मुगल सिक्ख सम्बन्ध (mughal sikh sambandh)
गुरूनानक और बाबर
mughal sikh relationship in hindi;बाबर से गुरूनानक देव का वास्ता उस समय पड़ा जब साम्राज्य स्थापना की कोशिश में 1524 ई. में पंजाब के एमनाबाद पर बाबर ने आक्रमण किया। गुरूनानक उस समय एमनाबाद में ही थे। अन्य बन्दियों के साथ गुरूनानक देव जी ने भी एमनावाद जेल में कष्ट सहे थे। जब बाबर को गुरू जी की महानता के बारे में पता चल तों उन्हें छोड़ दिया गया। बाबर ने अत्याचारों के दृश्य गुरूजी ने स्वंय देखे थे। इसलिए उन्होनें बाबर के आक्रमण और बर्बरता को ‘पाप दी जंज‘ कहा है। उन्होनें लोगों की बेबसी तथा तबाही का बड़ा लोमहर्षक वर्णन किया है। इसके बाद गुरू नानक देव जी और बाबर का आपस में कोई संपर्क नही हुआ। हुमायूं के काल में गुरू नानक तथा उनके उत्तराधिकारी गुरू अंगद देव को अपने धर्म प्रचार के लिए कोई परेशानी नहीं हुई।
जहांगीर तथा सिख
अकबर की मृत्यु के बाद परिस्थितियों में परिवर्तन आया। इस काल में सिक्ख गुरूओं और मुगल सम्राट के सम्बन्धों में कटुता आई। सन् 1606 ई. में शहजादा खुसरों ने अपने पिता जहांगीर के विरूद्ध विद्रोह किया। वह पराजित होकर पंजाब भाग गया। खुसरों ने गुरू से शरण मांगी। गुरू अर्जुन के विरोधियो ने गुरू को अपमानित करने के उद्देश्य से स्थानीय अधिकारियों और सम्राट का कहा कि गुरू विद्रोही राजकुमार की सहायता कर मुगल सत्ता की अवहेलना कर रहे थे। जहांगीर ने गुरू अर्जुन पर दो लाख का जुर्माना किया। जब गुरू ने जुर्माना देना अस्वीकार कर दिया तो उन्हें बन्दी बना लिया गया और बाद में उनकी हत्या कर दी गयी।
गुरू अर्जुनदेव
गुरू अर्जुनदेव सिक्खों के पांचवें गुरू थे। चैथे गुरू रामदास जी के तीन पुत्रों में वह सबसे छोटे थे। गुरू रामदास जी 1581 ई. में परलोक सिधारे। दिवंगत होने से पूर्व उन्होने अर्जुनदेव को अपना उत्तराधिकारी मनोनीत कर दिया था। गुरू अर्जुनदेव 1581 से 1606 ई. तक गुरू गद्दी पर सुशोभित रहे। उच्च आध्यात्म शक्ति से युक्त होने के साथ ही वह एक कवि, दर्शनिक और महान संगठनकर्ता थे। गुरू अर्जुनदेव द्वारा आदि ग्रन्थ का संकलन, रामदासपूर में पवित्र सरोवर की पूर्णता, सरोवर के बीच पवित्र हरिमंदिर साहिब का निर्माण, मसन्द प्रथा का सुसंगठन, तरणतरन एंव करतारपुर जैसे पवित्र धर्म स्थानों की स्थापना, जैसे महत्वपूर्ण कार्यो के फलस्वरूप न केवल सिक्ख पंथ को तीव्र विस्तार मिला अपितु सिक्ख पंथ ने एक ऐसी धर्मतंत्र का भी स्वरूप हासिल कर लिया जिसका अपना धर्मग्रन्थ, सुस्पष्ट धर्म दर्शन तथा अपना सामाजिक धार्मिक विधि-विधान एंव संस्थाएं थीं।
गुरू ग्रन्थ साहिब
गुरू ग्रन्थ का संकलन, सिक्ख धर्म की ही नहीं बल्कि भारत के सांस्कृतिक साहित्यिक इतिहास की एक क्रांतिकारी घटना थी। इस सकंलन में गुरू अर्जुनदेव सहित प्रथम पांच सिक्ख गुरुओं की वाणी के साथ ही अन्य सोलह हिन्दू-मुस्लिम भक्त संतों की रचनाओं को भी संग्रहीत किया गया था। गुरुजी के अतिरिक्त इस संकलन में भाई गुरूदास तथा भाई बुड्ढा जी का भी विशेष सहयोग रहा । समन्वय तथा सामाजिक समरसता जैसे शाश्वत जीवन मूल्यों का प्रतिनिधित्व करने वाला वह पवित्र आदि ग्रन्थ कालांतर में सिक्खों की एकता और शक्ति का प्रमुख स्त्रोत बना गया।
गुरू हरगोविन्द
गुरू अर्जुन देव का वध जहांगीर द्वारा करना सिक्खों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना बन गई। इस घटना के बाद से ही मुगलों और सिक्खों मे संघर्ष प्रांरभ हो जाता है तथा सिक्ख जाति एक सैनिक जाति के रूप में परिणित हो जाती है। गुरू अर्जुन के बाद उनके पुत्र गुरू गोविन्द सिंह सिक्खों के गुरू हुए। उन्होंने मुगलों का विरोध करना शुरू कर दिया, पर अभी तक सिक्ख इतने शक्तिशाली तथा संगठित नहीं हो पाये थे कि मुगलों का सामना करने में सफलता प्राप्त करते। कुछ राजनीतिक कारणों से वे बंदीगृह में डाल दिये गये। जहांगीर की मृत्यु के बाद उनको मुक्त कर दिया गया तथा उन्होनें शाहजहां से मैत्री-संबंध स्थापित किये, पर उसकी उनसे अनबन हो गई तथा उन्होंने मुगलों का विरोध करना शुरू कर दिया। प्रांरभ में उनको सफलता प्राप्त हुई, पर अंत में उनको पंजाब का परित्याग करने के लिए बाध्य होना पड़ा। उन्होंने कश्मीर की पहाडि़यों में शरण ली जहां सन् 1654 ई. में उनका देहान्त हो गया।
गुरु हरिराय एंव हरिकिशन
गुरु हरगोविन्द की मृत्यु के पश्चात् गुरु हरिराय सिक्खों सातवें गुरू बने। वे शांतिप्रिय व्यक्ति थे जिनके कारण उनसे दिल्ली के सम्राटों का कोई विशेष संघर्ष नही हुआ। इसके बाद हरिकिशन सिक्खों के गुरू के पद पर आसीन हुए। वे अधिक समय तक सिक्खों का नेतृत्व नहीं कर सके तथा चेचक के निकलने के कारण उनका देहान्त गुरू की गद्दी प्राप्त करने के तीन वर्ष उपरांत हो गया।
गुरु तेगबहादुर
गुरु हरिकिशन के मृत्यु के पश्चात् गुरु की गद्दी के लिए पारस्परिक बहुत मतभेद हुआ, क्योकि गुरु हरिकिशन ने गुरु के पद के लिए उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया था। अतं में सिक्खों ने तेगबहादुर को अपना गुरु मान लिया। वे स्वतंत्र रूप से कार्य करने लगे। उन्होंने सिक्ख जाति का सुदृढ़ संगठन करना शुरू किया तथा सच्चे बादशाह की उपाधि से अपने आप केा सुशोभित किया। औरंगजेब भला कब इस तरह के व्यवहार को सहन कर सकता था। उसने तुरंत गुरू तेगबहादूर को बंदी करने का आदेश जारी किया जिसके कारण वे बंदी बना लिये गये तथा उनसे इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए कहा, पर उन्होंने ऐसा करने से साफ इंकार कर दिया। इस पर औरंगजेब ने सन् 1675 ई. मे उनका वध करवाया औरंगजेब के इस कार्य से सिक्खों को बहुत दुःख तथा कष्ट हुआ तथा वे मुगलो के पूर्ण विरोधी बन गये।
गुरु गोविंद सिंह
औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों में भी उत्तराधिकारी युद्ध हुआ। जिसमें शहजादा मुअज्जम नया मुगल सम्राट बना। नया सम्राट सिक्खों का दूश्मन नहीं था। बहादुरशाह से गुरू गोविन्द जी की मुलाकात 1707 ई. की गर्मियों में आगरा में हुई। सम्राट ने गुरू साहिब का उपहारों से अच्छा स्वागत किया तथा उन्हें आश्वस्त किया कि आनदंपुर जल्द ही उन्हें वापस मिल जायेगा। लेकिन इस दिशा में तत्काल कोई कार्रवाई नहीं हो सकी क्योकि बहादुर शाह ने अपने भाई कामबख्श के विरूद्ध कार्रवाई करने के लिए दक्षिण की ओर कूच कर दिया था। गुरू साहिब भी शाही शिविर से कुछ दूरी बनाते हुए सम्राट के साथ दक्षिण की ओर चल पडे़। करीब एक वर्ष तक सम्राट के सम्पर्क में रहने के बाद गुरूजी गोदावरी नदी के किनारे नान्देड़ नामक स्थान पर रुक गए। नान्देड में एक दिन जब गुरु जी अपने खेत में ही थे, एक पठान ने छूरे से वार कर उन्हें काफी जख्मी कर दिया। गुरुजी पर धोखें से वार करने वाला पठान या तो वजीर खान से सम्बधिंत था या किसी शाही अधिकारी से। कुछ दिनों बाद घाव से खुल जाने और काफी ज्यादा खून वह जाने से 7 अक्टूबर 1708 को गुरु गोविन्दसिंह जो ने संसार से अंतिम विदा ली।
बंदा बहादूर
गुरु गोविन्द सिंह ने गुरु की परंपरा का अंत किया जिसके कारण सिक्खों में अराजकता पैदा हो गई तथा उन्होनें छोटे-छोटे राज्य तथा जागीरें पंजाब में स्थापित करनी शुरू कर दी। इसी समय बंदा बहादूर नामक व्यक्ति स्थल पर आया तथा उसने सिक्खों का नेतृत्व करना शुरू किया। उसका कार्य बड़ा महत्वपूर्ण था तथा उसके आने से सिक्खों में उत्साह तथा वीरता का संचार हुआ। सिक्खों ने तुरंत ही सरहिन्द पर आक्रमण किया और वहां के फौजदार बजीर खां का वध कर उसको पेड़ पर लटका दिया तथा मुसलमानों का नृशंसता से वध किया गया। उसने आस-पास के सभी प्रदेशो पर अपना अधिकार किया। वह उत्तर प्रदेश को भी अपने अधिकार में करना चाहता था, पर वह ऐसा नहीं कर सका। मुगल सम्राट बहादुरशाह जब अपने भाई कामबख्श को पराजित कर उत्तर भारत आया तो सन् 1710 ई. में सिक्खों का दमन करने हेतु विशाल सेना पंजाब भेजी। मुगलों ने समस्त पंजाब पर अधिकार कर लिया। पर्याप्त समय तक बंदा बहादूर ने उनका सामना किया, किन्तु अंत मे सन् 1715 ई. में वह आत्मसमर्पण करने पर बाध्य हुआ। मुगलों ने उसके साथियों के साथ अमानुषिक व्यवहार किया। सन् 1716 ई. में उसका वध कर दिया।
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