4/20/2023

उपन्यास के तत्व

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उपन्यास के तत्व 

उपन्यास के निम्नलिखित तत्व प्रायः सभी विद्वान स्वीकार करते हैं-- 

1. कथावस्तु,

2. पात्र और चरित्र-चित्रण, 

3. संवाद या कथोपकथन, 

4. देश-काल या वातावरण, 

5. भाषा-शैली, 

6. उद्देश्य।

1. कथावस्तु (घटनाक्रम) 

मूल कथा ही कथावस्तु कही जाती है। इस कथावस्तु की तीन अवस्थाएँ होती हैं, उदय, विकास तथा अंत। उपन्यास में वर्णित सभी घटनाएँ एकबद्ध होनी चाहिए। उनमें कहीं भी विश्रृंखला न आ जाए इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। कथानक के चुनाव की कोई भी सीमा नियत की जा सकती है। वह इतिहास, पुराण, जीवनी आदि कहीं से उद्धत किया जा सकता है, पर इस समय जीवन में स्वाभाविकता होने से जीवन से संबंधित उपन्यासों को ही ज्यादा चुना जाता हैं। इसके साथ ही उपन्यास का उद्देश्य मनोरंजन भी होना चाहिए। 

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2. पात्र और चरित्र-चित्रण 

उपन्यास का दूसरा महत्वपूर्ण तत्व या अंग पात्र और उनका चरित्र-चित्रण है। आज नायक के साथ अन्य पात्रों का उतना ही महत्व हैं, जो कथा को आगे बढ़ाते हैं। पात्र का चित्रण उसकी सभ्यता और सजीवता पर आधारित है। आदर्शवादी, यथार्थवादी और इतिहास-पुराण से जुड़े पात्र भी चरित्र के रूप में आज उपन्यास में महत्वपूर्ण हैं। प्रत्येक तरह के पात्र और उनका चरित्र-चित्रण समय के साथ बदल गये है। वर्तमान उपन्यासकारों ने हर काल के पात्रों को महत्व दिया है। ये पात्र कथा को जीवन्त बनाते हैं, जिसमें उनका चरित्र उभरकर सामने आ जाता हैं। 

3. संवाद या कथोपकथन 

कथोपकथन कथावस्तु के विकास एवं पात्रों के चरित्र-चित्रण में पूर्ण सहायक होता है। इससे कथावस्तु में नाटकीयता तथा सजीवता आ जाती हैं। प्रासंगिक घटनाएँ भी इसी के द्वारा प्रकाश में लाई जा सकती है। पात्रों की आंतरिक दशा का चित्रण भी अनुकूल होने चाहिए। पात्रों की भाषा में कृत्रिमता का पूर्णतया बहिष्कार कर देना चाहिए अन्यथा कथोपकथन सफल नहीं कहे जा सकेंगे।

4. देशकाल और वातावरण 

उपन्यासकार प्रारंभ में ही उस स्थिति का जिक्र कर देता है, जिससे स्थान एवं समय का आभास हो उठता है। पात्रों का चरित्र एवं एक के बाद एकw घटनाओं के वर्णनों को स्वाभाविक एवं यथार्थवादी बनाना देशकाल पर निर्भर है। देशकाल को वातावरण भी कहा जाता है, सामाजिक एवं समस्या-प्रधान उपन्यास में देशकाल के स्थान पर वातावरण का ही प्रयोग किया जाता है। वातावरण से कथा का प्रवाह बना रहता है, जिससे पात्र जीवन्त हो उठता हैं।

5. भाषा-शैली

भाषा शैली का उपन्यास के तत्वों में अपना प्रमुख और महत्वपूर्ण स्थान होता है। भाषा शैली ही उपन्यास को प्रारंभ से अंत तक पढ़ जाने की उत्सुकता और उमंग पाठक में जगाती है। 

भाषा और शैली यद्यपि अलग-अलग है किन्तु भाषा-शैली का अंग है और शैली भाषा का प्राण। भाषा कथा और उसके पात्रों को वाणी प्रदान करती है, शैली उस वाणी में अभिप्राय अर्थ की प्राण प्रतिष्ठा करती है। शैली कथा को कहने और प्रस्तुत करने तथा पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं और मनोभावों को चित्रित करने के ढंग से संबंध रखती है। शैली ही वास्तव में उपन्यास में मौलिकता के गुण का समावेश करती हैं। 

भाषा सरल, संजीव, पात्रोनुकूल, रोचक, मर्मस्पर्शी, प्रभावपूर्ण और प्रवाहमयी होनी चाहिए। 

शैली अनेक प्रकार की होती है जैसे वर्णनात्मक शैली, आत्मकथात्मक शली, पात्रात्मक शैली, डायरी शैली, जीवन शैली और मिश्रित शैली आदि। अधिकांश उपन्यास में एक साथ कई शैलियों का प्रयोग पाया जाता हैं।

भाषा शैली का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि इन्हीं माध्यम से लेखक अपने उपन्यास को प्रभावमय और मर्मस्पर्शी बनाता है और उसमें मौलिकता का समावेश करता हैं।

6. उद्देश्य

उपन्यास का का उद्देश्य निस्संदेह कथा के माध्यम से मनोरंजन जुटाना है परन्तु गहराई से देखें तो यह मनोरंजन साधन है, साध्य नहीं। उपन्यास का साध्य है जीवन की व्याख्या। समस्त साहित्य का संबंध जीवन से है, जीवन की अभिव्यंजना ही उपन्यास का प्रधान उद्देश्य है। उपन्यासकार जीवन की व्याख्या इस प्रकार सुंदर शैली में करता है कि वह सहज ग्राह्रा हो जाती हैं। 

उपन्यास लिखना भी अपने आप में एक उद्देश्य है। कोई लेखक उपन्यास तभी लिखता है जब वह किसी कथा, किन्हीं पात्रों और उनके जीवन रहस्यों से, जिनका परिचय या तो उससे हुआ है, या जिनका उदय जीवन के अनुभवों के आधार पर उसकी कल्पना में हुआ है, परिचय वह अपने से अन्य सबसे कराना चाहता है। उपन्यास की कथा की कल्पना की अपनी भोगी हुई अनुभूतियों का जब वह अन्यों के साथ मिलकर सहयोग करना चाहता है तो वह उपन्यास के रूप में उसे अभिव्यक्त कर सबके सहयोग योग्य बना देता है। अतः उद्देश्य उपन्यास का एक अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण तत्व हैं।

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