प्रश्न; गुट-निरपेक्षता की विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
अथवा" गुट-निरपेक्षता की विशेषताएं बताते हुए, गुटनिरपेक्षता आन्दोलन की प्रासंगिकता बताइए।
अथवा" गुट-निरपेक्ष आंदोलन के महत्व का विवेचन कीजिए।
अथवा" गुट-निरपेक्षता आंदोलन की प्रासंगिकता की विवेचना कीजिए।
उत्तर--
गुटनिरपेक्षता की विशेषताएं (gutnirpekshta ki visheshta)
गुटनिरपेक्षता नीति की निम्नलिखित विशेषताएं हैं--
1. पाँच सिद्धांतों पर आधारित
गुटनिरपेक्षता नीति 5 सिद्धांतों पर आधारित हैं। 1961 में गुटनिरपेक्षता आंदोलन के तीन कर्णधारों पंडित जवाहरलाल नेहरू, नासिर व टीटो ने इसके 5 आधारों को स्वीकार किया हैं--
(अ) जिसकी स्वतंत्र विदेश नीति पर हो।
(ब) जो राष्ट्र किसी सैनिक गुट का सदस्य नहीं हो।
(स) जो किसी महाशक्ति से द्विपक्षीय समझौता न करता हो।
(द) सदस्य देश उपनिवेश का विरोध करता हो।
(ई) जो अपने क्षेत्र में किसी महाशक्ति को सैनिक अड्डा बनाने की अनुमति न देता हो।
<2. स्वतंत्र नीति का पालन
गुटनिरपेक्षता स्वतन्त्र नीति का पालन करने में विश्वास करती है। उसका मानना है कि गुटबन्दियां राष्ट्रीय हितों के लिए हानिकारक हैं। इसीलिए भारत हमेशा से अपनी विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता को आधार मानता रहा है।
3. अलगाववाद या तटस्थता की नीति नहीं
गुटनिरपेक्षता अलगाववाद या तटस्थता की नीति नहीं है। यह अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति जागरूक रहने तथा उन समस्याओं के समाधान के लिए सहयोग देने की नीति है।
4. शीत युद्ध विरोधी
गुटनिरपेक्षता की नीति शीत युद्ध का समर्थन नही करती। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ रूस में शीत-युद्ध का दौर चल रहा था जिसने पूरे विश्व को प्रभावित कर रखा था। दोनों देश नव-स्वतन्त्र राष्ट्रों को अपने-अपने गुट में शामिल का प्रयास कर रहे थे। भारत जैसे अनेक राज्य शीत-युद्ध को विश्व-शांति के लिए हानिकारक मानते थे। इसलिए उन्होंने शीत-युद्ध का विरोध करना अपनी विदेश नीति का मूल सिद्धान्त बनाया। गुटनिरपेक्षता के समर्थक देशों ने शीत-युद्ध का विरोध और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व तथा राष्ट्रों के मध्य सहयोग का समर्थन किया।
5. साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद की विरोधी नीति
यह नीति साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद की विरोधी हैं। गुटनिरपेक्षता की नीति राष्ट्रवाद की समर्थक हैं इसलिए यह साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद की विरोधी है। यह नीति प्राचीन राष्ट्रों के लिए स्वतंत्रता प्राप्त करने के पक्ष में हैं।
6. सैन्य तथा राजनीतिक गठबन्धों का विरोध
यह नीति सभी प्रकार के सैनिक, राजनीतिक, सुरक्षा-सन्धियों तथा गठबन्धनों का विरोध करने की नीति है। गुटनिरपेक्षता शीत युद्ध के दौरान उत्पन्न नाटो, सीटो एवं वार्सा समझौतों का विरोध करती है। गुटनिरपेक्षता की नीति का मानना है कि सैनिक गठबन्धन साम्राज्यवाद, युद्ध तथा नव-उपनिवेशवाद को बढ़ावा हैं। ये शीत युद्ध या अन्य तनावों को जन्म देते हैं। इन्हीं से विश्व शान्ति भंग होती है। अतः इनसे दूर रहना तथा विरोध करना आवश्यक है।
7. गुट-निरपेक्षता की नीति जातिवाद तथा रंगभेद में विश्वास नहीं करती
यह नीति जातिवाद तथा रंगभेद का विरोध करती हैं तथा विश्व-बंधुत्व और विश्व-शांति में विश्वास करती हैं।
8. यह नीति लचीली है
यह नीति समयानुसार परिवर्तन में विश्वास करती है। यह निर्भीकता और साहस की नीति हैं। यह विश्व-शांति की समर्थक हैं परन्तु यदि आवश्यक हुआ तो युद्ध का सहारा भी ले सकती हैं।
9. शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व तथा आपसी सहयोग की नीति
गुटनिरपेक्षता शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व तथा आपसी सहयोग की नीति है। यह नीति शक्ति की राजनीति की विरोधी हैं। यह शक्ति के किसी भी रूप का खण्डन करती है। यह राष्ट्रों के बीच तनावों एवं संघर्षो को शान्तिपूर्ण ढंग से हल करने में विश्वास करती हैं।
10. गुट-निरपेक्षा की नीति शस्त्रीकरण के पक्ष में नही
गुटनिरपेक्षता के नीति शस्त्रीकरण का समर्थन नही करती। यह शस्त्रीकरण के स्थान पर शांतिपूर्ण विकास और आर्थिक समृद्धि को महत्व देती हैं।
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गुट निरपेक्ष आंदोलन का महत्व (gutnirpekshta ka mahtva)
द्वितीय विश्व युद्धोपरांत गुट निरपेक्ष आंदोलन एकमात्र ऐसा आंदोलन रहा है, जो सैद्धांतिक प्रतिबद्धता के साथ जागरूक समूह के रूप में विश्व राजनीति में सक्रिय रहा है। अवसरवादिता ने इस सम्मेलन को प्रभावित जरूर किया किन्तु अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के सैद्धांतिक व व्यावहारिक स्वरूप में गुट निरपेक्ष आंदोलन का योगदान महत्वपूर्ण रहा हैं। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का महत्व निम्नलिखित हैं--
1. शान्ति का आग्रदूत
गुटनिरपेक्षता आंदोलन एक शान्तवादी आंदोलन प्रारंभ स्तम्भ से रहा है जो मानवतावाद की धुरी है। इस आंदोलन को मानव जगत की आत्मा और भविष्य कहा जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय तनावों को कम करने में महत्ती भूमिका का निर्वाह इस आंदोलन के द्वारा किया गया जब विश्व में गुटीय राजनीति सक्रिय थी। यह आंदोलन समस्याओं का समाधान अहिंसक व शांतिपूर्ण तरीकों से करने का पक्षधर रहा।
2. स्वाधीनता का प्रतीक
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने विश्व के मुक्ति आंदोलनों को समर्थन देकर विश्व जनमत, उपनिवेशवादी ताकतों पर दबाव डालकर उपनिवेशवाद के उन्मूलन की प्रक्रिया को बढ़ाया है। विश्व के स्वाधीनता आंदोलन में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की भूमिका महत्वपूर्ण रही हैं।
3. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने साम्राज्यवाद, प्रजातिवाद, नव-साम्राज्यवाद, प्रभुत्ववाद के विरूद्ध सशक्त मंच के रूप में कार्य किया है। नवोदित विकासशील व गरीब अविकसित राष्ट्रों के आत्मनिर्णय, आत्मनिर्भरता व आत्मसम्मान का समर्थन किया हैं।
4. अन्तर्राष्ट्रीय मंचों, विशेषकर संयुक्त राष्ट्रसंघ में यह आंदोलन सदस्य देशों की संयुक्त अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बन गया हैं। तनावशैथिल्य, निःशस्त्रीकरण व अन्य चुनौतियों का इस आंदोलन की संयुक्त अभिव्यक्ति ने सशक्त राष्ट्रों के प्रभाव को कमजोर किया हैं।
5. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के कारण ही नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था और संचार व तकनीक व्यवस्थाओं को आवाज मिली हैं। समानता पर आधारित विश्व की आधारशिला गुटनिरपेक्ष आन्दोलन द्वारा रखी गई हैं।
6. यह आंदोलन गतिशील है। इस आंदोलन का निरंतर विकास हुआ है। आज एक-धुवीय विश्व में इसके आकार के आधार पर इस आंदोलन की उपेक्षा संभव नहीं हैं। अमेरिका के प्रभाव विस्तार के सामने तृतीय अन्तर्राष्ट्रीय शक्ति का काम इसके द्वारा किया गया हैं। इस समय इसकी प्रासंगिकता बढ़ी हुई हैं। यह अन्तर्राष्ट्रीय जीवन की मुख्यधारा हैं।
गुटनिरपेक्षता आंदोलन की प्रासंगिता
gutnirpekshta ki prasangikta;वर्तमान में गुट निरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिता पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाया जाता हैं। ऐसा कहा जाता है कि वर्तमान विश्व व्यवस्था में गुटनिरपेक्षता का औचित्य नहीं रह गया हैं। गुटनिरपेक्षता की सार्थकता द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद शीत शुद्ध के वातावरण में तो थी, किन्तु विगत 20-25 वर्षों में विश्व राजनीति में अनेक परिवर्तन हुए हैं। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का बहुध्रुवीकरण, नाटो-सीटो जैसे संगठनों का टूटना, देतान्त संबंधों का अभ्युदय, अमेरिका और चीन में समझौतावादी संबंधों, सोवियत संघ के विघटन ने गुटनिरपेक्ष देशों की भूमिका को सीमित कर दिया हैं। ये संकट की घड़ी में निर्णायक तो ठीक, प्रभावशाली भी नहीं बन सकते। गुटनिरपेक्षता शीत युद्ध के संदर्भ में उत्पन्न हुई थी और आज शीत युद्ध के समाप्त होने के कारण गुटनिरपेक्षता व्यर्थ-सी हो गई हैं।
गुटनिरपेक्ष देशों ने सदस्य राष्ट्रों को संकट के समय कोई सहायता नहीं पहुँचाई। अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण के समय गुटनिरपेक्ष बिरादारी मूक दर्शक बनकर सब कुछ देखती रही। भारत-चीन सीमा विवाद, वियतनाम-कम्पूचिया विवाद, ईरान-इराक विवाद आदि समस्याओं के निदान के लिए गुटनिरपेक्ष आन्दोलन कोई नुस्खा प्रस्तुत नहीं कर पाया।
गुटनिरपेक्ष समुदाय के भीतर फूट और झगड़े उत्पन्न हो गए है। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के सदस्य आपस में लड़ रहे हैं। अतः स्पष्ट है कि गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के सदस्य ही गुटनिरपेक्षता के आदर्शों पर नहीं चल रहे हैं।
गुटनिरपेक्षता की प्रासंगिकता एक ध्रुवीय विश्व में ज्यादा बढ़ी है। सोवियत संघ के विघटन के बाद गुटनिरपेक्षता की प्रासंगिकता पर गुटों के न रहने पर, किसके संदर्भ में गुट निरपेक्षता? का प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन अप्रासंगिक नहीं हुआ वरन् उसके दायित्वों में परिवर्तन हुआ हैं। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन बड़ी शक्तियों के वर्चस्व के संदर्भ में हमेशा रहा हैं। बड़ी शक्ति एक हो अथवा दो इससे गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का औचित्य समाप्त नही हो जाता। आज भी गुटनिरपेक्ष आन्दोलन राजनीति में 114 देशों का सशक्त मंच हैं, जो विश्व के विकासशील राष्ट्रों व शेष विश्व का दृष्टिकोण महाशक्तियों के सामने रखता हैं, जिसकी उपेक्षा संभव नहीं है। एक ध्रुवीय विश्व में गुटनिरपेक्षता की द्विध्रुवीय विश्व की तुलना में भूमिका बदली हैं। वैदेशिक नीति की स्वतंत्रता, नवोदित राष्ट्रों को आत्मनिर्भरता, आत्मनिर्णय के संबंध में इसकी उपयोगिता पर कोई संकट नहीं हैं।
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में विगत वर्षों से जीवन्तता का प्रश्न प्रमुख रहा है। अवसरवादिता की काली छाया से इस आन्दोलन के राष्ट्र प्रभावित हो रहे हैं। सशक्त नेतृत्व जो इस आन्दोलन का आधार था, दुर्भाग्यवश उसमें कमी आई हैं। शीत-युद्ध की समाप्ति के बाद इस आन्दोलन की कोई नई दिशा परिलक्षित नहीं हो रही हैं। द्विपक्षीय मसले इसके मंचों पर उठाये जाने लगे हैं। पारित प्रस्तावों को अमल में लाने में अपेक्षित सफलता इस आन्दोलन को नहीं मिल पाई है। आतंकवाद की कुदृष्टि से ग्रस्त आन्दोलन की धारा निःशस्त्रीकरण पर कमजोर हो रही हैं।
भूमंडलीकरण के कारण गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की भूमिका सिमट गई हैं। अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण बदल रहा है। गुटनिरपेक्षता एक सुस्पष्ट विचारधारा के रूप में विख्यात रही हैं। विदेश नीति के रूप में गुटनिरपेक्षा की प्रासंगिकता निरन्तर बनी रहेगी। हालाँकि शीत-युद्ध प्रतिद्वंद्विता व द्विध्रुवीय कठोरता का पराभव हुआ हैं। ऐसे समय में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के दायित्व कम नहीं, वरन् काफी बढ़े हैं। विकसित व विकासशील, अमीर व गरीब राष्ट्रों के मध्य सेतुबंध के कार्य करना, नई अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था जिसमें बाजारवाद की भूमिका प्रमुख हैं, में नवोदित राष्ट्रों के हितों की रक्षा करनार आणविक निःशस्त्रीकरण के लिए विश्व जनमत का नेतृत्व करना, सामूहिक रूप से अन्तरराष्ट्रीय राजनीति में इस आन्दोलन की भूमिका को महत्वपूर्ण बनाते हैं।
उपर्युक्त कमजोरियों के बावजूद भी गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की वर्तमान में प्रासंगिकता हैं। गुटनिरपेक्षता विश्व राजनीति में विभिन्न राष्ट्रों के लिए एक नवीन विकल्प का रूप निश्चित रूप धारण कर चुकी हैं। इसने राष्ट्र-समाज के छोटे-छोटे अपेक्षाकृत कमजोर सदस्यों की स्वतंत्रता और एकता को बनाये रखने में अपना योगदान दिया हैं। इसने विश्व राजनीति में पूर्ण ध्रुवीयकरण को रोककर, विचारधारागत शिविरों के विस्तार तथा प्रभाव को संयत करके तथा विभिन्न गुटों के अंदर भी स्वतंत्रता की शक्तियों को प्रोत्साहित कर अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सहयोग का मार्ग प्रशस्त किया हैं। इसने संयुक्त राष्ट्रसंघ के बाहर और अंदर उपनिवेशों को स्वतंत्र कराने, प्रजातीय समता को साकार करने तथा अल्पविकसित देशों के आर्थिक विकास के लिये बहुत योगदान दिया हैं।
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने अपने मंचों से विश्वशान्ति, उपनिवेशवाद की समाप्ति, परमाणु अस्त्रों पर रोक, निःशस्त्रीकरण, हिन्द महासागर को शान्त क्षेत्र घोषित करना तथा अंतरराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था आदि की स्थापना में योगदान दिया हैं। गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों की बढ़ती हुई संख्या और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर इसके व्यापक प्रभाव से ऐसा प्रतीत होता हैं कि आज भी इसका भविष्य उज्जवल हैं।
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