प्रश्न; कार्ल मार्क्स को वैज्ञानिक समाजवाद का जनक क्यों माना जाता हैं?
अथवा" आधुनिक साम्यवाद के मार्क्सवादी आधार को ध्यान में रखते हुए कार्ल मार्क्स की समाजवादी सिद्धांत को देन का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा" राजदर्शन के इतिहास में कार्ल मार्क्स का क्या स्थान हैं?
अथवा" यह कहना कहाँ तक सत्य हैं की मार्क्स वैज्ञानिक समाजवाद का संस्थापक था?
उत्तर--
कार्ल मार्क्स को वैज्ञानिक समाजवाद का जनक क्यों कहा जाता हैं?
मार्क्स से पहले भी बहुत से ऐसे विद्वान हुये हैं जिन्होंने समाज में प्रचलित बुराइयों के विरूद्ध आवाज उठाई हैं और अपने अथक प्रयास से उन बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया हैं तथापि उन विचारों का अपना कोई व्यवहारिक कार्यक्रम नही था अतएव वे अपने सिद्धांतों एवं विचारों को कोई क्रियात्मक रूप नहीं दे सके थें। इसलिए इन विचारों को राजनीति के क्षेत्र में स्वप्नलोकीय विचार के नाम से पुकारा गया हैं। इसके विपरीत मार्क्स ने अपने समाजवादी विचारों को क्रमबद्ध रूप में लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया। उसने लोगों को यह बतलाया कि उसके विचारों को किस प्रकार के कार्यक्रम कार्य-प्रणाली के कारण ही मार्क्स के समाजवाद को वैज्ञानिक समाजवाद कहा जाता हैं। वास्तव में मार्क्स से पहले किसी भी विचारक ने अपने विचारों को इस प्रकार की क्रमबद्ध पद्धित में किसी के सामने नही रखा। उसके कार्यक्रम का आधार वैज्ञानिक पद्धितयों के अनुसार था। इसलिए विद्वानों ने कार्ल मार्क्स को वैज्ञानिक समाजवाद का जनक कहा हैं।
संक्षेप में," शायद ही किसी राजनीतिक चिंतक को इतना सम्मान, इतनी श्रद्धा तथा अंध भक्ति उन्माद के कारण नहीं अपितु उसके विचारों के परिणामस्वरूप प्राप्त हुई हैं।
कथन के पक्ष में तर्क
जो विद्वान कार्ल मार्क्स को वैज्ञानिक समाजवाद का जनक कहते हैं वे अपने पक्ष में निम्नलिखित तर्क देते हैं--
1. वैज्ञानिक कार्यक्रम का अनुसरण
मार्क्सवादी समाजवाद को प्रायः सर्वहारा समाजवाद तथा वैज्ञानिक समाजवाद के नाम से पुकार जाता हैं। मार्क्स ने अपने समाजवाद को वैज्ञानिक इस कारण कहा हैं कि यह इतिहास के अध्ययन पर आधारित हैं। इसके पहले साइमन, फोरियर तथा ओवर का समाजवाद वैज्ञानिक न था क्योंकि वह इतिहास पर आधारित न होकर केवल कल्पना पर आधारित था। मार्क्स ने जिस पद्धित का अनुसरण किया वह वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित हैं। उसकी पद्धित क्रमबद्ध हैं। उसने क्रान्तिकारी कार्यक्रम को इस वैज्ञानिक ढंग से रखा हैं कि एक घटना का दूसरी घटना से पूर्ण रूप से संबंध हैं। इस प्रकार मार्क्सवाद के सभी सिद्धांत एक-दूसरे पर आधारित हैं।
2. वैज्ञानिक सिद्धांतों की भली-भाँति खोज
मार्क्स ने अपने सिद्धांतों का विकास उसी प्रकार किया, जिस प्रकार एक वैज्ञानिक प्राकृतिक क्षेत्र में अपने सिद्धांतों का विकास तथा उनकी खोज करता हैं।
3. सामाजिक विश्लेष
मार्क्स से पहले अनेक समाज-सुधारक हुए जिन्होंने सामाजिक कुरीतियों तथा समस्याओं का अध्ययन किया किन्तु मार्क्स सर्वप्रथम विचारक था जिसने सामाजिक कुरीतियों तथा समस्याओं के अध्ययन के साथ-साथ वैज्ञानिक की भाँति उनका सामाजिक विश्लेषण भी किया।
4. कार्य-पद्धति का अनुसरण
एक वैज्ञानिक की सफलता उसकी कार्य-पद्धति पर निर्भर होती हैं। केवल सिद्धांतों का ज्ञान प्राप्त करना मात्र ही वैज्ञानिक के लिए सब कुछ नही हैं। वैज्ञानिक ही सफलता उस समय तक संभव नहीं जब तक कि वह अपने विचारों को कार्य-रूप में परिणित करने का कोई कार्यक्रम न बना ले। मार्क्स ने अपने विचारों का एक क्रमबद्ध रीति से प्रतिपादन किया और साथ ही साथ एक कुशल वैज्ञानिक की भाँति लोगों को उस कार्य-पद्धति के विषय में भी बतलाया जिसका अनुसरण करके उसके विचारों को कार्य-रूप में परिणित किया जा सकता था।
5. विचारों को सिद्धांत पर आधारित करना
मार्क्स ने अपने प्रत्येक विचार को किसी न किसी सिद्धांत पर आधारित किया था। एक सच्चे वैज्ञानिक की तरह मार्क्स सिद्धांतों का प्रेमी था। वह अपने सिद्धांतों के आधार पर ऐसे जटिल प्रश्नों के उत्तर दे सकता था जो उससे पहले ही संसार के बड़े से बड़े दिमागों पर छाये हुये थे।
6. परिस्थितियों के ज्ञान की प्राप्ति
मार्क्स अपने विचारों से संसार में परिवर्तन लाने का पक्षपाती था किन्तु उसने साथ ही साथ उन युक्तियों एवं परिस्थितियों का भी वर्णन किया हैं कि जिनके द्वारा वह परिवर्तन लाया जा सकता हैं, जिसका वह पक्षपाती था। कार्ल मार्क्स उप परिस्थितियों से परिचित था जिनके द्वारा वह संसार में अपने विचारों के अनुकूल परिवर्तन ला सकता हैं। वेपर के शब्दों में," मार्क्स की गणना विश्व के सर्वाधिक महत्वपूर्ण राजनीतिक दार्शनिकों में होनी चाहिए। उसने विश्व को न केवल एक नवीन क्रान्तकारी विचारधारा प्रदान की वरन् उस विचारधारा के द्वारा विश्व के इतिहास की दिशा तक परिवर्तित कर दी।" एन्जिल्स ने लिखा हैं," मार्क्स सबसे पहला क्रांतिकारी था। जीवन में उसका वास्तविक उद्देश्य किसी न किसी तरह पूँजीवादी समाज तथा उसकी राजसंस्थाओं को समाप्त करना तथा सर्वहारा वर्ग को स्वतंत्र करना था और वह यह भी बताना चाहता था कि वह किन परिस्थितियों में अपनी मुक्ति प्रदान कर सकता हैं?"
7. शोषित वर्ग का मसीहा
मार्क्स का ह्रदय दलित और शोषित वर्ग के लिए द्रवित हो उठता था। उसके मन में श्रमिकों के प्रति सहानुभूति थी। वह उनके लिए केवल कोरी सहानुभूति प्रदर्शित करके ही संतुष्ट नहीं हुआ अपितु उनके लिए कुछ कर गुजरने की लालसा उसमें थी। मार्क्स ने पूँजीवादी व्यवस्था के विशाल भवन को धराशाही करके उसके भग्नावशेषों पर साम्यवाद का भव्य प्रासाद खड़ा करने का प्रयास किया। अपने इस प्रयास से उसे बहुत अधिक सफलता प्राप्त हुई।
9. नवीन युग तथा धर्म का प्रवर्तक
मार्क्स को नवयुग तथा नवीन धर्म का प्रवर्तक माना जाता हैं। मार्क्सवाद ने करोड़ों शोषित और पीड़तों को धर्म के समान प्रभावित किया हैं। उसके सिद्धांत उसके अनुयायियों के लिए ईश्वरीय वाणी के समान हैं। साम्यवाद के लिए इतनी अगाध श्रद्धा उसके मन में हैं कि उसके लिए वे किसी भी प्रकार का बलिदान करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। वेपर के अनुसार," साम्यवादियों के लिए मार्क्स नवीन धर्म का पैगंबर हैं।"
यद्यपि मार्क्स धर्म को अफीम की गोली मानता हैं परन्तु प्रकारान्तर से साम्यवाद भी उसके अनुयायियों के लिए एक प्रकार का धर्म ही हैं जिसमें दीक्षित होना धर्म की दीक्षा के समान ही हैं।
10. मानव सेवा
मार्क्स के ह्रदय में दलितों, पीड़ितों और शोषितों की सहायता करने की तीव्र इच्छा-रूपी प्रज्ज्वलित अग्नि धधक रही थी और वह केवल बातों से नहीं वरन् कार्यों से उनके लिये कुछ करना चाहता था।
11. सत्यता पर आधारित
मार्क्स का दर्शन सत्यता पर आधारित हैं। वह पूर्ण एवं सन्तुलित हैं और शक्तिशाली भी हैं। इस दर्शन का अध्ययन करने से मनुष्य को संसार के संबंध में एक उत्तम दृष्टिकोण बनाने का अवसर मिल सकता हैं।
कार्ल मार्क्स विभिन्न विद्वानों की नजर में
राजनीतिक चिंतन के विभिन्न विद्वानों ने मार्क्स की प्रशस्ति में लेखनी चलाई हैं--
वर्न्स के शब्दों में," विभिन्न साम्यवादी दल मार्क्स के उदाहरण देकर एक-दूसरे की आलोचना करते हैं क्योंकि लगभग सभी विवादास्पद विषयों का समर्थन करने के लिए उसके उद्धरण उपलब्ध हैं।"
केन्स मेहरिंग के अनुसार," मार्क्स के सैद्धान्तिक प्रतिनिधि अनेक थे परन्तु व्यक्तिगत शत्रु शायद ही कोई हो। उसका नाम तथा कार्य शताब्दियों तक अमर रहेगा।"
वेपर का विचार हैं," अपने संदेश की शक्ति, अपने शिक्षाओं की प्रेरणा और भावी विकास पर अपने प्रभाव के कारण मार्क्स का स्थान विश्व के राजनीतिक चिंतन के महान आचार्यों के किसी समूह में पूर्णतया सुरक्षित हैं।"
ऐबेन्स्टीन के शब्दों में," मार्क्स की पूंजीवादी व्यवस्था की व्याख्या ने इतिहास के निर्माण को इतिहास के लेखन की अपेक्षा कहीं अधिक प्रभावित किया हैं। किसी व्यक्ति द्वारा उसके आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा दार्शनिक विचारों को भले ही स्वीकार या अस्वीकार किया जाए पर उसकी उपेक्षा करना असंभव हैं।"
पुनश्च मैक्सी के शब्दों में," मार्क्स को करोड़ों व्यक्ति देवता के समान पूजते हैं और करोड़ों व्यक्ति उसे राक्षस कहकर उसकी भर्त्सना करने हैं। इसी कारण मार्क्स की सही और निष्पक्ष व्याख्या करना गुरूतर कार्य हो गया हैं फिर भी उसकी अवहेलना नहीं की जा सकती हैं। मार्क्स का अध्ययन तभी हो सकता हैं जबकि इन भावनाओं को निकाल कर फेंक दिया जाए।"
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