5/18/2022

शक्ति संतुलन के लाभ/गुण, दोष/हानियां

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शक्ति संतुलन के गुण अथवा लाभ (shakti santulan ke labh)

शक्ति संतुलन के निम्‍नलिखित लाभ हैं--

1. शांति बनाए रखने में सहायक 

यह माना जाता है कि शक्ति संतुलन से संसार के विभिन्न भागों में सामंजस्य स्थापित हो जाता है। शक्ति संतुलन हो जाता है। सभी पक्ष लगभग एक समान शक्तिशाली होने के कारण युद्ध नहीं करते। इससे शक्ति संतुलन शांति स्थापित करने में सहायक होता हैं। 

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2. छोटे राज्यों की सुरक्षा 

शक्ति संतुलन से छोटे राज्य भी किसी न किसी शक्तिशाली राज्य के साथ सैनिक संधि द्वारा या किसी अन्य रूप से जुड़ जाते हैं। इससे छोटे व शक्तिहीन राज्य भी अपनी सुरक्षा करने में सफल होते हैं। 

3. अन्तर्राष्ट्रीय कानून के पालन में सहायक 

यह माना जाता है कि शासन सन्तुलन के कारण शांति का वातावरण बनता है। इससे राज्यों के बीच संबंधों का सामान्यीकरण होता है। इससे अन्तर्राष्ट्रीय कानून का पालन होता हैं। 

4. व्यापार व्यवसाय में वृद्धि 

शक्ति संतुलन के कारण राज्यों के मध्य तनाव तो रहता हैं, पर सामान्यतः युद्ध नहीं होता। तनाव शैथिल्य की अवस्था में राज्यों के बीच व्यापार व्यवसाय में वृद्धि होती है। जो छोटे राज्य शक्तिशाली राज्यों के संपर्क में आते हैं, उनके आर्थिक विकास में भी सहायता मिलती हैं। 

शक्ति संतुलन के दोष/हानियाँ  (shakti santulan ke dosh)

शक्ति संतुलन के निम्‍नलिखित दोष हैं-- 

1. तनाव में वृद्धि

शक्ति संतुलन के नाम पर प्रत्येक पक्ष अपनी शक्ति में वृद्धि करता रहता हैं। उसकी दृष्टि में शक्ति संतुलन तभी स्थापित होता है, जब शक्ति का पलड़ा उसकी ओर झुके। अतः सभी राज्य अपनी-अपनी शक्ति बढ़ाने में लगे रहते हैं। इससे संसार के अनेक भागों में तनावों में वृद्धि होती हैं। 

2. शस्त्रीकरण की दौड़ 

शक्ति संतुलन स्थापित करने के लिए सभी राज्य अपनी शक्ति बढ़ाने लगते हैं, तो इसका परिणाम यह होता है कि राज्यों के बीच शस्त्रीकरण की होड़ लग जाती है, अत्यंत घातक शस्त्रों का निर्माण होने लगता है। आज स्थिति यह है कि परमाणु शस्त्रों के निर्माण के बाद अब राष्ट्रपति रेगन अन्तरिक्ष में भी युद्ध को ले गये है। इसे 'स्टार वार' कहा जाता हैं। प्रतिदिन करोड़ों डालर संसार के विनाश पर खर्च किये जाने लगे हैं। 

3. छोटे राज्यों का उपयोग 

शक्ति संतुलन स्थापित करने के लिए शक्तिशाली राज्य छोटे राज्यों को अपनी 'गोट' बनाते रहते हैं। अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए वे छोटे राज्यों का उपयोग करते हैं। महाशक्तियाँ छोटे राज्यों पर सैनिक संधियाँ लादती है, उनका विभाजन करती हैं, उनके भीतर तोड़-फोड़ करती हैं।

4. शक्ति संतुलन एक कल्पना 

सामान्यतः यह मान लिया जाता है कि शक्ति सन्तुलन स्थापित हो गया। परन्तु, शक्ति संतुलन को नापने की कोई विधि नहीं हैं। यह केवल एक कल्पना मात्र हैं। एक काल्पनिक स्थिति की दोड़ में राष्ट्र दौड़ते रहते हैं। 

5. शक्ति सर्वोच्च नहीं हैं 

शक्ति संतुलन की अवधारणा यह है कि शक्ति ही सर्वोच्च हैं, वास्तव में शक्ति ही सर्वोच्च नहीं हैं। अन्तर्राष्ट्रीय जगत में शक्ति के अतिरिक्त अनेक ऐसे तत्व हैं, जो रक्षा करते हैं और राज्यों के संबंधों को सहज बनाते हैं। 

क्या शक्ति संतुलन का सिद्धांत वास्तव में पुराना पड़ गया हैं? 

पामर और पारकिन्स इस निष्कर्ष को स्वीकार नहीं करते। उनकी मान्यता है कि विचारधारा तथा शक्ति-संतुलन आवश्यक रूप में एक-दूसरे के विरोधी तत्व नहीं हैं। अतः प्रो. कारलेटन का यह कथन ग्राह्रा नहीं है कि," विचारधारायें राष्ट्रीय सीमा को लांघ चुकी है और राष्ट्रवाद का गठबंधन एक सामान्य विचारधारा के प्रति आस्था से हो गया है। इससे, राष्ट्रीय नीति के रूप में शक्ति संतुलन पुराना पड़ गया हैं।" पामर तथा पार्किन्स मानते हैं कि विचारधारा औथ शक्ति संतुलन मिलकर नये राष्ट्रवादी दृष्टिकोण को उभार रहे है। आज के राजनयिक संबंधों की गतिविधियों में भी शक्ति संतुलन ही मूल्‍य बना हुआ है, पर दोनों की विचारधारा और शक्ति संतुलन को नये अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों के ढाँचे में समन्वित किया जा सकता है। पामर तथा पर्किन्स कहते है कि जब तक अधिराष्ट्रीय स्तर का कोई शक्तिशाली अन्तर्राष्ट्रीय संगठन नहीं उभरता तब तक शक्ति संतुलन सक्रिय रहेगा। ऐसे अधिर्राष्ट्रीय विश्व संगठन को सबल बनाने हेतु सबल अन्तर्राष्ट्रीय कानून और सबल विश्व जनमत की शक्ति को उभारना होगा। फिलहाल ये दूर की सम्भावना ही हैं। 

शक्ति संतुलन का सिद्धांत आज की जटिल अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में अभी भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह तब तक महत्वपूर्ण बना रहेगा जब तक कि कोई विश्व संस्था चाहे वह संयुक्त राष्ट्र संघ ही क्यों न हो एक बहुत शक्तिशाली संस्था का रूप नहीं प्राप्त कर लेती हैं। हम सभी यह जानते है कि ऐसा संभव होना अभी निकट भविष्य में नही दिखता है। अतः शक्ति संतुलन की आवश्यकता तथा महत्व निरन्तर बना रहेगा। हाँ, यह एक अन्य बात है कि इसका महत्व पहले जैसा नहीं रह गया है। इसकी उपयोगिता में भी कमी आयी है। यह सैद्धांतिक तथा व्यावहारिक दोनों ही रूपों में सत्य कि यदि शक्ति का व्यापक रूप से वितरण व संतुलन हो तो युद्ध को लम्बे समय तक के लिये टाला जा सकता हैं। लेकिन यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि शक्ति संतुलन युद्धों को टालने की रामबाण औषिधि नहीं हैं।

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