4/13/2021

औरंगजेब की दक्षिण नीति, उद्देश्य, परिणाम

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औरंगजेब की दक्षिण नीति 

aurangzeb ki dakshin niti;औरंगजेब शासक बनने से पूर्व दक्षिण का ही सूबेदार था। वह वहां की सभी राजनीतिक हलचल से अच्‍छे तरीके से वाकिफ था। औरंगजेब शिया राज्‍यों का और हिन्‍दू राज्‍यों का शत्रु था। धर्मान्‍ध होने से इनसे घृणा भी करता था। अतः इन राज्‍यों को समाप्‍त कर वह यहां इस्‍लामी मुगल राज्‍य स्‍थापित करना चाहता था। उसने बीजापुर, गोलकुण्‍डा और मराठों के साथ युद्ध किये। 

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औरंगजेब की दक्षिण नीति के उद्देश्‍य 

वह बहुत ही महत्‍वाकांक्षी शासक था वह मुगल साम्राज्‍य का जाल दक्षिण में फैलाना चाहता था। औरंगजेब सुन्‍नी था। उसकी दक्षिण नीति में धर्म का हाथ था। वह दक्षिण के राज्‍यों को मिलाकर अपनी वित्तीय स्थिति को ठीक करना चाहता था। मराठें भी औरंगजेब के विरूद्ध हो रहे थे। दक्षिण के राज्‍य मराठों को चौथ देते है। यह उसे अच्‍छा नहीं लगा। वह अभियान पर चल पड़ा।

बीजापुर  

1665-66 ई. में बीजापुर पर  प्रथम अभियान राजा जयसिंह के नेतृत्‍व में हुआ। जयसिंह को हटना पड़ा। यह युद्ध काफी महंगा पड़ा। 1679 में औरंगजेब ने दिलेरखां को भेजा। 1685 में उसने अंतिम बार आक्रमण किया। परतुं बीजापुर अजेय रहा। औरंगजेब स्‍वंय गया। 1686 में उसने वहां अधिकार कर लिया। 

गोलकुंडा पर आक्रमण

सर्वप्रथम शहजादे मुअज्‍जम ने आक्रमण गोलकुण्‍डा पर किया परन्‍तु कोई प्रगति नहीं हुई। अतः स्‍वंय औरंगजेब ने युद्ध का संचालन किया परन्‍तु वह भी सफल नहीं हुआ। इसी समय वहां अकाल पड़ गया। एक ओर निराश भूखे सैनिक थे और उन पर निरन्‍तर आक्रमण हो रहे थे परन्‍तु औरंगजेब ने घेरा समाप्‍त नहीं किया। अब औरंगजेब ने गेालकुण्‍डा के एक नौकर को भारी रिश्‍वत देकर किले के द्वार खुलवायें। तब गोलकुंडा का सुल्‍तान औरंगजेब से भेंट करने आया तो उसे बन्‍दी बना लिया और उसे भी 50,000 रुपये की पेंशन देकर अपदस्‍थ कर दिया और गोलकुंडा को मुगल राज्‍य में मिला लिया। 

मराठे और औरंगजेब 

औरंगजेब शिवाजी से काफी कारणों से नाराज था। पहला कारण तो यह था कि वह हिन्‍दू था और वह हिन्‍दूओं का स्‍वंतत्र राज्‍य स्‍थापित करना चाहता था। उसने बीजापुर और गोलकुण्‍डा को मदद दी थी। जब औरंगजेब उत्तराधिकार युद्ध में लगा था तथा बीजापुर और खानदेश का दमन कर रहा था तो शिवाजी ने इस  परिस्थिति का लाभ उठाकर अपने राज्‍य को स्‍थापित कर लिया और राज्‍य विस्‍तार कर लिया। उसने तोरण दुर्ग 1646 , पुरन्‍थर दुर्ग 1648 , जावली दुर्ग 1656 पर अधिकार कर लिया तथा जुन्‍नार को लूट लिया। सन् 1657 में जंजीरा, कोंकण, कल्‍याण, भिवण्‍डी पर अधिकार कर लिया। 

अफजल खान की मृत्‍यु के पश्‍चात् औरंगजेब सम्राट बन चुका था तब उसने अपने मामा शाइस्‍ता खान को शिवाजी पर आक्रमण करने भेजा परन्‍तु जब वह रात्रि में पूना के एक पुराने महल में नाच-गाने में व्‍यस्‍त था शिवाजी ने आक्रमण कर भगा दिया। इसके पश्‍चात् शिवाजी ने सूरत पर आक्रमण किया। यह मुगल प्रदेश था। अब औरंगजेब ने जयसिंह को भेजा। शिवाजी ने भी कूटनीति का प्रयेाग किया और जयसिंह के प्रस्‍ताव को स्‍वीकार कर लिया कि वह आगरा जायेंगे और 23 दुर्ग मुगलों को देने के लिये तैयार हो गये। 

औरंगजेब की दक्षिण नीति के परिणाम 

औरंगजेब ने शिवाजी को आगरा बुलाकर उनको धोकें से बन्‍दी बना लिया। परन्‍तु शिवाजी औरंगजेब को मुर्ख बनाकर भाग निकले और दक्षिण पहुंच गये तथा शिवाजी ने विश्राम पाने के लिये मुअज्‍जम से संधि कर ली तथा शिवाजी की राजा की उपाधि को स्‍वीकार कर लिया परन्‍तु सम्राट ने रामसिंह को हटा दिया और दक्षिण से जयसिंह को बुला  लिया। इसके पश्‍चात् शिवाजी ने बरार, बलगान, खानदेश को जीत लिया और शिवाजी ने वे सभी किले जीत लिये जो मुगलों को दिये थे। सन् 1674 में शिवाजी का राज्‍याभिषेक हुआ तथा कर्नाटक को जीत लिया। शिवाजी की मृत्‍यु के बाद भी सन् 1680 से शम्‍भूजी और राजाराम ने संघर्ष जारी रखा। इनके पश्‍चात् धनाजी जाधव और शान्‍ताजी घोरपडे़ ने नेतृत्‍व किया तथा अनेक स्‍थानों पर मुगल पराजित हुये। राजाराम की मृत्‍यु 1700 में हो जाने के पश्‍चात् भी मराठे मुगलों से लड़ते रहे तथा मुगल जैसे ही किसी दुर्ग को जीत कर हटते तो मराठे उस पर कब्‍जा कर लेते थे। इसके कारण औरंगजेब की सैनिक शक्ति निरन्‍तर कम होती गई और औरंगजेब का स्‍वास्‍थ्‍य भी गिरता गया। उसने अपनी मृत्‍यु तक दक्षिण राज्‍यों से युद्ध किया, पीछा किया परन्‍तु किसी प्रदेश पर स्‍थाई अधिकार नहीं कर पाया तथा स्‍वंय 1707 में मर गया।

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