अंकेक्षण का वर्गीकरण अथवा प्रकार
अंकेक्षण को सामान्यतः तीन आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है--
(अ) अंकेक्षण का सामान्य वर्गीकरण
1. वैधानिक या अनिर्वाय अंकेक्षण
जब अंकेक्षण कराना किसी विधान द्वारा अनिर्वाय हो तो वह वैधानिक या अनिर्वाय अंकेक्षण कहलाता है। इसमे अंकेक्षण का क्षेत्र विधान द्वारा तय होता है। अंकेक्षण व नियोक्ता इसे किसी समझौते द्वारा खत्म नही कर सकते है। भारत मे कंपनी अधिनियम 1956 के अनुसार," हर कंपनी जिसका रजिस्ट्रेशन इस अधिनियम के अंतर्गत हुआ है उसको अपने खातों का अंकेक्षण किसी योग्य अंकेक्षण से कराना होगा।" इसके अलावा सरकार ने कुछ अन्य अधिनियम भी पास किये है, जिनके अनुसार सार्वजनिक प्रन्यास, बिजली कंपनियों, गैस कंपनियों आदि हेतु अपने खातों का अंकेक्षण कराना अनिवार्य है।
2. निजी या ऐच्छिक अंकेक्षण
जो अंकेक्षण निजी, एकांकी व्यापारी, साझेदारी फर्म अथवा अन्य संस्था के हिसाब-किताब की जांच करने के लिये कराया जाता है, उसे निजी या ऐच्छिक अंकेक्षण कहते है। इस अंकेक्षण मे कार्यक्षेत्र किसी विधान द्वारा निश्चित नही होता बल्कि यह पूर्णतया अंकेक्षण व नियोक्ता के समझौते पर निर्भर होता है।
3. सरकारी अंकेक्षण
केन्द्रीय, राज्य तथा अन्य सरकारें अपने विभागों व अपने द्वारा चलाई जा रही कंपनियों, (सरकारी कंपनियों) के हिसाब-किताब की जांच करवाती है। इस कार्य के लिये अलग से अंकेक्षण विभाग बनाया जाता है। इस विभाग का सर्वोच्च अधिकारी जिसे कम्पट्रोलर एवं ऑडीटर जनरल कहते है राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होता है। यह विभाग जांच के बाद सरकार के सामने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
(ब) अंकेक्षण का लेखों की प्रकृति के अनुसार वर्गीकरण
1. लागत अंकेक्षण
किसी संस्था के लागत लेखों की जांच को लागत अंकेक्षण कहते है। लागत अंकेक्षण का उद्देश्य, गहन जांच करके उत्पादन लागत के औचित्य के बारे मे जानकारी प्राप्त करना है।
2. वित्तीय अंकेक्षण
जब अंकेक्षक प्रारम्भिक पुस्तकों, लाभ हानि खाते व चिट्ठे का अंकेक्षण करता है तो उसे वित्तीय अंकेक्षण कहा जाता है। साधारण भाषा मे अंकेक्षण से तात्पर्य वित्तीय अंकेक्षण से ही लगाया जाता है।
(स) अंकेक्षण का व्यावहारिक वर्गीकरण
1. पूर्ण अंकेक्षण
यदि किसी अवधि विशेष से संबंधित सभी लेखा पुस्तकों की विधिपूर्वक जांच हो, जिससे कोई भी लेन-देन या लेखा न छूट जाये तो इस प्रकार की जांच को पूर्ण अंकेक्षण कहते है।
2. आंशिक अंकेक्षण
यदि संस्था का स्वामी अपने व्यापारिक वर्ष के संपूर्ण लेखो का अंकेक्षण न कराकर उसके स्थान पर उसके कुछ अंश का अंकेक्षण कराता है तो इसे आंशिक अंकेक्षण कहते है। आंशिक अंकेक्षण भी दो प्रकार का होता है--
(A) समयानुसार आंशिक अंकेक्षण
यदि 3 या 4 माह के हिसाब से अंकेक्षण कराया जाये तो उसे समयानुसार आंशिक अंकेक्षण कहते है।
(B) कार्यनुसार आंशिक अंकेक्षण
समस्त लेखा पुस्तकों के स्थान पर किसी विशेष लेखा पुस्तक का अंकेक्षण कराया जाये तो उसे कार्यानुसार आंशिक अंकेक्षण कहते है।
3. सामयिक अंकेक्षण
इसे अन्तिम अंकेक्षण, चिठ्टा अंकेक्षण और वार्षिक अंकेक्षण भी कहते है। जब वर्ष के आखिर मे मे पुस्तकें बंद हो जाती है तथा अंतिम खाते तैयार हो जाते है तब अंकेक्षण कार्य शुरू किया जाता है और पूरा करके ही अंकेक्षण कार्य समाप्त किया जाता है इसे सामयिक अंकेक्षण कहते है।
4. चालू अंकेक्षण
जब अंकेक्षण या उसका स्टाॅक वर्ष भर संस्था मे उपस्थित रहकर या एक निश्चित समयान्तर पर अंकेक्षण का कार्य करता रहता है तो उसे चालू अंकेक्षण कहते है। इसे निरन्तर अंकेक्षण के नाम से भी जाना जाता है।
5. रोकड़ अंकेक्षण
जब कोई सिर्फ नकद लेखों के अंकेक्षण के उद्देश्य के अंकेक्षण को नियुक्त करती है तो इस प्रकार के अंकेक्षण को रोकड़ अंकेक्षण कहते है। रोकड़ की जांच करते समय नैत्यक जांच (Routine Checking) को ही अपनाना चाहिए। अंकेक्षण को अपनी रिपोर्ट मे यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि उसमे सिर्फ नकद लेखों का ही अंकेक्षण किया गया है।
6. अन्तरिम या मध्य अंकेक्षण
वित्तीय वर्ष के बीच मे किसी विशेष उद्देश्य हेतु किया गया अंकेक्षण मध्य या अन्तरिम अंकेक्षण कहलाता है। जैसे यदि वर्ष के मध्य मे कोई कंपनी अन्तरिम लाभांश (Interim Dividend) घोषित करती है तो उसे सभी खाते बंद करके लाभ की सही स्थिति जानने हेतु बीच मे ही अंकेक्षण कराना पड़ता है। अन्तरिम अंकेक्षण से वार्षिक अंकेक्षण पर समय की बचत होती है। कभी-कभी व्यापार बेचने हेतु व नये साझेदार के प्रवेश करने या किसी साझेदार के अवकाश ग्रहण करने पर तथा अन्य इसी प्रकार के कार्यों हेतु भी अन्तरिम अंकेक्षण उपयोगी होता है।
7. अन्तरिम अंकेक्षण
बड़े-बड़े व्यापारों मे आजकल बहुत मात्रा मे लेन-देन होने के कारण एक कर्मचारी द्वारा किये गये कार्य को कुछ विश्वासी, अनुभवी और ईमानदार व्यक्ति दोबार जांच करते है, अर्थात् वे खुद अंकेक्षण का कार्य करते है। इस प्रकार की जांच को आन्तरिक अंकेक्षण कहते है। इससे वार्षिक अंकेक्षण मे बहुत सहायता मिलती है।
8. प्रमाणिक अंकेक्षण
यदि अंकेक्षण करते समर कुछ चुनी हुई प्रविष्टियों की गहनता से जांच की जाये और शेष मदों को एक सरसरी निगाह से जांचा जाये तो उसे प्रमाणिक अंकेक्षण कहते है।
9. प्रबंध अंकेक्षण
यह अंकेक्षण का सलाहकारी रूप हैह प्रबंधक पहले योजना बनाता है फिर उस पर कार्य करता है। अंकेक्षण व्यवसाय के विभिन्न पहलुओं, जैसे-- इन्जीनियरी, उत्पादन, क्रय-विक्रय आदि के असली कार्य परिणामों की जांच करता है तथा उसकी तुलना पूर्व निर्धारित लक्ष्यों से करता है।
10. विस्तृत अंकेक्षण
विस्तृत अंकेक्षण पूर्ण अंकेक्षण से भिन्न होते है। क्योंकि विस्तृत अंकेक्षण मे सारे व्यवहारों व लेखों की जांच न होकर, उसके स्थान पर चुने हुए व्यवहारों की गहन जांच होती है। ऐसे अंकेक्षण का क्षेत्र सीमित होता है। प्रायः यह किसी विशिष्ट उद्देश्य से होता है।
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