विकेंद्रीकरण का अर्थ (vikendrikaran kya hai)
किसी भी संस्था के आकार में वृद्धि होने से नियंत्रण में कठिनाई आती है। ऐसी स्थिति में उच्च अधिकारी अपने कुछ अधिकार अपने अधीन कर्मचारियों को सौंप सकता है, परन्तु फिर भी उच्च अधिकारी का दायित्व बना रहता है। उच्च अधिकारियों के कार्य-भार में कमी करने के लिये विकेन्द्रीकरण किया जाता है। विकेन्द्रीकरण भारार्पाण का एक सुधरा हुआ रूप है।
विकेन्द्रीकरण से अभिप्राय निर्णय लेने के अधिकार को व्यवस्थित ढंग से ऐसे व्यक्तियों को सौंपने से है जिनका उच्च निर्णयों से प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्ध हो। विकेन्द्रीकरण की अवस्था में, केवल उन थोड़ें से अधिकारों को छोड़कर जो केन्द्रीय अधिकारियों के पास सुरक्षित रहने आवश्यक हैं, शेष समस्त अधिकार, व्यवस्थित ढंग से, उन अधिकारियों को सौंप दिये जाते हैं, जो विभिन्न कार्यो को करने के लिये उत्तरदायी हैं। विकेन्द्रीकरण की स्थिति में अधीनस्थ कर्मचारियों का महत्व बढ़ जाता है, क्योंकि वे किसी न किसी स्तर पर निर्णय लेने के अधिकारी होते हैं। संक्षेप में, जब किसी उच्चाधिकारी द्वारा अधीनस्थ कर्मचारी को अधिक मात्रा में अधिकारों का भारार्पण की तुलना में अधिक होता है जिसके अंतर्गत निम्न स्तरों को लगभग सभी अधिकारों व्यवस्थित रूप से सौंप दिये जाते हैं।
विकेन्द्रीकरण के निम्म पांच पक्ष है--
1. सत्ता का विकेन्द्रीकरण इस ढंग से किया जाये कि अधीनस्थ कर्मचारियों को अपने विवेक के अनुसार काम करने के लिये अधिकाधिक क्षेत्र मिले और ऊपर मुख्य अधिकारी के पास अपेक्षाकृत कम से कम मामले निर्णय के लिये भेजे जायें। (प्रशासनिक)
2. संगठन के अंगों को अधिकाधिक शक्ति का हस्तांतरण और मुख्य दफ्तर के हाथ मे नियंत्रण के कुछ आवश्यक अधिकार ही बचे रहें। (प्रशासनिक)
3. निर्वाचित अंगो के पास अधिक शक्ति और प्रशासन मे जनता का अधिकाधिक सहभाग हो।
4. मुख्य कार्यालय से दूर और जनता के निकटस्थ स्थानीय इकाइयों या अभिकरणों को स्वतंत्रता प्राप्त हो। (भौगोलिक)
5. कार्य संबंधी अनेक विभागों को व्यावसायिक स्वायत्तता। (कार्यपरक)
वर्तमान युग मे प्रशासकीय जटिलताएं इतनी बढ़ गई है कि प्रशासकीय कार्यों का एक स्थान ही स्थान पर होना संभव नही है। विकेन्द्रिकरण सत्ता, शक्ति और उत्तरदायित्व को इस आधार पर विभाजित करता है कि मुख्यालय एवं क्षेत्रीय इकाईयों को समन्वित इकाइयों की तरह कार्य करने का सहज अवसर मिलता है।
विकेंद्रीकरण की परिभाषा (vikendrikaran ki paribhasha)
हेनरी फेयोल के अनुसार, ‘‘सहायकों की भूमिका को बढ़ाने के लिए जो भी कदम उठाये जाते हैं वे सब विकेन्द्रीकरण में आते है।‘‘
ऐलेन के अनुसार, ‘‘विकेन्द्रीकरण का संबंध उन अधिकारों जो केवल केन्द्र बिन्दूओं पर व्यवहार में लाए जा सकते हैं, के अतिरिक्त समस्त अधिकारियों को निम्नतम स्तर तक संपादित करने के व्यवस्थित प्रयत्नों से है।‘‘
कार्ल पी स्ट्रांग के अनुसार, ‘‘विकेन्द्रीकरण का अर्थ कार्यो तथा क्रियाओं के एक समूह को संबंधित सार्वभौमिक इकाइयों में विभाजन करता है जिसमें प्रत्येक इकाई के प्रमुख को इसके परिचालन के लिए सभी अधिकार व दायित्व दिए जाते हैं।‘‘
ई.एफ.एल के अनुसार, ‘‘विकेन्द्रीकरण अधिकार सौंपने के फलस्वरूप मिलने वाले दायित्वों का आकार होता है।‘‘
कूण्ट्ज एवं औनेल के अनुसार, ‘‘अधिकार का विकेन्द्रीकरण भारार्पण का प्राथमिक पहलू है। तथा जिस सीमा तक अधिकारों का भारार्पण नहीं होता है वे केन्द्रित हो जाते है।‘‘
विकेन्द्रीकरण के लक्षण या विशेषताएं (vikendrikaran ki visheshta)
1. आंशिक रूप से सत्ता का हस्तांतरण क्षेत्रीय कार्यालयों को।
2. स्थानीय एवं आंचलिक समस्याओं के बारे मे क्षेत्रीय तथा स्थानीय कार्यालयों को निर्णय लेने का अधिकार।
3. जनता के सहयोग से कार्य विशेषकर स्थानीय जनता का सहयोग।
4. प्रशासकीय निर्णयों को लागू करना।
5. उत्तरदायित्व के साथ सत्ता का जुड़ाव।
6. विकेन्द्रीकरण भारार्पण का प्रथम चरण है।
7. विकेन्द्रीकरण अधीनस्थों की भूमिका को महत्वपूर्ण बनाता है।
8. यह संगठन में ऊपर से नीचे तक अर्थात् सम्पूर्ण संगठन में लागू होने वाली प्रक्रिया है।
9. इसमें उत्तरदायित्वों के अनुपात में अधिकारों का हस्तान्तरण किया जाता है।
10. विकेन्द्रीकरण एक दर्शन है, मस्तिष्क की, अभिवृत्ति है तथा प्रबन्ध तक पहुंच है।
11. विकेन्द्रीकरण प्रबंध की एक तकनीक है। तकनीक के रूप में विकेन्द्रीकरण संगठन की एक विधि है, जो कि सत्ता का वितरण करती है।
अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा अपने कार्य सम्बन्धी निर्णय जितनी ही अधिक संख्या में लिये जाते हैं, संस्था में विकेन्द्रीकरण की मात्रा उतनी ही अधिक समझी जाती है। विकेन्द्रीकरण उच्च अधिकारियों का कार्यभार कम करने के लिये प्रबंधकों का नया वर्ग तैयार करने व प्रेरणा का विकास करने के लिये किया जाता है।
एलेन के अनुसार," इस व्यवस्था मे केन्द्र के पास कुछ ही सत्ता को छोड़कर शेष सत्ता निम्न स्तर तक विभाजित कर दी जाती है। विकेन्द्रीकर मे प्रश्न सत्ता के उपयोग के साथ उत्तरदायित्व का भी रहता है।
विकेन्द्रीकरण के गुण अथवा महत्व (vikendrikaran ke gun)
जो दोष हमे केन्द्रीय शासन व्यवस्था मे देखने को मिलते है, विकेन्द्रीकरण मे स्वतः मुक्ति मिल जाती। विकेन्द्रिकृत व्यवस्था का महत्व अथवा गुण इस प्रकार है--
1. उच्च अधिकारियों के भार में कमी
विकेन्द्रीकरण के द्वारा उपक्रम के कार्यो में नियंत्रण, नियोजन व निर्देशन लाया जा सकता है उच्च अधिकारी अपना पूरा ध्यान वर्तमान में प्रयोजन के लिए लगाता है ताकि वह वर्तमान में लाभांश ले सकें। इस प्रकार उच्च अधिकारियों के भार में कमी आ जाती है।
2. कर्मचारियों को उच्च पद के लिए प्रेरणा एवं मनोबल
विकेन्द्रीयकरण में अधीन कर्मचारियों को स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार होता है एवं उन्हें निश्चित क्षेत्र के कार्य सौंप कर व उत्तरदायित्व बनाकर उन्हें प्रेरणा दी जाती है। जिससे उनके मनोबल में सुधार होता है।
3. विविधीकरण की सुविधा
एक व्यक्ति का नियंत्रण केवल इसी दशा में उचित माना जाता है जब उपक्रम में निर्मित होने वाली वस्तुओं की संख्या सीमित हो। एक व्यक्ति अनेक समस्याओं पर ध्यान नहीं दे सकता है इसमें विभिन्न प्रबंधकों को विभिन्न वस्तु की समस्या से संबंधित अधिकार सौपे जाते हैं और वही प्रबंधक उन समस्याओं का समाधान करता है। इसी प्रकार विविधीकरण की सुविधा प्राप्त होती है।
4. प्रबंधकीय व्यक्तियों के गुणों का विकास
विकेन्द्रीकरण प्रबंधक कर्मचारियों को प्रत्येक प्रकार की जानकारी देकर अपने उद्देश्य की प्राप्ति करता है। विकेन्द्रीकरण में कर्मचारियों को नियोजन बनाने का पूर्ण अधिकार होता है तथा वे स्वतंत्र रूप से निर्णय भी ले सकते हैं, जिससे उच्च अधिकारी पर किसी प्रकार का कोई भार न पड़े। संबंध के लिए विकेन्द्रीकरण आवश्यक साधन है।
5. इससे उचित समन्वयता आती है
विकेन्द्रीकरण से समन्वय में सुविधा होती है। क्योंकि एक व्यक्ति द्वारा लिए गए निर्णयों की अपेक्षा अधिक व्यक्तियों द्वारा लिए गए उपक्रम के लिए अधिक प्रभावशाली होते है।
6. यह प्रभावी नियंत्रण रखता है
विकेन्द्रीकरण में सभी विभाग अपने कार्यो कर्मचारियों पर अपना पूरा नियंत्रण रखते हैं। समय≤ पर वे अपने कार्यो का नियंत्रण करके लाभांश कमाते है।
7. यह निर्णय लेने में सुविधाजनक है
इस प्रणाली के अंतर्गत निर्णय लेने की शक्तियों को उस व्यक्ति को प्रत्यायोजन करनी चाहिए जिसने असल में कार्य करना है जब भी निर्णय लेने की जरूरत होगी वह एक दम बिना देरी से निर्णय ले लेगा।
8. प्रजातंत्र प्रणाली का विकास
विकेन्द्रीकरण के अंतर्गत हर कर्मचारी को सोचने, तथा निर्णय लागू करने की आजादी अपने स्तर पर होनी चाहिए, इससे संगठन में प्रजातांत्रिक तथा हेल्दी वातावरण पैदा होगा। यहां पर हेरिंग तथा सेरिंग की अवधारणा का उपयोग होना चाहिए।
विकेन्द्रीकरण के दोष (vikendrikaran ke dosh)
विकेन्द्रीकरण के अन्य दोष इस प्रकार है--
1. क्षेत्रीय अधिकारियों की स्वेच्छाचारिता बढ़ जाती है।
2. शासकीय कार्यों पर स्थानीय राजनीति का प्रभाव पड़ता है।
3. विभिन्न क्षेत्रों मे अलग-अलग प्रकार की प्रशासकीय इकाईयाँ होती है। इससे देश की एकता खंडित होती है।
4. क्षेत्रीय हितों के चक्कर मे कई बार कर्मचारी राष्ट्रीय हितों को भी तिलांजलि दे देता है जो घातक है।
5. उत्तरदायित्व के विभाजित होने का आशय होता है; किसी का भी उत्तदायित्व नही।
6. राजनैतिक गुटबाजी को प्रोत्साहन मिलता है।
7. धप और समय की बर्बादी होती है क्योंकि प्रशासन का दोहरापन होता है।
विकेन्द्रीकरण को प्रभावित करने वाले घटक
विकेन्द्रीकरण को निम्नलिखित घटक प्रभावित करते हैं--
1. यदि संगठन का आकार बड़ा है तो कुछ क्रियाओं का विकेन्द्रीकरण करना आवश्यक हो जाता है।
2. विशाखन तथा विक्षेपण के कारण भी विकेन्द्रीकरण आवश्यक हो जाता है।
3. प्रशिक्षित प्रबन्धकों की उपलब्धि विकेन्द्रीकरण को प्रभावित करती है।
4. व्यवसाय की गत्यात्मकता भी विकेन्द्रीकरण को प्रभावित करती है।
5. मुख्य अधिशासी का व्यक्तिगत नेतृत्व विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्ति को अधिकाधिक प्रभावित करता है।
6. प्रबन्ध की आधुनिक तकनीकी भी विकेन्द्रीकरण के विस्तार को प्रोत्साहित करती है।
7. प्रबन्ध के मध्य स्तरों में शिक्षित एवं महत्वाकांक्षी लोगों की संख्या अधिक होने पर भी विकेन्द्रीकरण की प्रकृति को प्रोत्साहन मिलता है।
Hlo
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