5/22/2020

मताधिकार अर्थ, विशेषताएं एवं सिद्धांत

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जनता द्वारा मत के द्वारा प्रतिनिधियों को निर्वाचित किया जाता हैं और प्रतिनिधियों का निर्वाचन वही नागरिक कर सकते हैं जिन्हें मताधिकार प्राप्त हो। इसलिए हम मताधिकार के बारें मे जानने से पहले निर्वाचन के बारें मे जान लेना बहुत जरूरी हैं।

निर्वाचन किसे कहते हैं? निर्वाचन का अर्थ 

हमारे देश मे संसदीय शासन प्रणाली है। इस शासन प्रणाली मे देश के निर्वाचित प्रतिनिधियों से सरकार बनाई जाती है। निर्वाचन के द्वारा नागरिकों की शासन मे भागीदारी होती है। नागरिकों द्वारा अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने की प्रक्रिया निर्वाचन कहलाती है। लोकतांत्रिक देशों मे जनता द्वारा एक निश्चित अवधि के लिए प्रतिनिधि चुनने की प्रक्रिया को निर्वाचन कहते है।
मताधिकार
निर्वाचन के द्वारा एक निश्चित समय के लिये प्रतिनिधियों का चयन किया जाता है। हमारे देश के नागरिक निर्वाचन मे भाग लेकर अपने राजनीतिक अधिकार का प्रयोग करते है। भारत एक विशाल और बहुभाषी देश है। हमारे यहां सभी नागरिकों को समान रूप से चुनाव मे भाग लेने तथा प्रतिनिधि चुनने का अधिकार है। मताधिकार की यह प्रणाली सार्वजनिक वयस्क मताधिकार प्रणाली कहलाती है।
आज हम मताधिकार किसे कहते हैं? मताधिकार का अर्थ, मताधिकार की विशेषताएं और मताधिकार के सिद्धांतों का वर्णन करेंगें।

मताधिकार किसे कहते हैं? मताधिकार का अर्थ (matadhikar ka arth)

भारतीय संविधान की उद्देश्यिका से ज्ञात होता है कि जनता मे सम्प्रभुता का समावेश है। जनता अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से अपनी सम्प्रभुता का प्रयोग करती है। सरकार की सभी शक्तियों का स्त्रोत जनता होती है। नागरिक अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार रखते है। शासन का प्रबन्ध जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से होता हैं।
नागरिकों द्वारा अपना प्रतिनिधि चुनने के अधिकार को मताधिकार कहा जाता है। मताधिकार एक महत्वपूर्ण राजनैतिक अधिकार है। भारत मे 18 वर्ष की आयु प्राप्त वे सभी नागरिक जिनके नाम निर्वाचन नामावली मे होते है, मत देने का अधिकार रखते है। भारत मे सभी व्यक्तियों जिनकी आयु 18 वर्ष हो चूकी है उन नागरिकों को मताधिकार प्राप्त है। मताधिकार की यह प्रणाली सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार प्रणाली कहलाती है।
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार
देश के प्रत्येक वयस्क महिला तथा पुरूष को बिना किसी भेदवाद के मत देने का अधिकार सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार कहलाता है। इस प्रणाली मे एक निर्धारित उम्र पार करने के उपरांत देश के सभी पात्र नागरिकों को वोट देने का अधिकार प्राप्त हो जाता हैं।

मताधिकार की विशेषताएं 

1. प्रत्येक व्यक्ति के मत को समान महत्व मिलता है।
2. यह व्यवस्था समानता के सिद्धांत के अनुकूल है।
3. सभी नागरिक शासन मे भागीदारी करते है।
4. शासन के लोगों का शांतिपूर्वक परिवर्तन सम्भव है।
5. नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है।
6. नागरिकों मे आत्म सम्मान की भावना पैदा होती है।
लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के लिए यह एक गंभीर प्रश्न है कि मताधिकार का आधार क्या हो? क्या यह अधिकार राज्य के सभी नागरिकों को दिया जाए अथवा कुछ चुने हुए व्यक्तियों को? इस संदर्भ मे मताधिकार के निम्न सिद्धांत हैं----

मताधिकार के सिद्धांत (matadhikar ke siddhant)

1. जनजातीय सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को मताधिकार प्राप्त होना चाहिए। क्योंकि यह कोई विशेष अधिकार या सुविधा नही है वरन् यह प्रत्येक नागरिक के जीवन को प्रभावित करने वाला स्वाभाविक एवं सक्रिय हिस्सा है। यह विचार प्राचीन यूनाना रोम तथा कतिपय अन्य छोटे राष्ट्रों की सभाओं मे प्रचलित था, जहाँ हाथ उठाकर मतदान किया जाता था। आधुनिक युग मे मताधिकार के लिए नागरिकों की अनिवार्यता संभवतः इसी का प्रतिरूप है।
2. सामन्ती सिद्धांत
मताधिकार के इस सिद्धांत के अनुसार केवल उन्हीं लोगों को मताधिकार रहता है, जिनके पास सम्पत्ति हो। यह विचार मध्ययुग मे विशेषरूप से प्रचलित था जब मताधिकार को सम्मान का प्रतीक माना जाता था। आधुनिक युग मे अनेक राष्टों मे मताधिकार के लिए सम्पत्ति की अनिवार्यता इसी विचार पर आधारित है।
3. प्राकृतिक सिद्धांत
मताधिकार के प्राकृतिक सिद्धांत के अनुसार सरकार मनुष्य निर्मित संयत्र है। इसका आधार जनता की सहमति है। अतएव शासक को चुनने का अधिकार जनता का प्राकृतिक अधिकार है। 17 वीं तथा 18 वीं शताब्दी मे यह विचार विशेष लोकप्रिय हुआ।
4. वैधानिक सिद्धांत
वैधानिक सिद्धांत के अनुसार मताधिकार एक प्राकृतिक अधिकार नहीं वरन् राजनीतिक अधिकार है। यह निर्धारण करना राज्य का कार्य है कि किसे मताधिकार मिलना चाहिए। प्रत्येक सरकार अपनी परिस्थितियों और सामाजिक स्थिति के आधार पर इसका निर्धारण करती हैं।
5. नैतिक सिद्धांत
मताधिकार के नैतिक सिद्धांत के अनुसार मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए यह आवश्यक है कि उसे मताधिकार के माध्यम से यह निश्चित करने का अधिकार हो कि उनका शासन कौन करें। मताधिकार व्यक्ति मे राजनीतिक संवेदनशीलता को जन्म देता है तथा उसे सरकारी नीतियों तथा कार्यक्रमों के प्रति चैतन्य बनाता है।
6. सर्वव्यापी वयस्क मताधिकार
यह सिद्धांत लोकतांत्रिक राज्यों मे सबसे अधिक प्रचलित है। इस सिद्धांत के अनुसार राज्य के प्रत्येक वयस्क नागरिक को बिना किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार होता है। 17 वीं तथा 18 वीं शताब्दी मे प्राकृतिक अधिकारी और जनसंप्रभुता के वातावरण मे सर्वव्यापक मताधिकार की मांग ने जोर पकड़ा। इसमे वयस्कता का अधिकार सम्मिलित किया गया। वयस्कता कि आयु अमेरिका, ब्रिटेन, रूस और भारत मे 18 वर्ष है।
7. बहुल मताधिकार का सिद्धांत
आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं मे "एक व्यक्ति एक मत" का सिद्धांत सर्व-स्वीकृत है परन्तु विगत वर्षों मे बहुल मताधिकार की व्यवस्था भी अनेक राज्यों मे प्रचलित रही है। मताधिकार के इस सिद्धांत की मूल अवधारणा मे यह आग्रह है कि व्यक्तियों के मतों कि संख्या कुछ आधारों पर कम या अधिक होनी चाहिए।
8. भारीकृत मताधिकार का सिद्धांत
इस सिद्धांत मे मतों को गिना नही जाता वरन् उनका भार दिया जाता है। भार का अर्थ यहाँ महत्व से है अर्थात् सरकार के चयन मे किसी भी की विशिष्टता जैसे शिक्षा, धन या सम्पत्ति से विभूषित व्यक्ति के मत का भार एक आदमी से अधिक होना चाहिए।
स्त्रोत; समग्र शिक्षा, मध्यप्रदेश राज्य शिक्षा केन्द्र, भोपाल।
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