6/27/2022

लोक प्रशासन के उदय/विकास के चरणों का वर्णन

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 प्रश्न; लोक प्रशासन के विकास के चरणों को बताइए। 

अथवा" लोक प्रशासन के उदय का वर्णन कीजिए।

अथवा" लोक प्रशासन के विकास पर प्रकाश डालिए। 

अथवा" लोक प्रशासन के उदय पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।

 उत्तर--

लोक प्रशासन के उदय अथवा विकास के चरण 

सामाजिक विज्ञानों में लोक प्रशासन अभी नया ही है। एक स्वतंत्र विषय के रूप में लोक प्रशासन के अध्ययन का इतिहास लगभग 135 वर्ष पुराना माना जाता है। सामाजिक विज्ञानों में यह एक नया विषय होने के बावजूद इसमें अनेक उतार-चढ़ाव आये हैं। अध्ययन की सुगमता के लिए लोक प्रशासन के विकास के इतिहास को निम्नलिखित पाँच चरणों में बाँटा जा सकता है-- 

प्रथम चरण; (1887-1926) राजनीति-प्रशासन द्विभाजन काल 

द्वितीय चरण; प्रशासन के सिद्धांतों का स्वर्ण काल (1927-1937) 

तृतीय चरण; चुनौतियों का काल (1938-1947)

चतुर्थ चरण; पहचान की संकट का काल (1948–1970 )

पंचम चरण; अन्तर्विषयक काल (1971 वर्तमान तक)

1. प्रथम चरण (1887-1926) राजनीति-प्रशासन द्विभाजन काल 

एक विषय के रूप में लोक प्रशासन का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ, तथा इसकी जन्मतिथि 1887 हैं। वुडरो विलसन (Woodrow Wilson), जो उस समय प्रिन्सटन यूनीवर्सिटी में राजनीतिशास्त्र के प्राध्यापक थे, इस शास्त्र के जनक माने जाते थे। उन्होंने 1887 में एक लेख प्रकाशित किया जिसका शीर्षक था प्रशासन का अध्ययन (The Study of Administration) इस लेख में उन्होंने राजनीति और प्रशासन को अलग-अलग बताया तथा कहा," एक संविधान की रचना सरल है पर इसको चलानि बड़ा कठिन हैं।" उन्होंने इसे 'चलाने' के क्षेत्र के अध्ययन पर बल दिया। आज विलसन की ख्याति दो कारणों से है। एक तो वे लोक प्रशासन शास्त्र के जनक माने जाते हैं; दूसरे वे राजनीति और प्रशासन के पृथक्करण में विश्वास रखते हैं।

राजनीति और प्रशासन के पृथक्करण के साथ एक दूसरा नाम जुड़ा हुआ हैं।  वह नाम हैं गुडनाउ (Frank j. Goodnow) का। गुडनाउ ने 1900 में अपनी पुस्तक राजनीति तथा प्रशासन (Political and Administration) लिखी, जिसमें उन्होंने तर्क दिया कि राजनीति राज्य-इच्छा को प्रतिपादित करती हैं, जबकि प्रशासन इस इच्छा या नीतियों के क्रियान्वयन से संबंधित हैं। इस समय अमेरिका में सरकार में सुधार के आंदोलन चल रहे थे। वहाँ की सरकार में काफी भ्रष्टाचार था, और ढीलापन भी कम न था। इस तरह के वातावरण में सुधार की लहर उठना स्वाभाविक था। अनेक विद्यालयों मे लोक प्रशासन का विषय खुलने लगा, और विद्वान इस क्षेत्र में लिखने-पढ़ने लगे। 1914 में अमेरीकी राजनीति विज्ञान संघ ने अपनी एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें कहा गया कि सरकार में काम करने के लिए दक्ष व्यक्तियों की पूर्ति करना राजनीतिशास्त्र के अध्ययन का एक लक्ष्य हैं। फलस्वरूप लोक प्रशासन राजनीति विज्ञान का एक प्रमुख अंग बन गया, और इसके अध्ययन का प्रसारण दिन दुगना और रात चौगुना बढ़ने लगा। इस चरण की प्रमुख विशेषताएं दो रही हैं; लोक प्रशासन का जन्म राजनीति और प्रशासन में पृथक्करण। 

1926 में लोक प्रशासन की प्रथम पाठ्य-पुस्तक प्रकाशित हुई। यह थी एल.डी. ह्यइट (L.D. White) की लोक प्रशासन के अध्ययन की भूमिका। (Introduction to the Study of Political Administration)। यह पुस्तक राजनीति और प्रशासन के पृथक्करण में आस्था रखती हैं, तथा इसके लेखक की यह मान्यता हैं कि लोक प्रशासन का मुख्य लक्ष्य दक्षता एवं मितव्ययता हैं।

2. द्वितीय चरण; प्रशासन के सिद्धांतों का स्वर्ण काल (1927-1937)  

यह काल लोक प्रशासन के सिद्धांतों का स्वर्ण-युग माना जाता है। इस काल में एक मूल्य मुक्त प्रबन्कीय विज्ञान का विकास हुआ। जिसका प्रारम्भ सन् 1927 में डब्ल्यू.एफ. विलोबी की प्रसिद्ध पुस्तक  "Principles of Administration Public" से माना जाता है। विलोबी ने कहा कि लोक प्रशासन में अनेक सिद्धांत होते है और इन सिद्धांतों को क्रियान्वित करके लोक प्रशासन में सुधार किया जा सकता है। इस दृष्टिकोण को आगे बढाने वाली उस समय की अन्य पुस्तक है, सन् 1924 में मेरी पार्कर फॉलेट की "Creative Experience" जिसमें प्रशासन में संघर्षों पर ध्यान केन्द्रित किया गया। सन् 1929 में हेनरी फेयोल की "General & Industrial management" नामक पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित किया गया जबकि वास्तविक रूप में यह पुस्तक 1916 में फ्रांसीसी भाषा में "General and Industrail Administration" के नाम से लिखी गई थी। सन् 1930 में मूने एंव रैले द्वारा रचित पुस्तक ऑनवर्ड इन्डस्ट्री (Onward Industry) जिसे 1939 में "Principles of Organisation" के नाम से प्रकाशित किया गया। सन् 1937 में लूथर गुलिक एवं एल. उर्विक नें  "Papers on the Scienceof Administration" नामक ग्रंथ का सम्पादन किया। इसी काल में लूथर गुलिक ने प्रशासनिक कृत्यों की व्याख्या पोस्डकॉर्ब (POSDCORB) नामक शब्द में संकलित किया। लगभग इस काल के सभी विचारकों का यह दावा था कि प्रशासन के सर्वव्यापी नियमों एंव सिद्धांतों की उपस्थिति इसे विज्ञान के समक्ष स्थापित करती है और इस चरण के दौरान लोक प्रशासन अपनी प्रतिष्ठा के शीर्ष स्थान पर पहुँचा।

3. तृतीय चरण (1938-1947) चुनौतियों का काल 

इस चरण में लोक प्रशासन के सामने कई चुनौतियां आई। चेस्टर बर्नाड जो स्वयं एक अनुभवी प्रशासक थे, उन्होंने अपनी पुस्तक "दी फक्सन्स ऑफ दी एक्जीक्युटिव" में मत व्यक्त किया कि प्रशासन में न तो कोई सिद्धांत होते हैं और न ही यह विज्ञान हो सकता हैं। हरवर्ट साइमन के विचार भी इसी प्रकार के थे। इन विद्वानों का मत था कि प्रशासन विज्ञान हो ही नहीं सकता क्योंकि विज्ञान मूल्य शून्य (Value Free) होता हैं जबकि प्रशासन में मूल्य बहुलता होती हैं। दूसरी बात मनुष्यों की प्रकृति एवं स्वभाव पृथक-पृथक होते हैं। उससे प्रशासन के कार्यों में विविधता आ जाती हैं। परन्तु बाल्डो का मत है कि इस काल में राजनीति तथा प्रशासन के मध्य परम्परागत पृथकता को समाप्त करके उनके गठबंधन को पुनः स्वीकार किया गया। प्रशासन में कार्यकुशलता के स्थान पर सामाजिक कार्यकुशलता को महत्‍व दिया जाने लगा तथा अब लोक प्रशासन के अध्ययन में सामाजिक व्यवहार के प्रभाव को भी स्वीकार किया जाने लगा। प्रशासकों से उपेक्षा की जाने लगी कि वे समूह तथा व्यक्तिगत मनोविज्ञान की जानकारी रखें।

4. चतुर्थ चरण (1948-1970) पहचान की संकट का काल 

इस चरण में लोक प्रशासन अपनी पहचान के संकट से जूझता रहा। विषय की सिद्धान्तवादी विचारधारा अविश्वसनीय प्रतीत होने लगी तथा इसका वैज्ञानिक स्वरूप भी वाद-विवाद का विषय बन गया। विषय को इस पहचान के संकट से उबारने के लिए मोटे तौर पर दो रास्ते अपनाये गये। कुछ विद्वान राजनीति शास्त्र की ओर मुखातिब हुए परन्तु राजनीतिशास्त्र में इस समय कुछ परिवर्तन आ रहे थे। लोक प्रशासन का राजनीति शास्त्र में जितना महत्व पहले था, उसमें गिरावट आ गयी। ऐसी अवस्था में यह विषय सौतेलापन व अकेलापन अनुभव करने लगा। दूसरे प्रयास में कुछ विद्वानों ने लोक प्रशासन को निजी प्रबन्धों के साथ जोड़कर प्रशासनिक विज्ञान बनाने का प्रयास किया। इन विद्वानों की यह मान्यता थी कि प्रशासन चाहे दफ्तरों में हो या कारखानों में दोनों ही क्षेत्रों में यह प्रशासन है। इसी प्रयास के अंतर्गत 1956 में 'एडमिनिस्ट्रेटिव साइंस क्वार्टरली' नामक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया गया। इस प्रयास में भी लोक प्रशासन को अपना निजी स्वरूप गंवाना पड़ा तथा इसे प्रबन्ध विज्ञान की ओर मुखातिब होना पड़ा। इस तरह दोनों ही प्रयासों के बावजूद लोक प्रशासन के पहचान का संकट  बरकरार रहा।

5. पंचम चरण (1971 से निरन्तर) अन्तर्विषयक काल 

पूर्व में लोक प्रशासन के विकास के चतुर्थ चरण ने लोक प्रशासन को काफी प्रभावित किया। हालाँकि यह अच्छा ही विचार था। कहते है कि मनुष्य चुनौतियों से महान् बनता हैं, ऐसे ही शास्त्र भी ऊँचे उठते हैं। लोक प्रशासन के साथ भी यही हुआ। इसका सर्वांगीण विकास होने लगा। अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, मानवशास्त्र आदि विज्ञान भी इसमें रूचि लेने लगे। जबकि लोक प्रशासन में राजनीतिशास्त्र के विद्यार्थी तो पहले से ही रूचि लेते थे। फलस्वरूप लोक प्रशासन अन्तर्विषयी (Inter-Disciplinary) बन गया। 

कालान्तर में प्रशासन को मुख्य रूप से किसी संगठन के भीतरी लोगों और उससे बाहर के लोगों के बीच निश्चित अवधि के भीतर होने वाली अनवरत अन्तःक्रिया की प्रक्रिया के रूप में देखा जाने लगा। इसी प्रकार लोक प्रशासन तथा निजी प्रशासन को अलग-अलग अध्ययन द्वारा एक ही संगठित विज्ञान में बदल देने की प्रवृत्ति उभरी, जिसके सिद्धांत और धारणायें दोनों पर समान रूप से लागू होते हैं। इसके साथ ही लोक प्रशासन के तुलनात्मक अध्ययन का विचार भी उभर कर सामने आया। नवीन लोक प्रशासन की धारणा ने लोक प्रशासन के अध्ययन को और अधिक समृद्ध बनाने की दिशा में सहायता की।

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