बालक पर वातावरण का प्रभाव
balak par vatavaran ka prabhav;वर्तमान मनोविज्ञानिकों तथा शिक्षाविदों ने यह सिद्ध कर दिया है की वंशानुक्रम के साथ-साथ वातावरण का भी प्रभाव बालक के विकास पर पड़ता हैं। इसलिए यहाँ पर उन पक्षों पर विचार करेंगे जो वातावरण से प्रभावित होते हैं--
1. वातावरण का मानसिक विकास पर प्रभाव
बालक का मानसिक विकास केवल बुद्धि से निश्चित नही होता हैं, उसमें बालक की ज्ञानेन्द्रियाँ, मस्तिष्क के सभी भाग, ग्राह्रा तथा मानसिक क्रियाएँ आदि शामिल होती हैं। इसलिए बालक वंश से जो कुछ लेकर पैदा होता है, उसका विकास उचित वातावरण से ही हो सकता है। वातावरण से बालक की बौद्धिक क्षमता मे तेजी आती है एवं मानसिक प्रक्रिया का सही विकास होता है। ये दोनों ही बच्चे के विकास में सहयोग देते हैं। कैण्डोल, गोर्डन तथा क्रीमैन आदि विद्वानों ने अपने-अपने अध्ययनों से स्पष्ट किया है कि अच्छा वातावरण बच्चों के मानसिक वातावरण में सहयोग देता है। 'इवोवे विश्वविद्यालय' मे 150 बच्चों का अध्ययन किया गया। इनका पालन-पोषण 6 वर्ष तक पालनगृह में हुआ था। इसलिए पालन-गृह की अच्छी व्यवस्था तथा सुन्दर वातावरण ने उनकी बुद्धिलब्धि 117 तक बढ़ा दी।
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2. वातावरण का व्यक्तित्व विकास पर प्रभाव
व्यक्ति का गठन या विकास आन्तरिक क्षमताओं के विकास तथा नवीनताओं को ग्रहण करके किया जाता है। इन दोनों ही परिस्थितियों हेतु उपयुक्त वातावरण को उपयोगी माना गया है। कूल महोदय ने यूरोप के 71 साहित्यकारों का अध्ययन किया एवं पाया कि उनके व्यक्तित्व का विकास अच्छे वातावरण में पालन-पोषण के द्वारा हुआ।
3. वातावरण का शिक्षा पर प्रभाव
बालक की शिक्षा बुद्धि, मानसिक प्रक्रिया तथा सुन्दर वातावरण पर निर्भर करती है। शिक्षा का उद्देश्य बालक का सामान्य विकास करना होता हैं। अतः शिक्षा के क्षेत्र में सभी बच्चों का सही विकास हो सके, यह उपयुक्त शैक्षिक वातावरण पर ही निर्भर करता हैं। दैनिक रूप से यह पाया जाता है कि उच्च बुद्धि वाले बच्चे भी सही वातावरण के बगैर उच्च शिक्षा प्राप्त नही कर पाते हैं। भारतीय मनोवैज्ञानिकों ने सन् 1971 ई. में आई. ए. एस. में उत्तीर्ण छात्रों का अध्ययन किया तथा पाया कि 44% छात्रों ने पब्लिक स्कूलों में शिक्षा पायी थी एवं उनके परिवार की मानसिक आय एक हजार रूपये अथवा उससे ज्यादा थी। इससे स्पष्ट होता हैं कि अच्छा वातावरण ही इनको आई. ए. एस. पद पर आसानी कराने में सक्षम हुआ।
4. वातावरण का सामाजिक गुणों पर प्रभाव
बालक का सामाजीकरण उसके सामाजिक विकास पर निर्भर होता है। समाज का वातावरण उसे सामाजिक गुण तथा विशेषताओं को धारण करने के लिए उन्मुख करता हैं। न्यूमैन, क्रीमैन तथा होलिंजगर ने 20 जोड़े बच्चों पर अध्ययन किया। आपने जोड़े के एक बच्चे को गाँव में एवं दूसरे बच्चे को नगर में रखा। बड़े होने पर गाँव के बच्चे में अशिष्टता, चिन्ताएँ, भय, हीनता तथा कम बुद्धिमता आदि विशेषताएँ पायी गयीं जबकि शरह के बच्चे में शिक्षित व्यवहार, चिन्तामुक्त, भयहीन तथा निडरता एवं बुद्धिमता आदि विशेषताएं पायी गयीं। इसलिए स्पष्ट होता है कि वातावरण सामाजिक गुणों पर प्रभाव डालता हैं।
5. वातावरण का बालक के सर्वांगीण विकास पर प्रभाव
शिक्षा का परम उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास करना है। यह विकास तभी संभव हो सकता है, जब उन्हें अच्छे वातावरण में रखा जाय। यह वातावरण ऐसा हो जिसमें बालक की वंशानुक्रमीय विशेषताओं का सही प्रकाशन हो सके। भारत एवं विदेशों में जिन बच्चों को जंगली जानवर उठाकर ले गये एवं उनको मारने के स्थान पर उनका पालन-पोषण किया। कुछ समय बाद वे पकड़े गये। उनका संपूर्ण विकास जानवरों जैसा था, बाद में उनको मानवीय वातावरण देकर सुधार लिया गया। अतः स्पष्ट होता है कि वातावरण ही बालक के सर्वांगीण विकास में सहयोगी होता हैं। जैसा कि स्टीफैन्स ने लिखा है," एक बालक जितना ज्यादा समय अच्छे वातावरण में रहता है, वह उतना ही ज्यादा इस वातावरण की तरफ उन्मुख रहता हैं।
7. शारीरिक विकास पर प्रभाव
फ्रेंच बोन्स का कहाना है कि विभिन्न प्रजातियों के शारीरिक अंतर का कारण वंशानुक्रम न होकर वातावरण है। उन्होंने अनेक उदाहरणों से स्पष्ट किया है कि जो जापानी, और यहूदी अमेरिका में अनेक पीढ़ियों से निवास कर रहे हैं, उनकी लम्बाई भौगोलिक वातावरण के बढ़ गयी हैं।
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