एक राष्ट्र की सीमाओं को लांगकर दूसरे राष्ट्र की सीमाओं मे होता है। जब कोई व्यक्ति या समूह एक राजनैतिक राष्ट्रीय सीमा को पार कर दूसरी राजनैतिक राष्ट्रीय सीमा मे प्रवेश करता है, तो उसे अंतर्राष्ट्रीय प्रवास कहते है। वर्तमान समय मे अंतर्राष्ट्रीय प्रवास दो देशों के नियमों के अधीन ही संभव है।
स्थायित्व अथवा समय कारक के आधार पर प्रवास का वर्गीकरण निम्नलिखित तीन रूप में किया जाता है--
1. मौसमी प्रवास
इसका मुख्य संबंध ग्रामों से मुख्यतः नगरों की ओर होने वाले प्रवास से हैं। गाँवों में फसल बोने तथा फसल को काटने के बीच भूमिहीन किसानों के पास कोई काम नहीं रह जाता। इस अवधि में एक बड़ी संख्या में ग्रामीण परिवार रोजगार के लिए आस-पास के नगरीय क्षेत्रों में जाकर रहने लगते हैं। जैसे ही अगली फसल बोने का समय आता है, ऐसे परिवार पूनः गाँवों में लौट आते हैं। इसी कारण इसे अस्थायी प्रवास भी कहा जाता हैं।
2. आकस्मिक प्रवास
ऐसा प्रवास किन्हीं आकस्मिक परिस्थतियों का परिणाम होता है। किसी ग्रामीण अथवा गरीय क्षेत्र में भूकंप, बाढ़ या किसी महामारी के कारण बहुत बड़ी संख्या में लोग दूसरे स्थानों पर जाकर रहने लगते हैं। गाँवों में सूखा पड़ जाने से भी इस तरह के प्रवजन में वृद्धि होती हैं।
3. स्थायी प्रवास
इसकी प्रकृति मौसमी तथा आकस्मिक प्रवास से भिन्न है। कोई परिवार जब स्थायी रूप से अपने मूल निवास स्थान वाले गांव को छोड़कर किसी दूसरे गांव अथवा नगर में जाकर बस जाता है अथवा नगरीय परिवार के लोग गांव या दूसरे शहर में जाकर स्थायी रूप से बस जाते हैं, तब इसे हम स्थायी प्रवास कहते हैं।
प्रवास का एक अन्य वर्गीकरण प्रवासी की इच्छा अथवा मानसिकता को ध्यान में रखते हुए दिया गया हैं। इस आधार पर प्रवास दो प्रकार का होता हैं--
1. ऐच्छिक प्रवास
ऐसे प्रवास के लिए प्रवास करने वाले किसी व्यक्ति, समूह या परिस्थिति का दबाव नही होता। साधारणतया व्यक्ति निवास स्थान से भिन्न किसी नए क्षेत्र मे रोजगार के अच्छे अवसर पाता है तो वह अपनी इच्छा से उस नए क्षेत्र में बस जाता है। इस तरह का प्रवास शिक्षित और युवा लोगों द्वारा सबसे अधिक किया जाता हैं। ऐसे प्रवास में नातेदारी और मित्रों की भी एक बड़ी भूमिका होती है। यदि एक नातेदारी समूह का कोई व्यक्ति किसी नए स्थान पर जाकर वहाँ रोजगार की अच्छी सम्भावनाएं पाता है तो धीरे-धीरे वह अपने दूसरे सम्बन्धियों तथा मित्रों को भी वहाँ बुला लेता है। इससे किसी विशेष स्थान अथवा व्यवसाय में एक विशेष क्षेत्र के लोगों का केन्द्रीकरण होने लगता हैं। उदाहरण के लिए, एक सर्वेक्षण से यह स्पष्ट हुआ कि जयपुर के कुछ होटलों में काम करने वाले अधिकांश कर्मचारी कुमायूं क्षेत्र के हैं। इसी तरह हरियाणा और पंजाब के कृषि मजदूरों में सबसे बड़ी संख्या बिहार से आकर वहाँ बसने वाले कृषि मजदूरों की हैं।
2. योजनाबद्ध प्रवास
अनेक दशाओं मे सरकार द्वारा लागू की गयी कुछ विशेष योजनाओं के कारण लोगों को अपने मूल निवास स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर जाकर रहने के लिए बाध्य होना पड़ता हैं। बड़े-बड़े जलाशयों और सड़कों के निर्माण के लिए जब सरकार द्वारा एक बड़े क्षेत्र का अधिग्रहण किया जाता है तो उस क्षेत्र के लोगों को प्रवास करना आवश्यक हो जाता हैं। युद्ध की संभावना के समय भी देश की सीमा क्षेत्र से लगे सैकड़ों गाँवों को खाली कराने अथवा समुद्र तटों से लगे गाँवों को तूफान की संभवाना के कारण खाली कराने से भी इस तरह के प्रवास की दशा पैदा होती हैं। ऐसा प्रवास ऐच्छिक न होकर साधारणतया दबावमूलक होता हैं।
प्रवास के प्रभाव या परिणाम (pravas ke prabhav)
प्रवास के अच्छे और बूरे दोनों तरह के प्रभाव पड़ते है। प्रवास का सबसे बड़ा प्रभाव जनसंख्या के आकार और जीवन के तरीकों पर पड़ता है। एडवर्ड रास का विचार है कि प्रवास के कारण अनुपयुक्त तथा अवांछित तत्वों का विनाश हो जाता है। रास के अनुसार आवास और प्रवास किसी राष्ट्र को मानसिक गतिशीलता प्रदान करते है। जो जाति अपने मूल स्थान से जितनी दूर जाती है, उतनी ही उन्नति करती है। प्रवास के वास्तविक प्रभावों का अध्ययन करना अत्यंत ही कठिन है। इसके प्रभावों को जानने के लिए निम्नलिखित तीन दृष्टिकोण अपनाने होंगे--
(अ) प्रवास के कारण उस जनता पर क्या प्रभाव पड़ा है, जहाँ से व्यक्ति प्रवासित हुए है। उदाहरण के लिए जनसंख्या के दबाव मे कमी तथा आर्थिक अवसरों की सुलभता।
(ब) प्रवास का उस जनता पर क्या प्रभाव पड़ा है, जहाँ व्यक्ति प्रवासित होकर बसे है। स्वभावतः वहां अनेक सामाजिक तथा आर्थिक परिवर्तन होगे।
(स) जो व्यक्ति प्रवासित हुए है, उनके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा है। वे क्या छोड़कर आए? उन्होंने क्या प्राप्त किया? उनकी आशाएं और आकांक्षाएं क्या है।
इस प्रकार प्रवास के प्रभावों को दो प्रकार से विभाजित किया जा सकता है--
(अ) प्रवास के कारण उस जनता पर क्या प्रभाव पड़ा है, जहाँ से व्यक्ति प्रवासित हुए है। उदाहरण के लिए जनसंख्या के दबाव मे कमी तथा आर्थिक अवसरों की सुलभता।
(ब) प्रवास का उस जनता पर क्या प्रभाव पड़ा है, जहाँ व्यक्ति प्रवासित होकर बसे है। स्वभावतः वहां अनेक सामाजिक तथा आर्थिक परिवर्तन होगे।
(स) जो व्यक्ति प्रवासित हुए है, उनके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा है। वे क्या छोड़कर आए? उन्होंने क्या प्राप्त किया? उनकी आशाएं और आकांक्षाएं क्या है।
इस प्रकार प्रवास के प्रभावों को दो प्रकार से विभाजित किया जा सकता है--
(अ) प्रवास के सकारात्मक परिणाम या प्रभाव
राॅस का विचार है कि जो समुदाय जितना अधिक प्रगतिशील होता है, उसमें प्रवास अथवा स्थान परिवर्तन की प्रवृत्ति उतनी ही अधिक होती है। व्यक्तित्व के विकास, आर्थिक विकास तथा जनसंख्यात्मक सन्तुलन के लिए प्रवास को एक उपयोगी दशा के रूप में स्वीकार किया जाता हैं। भारतीय समाज के संदर्भ में ग्रामीण प्रवास के कुछ रचनात्मक अथवा लाभकारी परिणाम निम्न प्रकार हैं--
1. भूमि पर जनसंख्या के दबाव में कमी
गांव से नगर की ओर होने वाले प्रवास से ग्रामीण जनसंख्या में कमी होती है। जिसके फलस्वरूप कृषि भूमि का छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजन नहीं हो पाता। इससे गाँव में श्रमिकों की माँग और पूर्ति के बीच सन्तुलन बना रहता है तथा इसके फलस्वरूप ग्रामीण बेरोजगारी कम हो जाती हैं।
2. उत्पादन में वृद्धि
प्रवास के फलस्वरूप ग्रामीण तथा नगरीय दोनों क्षेत्रों में उत्पादकता बढ़ती हैं। ग्रामीण समुदाय में कृषकों को अपनी भूमि पर सघन कृषि करने का अवसर मिलता है तथा नगरों में श्रमिकों की आपूर्ति बढ़ जाने से उत्पादन में वृद्धि होती हैं। इसका तात्पर्य है कि प्रवास के द्वारा छोड़े जाने वाले स्थान तथा प्रवास से प्रभावित होने वाले स्थान दोनों को ही लाभ होता हैं।
3. व्यक्तिगत कुशलता में वृद्धि
प्रवास के कारण ग्रामीण जनसंख्या की संरचना में होने वाले परिवर्तन से उन लोगों की योग्यता और कुशलता बढ़ने लगती है, जो गाँव मे ही अपने परम्परागत व्यवसाय के द्वारा आजीविका उपार्जित करते हैं। इसका कारण यह है कि प्रवास उन्हीं ग्रामीणों द्वारा किया जाता है, जो साधारणतया बेरोजगार अथवा अर्द्ध-बेजोगार होते हैं। स्वाभाविक है कि इससे प्रति व्यक्ति व्यय में कमी हो जाने से परिवार के बचे हुए लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार होता हैं।
4. पास्परिक सद्भाव में वृद्धि
किसी समाज में प्रवास बढ़ने से विभिन्न जातियों, वर्गों तथा धर्मों के लोगों को एक-दूसरे के संपर्क में आने का अधिक अवसर मिलता हैं। ऐसे लोग एक-दूसरे क्षेत्र के रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक विशेषताओं से परिचित होने लगते हैं। यह दशा उनमें पारस्परिक सद्भाव और सहनशीलता को बढ़ाती है। विभिन्न समूहों के बीच भावनात्मक एकता को बढ़ाने में भी प्रवास की एक उपयोगी भूमिका होती हैं।
5. आर्थिक नियोजन को प्रोत्साहन
जब ग्रामीण समुदाय में प्रवास असन्तुलित रूप से होने लगता है तो वहाँ आर्थिक विकास के उन कार्यक्रमों को प्रोत्साहन मिलने लगता है जिनके द्वारा ग्रामीण रोजगार में वृद्धि हो सके। जिन ग्रामीण क्षेत्रों की भूमि कृषि-उपज के लिए अधिक उपर्युक्त नहीं होती, वहाँ सरकार द्वारा अनेक उद्योग इसलिए स्थापित किए जाते हैं जिससे ग्रामीण प्रवास को रोका जा सके। इससे एक बड़े ग्रामीण क्षेत्र का आर्थिक विकास होने लगता है।
(ब) प्रवास के नकारात्मक परिणाम अथवा प्रभाव
अनेक लाभों के बाद भी ग्रामीण प्रवास के फलस्वरूप ग्रामीण और नगरीय जीवन प्रतिकूल रूप से भी प्रभावित होता हैं। प्रवास के फलस्वरूप यदि गाँव की जनसंख्या बहुत कम रह जाए अथवा नगर की जनसंख्या में असन्तुलित रूप से वृद्धि होने लगे तो दोनो ही समुदायों की सामाजिक आर्थिक व्यवस्था विघटित होने लगती है। सामान्य दशाओं में प्रवास से उत्पन्न होने वाली कुछ प्रमुख हानियाँ निम्नलिखित हैं--
1. पारिवारिक विघटन
ग्रामीण समुदाय से जब कुछ पुरुष दूसरे स्थानो पर जाकर बसते है तो साधारणतया वे अपने परिवार को गाँव में ही छोड़ जाते हैं। इस दशा में परिवार की महिलाओं और बच्चों को अनेक ऐसे कार्यों के द्वारा आजीविका उपार्जित करनी होती है। जिसमे वे कुशल नहीं होते। प्रवास करने वाले ग्रामीण भी नगर में व्यवहार के नए ढंगों से जल्दी ही अनुकूलन नहीं कर पाते। इसके फलस्वरूप ग्रामीण परिवारों में विघटन की दशा पैदा होने लगती हैं।
2. गंदी बस्तियों में वृद्धि
प्रवास के फलस्वरूप नगरों मे जनसंख्या का दबाव बढ़ने लगता हैं, लेकिन बढ़ी हुई जनसंख्या के लिए आवास की समुचित व्यवस्था नहीं हो पाती। प्रवास करने वाले ग्रामीणों की आय भी बहुत कम होने के कारण वे नगर के बाहर किसी गंदे स्थान पर झुग्गी-झोपड़ी में रहना आरंभ कर देते हैं। इसी के फलस्वरूप औद्योगिक नगरों में गंदी बस्तियों में होने वाली वृद्धि एक गंभीर समस्या का रूप लेती जा रही हैं।
3. नगरीय बेरोजगारी में वृद्धि
नगरों में अधिक जनसंख्या के कारण पहले से ही बेरोजगारी की समस्या होती है। गाँव से नगर की ओर होने वाले प्रवास के फलस्वरूप इस बेरोजगारी में और अधिक वृद्धि होने लगती है। यह दशा प्रवासियों के आर्थिक शोषण में भी वृद्धि करती हैं।
4. वैयक्तिक विघटन
अनेक अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि गाँव से नगर की ओर प्रवास करने वाले अधिकांश व्यक्ति नगर में समुचित रोजगार न मिल पाने अथवा वहाँ के वातावरण से अनुकूलन न कर पाने के कारण अनेक तरह के मानसिक विकारों, बीमारियों, अपराधी व्यवहारों तथा मद्यपान आदि के शिकार हो जाते हैं। इससे वैयक्तिक विघटन में वृद्धि होती हैं। केरल के एक अध्ययन से स्पष्ट हुआ कि यहाँ से खाड़ी देशों में प्रवास करने वाले अधिकांश प्रवासी न्यूरोसिस, हिस्टीरिया तथा कुण्ठा से ग्रसित पाए गए।
5. अलगाववाद की समस्या
जो ग्रामीण गाँव से नगर में जाकर रहने लगते हैं, वे अपने नातेदारों तथा मित्रों से अलग-अलग हो जाते हैं। नगर के पर्यावरण के प्रभाव से उनकी मानसिकता स्वार्थ-प्रधान बनने लगती हैं। अपने निवास स्थान से उनका लगाव बहुत कम रह जाता हैं। धीरे-धीरे वे अपने आप को सामाजिक रूप से अलग-थलग समझने लगते हैं। यही वह अलगाववाद हैं। जिसने प्रवासियों में आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि की हैं।
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