4/10/2021

शाहजहां के काल में हुए उत्तराधिकारी के युद्ध

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शाहजहां के काल में हुए उत्तराधिकारी के युद्ध

शाहजहां के चार पुत्र थे जिनमें की उत्तराधिकारी का युद्ध 1657-58 ई. में हुआ, वह मुगल काल का सबसे बड़ा, सबसे भीषण, सबसे लम्‍बा और अपने किस्‍म का अकेला उत्तराधिकार का युद्ध था। इस युद्ध के पूर्व भी उत्तराधिकारी के लिए बगावत या युद्ध हुए किन्‍तु उनमें यह उत्तराधिकार का युद्ध कई मायनों में भिन्‍न था। एक तो वह युद्ध स्‍वयं सम्राट के जीवित और सिंहासन पर होते हुए उसके चार वयस्‍क पुत्रों के बीच हुआ। दूसरे, इसमें भारत के विशाल भू-भाग से सेनाओं ने हिस्‍सा लिया, जिनका नेतृत्‍व भारत के उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम राज्‍यों में नियुक्‍त शहजादे कर रहे थे। शाहजहां के जिन पुत्रों के बीच युद्ध हुआ, वे थे- दारा, मुराद, औरगजेब और शाहशुजा। ऐसे विलक्षण और भीषण खून-खराबे वाले उत्तराधिकारी युद्ध के कारण इस प्रकार थे--

1. सभी पुत्रों का शक्ति सम्‍पन्न होना

शाहजहां के चारों पुत्र अत्‍यंत शक्तिशाली और साधन सम्‍पत्र थे। दारा सबसे बड़ा पुत्र था। वह पंजाब तथा उत्तर-पश्चिम प्रान्‍त का सूबेदार था। उसकी उम्र इस समय 42 वर्ष थी। शाहशुजा दूसरा पूत्र था। उसकी उम्र करीब 41 वर्ष थी। वह बंगाल एंव उड़ीसा जैसे समृद्ध प्रांतो का सूबेदार था। औरंगजेब शाहजहां का तीसरा पुत्र था। वह 39 वर्ष का था, और दक्षिण के विशाल क्षेत्र का सूबेदार था। वह सबसे अधिक महत्‍वाकांक्षी था। मुराद चैथा पुत्र था। उसकी आयु करीब 33 वर्ष थी, वह गुजरात -मालवा का सुबेदार था। चारों शाहजादों के पास सेना, साधन, धन और महत्‍वाकांक्षा की कमी नहीं थी। अपने-अपने प्रांतों में वे राज कर ही रहे थे।

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2. संघर्ष की पराम्‍परा 

सिहांसन और सत्ता के लिए विद्रोह या संघर्ष की परम्‍परा मुगल साम्राज्‍य की स्‍थापना से ही प्रारंभ हुई थी। जो कि शाहजहां के काल में चरम पर पहुंच गयी और शाहजहां के चारों पुत्रों ने भी इस परम्‍परा को जारी रखा सिंहासन के लिए संघर्ष किया। 

3. उत्तराधिकार के निश्चित नियम का अभाव 

चाहे सल्‍तनत काल हो या मुगल काल, उत्तराधिकार के निश्चित नियम का अभाव रहा है। जो शहजादा स्‍वंय को अधिक शक्तिशाली और योग्‍य सिद्ध करता था, वह सिंहासन का हकदार हो जाता था। सामान्‍यतः अपेक्षा यह होती थी कि बड़ा पुत्र उत्तराधिकारी हो पर संघर्ष की नौबत तो आती ही रही।  

4. शाहजहां की बीमारी और बुढ़ापा 

1657 के मध्‍य में सम्राट शाहजहां बीमार हुआ। सम्राट की गंभीर बीमारी तथा वृद्धावस्‍था ने दारा के विरोधी शहजादों को चैकस रखा। वे सभी संघर्ष के लिए तैयारी करने लगे। 

5. शाहजहां की मौत की अफवाह 

उत्तराधिकारी के युद्ध का तात्‍तकालिक कारण शाहजहां की मौत की अफवाह थी। शाहजहां की बीमारी के समय शासन-सूत्र दारा के ही हाथों में थे। सम्राट से बहुत कम लोगों को मिलने दिया जाता था। राजधानी से सूबों में खबरें भेजना भी बन्‍द हो गया। औरंगजेब, मुराद और शाहशुजा को शक होने लगा कि सम्राट मर गया है। सम्राट के जीवित होने की सूचना देने वाले पत्रों पर भी उन्‍होनें विश्‍वास नहीं किया और दारा के विरूद्ध कूच के लिए तैयार हो गए। 

उत्तराधिकारी युद्ध की घटनांए 

सम्राट शाहजहां तो थीडें दिनों में स्‍वस्‍थ हो गया लेकिन इस बीच उत्तराधिकारी के युद्ध का माहौल बना चुका था। 5 दिसम्‍बर 1657 को अहमदाबाद में मुराद ने स्‍वंय को सम्राट घोषित कर दिया। उसने आपने नाम का ‘खुतबा‘ पढ़वाया और सिक्‍के जारी किए। 

1. मुराद और औरंगजेब का समझौता 

जब उसने घोषणा की तो औरंगजेब का एक पत्र मुराद को मिला जिसमें राज्‍य और युद्ध-सामग्री के ऐसे विभाजन की बात थी जिसे मुराद को स्‍वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं होती। इसके अनुसार

(अ) मुराद पंजाब, अफगानिस्‍तान, कश्‍मीर और सिन्‍ध पर उसका स्‍वंय का और शेष राज्‍य पर औरंगजेब का अधिकार माने। 

(ब) उत्तराधिकार युद्ध में मिलकर काम करें। 

(स) उत्तराधिकार संघर्ष में प्राप्‍त युद्ध-सामग्री का 1/3 मुराद को मिलेगा, 2/3 औरंगजेब लेगा। 

अब मुराद अहमदाबाद से चलकर 14 अप्रैल 1658 को दीपालपुर मे औरंगजेब से मिला। इसी समय मीरजुमला जिसके पास शक्तिशाली तोपखाना तथा फ्रांसीसी और अंग्रेज तोपची थे औरंगजेब से मिल गया। वास्‍तव में मीरजुमला को अपनी सेना के साथ दरबार में बुलाया गया था। औरंगजेब ने इसे बन्‍दी बनाने की खबर उड़ा दी और अनुभवी अधिकारी तथा सैन्‍य-सामग्री प्राप्‍त करने में सफलता प्राप्‍त कर ली।   

2. बहादुर गढ़ का युद्ध

फरवरी 1658 ई. औरंगजेब और मुराद में गठबंधन के कारण, शुजा एक विशाल सेना लेकर आगरा आ गया। परंतु वह बहादुरगढ़ नामक स्‍थान पर फरवरी 1658 ई. में दारा की सेनाओं से पराजित हुआ और बंगाल भाग गया। 

3. धरमठ का युद्ध 

दारा ने औरंगजेब और मुराद का दमन करने के लिये राजा जसबन्‍त सिंह और कासिम खां को भेजा। सन् 1658 में उज्‍जैन के निकट धरमठ नामक स्‍थान पर देानों सेनाओं में संघर्ष हुआ। जसबन्‍त सिंह की सेनायें औरंगजेब और मुराद की सेनाओं को पीछे खदेड़ने में सफल रहीं परन्‍तु कासिम खां ने जसबन्‍त सिंह की मदद नहीं कि अतः राजपूतों की पराजय हुई बाद में कासिम खां भी भाग गया और औरंगजेब को यह प्रथम विजय मिली। 

4. सामूगढ़ का युद्ध 

धरमठ की विजय के उपरान्‍त औरंगजेब और मुराद की सेनाओं ने आगरा से आठ मील दूर सामूहगढ़ पर पड़ाव डाला। दारा भी विशाल सेना के साथ आया। दोनों पक्षों के बीच युद्ध हुआ। दोनों पक्षों के बीच संघर्ष में दारा की पराजय हुई। युद्ध भूमि से दारा आगरा तथा दिल्‍ली चला गया। कुछ इतिहासकारों के अनुसार सामूगढ़ के युद्ध में उत्तराधिकार का निर्णय हो गया। 

5. शाहजहां को बंदी बनाना

औरंगजेब ने कुटनीति से कार्य किया। सम्राट से मिलने की इच्‍छा प्रकट की। उसके अधिकारियों ने उसे शाहजहां से न मिलने तथा दुर्ग पर अधिकार करने की सलाह दी। परंतु वह आगरा दुर्ग पर अधिकार नहीं कर सका। अतः उसने सम्राट से मिलने की इच्‍छा प्रकट की। शाहजहां के प्रति स्‍वामीभक्ति प्रकट की। शाहजहां बातचीत द्वारा समस्‍या सुलझाना चाहता था। उसने दुर्ग के द्वार खुलवा दिए। 8 जुन 1658 ई. को औरंगजेब ने प्रस्‍ताव को स्‍वीकार नहीं किया। उसने दुर्ग के द्वार पर अधिकार कर लिया और शाहजहां को बंदी बना लिया। यहीं शाहजहां की 22 जनवरी 1666 ई. को मृत्‍यु हो गई। 

6. मुराद की हत्‍या 

औरंगजेब दारा को जीवित नहीं छोड़ना चाहता था अतः वह दिल्‍ली की ओर चला। इसी समय मथुरा पहुंचने पर पता चला कि मुराद दरबारियों के बहकावे मे आकर औरंगजेब का विरोध करने के लिये तैयार हो गया था। अब औरंगजेब ने चालाकी का प्रयोग करते हुये मुराद को चिकित्‍सा के लियें 20 लाख रुपया भेज दिया त‍था भारी धन खर्च करके मुराद के साथियों को अपनी ओर कर लिया। इससे उसने एक बार मुराद में विश्‍वास को जगा दिया तथा एक भोज पर आमंत्रित किया जिसमें स्त्रियों द्वारा उसे अत्‍यधिक शराब पिला दी और रात्रि में बन्‍दी बनाकर ग्‍वालियर भेज दिया जहां वह तीन वर्ष पड़ा रहा और बाद में उसकी हत्‍या करवा दी गई।

7. दारा की हत्‍या 

दारा को औरंगजेब के आने का पता चला तो वह सात दिन तक दिल्‍ली में रूका इसके बाद वह लाहौर चल पड़ा। औरगजेब भी लाहौर तक गया। अब उसने पीछा करने के लिये अपनी सेनायें छोड़ दी और स्‍वंय दिल्‍ली आ गया। दारा मुल्‍तान, शक्‍खर, सेहवान और थट्टा और अन्‍त में गुजरात गया और 13 मार्च 1559 को देवराई पहुंचा जहां औरंगजेबी सेना से पराजित हुआ। दारा भागकर दादरा पहुंचा जिसके शासक मलिक जीवन के दारा के साथ विश्‍वासघात किया और उसे बन्‍दी बनाकर औरंगजेब के पास पहुंचा दिया। औरंगजेब ने उसे फटे वस्‍त्र पहनाकर नग्‍न हाथी पर बैठाकर घुमाया और बाद में हत्‍या करवा दी। 

8. शाहशुजा की हत्‍या 

उत्तराधिकारी के युद्ध में शुजा भी एक सेना तैयार कर खुजवा नामक स्‍थान पर औरंगजेब से लड़ने को तैयार हो गया। 5 फरवरी 1669 को युद्ध हुआ जिसमें शुजा की पराजय हो गई। वह भागकर अराकान गया वहां उसने औरंगजेब के खिलाफ एक षड्यंत्र रचा परन्‍तु पता चल जाने से जंगलो में भाग गया। जहां अराकानियों ने उसकी हत्‍या कर दी। 

उत्तराधिकारी युद्ध के परिणाम 

इस युद्ध मे औरंगजेब की सफलता के अनेक परिणाम हुये। इससे सम्‍पूर्ण मुगल शासन व्‍यवस्‍था चरमरा गई। कृषि, उद्योग, यातायात सभी की हानि हुई। धन-जन की हानि के साथ सेनायें कमजेार पड़ गई तथा दक्षिण में बीजापुर और गोलकुंडा का जीवन कुछ लम्‍बा हो गया। गोलकुंडा के खिलाफ संघर्ष रोकना पड़ा दक्षिण में शिवाजी ने, बुदेंलखंड में छत्रसाल ने सिर उठाया। उधर गुरू गोविन्‍दसिंह भी संघर्षशील हुये। शाहजहां को बन्‍दी बनाया गया तथा तीनों भाईयों की हत्‍यायें कर दी गई तथा भारत में संकीर्ण साम्‍प्रदायिक इस्‍लामी राज्‍य स्‍थापित हो गया।

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