3/08/2021

बलबन की समस्याएं, कार्य एवं नीति

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बलबन कौन था? 

बलबन का असली नाम बहाउद्दीन था। वह इल्‍बरी कबीले का तुर्क था। वह पूर्व सुल्‍तान नासिरूद्दीन महमूद का प्रधानमंत्री था और इल्‍तुतमिश के चालीस अमीरों के दल का सदस्‍य था।

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आर.पी.त्रिपाठी के अनुसार,‘‘बलबन का राजत्‍व सिद्धांत शक्ति, प्रतिष्‍ठा और न्‍याय पर आधारित था।‘‘

बलबन की समस्‍याएं 

बलबन की समस्‍यायें इल्‍तुतमिश की तुलना में कुछ अलग प्रकार की तथा तुलनात्‍मक दृष्टि से कम गंभीर थी। इल्‍तुतमिश के समक्ष मुख्‍य समस्‍या सल्‍तनत के अस्तित्‍व की थी जबकि बलबन के समक्ष मजबूती की। सल्‍तनत को स्‍थापित हुए अब करीब 60 वर्ष हो चले थे। बलबन के समक्ष जो समस्‍याएं थीं, वह उनसे अच्‍छी तरह से परिचित था अनेक वर्षो से नायब के रूप मे वह उनसे जूझता चला आ रहा था। सुल्‍तान बनने पर बलबन के समक्ष प्रमुख समस्‍याएंं निम्‍नलिखित थी--

1. सुल्‍तान के पद और राजमुकुट की स्थिति प्रतिष्‍ठा

इल्‍तुतमिश की मृत्‍यु के बाद सुल्‍तानों और अमीरों के बीच सत्ता संघर्ष तथा सुल्‍तानों की हत्‍या से राजमुकुट की प्रतिष्‍ठा तथा सुल्‍तान के पद की गरिमा बहुत कम हो गयी थी। इस बारे मे इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी लिखता है कि ‘‘शासन पद की गरिमा बहुत कम हो गयी थी। इस बारे में इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी लिखता है कि ‘‘शासन का भय जो व्‍यवस्‍था का आधार होता है, लोगों के मन से जाता रहा। देश दुर्दशा का शिकार हो गया था।‘‘

2. आन्‍तरिक शान्ति एवं मजबूतीकरण की आवश्‍यकता 

पिछले तीस वर्षो में इल्‍तुतमिश के राजनीतिक आदर्शो का लगातार हृास हो रहा था। केन्‍द्रीय तथा प्रांतीय सरदारों के संगठन में कोई प्रगति नहीं हुई थी। तुर्की संस्‍थाओ को सुव्‍यवस्थित एंव संगठित करना अभी शेष था। बंगाल, मेवात और दोआब में विद्रोह एंव अशांति की प्रवृत्तियां प्रगति पर थीं। दिल्‍ली के आसपास का क्षेत्र मेव लुटेरों से आतंकित था। इस प्रकार आन्‍तरिक शान्ति तथा मजबूतीकरण सल्‍तनत की तात्‍कालिक आवश्‍यकता थी। 

3. बंगाल का विद्रोह एवं दमन 

इस समय बंगाल का गवर्नर तुगरिल  बेग था जिसने सुल्‍तान के बीमार पड़ने की खबर पाते ही अपने कट्टर सलाहकारों का प्रोत्‍साहन पाकर दिल्‍ली से अपना संबंध विच्‍छेद कर लिया। इसे दबाने के लिए दो बार शाही सेना भेजी गई, पर दोनों ही बार शाही सेना असफल होकर लौट आई। अंततः बलबन स्‍वयं अपने बुगरा खां के साथ बंगाल गया, तुगरिल जंगल मे भाग गया और कुछ ही दिनो बाद उसे पकड़कर मार ड़ाला गया। 

4. हिन्‍दूओं के विद्रोहो का दमन

उत्तरी भारत के हिन्‍दू नरेश धीरे-धीरे पुनः स्‍वतंत्र हो रहे थे और सल्‍तनत की शक्ति घटानें में प्रयत्‍नशील थे अंत में बलबन ने सर्वप्रथम कटेहर के हिन्‍दूओं के विद्रोह का बड़ी क्रुरतापूर्वक दमन किया। उसने विद्रोहकारी को हाथी के पैरों के नीचे कुचलवा दिया। विद्रोहियों के टुकड़े-टुकड़े किए गए उनकी जीवित खाल खींच ली गई।

5. मंगोल आक्रमण की समस्‍या 

अब तक उत्तरी-पश्चिमी का सारा भाग मंगोलो के अधिकार में जा चुका था। बलबन के लिए आवश्‍यक था कि वह मंगोल आक्रमणों को रोककर उत्तरी पश्चिमी सीमाओं की सुरक्षा की व्‍यवस्‍था करें।

बलबन की नीति एवं कार्य 

ऊपर दी गयी समस्याओं को देखते हुए बलबन का सबसे पहला लक्ष्‍य थाः सुल्‍तान की गरिमा और प्रतिष्‍ठा ऊंचा उठाना। इसके लिये उसने सत्ता के केन्‍द्रीयकरण एंव राजा की देवी उत्‍पत्ति पर बल दिया। सल्‍तनत के अनियंत्रित विकास को संगठित और सुदृढ़ करना उसका दूसरा लक्ष्‍य था। तीसरा महत्‍वपूर्ण लक्ष्‍य था कि विदेशी आक्रमणों से देश की रक्षा करना। इन लक्ष्‍यों की पूर्ति के लिए जिस नीति का अनुसरण बलबन ने किया, वह अत्‍यन्‍त कठोर थी। इसलिए उसे ‘रक्‍त और लौह‘ की नीति के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार बलबन की नीति का सार था-सल्‍तनत को सुदृढ़, संगठित एंव सुरक्षित करना तथा फिलहाल विजय और विस्‍तार की नीति का परित्‍याग था। 

बलबन की मृत्‍यु 

बलबन को मुहम्‍मद खां की मृत्‍यु के तीव्र आघात पहुंचा। शीघ्र ही 1287ई. में उसकी भी मृत्‍यु हो गई। 

मूल्‍यांकन 

दिल्‍ली सल्‍तनत के तुर्क सुल्‍तानो मे बलबन का स्‍थान ऊंचा है। डॉ.आशीर्वादी लाल श्रीवास्‍तव के अनुसार,‘‘ इस संपूर्ण युग में उसका एक ही मुख्‍य उद्देश्‍य था-हिन्‍दूस्‍तान में नव स्‍थापित तुर्की सल्‍तनत को सुसंगठित रखना। राजपद की प्रतिष्‍ठा में वृद्धि तथा शांति की स्‍थापना को समझते हुए उन्‍हें प्राप्‍त करने का सफल प्रयास किया जिसके लिए उन्‍होने ‘रक्‍त तलवार‘ की नीति को अपनाया।

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