6/30/2022

पद-सोपान अर्थ, विशेषताएं, गुण एवं दोष

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पद-सोपान का अर्थ (padsopan kya hai)

padsopan arth paribhasha visheshtaye gun dosh;पदसोपान को शाब्दिक अर्थ मे ' श्रेणीबद्ध-प्रशासन ' कहते है। अंग्रेजी मे इसे ' हायराकी ' कहते है जिसका मतलब है ' निम्नतर पर उच्चतर का शासन अथवा नियंत्रण।' पद सोपान एक ऐसे संगठन का परिचायक होता है, जो पदों के एक उत्तरोत्तर क्रम के अनुसार सोपान अथवा सीढ़ी की भांति संगठित किया जाए। इसमे निम्मस्तरीय व्यक्ति उच्चस्तरीय व्यक्ति अथवा पदाधिकारी के प्रति उत्तरदायी रहते है। पदासोपानीय संगठन मे जैसे-- जैसे संगठन का ढांचा ऊपर पहुँचता है इसका आकार छोटा होता रहता है और इसका रूप ' पिरामिड ' के समान होता जाता है। 

फिफनर के शब्दों मे,"सत्ता और शक्ति के सूत्र जब ऊपर और नीचे एक सूत्र मे आबद्ध हो जाएँ, जिसमे आधार अधिक व्यापक तथा शीर्ष पर संकुचन हो; पद सोपान कहलाता है।"

डाॅ. एल. व्हाइट के शब्दों मे," कोई संगठन पदसोपान के सिद्धांत पर आधारित है-- यह कहने का तात्पर्य यह होता है कि उसमे सत्ता नीचे से शिखर की ओर चढ़ती चली जाती है। चूंकि इस पद्धति मे प्रशासकीय संरचना एक सीढ़ी के समान रहती है। इसमे समस्त कार्यवाही क्रमिक रूप मे अथवा ' चरणों की पंक्ति ' द्वारा होती है। पदासोपान का सबसे अधिक महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि ऊपर के पदाधिकारी कभी भी नीचे के साथ संपर्क स्थापित करते समय मध्यस्थ अधिकारी की उपेक्षा नही कर सकते।

पद सोपान शासन के प्रत्येक विभाग मे पाया जाता है। एक लिपिक प्रधान लिपिक के अधीन है, प्रधान लिपिक एक कार्यालय अधीक्षक के अधीन है तथा कार्यालय अधीक्षक अनुभाग अधिकारी के अधीन है आदि। पद सोपान व्यवस्था मे लिपिक को यदि अपनी बात अनुभाग अधिकारी तक पहुंचाना है तो वह सीधे न पहुंचाकर प्रधान लिपिक, कार्यालय अधीक्षक के माध्यम से पहुंचायेगा।

पद-सोपान की विशेषताएं या लक्षण (padsopan ki visheshta)

1. इसमे सत्ता का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर होता है। शिखर पर सर्वोच्च सत्ताधारी व्यक्ति होता है। जैसे-- जैसे संगठन के धरातल नीचे होते जाते है, सत्ता कम होती जाती है।

2. नीचे का कर्मचारी ऊपर के धरातल के अधिकारी के प्रति उत्तरदायी रहता है।

3. प्रत्येक कर्मिक का कार्य सुनिर्धारित है। वह दायित्व के अनुरूप ही कार्य करता है।

4. इसमें शिखर पर अधिकारियों की संख्या बहुत कम होती है। सामान्यतः सर्वोच्च शिखर पर केवल एक ही व्यक्ति होता है। जैसे- नीचे के धरातल पर आते जाते है, कर्मिक की संख्या अधिक होती जाती है।

5. ऐसे संगठनों की विभिन्न इकाइयां एक-दूसरे से अच्छी तरह सम्बद्ध, जुड़ी हुई और एकीकृत होती है, एक-दूसरे के साथ जंजीर की कड़ियों के समान बँधी रहती हैं।

6. संगठन की विभिन्न इकाइयों के कार्यों मे परस्पर समन्वय और तालमेल बना रहता है। सत्ता का अंतिम अधिकार सर्वोच्च शिखरस्थ अधिकारी के पास होता है, अतः वह उसकी विभिन्न इकाइयों द्वारा किये जाने वाले कार्यों और गतिविधियों मे बड़ी सुगमता से समन्वय स्थापित कर सकता है।

पद-सोपान प्रक्रिया के गुण (padsopan ke gun)

म्यूने के अनुसार," पदसोपान सिद्धांत संगठन का एक सार्वभौमिक सिद्धांत है।" यह व्यवस्था किसी भी संगठन के लिए अपरिहार्य और शाश्वत व्यवस्था है। पदासोपान व्यवस्था के गुण इस प्रकार है--

1. नेतृत्व की स्पष्टता 

क्रमिक व्यवस्था या पदसोपान पद्धति का सबसे महत्वपूर्ण गुण यह है कि संगठन मे कार्य करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को प्रधान सत्ता की स्पष्ट जानकारी रहती है। इस जानकारी का स्वाभाविक लाभ होता कि भ्रम और संदेह की गुंजाइश नही रहती और सत्ता द्वारा प्रसारित आदेशों को सरलता से ग्राह्रा किया जाकर उनका पालन स्वाभाविक रूप से किया जाता है।

2. उत्तरदायित्व की स्पष्टता 

पदसोपान सिद्धांत मे प्रत्येक कर्मचारी और अधिकारी का उत्तरदायित्व स्पष्ट होता है। प्रत्येक व्यक्ति यह जानता है कि संगठन मे उसकी क्या स्थिति और कार्य है? उसे किस पद्धति से तथा किसके अधीन कार्य करना है? 

3. कार्यकुशलता का सिद्धांत 

यह प्रणाली स्पष्ट उत्तरदायित्व तथा कार्य विभाजन के सिद्धांत पर आधारित है। स्वाभाविक है कि इस अवस्था मे अधिकारी के पास कार्य छँटकर पहुंचता है। छोटी-छोटी समस्याओं का निराकरण निचले स्तर पर हो जाने के कारण अधिकारी के समय की बचत होती है।

4. उद्देश्य तथा कार्य की एकता

पदसोपान व्यवस्था मे संगठन के उद्देश्य तथा आदेश की एकता विद्यमान रहती है। इसका आश्य यह है कि संगठन के उद्देश्य क्या है? तथा उस तक कैसे व किस प्रकार पहुँचना? यह सबको ज्ञात रहता है।u

5. शक्तियों का प्रत्याधिकरण 

इस प्रक्रिया मे उच्च अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को अपनी बहुत सी शक्तियां हस्तांतरित अथवा प्रत्यायोजित कर देता है। इससे सत्ता का विकेन्द्रीकरण हो जाता है और निचले स्तर पर अधिकारियों/कर्मचारियों द्वारा निर्णय लेने से वरिष्ठ का कार्यभार हल्का हो जाता है।

6. समग्रीकरण 

पदसोपान के संगठन की इकाइयां परस्पर जुड़ी और गुँथी रहती है। इस प्रकार वे परस्पर सुसम्बद्ध रहती है।

7. हर कार्य मार्ग से 

पदसोपान की पद्धति ने उचित मार्ग प्रणाली को जन्म दिया। एक अच्छे प्रशासन के लिए यह अनिवार्य ही है कि निम्म स्तरीय कर्मचारी सीधे वरिष्ठ या वरिष्ठतम से सीधी वार्ता न करे। इस पद्धति मे कार्यालय मे उचित मार्ग के सिद्धांत को अपनाया जाता है।

8. समन्वय 

पदसोपान व्यवस्था मे चूंकि सत्ता के सारे सूत्र वरिष्ठ अधिकारी के पास रहते है; अतः वह विभाग की कार्यवाहियों मे समन्वय करने मे सफल हो जाता है तथा उनमे परस्पर तालमेल बिठा सकता है।

9. नेतृत्व का विकास 

पदसोपान के द्वारा प्रशासनिक नेतृत्व का विकास होता है। उदाहरण के लिए-एक उपसचिव अपने अधीन कार्यरत लोगों को नेतृत्व देता है और उसके अधीन कर्मचारी ठीक प्रकार से काम करते हुए तथा अपने उत्तरदायित्वों को समझते हुए समय बीतने के साथ ऊँचे पदों तक पहुँचते है। इस तरह कर्मचारियों के व्यक्तित्व के विकास के साथ ही उनमे नेतृत्व का भी विकास होता है।

पद सोपान व्यवस्था के दोष (padsopan ke dosh)

सामान्य रूप से उपरोक्त गुणों के होते हुए भी कुछ ऐसी कठिनाईयाँ है जो पदसोपान को घेरे हुए है या जो उसे दोषपूर्ण व्यवस्था के रूप मे प्रस्तुत करती है। पदसोपान व्यवस्था के दोष इस प्रकार हैं--

1. कार्य मे देरी 

कार्य मे देरी इस पद्धति से दूर ना की जा वाली बुराई है। इस पद्धति मे कार्य उचित माध्यम की तकनीक से होता है तथा उचित माध्यम हमेशा विलम्बकारी होता है। किसी भी फाइल को नीचे से ऊपर पहुँचने मे बहुत देर लगती है क्योंकि फाइल पर हर स्तर पर अनावश्यक टीप लगती है।

2. लालफीताशाही एवं नौकरशाही 

प्रशासन मे जब कभी नियमों के अनुसार कार्य होता है तो लोकसेवक सबसे पहिले उसका सहारा लेकर अपने गुप्त मंतव्यों की पूर्ति करने के लिये प्रयासरत रहता है। सामान्य रूप से कहा जा सकता है कि इस प्रणाली मे लालफीताशाही, अफसरशाही एवं भ्रष्टाचार को जन्म मिलता है।

3. निर्णय मे देरी 

इस पद्धति मे निर्णय चूँकि ऊपर से होने होते है; अतः निचले स्तर पर कार्य के प्रति कोई रूचि नही रहती। उनमे पहल करने की इच्छा समाप्त हो जाती है। यह परिस्थिति स्वयं कर्मचारी के विकास मे भी बाधक बनती है।

4. औपचारिक संबंध 

यह पद्धति नियम कानून पर ज्यादा बल देती है। फलस्वरूप यहाँ कार्यक्रम मे लचीलापन न आकार कठोरता आ जाती है। यहाँ सौहार्द्रपूर्ण  तथा प्रेममय संबंध का विकास नही हो नही पाता। प्रशासन के कर्मियों के आपसी संबंध मशीन के पूर्जे की भांति के हो जाते है तथा उनमे परस्पर सद्भावना या सहयोग दिखाई नही पड़ता।

5. असमानता पर आधारित 

पद सोपान व्यवस्था का सबसे बड़ा दोष यह है कि यह असमानता पर आधारित है। इसमें विभाग का संगठन नीचे से ऊपर कई धरातलों पर किया जाता है। ऊपर के धरातल वालि व्यक्ति अपने नीचे के धरातल वाले व्यक्ति को छोटा समझता है। सारा विभाग छोटे-बड़े की भावना से ग्रस्त रहता हैं, विभाग में असमानता रहती है। बड़े अधिकारी अपने लिए सुविधाएँ जुटाये रहते हैं। 

6. भ्रष्टाचार 

पद सोपान पद्धति द्वारा लोक प्रशासन में कठिनाई तो आती ही है, भ्रष्टाचार में भी वृद्धि होती हैं। विभाग नीचे से ऊपर तक कई धरातलों में बँटा रहता हैं। कार्य को सरलता से कराने के लिए सभी धरातलों पर रूकावट को पार करना पड़ता हैं। इससे भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन मिलता है एवं भ्रष्टाचार में वृद्धि होती हैं।

7. अक्षमता को प्रोत्साहन 

कई विद्वान यह मानते हैं कि पद सोपान पद्धित से विभागों की अक्षमता में वृद्धि होती हैं। यद्यपि कार्य का विभाजन कर दिया जाता है तथापि निर्णय लेने की शक्ति केवल विभागीय शिखर पर ही होती है। इससे सही निर्णय लेने में तथा समस्याओं के समाधान में बहुत कठिनाइयाँ होती हैं। परिणाम स्वरूप विभागों में अक्षमता को प्रोत्साहन मिलता हैं।

निष्कर्ष 

पद सोपान पद्धति या व्यवस्था में दोषों की अपेक्षा गुण अधिक है। इस व्यवस्था मे यह सुनिश्चित एवं स्पष्ट हो जाता है कि कौन किसके अधीन है तथा कौन किसकों आदेश देगा। इससे संगठन के उद्देश्य की पूर्ति मे बहुत सहायता मिलती है। इसलिए सैनिक और नागरिक दोनों प्रकार के संगठनों मे इस पद्धति को सर्वत्र अपनाया गया है। उरविक के शब्दों मे," प्रत्येक संगठन मे पद सोपान व्यवस्था ठीक उसी प्रकार आवश्यक है, जिस प्रकार घर मे नाली।" डाॅ. एम. पी शर्मा के अनुसार," संगठन की इसी व्यवस्था के अनुसार प्रत्येक सदस्य को यह पता लग जाता है कि उसे किन सीढ़ियों से होकर चढ़ना या उतरना है।"

शायद यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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