5/17/2022

राष्ट्रीय शक्ति के तत्व, सीमाएं/प्रतिबंध लगाने वाले तत्‍व

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प्रश्न; राष्ट्रीय के निर्धारक तत्वों पर संक्षेप मे प्रकाश डालिए। 

अथवा" राष्ट्रीय शक्ति की सीमायें बताइए। 

अथवा" राष्ट्रीय शक्ति के तत्व के रूप में भूगोल, प्राकृतिक साधन, जनसंख्या की भूमिका समझाइए। 

अथवा" राष्ट्रीय शक्ति पर प्रतिबंध लगाने वाले तत्‍वों का विवेचन कीजिए। 

उत्तर‌--

राष्ट्रीय शक्ति के निर्धारक तत्व 

rashtriya shakti ke tatva;किसी भी राष्ट्र या देश की राष्ट्रीय शक्ति कई तत्वों पर निर्भर करती है, जिन्हें राष्ट्रीय शक्ति के निर्धारक तत्व या अवयय भी कहा जाता है। कोई भी एक तत्व राष्ट्रीय शक्ति का निर्धारण नहीं करता है, बल्कि कई कारकों से मिलकर राष्ट्रीय शक्ति का निर्माण होता है। कुछ तत्व निरंतर परिवर्तनशील होते हैं जबकि कुछ तत्व अपेक्षाकृत स्थिर रहते हैं। राष्ट्रीय शक्ति के कुछ तत्व हैं जिनका मापन संभव हैं, जबकि कुछ का मापन संभव नहीं है। उनका केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है। 

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राष्ट्रीय शक्ति के तत्वों को विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग ढंग से वर्गीकृत किया हैं, जो निम्नानुसार हैं-- 

विलियम एब्रिन्सटीन ने राष्ट्रीय शक्ति को जनसंख्या, कच्चे माल व अन्य साधनों के योग से भिन्न माना हैं। एक राष्ट्र की शक्ति केवल मात्रात्मक न होकर गुणात्मक होती हैं।" 

मार्गेन्थाऊ, पहला, सापेक्षतया स्थायी तत्व दूसरा, अस्थायी तत्व अर्थात् निरंतर परिवर्तित होने वाले तत्‍व। 

पामर तथा पर्किन्स के अनुसार," प्रथम, गैरमानवीय तत्व-- भूगोल, प्राकृतिक साधन। द्वितीय, मानवीय तत्व-- इसमें तकनीकी ज्ञान, जनसंख्या, विचारधारा, मनोबल व नेतृत्व को सम्मिलित किया हैं।" 

राष्ट्रीय शक्ति के तत्वों को मोटे तौर पर तीन भागों में बाँटा जा सकता हैं--

(अ) प्राकृतिक  

भौगोलिक विशेषताएं, प्राकृतिक साधन व जनसंख्या। 

(ब) सामाजिक 

आर्थिक विकास, राजनीतिक ढाँचा व राष्ट्रीय मनोबल। 

(स) प्रत्ययात्मक 

इनमें नेतृत्व, बुद्धि और दूरदर्शिता आते हैं। 

इन आधारों पर राष्ट्रीय शक्ति के निर्धारक तत्वों को गैर-मानवीय व मानवीय तत्वों के रूप में बताया जा सकता हैं, जो निम्नानुसार हैं--

(अ) राष्ट्रीय शक्ति के गैर-मानवीय तत्व

राष्ट्रीय शक्ति के गैर-मानवीय तत्व निम्नलिखित हैं--

1. भूगोल 

भूगोल भी देश की राष्ट्रीय शक्ति में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। कई विद्वान तो भूगोल को ही राष्ट्रीय शक्ति के रूप में देखते हैं। भूगोल के राष्ट्रीय शक्ति से सम्बन्धित चार बातें अतिमहत्वपूर्ण हैं-- 

(क) क्षेत्रफल या आकार, 

(ख) स्थलाकृति, 

(ग) स्थिति तथा 

(घ) जलवायु। 

(क) क्षेत्रफल/आकार 

किसी भी देश का बड़ा आकार उसको शक्तिशाली बनाने के महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कोई भी महाद्वीपीय आकार का देश ही बड़ी शक्ति का रूप धारण कर सकता है न कि कोई छोटे से क्षेत्रफल का देश। लेकिन यदि यह बड़ा आकार रेगिस्तान, घने जंगल, बर्फीला प्रांत है तब यह राष्ट्रीय शक्ति बढ़ाने में सक्षम नहीं होता। परन्तु यदि यह क्षेत्र रहने के योग्य हैं तभी इस आकार का लाभ हो सकता है बड़ा आकार सैन्य व गैर सैन्य दोनों स्थितियों में राष्ट्रीय शक्ति का विस्तार करता है। सैन्य रूप से बड़े आकार के कई सैनिक लाभ हैं। युद्ध के समय देश की सेना को पीछे भी हटना पड़े तो यह सम्भव है। इसी प्रकार इससे सामरिक गहनता भी प्राप्त होती है। अतः लम्बे युद्धों को चलाने व उनमें अपनी सुरक्षा हेतु बड़ा आकार सहायक सिद्ध होता है। 

गैर सैन्य रूप से भी बड़ा आकार कई सन्दर्भों में राष्ट्र की शक्ति बढ़ाता है। इसके अंतर्गत एक बड़ी जनसंख्या के भरण पोषण की व्यवस्था उचित प्रकार से की जा सकती है बड़े क्षेत्रफल वाले राष्ट्रों मे प्राकृतिक खनिजों एवं संसाधनों की उपलब्धिता की सम्भावनाएं अधिक रहती है। इसके अतिरिक्त इसमें उद्योग को राज्य के विभिन्न भागों में होने से युद्ध के समय राष्ट्र सम्पूर्ण विनाश से बच सकता है। राष्ट्र का युद्ध में नुकसान होने पर भी कुछ आबादी व उद्योग धन्धे बाद में भी सुरक्षित बच जाते हैं। अतः एक बड़ा राज्य अवश्य ही शक्तिशाली बनने की सम्भावनाए रखता है। 

(ख) स्थलकृति 

किसी भी देश की स्थलाकृति भी उसे शक्ति बनाने में सहायक और रुकावट बन सकती है। किसी देश की भूमि पहाड़ी व दूरगम्य है या पैदावार वाला भूमिगत मैदान या बर्फ से ढका प्रान्त है यह उसे लाभ/हानि की स्थिति में रख सकता है। द्वितीय स्थलाकृति के आधार पर ही सीमाओं का आकलन की स्थिति निर्भर करती है। क्या इस प्रदेश की प्रकृतिक सीमाएँ है या अस्पष्ट सीमाएं है इस प्रकार उसकी सुरक्षा सम्बन्धी दबाव निर्भर करता है। तृतीय क्या एक राष्ट्र समुद्र से सीधे लगा हुआ है या वह एक भू-बद्ध राष्ट्र है जो अपने समुद्री मार्ग हेतु किसी अन्य पर निर्भर करता है। इस बात पर भी उसके शक्तिशाली बनने की क्षमता पर सीधा असर पड़ता है। अन्ततः उसका बाह्य विश्व से किस प्रकार के रिश्ते हैं यह भी निर्भर करता है उसकी स्थलाकृति पर क्योंकि उससे पड़ोस की ओर जाने के मार्ग सरल है, व्यापार सम्भव है या नहीं, आदि इस मुद्दे को काफी हद तक प्रभावित करते हैं। 

(ग) स्थिति 

राष्ट्र शक्ति के सन्दर्भ में उसकी स्थिति भी महत्वपूर्ण होती है। प्रथम किसी भी राष्ट्र की भूमध्य रेखा से दूरी व नजदीकी के कारण वहां के जलवायु, जनसंख्या, मौसम आदि पर सीधा असर पड़ता है। यह सुखद एवं कष्टदायक दोनों की स्थिति पैदा कर सकता है। द्वितीय, किसी राष्ट्र की स्थिति उसकी विदेश नीति को भी निर्धारित करती है। अन्ततः किसी राष्ट्र की स्थिति ही उसके सामरिक महत्व को कम या ज्यादा कर सकती है। अतः किसी भी राष्ट्र की स्थिति यदि उचित होगी तो उसके बड़ी शक्ति बनने की क्षमताएं बनी रहती हैं। 

(घ) जलवायु 

जलवायु किसी भी राष्ट्र शक्ति बनने में हम भूमिका निभाती है किसी राष्ट्र के उत्पादन, जनसंख्या, मानव संसाधन आदि का विकास सम्भव है। यदि किसी राष्ट्र की जलवायु वहां की आबादी के रहने उद्योग करने, फलने-फूलने के लायक नहीं है तो वह राज्य एक बड़ी शक्ति नहीं बन सकता। बड़े-बड़े रेगिस्तान, ठंडे पड़े क्षेत्र, तापमान की अधिकता व अपेक्षाकृत नमी वाले क्षेत्रों में रेगिस्तान ठंडे पड़े क्षेत्र में राष्ट्रीय मानव संसाधन, वनस्पति उद्योग आदि का विकास सम्भव नहीं है। इसके लिए उपयुक्त जलवायु का होना अति आवश्यक है। वर्तमान सन्दर्भ में यह तर्क भी दिया जाता है कि विज्ञान के विकास ने प्रकृति की इन चुनौतियों पर कुछ हद तक विजय प्राप्त कर ली है। परन्तु यह तर्क एक दो दस व्यक्तियों या कुछ चन्द्र क्षेत्रों के विकास में शायद सहायक हो सके लेकिन सम्पूर्ण राष्ट्र के संदर्भ में सफल नहीं हो सकता है इसके अतिरिक्त प्राकृतिक स्थितियों का मानव व विज्ञान सीमित उपाय ढूंढ सकता है लेकिन उसकी विपरीत दिशा में ज्यादा देर तक नहीं टिक सकता। 

अतः किसी भी देश का आकार, स्थलाकृति, स्थिति व जलवायु सम्बन्धित भौगोलिक परिस्थितियां सहायक हो तभी उस राष्ट्र के शक्तिशाली बनने की सम्भावनाएं बनी रहती है।

2. प्राकृतिक 

संसाधन एक राष्ट्र में प्राकृतिक संसाधनों की बहुलता और संपन्नता का होना भी राष्ट्रीय शक्ति का एक महत्वपूर्ण निर्धारक तत्व है। किसी राष्ट्र के प्राकृतिक संसाधनों के अंतर्गत खाद्यान्न, भूमि, जल, वन-संपदा और खनिज पदार्थ जैसे- लोहा, कोयला, कच्चा तेल (पेट्रोलियम), प्राकृतिक गैस, यूरेनियम, थोरियम इत्यादि सम्मिलित होते हैं। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अरब देशों की महत्वपूर्ण स्थिति का कारण वहां कच्चे तेल के विशाल भंडार की उपलब्धता है हालांकि, उसके बाद भी यह राष्ट्र महाशक्ति नहीं बन पाए। उसका कारण वैज्ञानिक और तकनीकी शक्ति के अभाव में कच्चे तेल का अन्वेषण, शोधन, विक्रय की क्षमता का कम होना रहा है इन देशों पर अमेरिका जैसी महाशक्ति का प्रभाव बना हुआ है। वर्तमान में सेंट्रल एशिया की राष्ट्रों में प्राकृतिक गैस और यूरेनियम, थोरियम जैसे खनिज पदार्थ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, जो परमाणु ऊर्जा के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसी कारण से विश्व की महाशक्तियां जैसे- अमेरिका, रूस और चीन उन राष्ट्रों में अपना प्रभुत्व स्थापित करने की होड़ में लगी हुई हैं, जिससे वे उन राष्ट्रों के प्राकृतिक संसाधनों का अपने लाभ के लिए का दोहन कर सके क्योंकि यह खनिज पदार्थ सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। 

खनिज पदार्थों के अलावा खाद्यान्न भी राष्ट्रीय शक्ति के लिए एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। इसलिए मार्गेथाऊ ने भी कहा था खाद्यान्न में आत्मनिर्भर राष्ट्र, बेहतर स्थान पर है उन राष्ट्रों के मुकाबले जो दूसरे राष्ट्रों से खाद्यान्न का आयात करते हैं। चीन, अमेरिका और भारत सबसे अधिक खाद्यान का उत्पादन करने वाले देश है।

(ब) राष्ट्रीय शक्ति के मानवीय तत्व 

राष्ट्रीय शक्ति के मानवीय तत्व निम्नलिखित हैं--

1. जनसंख्या 

भूगोल और प्राकृतिक संसाधनों की भांति किसी राष्ट्र की जनसंख्या भी राष्ट्रीय शक्ति के निर्धारण में एक महत्वपूर्ण तत्व है। जनसंख्या का आकार किसी राज्य की आर्थिक और सैन्य क्षमता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। चीन इसका उदाहरण प्रस्तुत करता है, जिसने अपनी विशाल जनसंख्या का लाभ उठाते हुए अपनी जनसंख्या को विभिन्न आर्थिक और वैज्ञानिक गतिविधियों में लगाकर आर्थिक विकास को तीव्र गति दी। 

हालांकि तकनीकी और वैज्ञानिक प्रगति ने जनसंख्या के महत्व को कम करने का कार्य किया है। जहां कुछ विद्वान यह मानते हैं कि एक विशाल जनसंख्या के बिना एक बड़ी शक्ति विशेष रूप से महाशक्ति बनने की कल्पना करना मुश्किल है, वहीं दूसरी तरफ बहुत से विशेषज्ञ यह मानते हैं कि यह मानना गलत है कि जनसंख्या का आकार जितना विशाल होता है, राज्य की शक्ति उतनी ही अधिक होती है। ब्रिटेन की जनसंख्या भारत और चीन जैसे देशों की तुलना में कम होते हुए भी अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक लंबे समय तक इसका प्रभाव महत्वपूर्ण बना रहा है।

2. सैन्य क्षमता 

एक शक्तिशाली राष्ट्र के पास अपने संसाधनों एवं क्षमता के अनुरूप सैन्य शक्ति का होना भी आवश्यक है यह सैन्य क्षमता न अधिक बड़ी तथा न ही अधिक छोटी होनी चाहिए, बल्कि उस राष्ट्र की विदेश नीति की प्रतिबद्धताओं को लागू करने में सक्षम होनी चाहिए। यह सेना पूर्ण रूप से प्रशिक्षित एवं उचित समन्वय के आधार पर कार्य करने वाली होनी चाहिए। इस सन्दर्भ में राष्ट्र की सैन्य क्षमता तीन प्रमुख तत्वों- सैन्य नेतृत्व, गुप्तचरी व्यवस्था एवं हथियारों की उपलब्धता पर निर्भर करती है। 

किसी राष्ट्र की सेना कितनी ही सुसज्जित हो, बड़ी संख्या में हो, अच्छे हथियार रखती हो आदि, परन्तु यदि उसका नेतृत्व कुशल हाथों में है तो अपने उद्देश्य में सफल होगी वरना असफल रहेगी। कुशल सामरिक रणनीति व स्थिति के अनुसार सैन्य संचालन से ही कोई भी सेना सही अर्थों में अपनी चुनौतियों का मुकाबला कर सकती है। आधुनिक युग में सैन्य कौशल के साथ-साथ दूसरे राष्ट्र की तैयारियों का अनुमान भी अतिआवश्यक होता है यह कार्य राष्ट्रों की गुप्तचारी सेवाओं में सैन्य कौशल के साथ-साथ राष्ट्र की तैयारियों का अनुमान भी अतिआवश्यक होता है। यह कार्य राष्ट्रों की गुप्तचरी सेवाओं के माध्यम से होता है। वर्तमान में गुप्तचरी आधुनिक संयंत्रों जैसे उपग्रहों आदि के माध्यम से भी होती है, परन्तु आज भी मानवीय तत्वों के द्वारा की जाने वाली गुप्तचरी को नहीं नकारा जा सकता। गुप्तचरी की विफलता भी कई बार सैन्य हार या पेरशानी का कारण हो सकता है भारत-चीन युद्ध (1962)  व भारत-पाक कारगिल संघर्ष (1998) काफी हद तक गुप्तचरी व्यवस्था की असफलता का प्रतीक है। इन दोनों तत्वों के अतिरिक्त हथियारों की उपलब्धता भी सैन्य शक्ति प्रदर्शन हेतु महत्वपूर्ण तत्व है वर्तमान समय में परमाणु हथियारों के विकसित होने से कई राष्ट्रों का मानना है कि सुरक्षा सुनिश्चित हो गई है लेकिन वास्तव में देखा जाए तो परमाणु जैविक एवं रासायनिक हथियार मुख्यतः निरोधक व्यवस्था हेतु अधिक प्रयोग होते हैं। ये हथियार युद्ध से अधिक राजनय के हथियार हैं लेकिन यह भी सत्य है कि ये आज भी शक्ति के प्रतीक के रूप में माने जाते हैं तथा इनको रखने वाले राष्ट्रों से युद्ध करने से पहले विरोधी राष्ट्र को कई बार सोचना पड़ता है। इसके साथ-साथ यह भी निश्चित है कि वास्तविक युद्ध आज भी अति आधुनिकतम परम्परागत हथियार ही प्रयोग में लाये जाते हैं। 

अतः किसी भी शक्तिशाली राष्ट्र के पास कितने ही जैविक, परमाणु व रासायनिक हथियार हों, परन्तु परम्परागत हथियारों में श्रेष्ठता होना उसके लिए अति आवश्यक है।

3. विदेश नीति

राष्ट्रीय शक्ति के विकास में विदेश-नीति का महत्वपूर्ण स्थान है। वर्तमान युग में सभी राष्ट्रों को परस्पर सहयोग की आवश्यकता होती है। विदेश-नीति की सफलता-असफलता का निर्णय इस आधार पर होता है कि संबंधित राष्ट्रों को किन-किन देशों का समर्थन व सहयोग मिलता हैं। विदेश-नीति का निर्माण किस आधार पर किया जावे, यह बात विवादास्पद है। कुछ अन्य विद्वानों का मत हैं कि विदेश-नीति के निर्धारण के समय अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। उपयुक्त यही होगा कि विदेश-नीति के क्षेत्र में मध्यम मार्ग अपनाया जावे। राष्ट्रीय-शक्ति के विकास में राजनयिकों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहता हैं।

4. प्रौद्योगिकी 

विज्ञान के व्यावहारिक ज्ञान का नाम प्रौद्योगिकी हैं। तकनीकी के अंतर्गत आविष्कार और वे सभी साधन आते है, जो राष्ट्र की भौतिक समृद्धि में सहायक होते हैं। तकनीक का अर्थ है नई पद्धतियों का प्रयोग। यह एक तरह से पुराने तौर-तरीकों पर नूतन तौर तरीकों की विजय है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को सैनिक तकनीक, औद्योगिक तकनीक व संचार तकनकी ने सर्वाधिक प्रभावित किया है। तकनीक पर देश की सुरक्षा और औद्योगिक तकनीक पर राष्ट्र की आय एवं देश की औद्योगिक संरचना निर्भर हैं। संचार तकनीकी ने देश के विकास हेतु वस्तुओं व विचारों का आदान-प्रदान संभव बना दिया हैं। तकनीकी के कारण एक राष्ट्र अपनी मान्यताओं, लक्ष्यों को बदल देता है। इससे जनसंख्या, आर्थिक तत्व, मनोबल आदि प्रभावित होते हैं। यह विदेश नीति को प्रभावित कर उसमें क्रांतिकारी परिवर्तन करती हैं तथा राष्ट्रीय निर्माण का प्रमुख साधन हैं। 

आज तकनीक ने विश्व को इतना छोटा बना दिया है कि या तो दुनिया के लोग मिलकर सहयोग करें या अपने को समाप्त करने का रास्ता पकड़ लें।

5. औद्योगिक क्षमता

औद्योगिक क्षमता राष्ट्र की महान शक्ति कहलाती हैं। औद्योगिक स्तर पर परिवर्तन शक्ति स्तर में भी परिवर्तन कर देता है  औद्योगिक क्षमता के बिना कच्चे माल का कोई महत्व नही होता है। कच्चे माल को औद्योगिक उत्पादन में बदलना जरूरी है। जब तक औद्योगिक राष्ट्र के रूप में ब्रिटेन का कोई प्रतिद्वन्द्वी नहीं था, तब तक वह संसार में सर्वाधिक शक्तिशाली राष्ट्र था। अमेरिका व रूस का महाशक्ति होना उनकी औद्योगिक क्षमता ही हैं और इनकी शक्ति का मापन भी हम औद्योगिक क्षमता के आधार पर ही करते हैं।

6. मनोबल

राष्ट्रीय शक्ति का एक सूक्ष्म परन्तु प्रभावशाली तत्व मनोबल है। मनोबल का अर्थ है किसी राष्ट्र के निवासियों में निष्ठा, विश्वास साहस आदि चारित्रिक गुणों का योग हैं। इन गुणों से न केवल व्यक्ति का आत्मविश्वास ही बढ़ता है अपितु इससे राष्ट्रीय हितों को भी बल मिलता है। कोई भी राष्ट्र तब तक सुचारू रूप से कार्य नहीं कर सकता जब तक उसकी आन्तरिक व विदेश नीतियों को पूरे जोश व जन समर्थन हासिल न हो। 

इसके द्वारा ही मनुष्य आपसी मतभेदों को भुलाकर स्वेच्छापूर्वक राष्ट्रीय हितों हेतु बड़े से बड़ा बलिदान देने के लिए तैयार हो जाता है। इसी मनोबल के आधार पर राष्ट्र अपनी संदिग्ध विजय को निश्चित जीत में बदल सकता है। इसे राष्ट्र प्रेम के समकक्ष भी माना जाता है। इसके सैनिकों में संचार से राष्ट्र बड़े-बड़े युद्ध भी जीत लेता है। वर्तमान युग में युद्ध जहां केवल सैनिकों तक सीमित न रहकर प्रत्येक नागरिक को भी शामिल करता है। उस दृष्टि से मनोबल और अधिक महत्वपूर्ण बन गया है। मनोबल युद्ध से ही नहीं, अपितु शान्तिकाल में भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है। 

राष्ट्रीय मनोबल बढ़ाने का प्रमुख रूप से चार कारक उत्तरदायी होते हैं--- 

(क) राष्ट्र के साथ तादात्म्य, 

(ख) राष्ट्रीय गौरव की अनुभूति 

(ग) सरकार में विश्वास 

(घ) विचारधारा 

राष्ट्रीय तादात्म्य से अभिप्राय है कि नागरिक किस सीमा तक उस राष्ट्र से अपने को जुड़ा हुआ महसूस करता है। अपने गौरवमय इतिहास को पहचानता व उसी प्रकार गौरव बढ़ाना हेतु प्रयासरत रहना राष्ट्रीय गौरव की अनुभूति कराता हैं। सरकार में विश्वास से उसका मनोबल और अधिक बढ़ जाता है। अन्ततः विचारधारा लोगों में दृढ़ता, एकता व मनोबल को जागृत करती है। इस प्रकार विभिन्न तरीकों से मनोबल भी राष्ट्रीय शक्ति में सहायक होता है।

7. नेतृत्व 

लोकप्रिय व कुशल नेतृत्व राष्ट्रीय-शक्ति का आधारभूत तत्व है। सही नेतृत्व के द्वारा राष्ट्र के नागरिकों का मनोबल ऊँचा होता है। नेतृत्व का महत्व युद्धकाल व शांतिकाल दोनों में समान रूप से होता हैं, परन्तु युद्धकाल में यह बढ़ जाता हैं। नेतृत्व का राष्ट्र के मनोबल के साथ गहरा संबंध हैं। राष्ट्र के मनोबल पर नेता का व्यक्तित्व गहरा प्रभाव डालता है। किसी-किसी नेता के प्रति जन-साधारण की अटूट निष्ठा होती है। जैसे-- भारत-पाक युद्ध के समय श्रीमती इंदिरा गाँधी के प्रति भारत की जनता की अटूट निष्ठा थी। राष्ट्र के मनोबल को बढ़ाने में नेता का प्रभाव बहुत सहायक होता हैं।

राष्ट्रीय शक्ति की सीमाएं/राष्ट्रीय शक्ति पर प्रतिबंध लगाने वाले तत्‍व 

rashtriya shakti ki simaye;स्वतंत्र और सम्प्रभुता संम्पन्न अन्तर्राष्ट्रीय जगत की इकाइयाँ हैं। ये सभी राष्ट्र हितों के अनुसार ही व्यवहार करते हैं और उसी के अनुसार शक्ति का प्रयोग भी करते हैं। फिर भी ये मनमानी करने के लिए स्वतंत्र नहीं होते है। इन पर विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्थाओं के सम्मान की जिम्मेदारी होती है। शक्ति का निरंकुश प्रयोग या मनमानी नहीं कर सकते हैं। राष्ट्रीय शक्ति की निम्नलिखित सीमायें हैं--

1. अंतरराष्ट्रीय कानून

अंतरराष्ट्रीय कानून राष्ट्रीय शक्ति को सीमित करने का कार्य करते हैं। यह नियमों की एक व्यवस्था के रूप में राष्ट्र राज्यों पर बाध्यकारी रूप में लागू होते हैं। वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय कानूनों का दायरा और प्रभाव में वृद्धि हुई है। हालांकि राष्ट्र की शक्ति को सीमित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून की व्यवस्था को एक लचीली व्यवस्था समझा गया क्योंकि राष्ट्र राज्य एक संप्रभु निकाय हैं। अतः उन पर बाध्यकारी शक्ति का प्रयोग संभव नहीं है। किंतु वर्तमान में बहुत से राष्ट्र पर अंतरराष्ट्रीय कानूनों के द्वारा उनकी शक्ति को सीमित करने का कार्य हुआ हैं।

2. अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता 

अंतर्राष्ट्रीय शक्ति को सीमित करने वाले तीसरा बाहरी तत्व है। जिस प्रकार समाज में मानवीय व्यवहार को नियंत्रित करने के लिये कुछ नैतिक नियम होते हैं। उसी प्रकार अंतर्राष्ट्रीय वातावरण में राज्यों के व्यवहार को परिसीमन करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता होती है। शांति, व्यवस्था, समानता, अच्छाई, आपसी सहयोग, सभी लोगों के जीवन और उनकी स्वतंत्रता की समानता ऐसे मूल्य हैं जिन्हें प्रत्येक राज्य को एक अधिकार अथवा अच्छे मूल्य के रुप में स्वीकार कर लेना चाहिये और उनको व्यवहारिक रुप देना चाहिये। अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता व्यवहार की ऐसी नैतिक संहिता है जिसका पालन प्राय : सभी देश अपने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में करते हैं। यह नैतिक भावना प्रत्येक देश की राष्ट्रीय शक्ति का परिसीमन करने वाला एक तत्व बनती है। 

3. विश्व जनमत 

अंतर्राष्ट्रीय शक्ति को सीमित करने वाला चौथा तत्व है। विदेश नीति के लोकतंत्रीकरण व संचार क्रांति ने समकालीन अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में एक संगठित व शक्तिशाली विश्व जनमत को जन्म दिया है। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में यह एक महत्वपूर्ण तत्व बनकर उभरा है। संसार में शांति आंदोलन, परमाणु शस्त्रों का नियंत्रण के लिये आंदोलन, पृथ्वी के वातावरण संतुलन की सुरक्षा के लिये शक्तिशाली व स्वस्थ्य वातावरण आंदोलन तथा ऐसे ही अनेक दूसरे आंदोलन हैं जिनसे विश्व जनमत के अस्तित्व का पता चलता है। राष्ट्रीय शक्ति का परिसीमन करने के लिये यह एक बड़ी तेज़ी से उभरती हुई शक्ति है। विपरित जनमत के डर से कई बार किसी देश को किसी विशेष नीति का अनुसरण करना छोड़ना पड़ता है। वैसे विश्व जनमत की अपनी कुछ सीमाएँ हैं, यह अक्सर शक्तिशाली व आक्रमक राष्ट्रवाद की भावना से लोहा लेने में असमर्थ हो जाता है।

4. अन्तर्राष्ट्रीय संगठन 

प्रथम विश्व-युद्ध के बाद राष्ट्रसंघ की स्थापना हुई और द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारंभ होने पर राष्ट्रसंघ असफल हो गया। 1945 में संयुक्त राष्ट्रसंघ (U.N.O) की स्थापना हुई, जो अब तक कार्यरत हैं। 193 देश इसके सदस्य हैं। इसके चार्टर में कुछ उद्देश्यों की चर्चा की गयी है जिन्हें प्राप्त करने के लिए सदस्य देश वचनबद्ध हैं। राष्ट्रों से यह आशा की जाती है कि वे अपनी शक्तियों का प्रयोग संयुक्त राष्ट्रसंघ के चार्टर में दिये गये आदेशों के अनुसार करें। 

5. सामूहिक सुरक्षा

अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में राष्ट्रीय शक्ति को नियंत्रित करने, शांति स्थापना व आक्रमण निवारण में सामूहिक सुरक्षा की अवधारणा विशिष्ट महत्व रखती हैं। इस व्यवस्था के अंतर्गत विभिन्न राष्ट्र सामूहिक रूप से किसी सम्भावित आक्रमण का सामना व विरोध करने के लिए कृत संकल्प हो इकट्टे हो जाते हैं। यह सामूहिक सुरक्षा व्यवस्थापन की एक युक्ति हैं। युद्ध अन्तर्राष्ट्रीय समाज से समाप्त नहीं किया जा सकता, किन्तु इस सामूहिक सुरक्षा के द्वारा शक्ति के मनमाने उपयोग पर नियंत्रण की कोशिश करते है जो युद्ध का मूल कारण हैं। इस तरह सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था किसी राष्ट्र की शक्ति पर बहुत बड़ी सीमा हैं।

6. शक्ति संतुलन 

राष्ट्रीय शक्ता पर सीमा के रूप मे शक्ति संतुलन एक महत्वपूर्ण तथ्य है। कोई भी राष्ट्र इसकी अवहेलना नही कर सकता है। इस शक्ति संतुलन से अर्थ उस साम्यावस्था से होता है कि कोई राष्ट्र इतना अधिक शक्तिशाली न हो कि वह मनमानी कर सके, अपनी इच्छा दूसरे पर लाद सके। विश्व में शक्तिशाली राष्ट्र भी शक्ति संतुलन के पक्ष में ही रहते है। यह शक्ति संतुलन परिवर्तनशील हैं। विश्वशांति के लिए राष्ट्रों पर शक्ति संतुलन का दबाव होना जरूरी हैं। दबाव के कारण कोई राष्ट्र कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, अपनी शक्ति का मनमाना प्रयोग नहीं कर सकता, उसे शक्ति संतुलन व्यवस्था का सम्मान करना ही होता हैं।

7. निःशस्त्रीकरण व शस्त्र नियंत्रण 

किसी देश की राष्ट्रीय शक्ति को सीमित करने में निःशस्त्रीकरण व शस्त्र नियंत्रण को रखा जाता है। सैनिक शक्ति राष्ट्रीय शक्ति का एक बड़ा आयाम है इसलिये शस्त्रीकरण इसका अपरिहार्य भाग है। नि:शस्त्रीकरण तथा शस्त्र नियंत्रण को राष्ट्रीय शक्ति के परिसीमन के लिये एक विधि माना जाता है। शस्त्र नियंत्रण का अर्थ है शस्त्र दौर पर अंकुश लगाना विशेषतया परमाणु शस्त्रों की दौर को अंतर्राष्ट्रीय निर्णयों, नीतियों व योजनाओं द्वारा रोकने का प्रयत्न करना। शस्त्र नियंत्रण तथा नियंत्रण की दिशा में जितनी सफलता मिलेगी उतना ही राष्ट्रीय शक्ति का परिसीमन हो सकेगा।

निष्कर्ष 

उपरोक्त सीमाओं के अध्ययन से स्पष्ट है कि किसी देश की राष्ट्रीय शक्ति पर अनके सीमाएँ विद्यमान होती है। वह अपना प्रभाव मनमाने ढंग से उपयोग नहीं कर सके और यह सब होना विश्व-शांति, विकास और समृद्धि के लिए बहुत जरूरी भी है। प्रत्येक राष्ट्र शक्तिशाली बने, किन्तु दूसरों को रौंद कर नहीं। आज मानवता के अस्तित्व के लिए भी इनका होना एक अनिवार्यता हैं।

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