बलबन का शासन प्रबंध (balban ka shasan prabandh)
1. बलबन का राजत्व सिद्धांत
राजत्व का मतलब उन सिद्धांतों, नीतियों तथा कार्यों से है जिन्हें सुल्तान अपनी प्रभुसत्ता, अधिकार एंव शक्ति को स्पष्ट करने के लिए अपनाता है। बलबन ने अनुभव किया कि सुल्तान का पद महत्वहीन हो गया है। अतः बलबन ने राजस्व सिद्धांत या राज्य की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए निम्न लिखित कदम उठायें--
(अ) देवीय सिद्धांत का समर्थन किया
इसके अनुसार पृथ्वी पर सम्राट ईश्वर का प्रतिनिधि होता है। बादशाह का हृदय ईश्वर का प्रतिबिम्ब होता है।
(ब) शाही वंशज होने का दावा
बलबन ने स्वंय को तुरान के अफरासियाब का वंशज बतलाया। उसने अपने पौत्रों के नाम भी प्राचीन परंपरानुसार रखे।
(स) सर्वसाधारण वर्ग से दूर रखना
सुल्तान बनतें ही बलबन ने अपने व्यवहार मे गंभीरता धारण कर ली। वह जानबूझकार एकांतवास करने लगा तथा सर्वसाधारण वर्ग से मिलना-जुलना बंद कर दिया।
(ड़) कठोर शिष्टाचार का पालन
बलबन शिष्टाचार के पालन के प्रति गंभीर था। वह हमेशा शाही वस्त्रों में ही रहता था। वह दरबार में न कभी हंसता था न दरबारियों को हंसने देता था।
(ई) ईरानी आदर्शो एंव परंपराओं का पालन एंव दरबारी वैभव की स्थापना
बलबन ने ईरानी ढंग से दरबार को सजाया। अपने लिए विशाल सुन्दर राजसिंहासन बनवाया। दरबार में ईरानी कालीन बिछाए गए। उसने सिजदा एंव पैबोस (कदमचुमाना) की प्रथा प्रारंभ की। उसके अंगरक्षक भयानक होते थे जो नंगी तलवार लिए सुल्तान के दोनो ओर खड़े रहते थे।
2. निष्पक्ष न्याय-व्यवस्था और कठोर दंड विधान
बलबन ने निष्पक्ष न्याय की व्यवस्था के बारे मे कहा जाता है कि इसकी न्याय व्यवस्था में इंसाफ और न्याय करने में वह अपने भाइयों, पूत्रों, निकटवर्तियों तथा विश्वासपात्रों का भी पक्षपात नहीं करता था।
3. उलेमा की उपेक्षा
तुर्की की राज व्यवस्था में उलेमा का विशेष स्थान था। उलेमा का दिल्ली की राजनीति पर गहरा प्रभाव था किन्तु उलेमा के अनेक सदस्य भ्रष्ट हो गए थे। बलबन ने ऐेसे चरित्र भ्रष्ट धर्म नेताओं को राजनीति से पृथक कर दिया।
4. हिन्दूओं के प्रति नीति
बलबन ने अपने शासन व्यवस्था में उलेमा का पृथक रखा लेकिन फिर भी हिन्दू जनता की स्थिति पर कोई विशेष फर्क नही पड़ा। हिन्दूओं की स्थिति सल्तनत काल में कभी भी अच्छी नहीं थी।
5. शक्तिशाली सेना
बलबन को पता था कि उसके साम्राज्य की सुरक्षा एंव विस्तार तभी संभव है जब उसके पास अत्यधिक शक्तिशाली सेना हो। अतः उसने शक्तिशाली सेन्य संगठीत कि और विशेष ध्यान दिया। उसके द्वारा नवीन प्रकार के अस्त्र-शस्त्र तैयार करवाए वे सेना में भर्ती के कठोर नियम बनाए गए।
6. गुप्तचर व्यवस्था
विशाल साम्राज्य पर बिना अकुंश लगाये शासन करने के लिए सक्षम गुप्तचर व्यवस्था का होना अत्यंत आवश्यक है। गुप्तचर व्यवस्था को कुशल बनाने में अपार धन खर्च किया गया। गुप्तचरों द्वारा ठीक काम न किए जाने पर उन्हें कठोर दंड दिया जाता था।
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