3/11/2023

सावित्रीबाई फुले का राजनीतिक चिंतन में योगदान,

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प्रश्न; सावित्री बाई फुले के राजनीतिक चिंतन में योगदान के बारे में लिखिए। 
अथवा" सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय देते हुए उनके द्वारा किये गये समाज सुधार के कार्यों का वर्णन कीजिए। 
उत्तर-- 

सावित्रीबाई फुले का राजनीतिक चिंतन में योगदान 

सावित्री बाई का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के नायगाँव में हुआ था। उस समय सामाजिक रूप से पिछड़े माली समुदाय में पैदा होने का मतलब महिला के लिए कोई शिक्षा नहीं थी। 9 साल की उम्र में जब उन्होंने ज्योतिबा फुले से शादी की तब वह अनपढ़ थी। ज्योतिबा उस समय 13 साल के थे और तीसरी कक्षा में पढ़ते थे। 
सावित्रीबाई फुले को शिक्षा का मार्ग उनके पति ज्योतिबा फुले के कारण मिला, जो सामाजिक असमानताओं को दूर करने के लिए महिला शिक्षा में दृढ़ता से विश्वास करते थे। वह परिवार के फरमान के खिलाफ घर पर ही अपनी पत्नि सावित्रीबाई को पढ़ाने लगे। 
जब सावित्रीबाई छोटी थी तब वह एक अंग्रेजी भाषा की किताब के पन्ने खींच रही थीं, तभी उनके पिता ने उनको देख लिया। उनके पिता ने उनके हाथों से किताब छीन ली और उसे यह कहते हुए दूर फेंक दिया कि वह कभी इसे फिर से कभी न छूए। उन दिनों इसे केवल उच्च जाति के पुरूषों का ही अध्ययन करने का अधिकार माना जाता था। सावित्रीबाई ने उस दिन प्रतिज्ञा की थी कि चाहे कुछ भी हो जाए, पढ़ना-लिखना सीखना हैं। 
अपने पति ज्योतिबा फुले से शिक्षा लेकर सावित्रीबाई ने महिलाओं में सामाजिक चेतना फैलयी। जिस समय सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा की ज्योति जलाई, उस समय लड़कियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता था। इसके बावजूद भी उन्होंने महिला शिक्षा के उद्देश्य को मंजिल तक पहुँचाया और इसके पश्चात् ही समाज से कुंठित वर्ग की महिलाएँ शिक्षा ग्रहण करने के लिए आगे गई। 
सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योतिबा गोविन्दराव फुले के साथ मिलकर स्त्री अधिकारों और शिक्षा के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय कार्य किये। महात्मा ज्योतिबा फुले को महाराष्ट्र ही नहीं भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। उनको महिलाओं और दलित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है। ज्योतिबा फुले सावित्रीबाई के पति ही नहीं उनके संरक्षक, गुरू और समर्थक भी थे। सावित्रीबाई फुले ने अपने जीवन को एक मिशन की भाँति जिया जिसका उद्देश्य विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं को मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित करना था। लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी। वे जब पढ़ाने के लिए स्कूल जाती थीं तब विरोधी उन पर गोबर और पत्थर फेंकते थे। उन पर गंदगी फेंक दे थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल जाकर गंदी हो चुकी साड़ी को बदल लेती थीं। 
उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों के बच्चों को पढ़ाया और कुल 18 स्कूल खोले। उन्होंने बलात्कार पीड़ितों और गर्भावस्था पीड़ितों के लिए बालहत्या प्रतिबंधक गृह नामक एक देखभाल केन्द्र भी खोला। सावित्रीबाई फुले भारत के प्रथम बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसीपल बनी थीं। उन्होंने विधवा विवाह की परम्परा शुरू की और अपनी संस्था के द्वारा पहला विधवा पुनर्विवाह 25 दिसंबर, 1873 को कराया। ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने 24 दिसंबर, 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की। ज्योतिबा फुले के देहान्त के पश्चात् 'सत्यशोधक समाज' के कार्यों को आगे बढ़ाने का उत्तरदायित्व सावित्रीबाई फुले ने संभाला।
ज्योतिबा और सावित्रीबाई की अपनी कोई संतान नहीं थी। उनका एक दत्तक पुत्र यशवंत था जिसने बेबोनिक प्लेग पीड़ितों के लिए काम करने के लिए एक क्लिनिक खोला। उस दौरान सावित्रीबाई फुले स्कूल का कार्य छोड़कर बीमारों की सहायता के लिए निकल पड़ी। एक प्लेग से प्रभावित बच्चे की सेवा के दौरान, वे स्वयं भी प्लेग की चपेट में आ गई थीं। इसी कारण 10 मार्च, 1897 को सावित्रीबाई फुले का देहान्त हो गया। 
सावित्रीबाई फुले पूरे भारत की महानायिका थीं। उन्होंने हर जाति और धर्म के लिए कार्य किया। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न केवल स्वयं पढ़ी बल्कि उन्होंने दूसरी लड़कियों को पढ़ने का भी प्रबंध किया। इसके लिए तत्कालीन सरकार ने उन्हें सम्मानित भी किया। सावित्रीबाई फुले को आधुनिक मराठी काल का अग्रदूत भी माना जाता है। वह अपनी कविताओं और लेखों के द्वारा सामाजिक चेतना की ही बात करती थीं। उनकी अनेक ऐसी कविताएँ हैं जिनसे पढ़ने-लिखने की और जाति बंधन तोड़ने और बाह्यण ग्रंथों से दूर रखने की प्रेरणा मिलती हैं।

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